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आप 'बायस्ड' हो क्या? या फिर 'पक्षपात-रहित' जीवन है आपका! Biased Unbiased, Journalism, Hindi Article, New, Media Role, Nationalism, Personalism



इंजीनियरिंग के दिनों के दोस्त 'व्हाट्सप ग्रुप' में कल चर्चा कर रहे थे कि यार, ज़ी न्यूज का सुधीर चौधरी तो बीजेपी की ओर पूरा बायस्ड है तो फिर इससे शुरू हुई बात ने धीरे-धीरे सभी चैनलों और पत्रकारों को लपेटे में ले लिया. आज तक, एनडीटीवी, टाइम्स नाउ इत्यादि से लेकर बरखा दत्त, रविश कुमार और अर्नब गोस्वामी तक का अलग-अलग एंगल से चरित्र-चित्रण किया गया. चूंकि मैं भी लिखता पढता रहता हूँ तो घूमकर बात मेरे पर भी आ गयी और मेरे दोस्तों ने मुझे भी बायस्ड (Biased Unbiased, Journalism, Hindi Article, New, Media Role) बता दिया, हालाँकि, उन्होंने मुझे 20% बायस्ड बताया तो 80% पक्षपातरहित भी बताया. थोड़ी और चर्चा चली इस मुद्दे पर विचारों की श्रृंखला ने मुझे भीतर तक झकझोरा कि ये बायस्ड, अनबायस्ड का चक्कर आखिर है क्या और इसका नैतिक, अनैतिक पहलु और जीवन-कर्त्तव्य से इसका क्या सम्बन्ध है? क्या वाकई हम 'पक्षपात रहित' रह सकते हैं अथवा हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संतुलन में इसकी भूमिका भी है. सच कहूँ तो यह बड़ा उलझा हुआ विषय है और हम सबके जीवन में बेहद गहरे तक धंसा हुआ भी है. आप अपने आस-पास नज़रें घुमा कर देख लीजिये, गिने-चुने लोग ही आपको मिल पाएंगे जिनकी निष्पक्षता को आप 80 फीसदी मार्क दे पाएंगे! इतिहास में कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिन पर चर्चा करने से शायद इस मामले पर हम कुछ और समझ सकें! महाभारत काल के पात्रों का भारतीय सभ्यता के विकास में अमिट स्थान है, क्योंकि जीवन-चरित्र के विभिन्न पहलुओं को यह महाग्रंथ बेहद सरलता और व्यवहारिक ढंग से उजागर करता है. 

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5 हज़ार साल पहले लिखे इस ग्रन्थ को आज भी पढ़ने और उस पर बने सीरियल या फिल्में देखने से इसकी प्रसांगिकता तनिक भी कम नज़र नहीं आती है. इसी महागाथा के सबसे शक्तिशाली पात्र हैं योगेश्वर श्रीकृष्ण! बायस्ड, अनबायस्ड होने के पैमाने पर उनका चरित्र भी तोला जाता रहा है. न केवल आज के लोग, बल्कि खुद उनके बड़े भाई बलराम ने उन पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया था. बेहद सुन्दर और समझने योग्य संवाद है दोनों भाइयों के बीच, जब महाभारत के निर्णायक युद्ध में बलराम आ पहुँचते हैं और हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं. श्रीकृष्ण तब उन्हें याद दिलाते हैं कि किस प्रकार महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले बलराम अपना पीछा छुड़ाकर तीर्थ करने चले गए थे, जबकि धर्मयुद्ध (Biased Unbiased, Journalism, Hindi Article, New, Media Role) होने की स्थिति में कोई भी इससे अपना पीछा नहीं छुड़ा सकता है. आज भी समाज में यही स्थिति तो है. तमाम पढ़े-लिखे लोग, तमाम प्रोफेशंस में जुटे लोग अनबायस्ड होने का स्वांग करते हैं और अंत समय में सामने आकर परिस्थिति को प्रभावित करने की कोशिश भी करते हैं. उनकी हालात और चिढ़ बलराम की तरह ही होती है. महाभारत काल के ही एक और सशक्त चरित्र हैं गंगापुत्र-भीष्म! उन्होंने भी अनबायस्ड होने की बहुत कोशिश की और नतीजा यह निकला कि परिस्थितियां विकराल होती चली गयीं. भीष्म और श्रीकृष्ण दोनों का चरित्र इस महग्रांथ में बेहद शक्तिशाली है, किन्तु एक तरह भीष्म जहाँ व्यक्तिगत धर्म लेकर चलते हैं, वहीं श्रीकृष्ण राष्ट्र-धर्म का निर्वहन करते हैं. 

