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श्रीरामचरित मानस: हर युग, हर व्यक्ति के लिए प्रासंगिक

भारतवर्ष में शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने श्रीरामचरित मानस का नाम न सुना हो और बेहद कम भारतीय होंगे, जिन्हें इस महान ग्रन्थ की एकाध चौपाई याद न हो. यूं तो भगवान श्रीराम का वर्णन मूलतः वाल्मीकि रामायण में हुआ है, किन्तु जिस तरह गोस्वामी तुलसीदास ने भक्तिभाव से रामचरितमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम (Maryada Purushottam Sri Ram, Hindi Article) का चरित्र उभारा है, वह अतुलनीय है. कई विश्लेषक यह बात भी स्वीकारते हैं कि राम को पुरुषोत्तम से भगवान बनाने में श्रीरामचरित मानस का मुख्य योगदान है. श्रीरामचरित मानस की चौपाइयों ने ही श्रीराम को घर-घर पहुंचाया तो भारतीय संस्कृति को न केवल भारत में, वरन सम्पूर्ण विश्व में इस ग्रन्थ ने जीवित रखा है. विदेशों में जो भारतीय बस चुके हैं, उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखने में इस ग्रन्थ की मुख्य भूमिका रही है. इस ग्रन्थ के आध्यात्मिक और सामाजिक महत्त्व (Shri Ram Charit Manas, Hindi Literature, Reading, Writing) में किसी प्रकार का विवाद नहीं है, तो वर्तमान में इस ग्रन्थ के मुख्य चरित्र श्रीराम के नाम पर खूब राजनीति भी हुई है. भारतीय जनता पार्टी के व्यापक उभार ने साबित किया है कि राम की महत्ता 21वीं सदी में भी उतनी ही है, जितनी मुगलों के काल में थी. अपने गाँव में हर महीने किसी न किसी के घर अखंड रामायण, श्रीरामचरितमानस का पाठ होते सुनता था तो कई बार मंदिरों में बैठकर इसकी चौपाइयां भी पढ़ीं, किन्तु तब कुछ ख़ास समझ न सका. इस बीच जब लेखन की तरफ थोड़ा झुकाव हुआ तो इच्छा हुई इस ग्रन्थ का रसास्वादन करने की. फिर गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित और टीकाकार विद्वान श्रीहनुमानप्रसाद पोद्दार द्वारा संकलित 'श्रीरामचरितमानस' खरीद कर लाया, किन्तु उसका पाठ करता उससे पहले ही भावज (छोटे भाई की धर्मपत्नी) उसे अपने साथ ले गयीं. फिर रोज सोचता, किन्तु टालमटोल वाली मेरी आदत के कारण लगभग साल भर तक यह टल गया. 

इस वाकये का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूँ कि जीवन में हम जाने कितने महत्वपूर्ण कार्यों में 'टालमटोल' करते रहते हैं, वह महत्वपूर्ण सुखों और ज्ञान (Knowledge is power, Hindi Article) से इसीलिए वंचित भी रह जाते हैं. इन्टरनेट पर इस ग्रन्थ को मैं नहीं पढ़ना चाहता था, क्योंकि इसे समझने और आत्मसात करने के लिए जिस एकाग्रता की आवश्यकता होती है, वह इन्टरनेट पर दुर्लभ ही है, मेरे लिए तो निश्चित रूप से! 

