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दक्षिण चीन सागर पर चीन का मनमाना रवैया! South China Sea dispute, Hindi Article, Philippines appeal to International tribunal



यूं तो तमाम वैश्विक मामलों में चीन हठवादिता दिखलाता रहा है और इसी क्रम में दक्षिण चीन सागर पर पिछले कई सालों से वह विवाद को जानबूझकर न्यौता देता आ रहा है. अंतर्राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में चीन का दक्षिण चीन सागर पर अपना एकाधिकार जताना एक तरह का 'पागलपन' ही है, किन्तु चीन इस पागलपन का हाथ जारी रखे हुए है. ज्ञातव्य हो कि दक्षिण चीन सागर को लेकर कई देशों द्वारा चीन के दावे पर प्रतिरोध जताया गया है, इसमें वियतनाम, फिलीपींस, ताइवान और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन भी शामिल हैं. अब चूंकि यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है इसलिए इन देशों के बीच विवादों को शांतिपूर्ण सुलझाने के लिए विश्व के सबसे पुराने अंतराष्ट्रीय पंचाट में स्थायी मध्यस्थता अदालत (South China Sea dispute) का रुख किया गया है. पर चीन तो चीन ठहरा, वह किसी भी हालत में इस सागर पर अपने अधिकारों से कोई समझौता करना नहीं चाहता है, बेशक इसके लिए उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग ही क्यों न होना पड़े! बताते चलें कि 35,00,000 वर्ग किमी में सिंगापुर से लेकर ताईवान की खाड़ी तक फैला दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर का एक भाग है. जो पाँच महासागरों के बाद विश्व के सबसे बड़े जलक्षेत्रों में है. इसके छोटे-छोटे द्वीप समूहों पर तटीय देशों की सम्प्रभुता की दावेदारी है. पर यहाँ मामला केवल सम्प्रभुता का ही नहीं है, क्योंकि अमेरिका के अनुसार इस सागर में प्राकृतिक गैस और तेल के कई भंडार हैं. जिसमे लगभग 213 अरब बैरल तेल और 900 ट्रिलियन क्यूबिक फिट प्राकृतिक गैस है. 

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जाहिर है, मामला प्राकृतिक संशाधनों पर कब्ज़े का भी है और चीन जैसे देश तो दूसरों के हक़ पर कब्ज़े की कोशिश में लगे ही रहते हैं. यह भी समझने लायक बात है कि इस समुद्री रास्ते से हर साल 7 ट्रिलियन डॉलर का बिजनेस होता है. 2013 के आखिर में इस सागर के पानी में डूबे रीफ एरिया को चीन ने आर्टिफिशियल आइलैंड में बदल दिया है, लेकिन यह बात चीन को समझ नहीं आती है कि अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक सिर्फ आर्टिफिशियल आइलैंड बनाने से किसी देश को उसकी टेरिटरी लिमिट करने की इजाजत नहीं मिल जाती है. इसके साथ जो बात सबसे महत्व की है, उसके अनुसार समुद्र में फ्रीडम ऑफ नेविगेशन बनाए रखना बहुत जरूरी है. गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्र-कानून देशों को उनकी समुद्री सीमा से 12 समुद्री मील तक के क्षेत्र में अधिकार देता है. उसके बाद का क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय सीमा (South China Sea dispute) के अन्तर्गत आता है और इसे 'फ्रीडम ऑफ नेविगेशन' भी कहते हैं. पर मुश्किल यह है कि चीन के लिए कौन सा अंतर्राष्ट्रीय कानून और कौन सी अंतर्राष्ट्रीय पंचायत? यूएस थिंकटैंक एशिया मैरीटाइम ट्रांसपेरेंसी इनिशिएटिव के अनुसार चीन पहले ही आर्टिफिशियल आइलैंड पर कई बिल्डिंग बना चुका है. न केवल बिल्डिंगें बल्कि, यहां उसने मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर, हेलिपैड, कम्युनिकेशन और कंक्रीट प्लांट भी बनाए हैं. हालाँकि, इस मामले में अमेरिका भी सचेत है और अमेरिका के रक्षा मंत्री एस्टन कार्टर ने कहा है कि "मैं आशा करता हूं कि इस दिशा में कोई विकास ना हो, क्योंकि उसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका और क्षेत्र में मौजूद अन्य पक्षों द्वारा कार्रवाई की जाएगी, और उससे क्षेत्र में ना सिर्फ तनाव बढ़ेगा बल्कि चीन अलग-थलग भी पड़ जाएगा." पर मुश्किल यह है कि चीन को अलग-थलग पड़ने की कतई चिंता नहीं है और दक्षिणी चीन सागर पर उसका हाथ समूचे क्षेत्र को अशांति की ओर धकेल रहा है. 


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इस क्रम में, दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) ने भी दक्षिण चीन सागर में बढ़ते क्षेत्रीय तनावों पर बयान दिया था, लेकिन दुर्भाग्य से चीन को बुरा ना लग जाय इस डर से वापस भी ले लिया. जाहिर है, इसके सदस्य देशों पर चीन का खासा प्रभाव है. हालाँकि, फिलीपींस ने इस सागर पर चीन के एकाधिकार के खिलाफ अंतराष्ट्रीय पंचाट में मुकदद्मा जरूर किया है, किन्तु चीन साफ़-साफ़ कह चुका है कि दक्षिणी चीन सागर के सन्दर्भ में वह किसी भी अंतर्राष्ट्रीय-संस्था का सम्मान नहीं करेगा. मतलब, जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत यहाँ बिल्कुल सटीक बैठती है. देखा जाय तो चीन अपनी शक्तियों का अनैतिक तरीके से बढ़ाने में लगा हुआ है. दक्षिण चीन सागर (South China Sea dispute) पर दावा, पाकिस्तान से दोस्ती और उत्तर कोरिया को सपोर्ट समेत चीन की गतिविधियों पर पूरे विश्व की निगाह जमी हुई है. जहाँ तक बात अंतर्राष्ट्रीय पंचायत की है तो लगभग 30 साल पहले भारत और बांग्लादेश के विवादों पर अंतराष्ट्रीय पंचाट स्थायी मध्यस्थता अदालत के फैसलों को भारत ने एक बार में मान लिया, जबकि फैसला बांग्लादेश के पक्ष में था. उस समय भारत ने अपने और अपने पड़ोसियों के लिए के हित के बारे में सोचा और अब चीन को भी ऐसा ही करना चाहिए. हालाँकि, ड्रैगन आज भी आग उगलने वाली नीतियों के सहारे दुनिया को जीतना चाहता है और उसकी हठीली नीतियों का दुष्परिणाम क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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