नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

अपराध के राजनीतिक संरक्षण पर अखिलेश का 'वीटो'! Akhilesh Yadav against criminal, hindi article

*लेख के लिए नीचे स्क्रॉल करें...


कल तक जो विश्लेषक यूपी की समाजवादी पार्टी सरकार को अपराधियों की मददगार मानते थे, वही आज अखिलेश यादव की मुक्तकंठ से सराहना कर रहे हैं. पिछले दिनों कई लेख और रिपोर्ट देखी, जिसमें अखिलेश यादव ने अपनी सरकार के आगे जाने का रोडमैप बेहद सख्ती से लागू किया. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में साढ़े तीन मुख्य्मंत्री हैं. हालाँकि, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने अमित शाह के इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए इसे महज़ 'ज़ुमलेबाज़ी' क़रार दिया और सबसे बड़ी बात यह हुई कि अखिलेश यादव ने हाल ही में सक्षमता से साबित भी किया कि उत्तर प्रदेश में केवल एक ही मुख्य्मंत्री है और वह हैं अखिलेश यादव! जी हाँ, यह पूरा मामला है पूर्वांचल में माफिया के नाम से कुख्यात मुख़्तार अंसारी के भाई अफ़ज़ाल अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल को सपा में विलय कराने का! किसी भी पार्टी में कई नेता होते हैं और चुनावी समीकरणों के लिहाज से वह अलग-अलग जगह बातें भी करते हैं. इस बात में कोई शक नहीं है कि पूर्वांचल की कुछ सीटों पर अपराधिक छवि होने के बावजूद मुख्तार अंसारी का प्रभाव है और अंसारी बंधुओं का मुस्लिम समुदाय से सम्बन्ध रखने के कारण समाजवादी पार्टी के लिए इस क्षेत्र में चुनावी लिहाज से यह फायदेमंद 'विलय' था. हालाँकि, अखिलेश इस बात को बखूबी जानते हैं कि समाजवादी पार्टी की बाकी सभी नीतियां दुरुस्त रही हैं, वह चाहे विकास की बात हो, नौकरियों की बात हो, समाज के पिछड़े वर्ग को सुविधाएं देने की बात हो, साहित्यकारों को मदद करने की बात हो, हर जगह सपा सरकार आगे रही है, किन्तु बात जब कानून-व्यवस्था और अपराधियों की आती है तो सपा के नेता कमजोर पड़ जाते रहे हैं! 

Akhilesh Yadav against criminal, hindi article
पर यह उत्तर प्रदेश के साथ समाजवादी पार्टी का भी सौभाग्य है कि उन्हें नए ज़माने के नेता के रूप में अखिलेश यादव मिले हैं, जिन्होंने लम्बी पारी खेलने के प्रति दृढ़ता दिखलाई है और इसके लिए उन्होंने एक झटके में अपनी पार्टी को 'आपराधिक छवि' से बाहर निकाल लिया है, वगैर वोट-बैंक की परवाह किये! हालाँकि, कई विश्लेषक यह मानते हैं कि सपा को इस फैसले से कुछ सीटों का नुक्सान होगा, किन्तु ऐसे विश्लेषकों का आंकलन सतही ही है, क्योंकि प्रदेश में ऐसे लोगों का एक बड़ा वर्ग है जो अपराधमुक्त व्यवस्था के लिए अखिलेश यादव का खुलकर सपोर्ट करेगा. कई लोग इस बात के प्रति भी आश्वस्त हैं कि अखिलेश की पार्टी यूपी में तो मजबूत है ही, वोट-बैंक की पॉलिटिक्स से निकलने की कोशिश करके उन्होंने अपनी पार्टी की छवि राष्ट्रीय बना ली है. इस बात में दो राय नहीं है कि अगर 2017 में अखिलेश यादव के व्यक्तित्व, उनके विकास कार्यों और कानून-व्यवस्था के प्रति उनकी सोच को लेकर वोट किये गए तो दोबारा अखिलेश ही सत्ता में आएंगे और अगर फिर से वह मुख्य्मंत्री बने तो 2019 में उनकी पार्टी मेजर रोल प्ले करने को तैयार हो सकेगी! जहाँ तक सवाल अखिलेश के अपराधीकरण के विरोध में खड़ा होने की बात है तो जब सपा और कौएद के विलय की बात चल ही रही थी, तब वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता ने एक टिपण्णी की थी और कहा था कि अगले एक-दो दिनों में साफ़ हो जाएगा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की राजनीतिक अपराधिकरण के विरोधी होने की छवि बनी रहेगी या टूट जाएगी. उन्होंने खुलकर कहा था कि "एक दो दिन इंतज़ार करना होगा ये देखने के लिए कि क्या अखिलेश यादव में अभी भी वो चिंगारी बाक़ी है या फिर राजनीतिक लाभ के लिए अपराधियों का साथ लेने में उनको परहेज़ नहीं है." इसके बाद क्या हुआ, इसका घटनाक्रम सबको पता है. 

