कोई लाग-लपेट नहीं, कोई दिखावा नहीं और नारी की छवि को लेकर कोई ड्रामेबाजी नहीं! सीधा सन्देश जो आज 21वीं सदी में जरूरत बन चुकी थी और सब जानते हुए जिसे दिखाने और कहने का साहस लोगबाग नहीं जुटा पा रहे थे, उसे 'पिंक' ने पूरा कर दिखाया है. निस्संदेह अमिताभ बच्चन कई दशकों से बॉलीवुड के सुपरस्टार हैं, किन्तु अगर उनकी 10 बेहतरीन फिल्में चुनी जाएँ तो 'पिंक' का नाम उसमें हर हाल में शामिल होगा. एंग्री यंग मैन का ख़िताब उन्हें बॉलीवुड में क्यों मिला है, 'पिंक' देखने के बाद यह बात पूरी तरह साफ़ हो जाती है. यूं तो इस फिल्म में निर्देशन, कैमरा से लेकर प्रत्येक कलाकार (Women rights, Pink Movie, Must watch, Hindi Article, Review, Amitabh Bachchan, Taapsee Pannu, Social Message Movies) की एक्टिंग जबरदस्त रही है किन्तु अगर इस फिल्म को अमिताभ बच्चन की फिल्म कहा जाए तो गलत न होगा. कहते हैं सही सन्देश देने के लिए सही 'चेहरा' आवश्यक होता है और अमिताभ बच्चन ने 'पिंक' में इसे साबित भी किया है. लुक, संवाद और बॉडी लैंग्वेज से कहीं भी बिग बी ने निराश नहीं किया है और जिस तरह का तालमेल उन्होंने इस फिल्म के अन्य कलाकारों के साथ अपने अभिनय में दिखलाया है, वह लाजवाब है. बाद जहाँ तक फिल्म के द्वारा दिए जाने वाले सामाजिक सन्देश की है तो आश्चर्य करने वाली बात यह है कि इतनी सशक्त फिल्म को अब तक तमाम जगहों पर 'टैक्स फ्री' क्यों नहीं किया गया है. इस बात में दो राय नहीं है कि पुरुषवादी मानसिकता में डूबते उतराते रहने वाले प्रत्येक भारतीय को यह फिल्म अवश्य ही देखनी चाहिए.
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अमिताभ बच्चन के साथ तापसी पन्नू, कीर्ति कुल्हाड़ी, एंड्रिया टेरिंग, अंगद बेदी, पियूष मिश्रा, ममता शंकर एवं धृतमान चटर्जी जैसे कलाकारों का अभिनय आपको स्क्रीन से एक मिनट के लिए भी आंख नहीं हटाने देगा. जज के रोल में धृतमान चटर्जी ने सटीक भाव व्यक्त किये हैं तो इंटरवल के बाद कोर्ट-रूम के दृश्य पुरुषों की दोहरी मानसिकता की कई परतें उधेड़ देता है. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अनिरुद्ध राय चौधरी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में नारी के इच्छा के विरुद्ध उसका यौन-शोषण करने का 100 फीसदी विरोध तो किया ही गया है, उसके साथ-साथ पूर्वोत्तर के नागरिकों के साथ भेदभाव का भी सटीकता से ज़िक्र किया गया है, जो फिल्म समाप्त होने के बाद भी याद रह जाता है. मुख्य मुद्दे की बात करें तो यह फिल्म बदलते दौर की महिलाओं की कहानी क्रमवार कहती है. किस तरह 18 - 19 साल की लड़कियां आज वर्जिनिटी (Women rights, Pink Movie, Must watch, Hindi Article, Review, Amitabh Bachchan, Taapsee Pannu, Social Message Movies, Loosing Virginity) खोने को तैयार हैं, किस तरह उन्हें अकेले रहने और कमाने में परहेज नहीं है और किस तरह वह सेक्स को 'कैजुअली' लेती हैं, यह फिल्म सफाई से बताती है. सवाल यहाँ गलत-सही का नहीं है, बल्कि फैक्ट यही है कि आज समाज की हकीकत यही है और वह चाहे लड़का हो या लड़की 'सेक्स' उसके लिए कोई बंदिश नहीं रह गयी है. हालाँकि, फर्क सिर्फ यह है कि पुरुष अपने बारे में तो खुले नज़रिये का प्रयोग करते हैं किन्तु महिलाओं के बारे में वह 'पुरातन' विचार धारण किये हुए हैं. फिल्म में एक संवाद आता भी है कि शरीफ घर की महिलाएं शराब नहीं पीतीं, पार्टियों में नहीं जाती हैं बला, बला ... किन्तु फिल्म ने यह सिद्ध किया है कि अब यह सब महिलाओं के लिए कॉमन बनता जा रहा है और सिर्फ इस आधार पर कोई पुरुष किसी महिला से जबरदस्ती कर ले, यह कानूनी और नैतिक दोनों ही तरह से गलत है.
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एक महिला शराब पीती है, वह हंसती है, दोस्तों के बीच नॉन-वेज जोक्स कहती है, देर रात तक पार्टी करती है, किन्तु अगर सेक्स के लिए वह 'नो' कहती है तो इसका मतलब 'नहीं' ही होना चाहिए! यहाँ तक कि अगर कोई 'सेक्स वर्कर' भी है, तो भी उसकी 'ना' का मतलब 'ना' ही होना चाहिए. देखा जाए तो महिला अधिकारों पर एक लंबी लड़ाई हमारे देश में चली है और 'पिंक' उसी लड़ाई को एक अगले स्तर पर ले जाती है. हालाँकि, हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आज भी महिला को अपनी निजी प्रॉपर्टी (Women rights, Pink Movie, Must watch, Hindi Article, Review, Amitabh Bachchan, Taapsee Pannu, Social Message Movies, Male dominance is bad) मानकर व्यवहार करते हैं, बजाय कि अपनी बराबरी के इंसान मानने के! ऐसे लोगों को 'पिंक' फिल्म एक बार नहीं, बल्कि कई बार देखनी चाहिए ताकि उनके बंद बददिमाग में कुछ ताज़ी हवा घुस सके. समाज में आ रहे बदलावों को एक सही दिशा देने के लिए 'टीम पिंक' को जितनी बधाइयां दी जाएँ, कम ही हैं. आने वाले दिनों में ऐसे विषयों पर बिना लाग-लपेट के कहानियां बननी चाहिए, जो निश्चित रूप से समाज पर सकारात्मक असर छोड़ सकती हैं ... धीरे-धीरे ही सही!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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