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हर भारतीय को चीन के मामले में भी ऐसा ही रवैया अपनाये जाने का इन्तजार है, जो असल में ड्रैगन के सामने हमारी हैसियत साबित करेगा. जाहिर तौर पर हमें 'इकॉनमी' को लेकर चीन के साथ मजबूत स्थिति में रहने की आवश्यकता है, क्योंकि 21वीं सदी की असल ताकत 'इकॉनमी की मजबूती' ही होगी. चीन से निवेश हासिल करने के नाम पर हमें किसी हालात में उसे बाज़ार पर हावी नहीं होने देना चाहिए. जिस तरह भारतीय मीडिया अपने लोगों को चीन की चालों से सावधान करता है, उससे चीन की बौखलाहट जगज़ाहिर है और इस सम्बन्ध में चीनी मीडिया का कहना है कि भारत और चीन के संबंधों में भारत मीडिया नाकारात्मकता लाने की कोशिश करता है. देखा जाए तो बार-बार, हर बार चीन ने 'हिंदी-चीनी, भाई-भाई' का नारा (India China Relation, Hindi Article, New, South China Sea, Hindi Chini Bhai Bhai, Dangerous China) लगवाकर भारत की पीठ में छूरा भोंका है और इस बात को कोई भी स्वाभिमानी भारतवासी किस प्रकार भूल सकता है. चीन को इस बात को समझ लेना चाहिए कि हम भारतीय दुश्मनी में विश्वास नहीं करते हैं, किन्तु चीन की नियत समझने में हमें किसी प्रकार का 'शक ओ सुबहा' नहीं है. अगर चीन सच में भारत से अपने रिश्ते सुधारना चाहता है तो उसे सबसे पहले पाकिस्तान द्वारा क़ब्ज़ाये कश्मीर हिस्से में चलाये जा रहे 'आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) को बंद करना चाहिए, तो पाकिस्तान के आतंकवादियों को समर्थन देना भी उसे बंद करना होगा. अंतरराष्ट्रीय कानून को धत्ता बताते हुए जिस प्रकार चीन पाकिस्तान को परमाणु सामग्री उपलब्ध कराता रहा है, वह कोई छुपी हुई बात नहीं है और इसलिए चीन की विश्वसनीयता पूरी तरह से संदिग्धता के दायरे में ही है. हालाँकि, चीनी मीडिया कई बार भारत को बढ़िया सलाह देने का दिखावा भी करती है, जैसे वर्तमान में चल रहे ओलिंपिक खेल में भारत के पिछड़ने के कारण पर चीनी मीडिया में प्रकाशित एक लेख काफी चर्चित रहा.
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यूं भी चीन में लगातार भारत का चर्चा होना भी आपसी संबंधों में नयापन की एक आश जरूर जगाता है, किन्तु इन छिटपुट बातों से क्या चीन वाकई अपनी विश्वसनीयता हासिल कर सकता है. चीन की विस्तारवादी नीति से न केवल भारत, बल्कि उसके सभी पड़ोसी देश परेशान हैं और इसलिए उसे हर एक के साथ अच्छे व्यवहार का दिखावा करने की बजाय, अच्छा व्यवहार करना होगा. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि चीन और भारत के रिश्ते में उपरी स्तर पर अचानक से आये इस बदलाव का कारण 'दक्षिण चीन सागर' विवाद पर भारत का ‘निष्पक्ष रुख' है. हालाँकि, अमेरिका, जापान सहित दुसरे देशों ने भारत से दक्षिणी चीन सागर पर चीन के खिलाफ भारत की भूमिका के लिए दबाव बनाया था. यह बात सच है कि हमारी नीति दशकों से 'गुट निरपेक्षता' की रही है, किन्तु चीन इसका मतलब यह कतई न निकाले कि भारतीय अपने हितों की रक्षा करने के लिए उचित कदम उठाने से परहेज करेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो निश्चित रूप से भारतीय प्रशासन दक्षिणी चीन (India China Relation, Hindi Article, New, South China Sea, Hindi Chini Bhai Bhai, Dangerous China) सागर समेत दुसरे मुद्दों पर भी चीन को जवाब देने का कदम उठाएगा. हालाँकि, 'दक्षिणी चीन सागर' के मुद्दे से भारत का सीधा सम्बन्ध नहीं है और इस पर जो भी सम्बंधित देश हैं, उनके इनिशिएटिव्स की भारत को आखिरी समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिए. भारतीय पक्ष द्वारा चीन को इस बात का कभी आश्वासन नहीं देना चाहिए जिससे दक्षिणी चीन सागर पर चीन का दावा सही साबित है. भारत पूर्व में 'तिब्बत' को लेकर यह गलतियां कर चुका है और अब यह गलती कतई नहीं दुहराएगा. भारत को सख्ती से यह मेसेज देना चाहिए कि हम 'गुट निरपेक्ष' जरूर हैं, किन्तु एक सीमा तक ही और अगर हमारे हित के विपरीत चीन लगातार कार्य करता रहेगा तो 'गुट निरपेक्षता' को किनारे करके हम मैदान में उतरेंगे भी और माकूल जवाब भी देंगे! दुश्मनी हम कतई नहीं चाहते, किन्तु चीन को भी इस बात को 100 फीसदी समझना होगा कि उसके उकसावे पर हमारा स्वाभिमान चुप्पी भी नहीं साधेगा!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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