Akhilesh Yadav against criminal, hindi article, mukhtar ansari, brajesh singh
हमें यह बात स्वीकारने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि हर पार्टी में शिवपाल यादव जैसे नेता होते हैं जो राजनीति को बस चुनावी जीत-हार से जोड़ कर देखते हैं और उसी के अनुसार फैसले लेते हैं. खुद भाजपा के अमित शाह भी येन-केन-प्रकारेण अपनी पार्टी को जीत दिलाने में लगे रहते हैं. ऐसे में तमाम समीकरणों को पहले तो अखिलेश ने पार्टी के भीतर ही संभालने का प्रयत्न किया और फिर भी जब बात नहीं बनी तो आज तक चैनल पर उन्होंने खुलकर कहा कि 'मुख्तार अंसारी' जैसे लोगों को वह पार्टी में नहीं चाहते हैं. हालाँकि, यह कोई पहला वाकया नहीं है जब अखिलेश ने राजनीति और अपराध के घालमेल पर रोष व्यक्त किया हो, बल्कि पहले भी अखिलेश की मजबूत सामने आ चुकी है, जब शिवपाल यादव ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बड़े माफ़िया डीपी यादव को 2012 चुनाव से ठीक पहले इसी तरीक़े से पार्टी में शामिल किया था. इस फ़ैसले के अगले ही दिन अखिलेश यादव ने इसका ज़बरदस्त विरोध किया, इतना विरोध कि इस फ़ैसले को वापस लेना पड़ा. हालाँकि, उस वक़्त अखिलेश यादव पार्टी के महासचिव और एक उभरते नेता भर थे. तब माना गया था कि अखिलेश यादव गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ हैं, राजनीति के अपराधिकरण के ख़िलाफ़ हैं. जाहिर है, अखिलेश ने राजनीति की गन्दगी में रहते हुए न केवल अपनी छवि बचाई है, बल्कि उन्होंने अन्य पार्टियों के सामने एक उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रस्तुत किया है कि अगर राजनीति से अपराध को दूर करना है तो सभी राजनीतिक पार्टियों को अपराधियों से दूरी बनाकर रखनी होगी, किन्तु यह उत्तर प्रदेश सहित देश का दुर्भाग्य है कि ऐसा हो नहीं रहा है. 

केवल अखिलेश सरकार पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगाने वालों का आंकलन थोड़ा अन्यायपूर्ण है, क्योंकि आज के समय में हर एक पार्टी अपराधियों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में अपने साथ रख ही रही है. अभी पिछले दिनों हुए यूपी एमएलसी चुनावों में वाराणसी-क्षेत्र से एक और माफिया डॉन ने निर्दलीय चुनाव जीता और तब इस बात की खूब चर्चा थी कि उसे एक खास पार्टी ने समर्थन दिया था, जो राजनीति को अपराधीकरण से दूर रखने की बात तो करती है, किन्तु उसका असल-चरित्र भी दूसरों से अलग नहीं है. इस क्रम में अगर हम सपा की प्रतिद्वंदी बसपा की बात करते हैं तो मायावती तिलमिलाई हुई हैं, क्योंकि एक तो उनकी पार्टी के बड़े नेता उन्हें छोड़कर जा रहे हैं और दूसरी ओर जिस अखिलेश सरकार को वह कानून-व्यवस्था और अपराधियों को पार्टी में शामिल करने के मामले में घेरती रही हैं, वह खोखली पड़ चुकी है. सब जानते हैं कि यह वही मायावती हैं, जिसने कभी मुख़्तार अंसारी को सार्वजनिक सभा में 'गरीबों का मसीहा' कह डाला था. जाहिर है, भाजपा हो या बसपा सभी अपराधियों का साथ अपनी सुविधा के अनुसार लेते-देते रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने पहले डीपी यादव और इस बार मुख्तार अंसारी को पार्टी से बाहर धक्का देकर एक नयी लकीर खींची है. 

Akhilesh Yadav against criminal, hindi article, Mulayam and Akhilesh
हालाँकि, इस पूरे वाकये से कौमी एकता दल के नेता अखिलेश यादव को चुनाव में सबक सिखाने की धमकी दे रहे हैं, पर युवा सीएम को अपराधियों से ज्यादा जनता पर भरोसा दिख रहा है. समाजवादी पार्टी में अपने दल के विलय को खारिज किये जाने से नाराज कौमी एकता दल (कौएद) के अध्यक्ष अफजाल अंसारी ने इसे अखिलेश यादव का ‘अहंकार’ कहा है, किन्तु ऐसे लोग खुद ही 'अहंकार' के वशीभूत होकर समाज में अपराध को बढ़ावा देते हैं और पार्टियों को ब्लैकमेल भी करते हैं. अंसारी ने कौएद के सपा में विलय को निरस्त किये जाने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उनकी पार्टी अपनी इस बेइज्जती का बदला आगामी विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल में सपा को उसकी ‘हैसियत’ बताकर लेगी. जाहिर है, ऐसे अपराधियों का राजनैतिक संरक्षण बंद होना ही चाहिए और अखिलेश यादव की इस कोशिश का सपा के अन्य नेताओं के साथ दुसरे दलों को भी सम्मान करना चाहिए, ताकि प्रदेश अपराधमुक्त होने की राह पर बढ़ सके. देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में राजनीति को अपराधीकरण करने की अखिलेश की मुहीम कितनी रंग लाती है और जनता के हित में अन्य सपाई, भाजपाई और बसपाई किस स्तर तक अपनी सोच को विस्तार दे पाते हैं.

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



यदि आपको लेख पसंद आया तो 'Follow & Like' please...





ऑनलाइन खरीददारी से पहले किसी भी सामान की 'तुलना' जरूर करें...



Akhilesh Yadav against criminal, hindi article, up government, samajwadi party, bahujan samaj party, bharatiya janta party,  Breaking news hindi articles, Latest News articles in Hindi, News articles on Indian Politics, Free social articles for magazines and Newspapers, Current affair hindi article, Narendra Modi par Hindi Lekh, Foreign Policy recent article, Hire a Hindi Writer, Unique content writer in Hindi, Delhi based Hindi Lekhak Patrakar, How to writer a Hindi Article, top article website, best hindi article blog, Indian blogging, Hindi Blog, Hindi website content, technical hindi content writer, Hindi author, Hindi Blogger, Top Blog in India, Hindi news portal articles, publish hindi article free

मिथिलेश  के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें... ( More than 1000 Articles !!)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