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राष्ट्रधर्म का निर्वहन करते हुए रणछोड़, पक्षपाती, कुलघाती जैसे तमाम लांछन श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर सहे और दुनिया क्या कहती है, उसकी ज़रा भी परवाह नहीं की. वहीं भीष्म अपने 'व्यक्तिगत धर्म' की सीमा में बंधे रह गए और न चाहते हुए भी उनका व्यक्तिगत धर्म उन्हें राष्ट्रधर्म की विपरीत दिशा में बहा ले गया. ऐसा नहीं है कि पांडवों का साथ सिर्फ श्रीकृष्ण ने ही दिया, बल्कि उनके अतिरिक्त शिखंडी, द्रुपद से लेकर तमाम राजा-महाराजा शामिल थे, पर वह सब कहीं न कहीं व्यक्तिगत लाभ-हानि से भी जुड़े हुए थे. शायद इसीलिए, पांडवों का साथ देने के बावजूद उन सबको वह कीर्ति नहीं मिल सकी, जो श्रीकृष्ण को मिल सकी. श्रीकृष्ण-बलराम के बायस्ड/ अनबायस्ड (Hindi Article, New, Media Role, Nationalism, Personalism) उदाहरण, श्रीकृष्ण-भीष्म के व्यक्तिगत एवं राष्ट्रधर्म के उदाहरण सहित पांडव-पक्ष में श्रीकृष्ण के अतिरिक्त शिखंडी और दूसरों का राष्ट्रहित एवं व्यक्तिगत हित के उदाहरण आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. आज हम सभी नागरिक कहीं न कहीं अपने पेशे से जुड़े हुए हैं. पेशे से जुड़े रहना एवं उसकी मर्यादा का पालन करना हमारा व्यक्तिगत धर्म है तो राष्ट्र का नागरिक होना हमें हर दिन, हर घंटे और हर मिनट-सेकण्ड राष्ट्रधर्म की याद दिलाता है. राष्ट्रधर्म की खातिर, अगर श्रीकृष्ण की भांति हमें अपने पेशे में बायस्ड होना पड़े तो यह किस प्रकार गलत है? हालाँकि, यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि हमारी मनःस्थिति राष्ट्रहित की होनी चाहिए, न कि राष्ट्रहित के नाम पर किसी की चापलूसी जैसे कई पत्रकार या दूसरे लोग करते हैं. 

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हाल ही में 'गोरक्षकों' का उदाहरण भी हमारे सामने है कि किस तरह धर्म की रक्षा के नाम पर, दलितों पर अत्याचार करके 'राष्ट्रधर्म' को ही खतरे में डालने की कोशिश हुई है. साफ़ जाहिर है कि शिखंडी, द्रुपद या दूसरे राजाओं का पांडवों का साथ देना उनका व्यक्तिगत धर्म हो सकता है, किन्तु 'राष्ट्रधर्म' कतई नहीं! आज के समय अगर कोई यह कहे कि वह 'बायस्ड' नहीं है, तो उसकी यह बात असंभव की सीमा के नजदीक ही होगी. हाँ, यह जरूर है कि लोग खुद के हितों की खातिर तो बायस्ड जरूर हो जाते हैं, किन्तु श्रीकृष्ण की तरह राष्ट्रधर्म के लिए बायस्ड होना उन्हें न्याय के विरुद्ध लगने लगता है. ऐसे ही मामले में, जम्मू कश्मीर पर कई पत्रकारों की देशविरोधी रिपोर्टिंग पर अर्नब गोस्वामी की फटकार और बरखा दत्त का पलटवार (Hindi Article, New, Media Role, Nationalism, Personalism) भी खूब चर्चित हुआ था. पाक-साफ़ बनने वाले ऐसे कई लोग आपको आज मिल जायेंगे, जो भीष्म के व्यक्तिगत चरित्र की मजबूती तो छोड़ दीजिये, शिखंडी के चरित्र के बराबर भी वजन नहीं रखते हैं, किन्तु वह दूसरों पर टीका-टिपण्णी करने से बाज नहीं आते हैं. कई ऐसे लोग भी हैं, जो जरूरी मुद्दों पर बलराम की भांति तीर्थ-यात्रा पर निकल जाते हैं और आखिरी समय में अपने हस्तक्षेप की नाकाम कोशिश करते हैं. साफ़ जाहिर है कि मानव-कल्याण, राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं! व्यक्तिगत धर्म के मामले में बेशक आप भीष्म की तरह पराकाष्ठा तक पहुँच जाओ (हालाँकि, इस महान आत्मा के बराबर आज कोई नहीं), किन्तु श्रीकृष्ण की तरह राष्ट्रधर्म की पराकाष्ठा ही आपका स्थान इतिहास में अक्षुण्ण रखेगी, कुछ और नहीं!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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