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खैर, इस ग्रन्थ को पिछले दिनों ले आया और पढ़ने की शुरुआत की. 'सत्यं शिवं सुंदरम' के साथ शुरू इस ग्रन्थ प्रकाशक का निवेदन (भूमिका) बड़े सरल और सटीक शब्दों में इस ग्रन्थ की महिमा का गुणगान करता है. इसी के प्रथम परिच्छेद (पैराग्राफ) के शब्दों के अनुसार...
"श्रीरामचरितमानस का स्थान हिंदी-साहित्य में ही नहीं, जगत के साहित्य में निराला है. इसके जोड़ का ऐसा ही सर्वांगसुंदर, उत्तम काव्य के लक्षणों से युक्त, साहित्य के सभी रसों का आस्वादन कराने वाला, काव्य कला की दृष्टि से भी सर्वोच्च कोटि (Best Literature in whole world, Hindi Article) का तथा आदर्श गार्हस्थ्य-जीवन, आदर्श राजधर्म, आदर्श पारिवारिक जीवन, आदर्श पतिव्रतधर्म, आदर्श भ्रातृधर्म के साथ-साथ सर्वोच्च भक्ति, ज्ञान, त्याग, वैराग्य था सदाचार की शिक्षा देने वाला, स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध और युवा- सबके लिए सामान उपयोगी एवं सर्वोपरि सगुन-साकार भगवान की आदर्श मानवलीला तथा उनके गन, प्रभाव, रहस्य तथा प्रेम के गहन तत्व को अत्यंत सरल, रोचक एवं ओजस्वी शब्दों में व्यक्त करने वाला कोई दूसरा ग्रन्थ हिंदी-भाषा में ही नहीं, कदाचित संसार की किसी भाषा में आज तक नहीं लिखा गया. यही कारण है कि जितने चाव से गरीब-अमीर, शिक्षित-अशिक्षित (कम पढ़े-लिखे), गृहस्थ-सन्यासी, स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध,  सभी श्रेणी के लोग इस ग्रन्थ रत्न को पढ़ते हैं, उतने चाव से और किसी ग्रन्थ को नहीं पढ़ते तथा भक्ति, ज्ञान, नीति, सदाचार का जितना प्रचार जनता में इस ग्रन्थ से हुआ है, उतना कदाचित और किसी ग्रन्थ से नहीं हुआ. गीताप्रेस से सम्बंधित प्रकाशक अपने इस निवेदन में आगे लिखते हैं कि गीता पुस्तकालय में रामायण-संबंधी सैकड़ों ग्रन्थ भिन्न-भिन्न भाषाओँ के आ चुके हैं तो अनुमानतः इसकी लाखों प्रतियां छप चुकी होंगी. जाहिर है, धार्मिक ग्रंथों को छापने वाला सबसे बड़ा प्रेस 'गीताप्रेस' के आंकड़े भी इस मोक्षदायिनी, आध्यात्मिक एवं सामाजिक ग्रन्थ (Spiritual and Social Literature) की लोकप्रियता को आप ही बयान कर देते हैं. 




Shri Ram Charit Manas
भूमिका के अगले पृष्ठ पर श्रीरामचरितमानस की विषय-सूची अंकित है, जिसमें कुल सात-कांडों (भाग), बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड (Balkand, Ayodhyakand, Aranyakand, Kishkindhakand, Sundarkand, Lankakand, Uttarkand) में सम्मिलित विषयों के शीर्षक दिए गए हैं. सात-पृष्ठों में वर्णित इस विषय-सूची को मैंने विस्तार से पढ़ा और यकीन मानिये, आप इसे पढ़कर ही आगे पढ़ने हेतु रोमांचित हो जायेंगे. विषय-सूची के पश्चात् नवान्हपारायण एवं मासपारायण के विश्राम-स्थान दिए गए हैं, मतलब अगर आप श्रीरामचरित मानस का पाठ नौ दिन या महीने भर में करना चाहें तो किन पृष्ठों से शुरू कर के कहाँ विश्राम लेना है, इसका विवरण दिया गया है. तत्पश्चात पारायण-विधि से पहले पूजा और आवाहनमंत्र दिए गए हैं, जिसमें तुलसीदास, वाल्मीकि जी, गौरीपति (भगवान शंकर), पत्नीसहित लक्ष्मण जी, पत्नीसहित शत्रुघ्न जी, पत्नीसहित भारत जी, श्री हनुमान जी के आवाहनमंत्र शामिल हैं तो शुद्धि हेतु अथ आचमनं, अथ करन्यासः, अथ हृदयादिन्यासः, अथ ध्यानं के मन्त्र हैं और जिन्हें संस्कृत और हिंदी पढ़ने में थोड़ी बहुत भी रुचि हो, उनके लिए परम आनंददायक है. उसके बाद के पृष्ठ में मायामुक्त नारदजी की बात कही गयी है और फिर उसके बाद इस ग्रन्थ में मनमोहक चित्र हैं, जिसमें गोस्वामी श्रीतुलसीदास महाराज एवं रामायण (Shri Ram Charit Manas, Hindi Literature, Reading, Writing, Ramayan) के विभिन्न दृश्यों यथा पादुका-दान, जटायु की स्तुति, हनुमान जी की प्रार्थना, भूधराकार हनुमान, रावण-मंदोदरी एवं लंका-युद्ध जीतने के पश्चात् पुष्पक विमान पर आरूढ़ होने के चित्र सम्मिलित हैं. पुष्पकविमान के इस चित्र के नीचे बेहद कठिन श्लोक लिखा है, जिसे उच्चारित करने में जीभ टेढ़ी हो जाएगी, किन्तु एक बार आप इस उच्चारित कर लें तो फिर बार-बार पढ़ने को मन करेगा. देखिये इस श्लोक को...

केकीकंठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम I  
पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम II

इस श्लोक का पहला शब्द टाइप करके मैंने गूगल पर ढूंढने की कोशिश भी की, किन्तु 'गूगल देवता' भी "भगवान राम" (Lord Rama in Hindi) के पुष्पक विमान पर चढ़े होने का पूरा श्लोक नहीं दिखा पाए और इसे मुझे टाइप करना पड़ा. इस चित्र और श्लोक के बाद श्रीरामदरबार की झांकी का मनमोहक चित्र है और तत्पश्चात अगले पृष्ठ से श्रीरामचरितमानस का प्रथान सोपान 'बालकांड' शुरू होता है. 

वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। 
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ।।
(अर्थ: अक्षरों, अर्थसमूहों, रसों, छंदों और मंगलों को करने वाली सरस्वतीजी और गणेशजी की मैं वंदना करता हूँ)

इस श्लोक को मैंने कई बार रट्टा मारकर कंठस्थ करने का प्रयास किया, और काफी हद तक याद भी हो गया है. भगवान से प्रार्थना है कि श्रीरामचरितमानस का कम से कम प्रथम श्लोक मुझे हमेशा याद रहे, ताकि आगे पढ़ने की प्रेरणा मिलती रहे. इस श्लोक के बाद गोस्वामी तुलसीदास ने देवी-देवताओं की भांति-भांति प्रकार से स्तुति की है. देखिये एक चौपाई-

उघरहिं बिमल बिलोचन ही के। मिटहिं दोष दुख भव रजनी के॥ 
सूझहिं राम चरित मनि मानिक। गुपुत प्रगट जहँ जो जेहि खानिक॥
(उसके हृदय में आते ही हृदय के निर्मल नेत्र खुल जाते हैं और संसार रूपी रात्रि के दोष-दुःख मिट जाते हैं एवं श्री रामचरित्र रूपी मणि और माणिक्य, गुप्त और प्रकट जहाँ जो जिस खान में है, सब दिखाई पड़ने लगते हैं.)

ऐसे ही गोस्वामी तुलसीदास गुरु की वंदना करते हुए कहते हैं...
गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥ 
तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन। बरनउं राम चरित भव मोचन॥
(श्री गुरु महाराज के चरणों की रज कोमल और सुंदर नयनामृत अंजन है, जो नेत्रों के दोषों का नाश करने वाला है। उस अंजन से विवेक रूपी नेत्रों को निर्मल करके मैं संसाररूपी बंधन से छुड़ाने वाले श्री रामचरित्र का वर्णन करता हूं.) 


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तत्पश्चात साधु के चरित्र को कपास की भांति शुभ और विषयरहित बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी (Shri Ram Charit Manas, Hindi Literature, Reading, Writing) 'सत्संग' की महिमा पर पहुँचते हैं. सच्ची और अच्छी संगति का क्या महत्त्व होता है, यह इस पुस्तक के पृष्ठ 22 (दूसरों में अलग हो सकता है) पर दर्ज है, जिसे हर एक को पढ़ना चाहिए. देखिये, कुछ चौपाइयों को...

मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥ 
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥

बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥  
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥
(सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है.)

सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥  
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥
(दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। [अर्थात्* जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।])



दुष्टों और सज्जनों का आगे भी गोस्वामीजी ने बड़ा सहज चित्रण किया है. जी तो यही करता है कि पढता जाऊं और इस महाग्रन्थ को समझता जाऊं, किन्तु बुद्धि इतनी विशाल नहीं है जो एक दिन में इसे समझा जा सके. इसलिए शुरुआत के इस अध्ययन को पृष्ठ २४ पर विराम देता हूँ, इस उम्मीद से कि नित्यकार्यों को करते हुए कल फिर इस ग्रन्थ का रसास्वादन (Shri Ram Charit Manas, Hindi Literature, Reading, Writing) कर सकूं! रसास्वादन के साथ-साथ सरल और संक्षिप्त शब्दों में इसे अपनी ब्लॉग पोस्ट के जरिये आपके सामने प्रस्तुत करने की कोशिश भी रहेगी, जिसकी सार्थकता आप मित्र अपनी टिप्पणियों के जरिये बताएँगे. जाहिर है, यह श्रीरामचरितमानस की इस यात्रा में आप मेरे साथ हैं.

आप मित्रों को प्रणाम करते हुए विदा लेता हूँ ...
- मिथिलेश

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.



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