समय-परिवर्तन एक शाश्वत प्रक्रिया है और महिलाओं को लेकर भी यह बात उतनी ही सच है. हमारे देश में नारी की पूजा शक्ति के रूप में करने की परम्परा वर्षों पुरानी है, हम दुर्गा और काली की पूजा करते रहे हैं उनसे शक्ति प्राप्त करने के लिए (Indian forces, Air force, Navy, Army). जब कभी वीरता और साहस की बात आती है, तो रानी लक्ष्मीबाई का उदाहरण भला कौन नहीं देता है, लेकिन वास्तविक दुनिया में महिलाओं को लेकर हमारी मानसिकता जरूर पिछड़ी हुई. इसी पिछड़ी मानसिकता के खिलाफ आज वायुसेना की एक विंग कमांडर अपने अधिकारों के लिए कोर्ट का दरवाजा खटका रही है. जी हाँ, हम बात कर रहे हैं, एयर फ़ोर्स की अधिकारी पूजा ठाकुर की! ज्ञातव्य हो कि ये वही पूजा ठाकुर हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को गार्ड ऑफ़ ऑनर देकर सुर्ख़ियों में छा गयी थीं. वह राष्ट्रपति भवन में किसी राजकीय मेहमान को दिए गए गार्ड ऑफ ऑनर का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी (Puja Thakur wing commander) बनी थीं. पूजा ठाकुर का कहना है कि एयरफोर्स ने उन्हें परमानेंट कमीशन (रिटायर होने तक सेवा में बने रहना) देने से इनकार कर दिया है. पूजा ठाकुर को एयरफोर्स का यह रवैया भेदभावपूर्ण, पक्षपातपूर्ण, मनमाना और बेतुका लगता है तो इसके पीछे वाज़िब वजहें भी नज़र आती हैं. आश्चर्य है जहाँ हर क्षेत्र में औरतें अपने आपको सिद्ध कर रही हैं और अपने लिए स्थान बना रही हैं, वहीं भारतीय सेना में उनका दायरा बहुत सीमित रखा गया है. क्या हमें उनकी काबिलियत पर संदेह है अथवा कोई और व्यवहारिक समस्या है?
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अगर कोई समस्या है भी तो क्या उसे अनन्त-काल तक अनसुलझा छोड़ दिया जाना चाहिए, क्योंकि अब 21वीं सदी का दूसरा दशक भी बीतने जा रहा है और हमारी सोच वही 20वीं सदी वाली ही बनी हुई है. अगर सेना में महिलाओं के प्रतिनिधित्व (Indian forces, Air force, Navy, Army) की बात करें तो, सब से पहले 1990 में महिलाओं को आर्मी में जगह दी गयी, वो भी सीमित शाखाओं पर केवल 14 सालों के लिए. इसी क्रम में, एक आंकड़े के अनुसार हमारी सेना में महिलाओं की भागीदारी 1436 आर्मी में, 413 नेवी में और 1331 एयरफोर्स में है. बेहद आश्चर्य की बात है कि 13 लाख सैन्य बल वाले देश में सिर्फ 60 हजार महिला सैनिक ही हैं.
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यह भी गौर करने वाली बात है कि कोर्ट से लड़ाई के बाद सिर्फ 340 महिला अधिकारियों को ही परमानेंट कमीशन मिल पाया है अब तक! इसमें भी लड़ाकू विमान, युद्धपोत, पैदल सेना, बख्तरबंद और तोपखानों में महिलाओं की नियुक्ति नहीं हो सकती है. अगर हम दूसरे देशों की बात करें तो यूएस, तुर्की, रसिया और पाकिस्तान जैसे देशों में भी महिला फाइटर (Indian forces, Air force, Navy, Army) प्लेन उड़ाती हैं. मलयेशिया, बांग्लादेश और श्रीलंका में युद्धपोतों पर भी महिला सैनिकों की नियुक्ति होती है. यूएस में तो महिलाएं न्यूक्लियर बैलेस्टिक सबमरीन पर भी नियुक्त होती हैं. लेकिन हमारे देश में अभी औरतों को इतना काबिल क्यों नहीं समझा गया है, यह जरूर चौंकाने वाली बात है.
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इसी कड़ी में, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी स्वीकार किया है कि सामान्य तौर पर सशस्त्र बलों में पुरुषों का वर्चस्व है और हमें औरतों के लिए रणनीतिक कदम उठाने की जरूरत है. अगर सेना और नौसेना महिलाओं के लिए लड़ाकू भूमिका के रास्ते खोलती है तो भारत भी इस तरह की व्यवस्था रखने वाले अमेरिका, इस्राइल समेत दुनिया के अन्य देशों के महत्वपूर्ण क्लब में शामिल हो जाएगा. हालाँकि थोड़ी उम्मीद की किरण इस बात से जरूर जगी है कि मोहना सिंह, अवनी चतुर्वेदी और भावना कंठ के रूप में भारतीय वायुसेना में फाइटर प्लेन पायलट के रूप में इन्हें कमीशन मिला है, लेकिन अभी बहुत लम्बा सफर तय करना बाकी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि पूजा ठाकुर भी (Indian forces, Air force, Navy, Army) अपनी लड़ाई में वाजिब जीत हासिल कर सेना में परमानेंट कमीशन के साथ देश को लम्बे समय तक अपनी सेवा दें, जिससे आने वाले समय में सशत्र सेनाओं में महिलाओं की आनुपातिक भागीदारी सुनिश्चित हो सके. हालाँकि, वर्तमान समय में भारतीय सेनाओं के अपने तर्क हो सकते हैं, किन्तु औरतों को सेनाओं में शामिल करना 'ख़ुफ़िया' लिहाज से, आतंकियों से राज उगलवाने के नजरिये से, साइबर-क्राइम पर रोक लगाने में हमें मनोवैज्ञानिक और धरातल पर ख़ास बढ़त दिला सकता है.
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आज समूचा विश्व आतंक से पीड़ित है, जिनमें महिलाएं भी आतंकी हैं. ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि पुरुष और महिला सैनिकों में कौन बेहतर ढंग से परिस्थितियों को हैंडल कर सकता है. इसके अतिरिक्त, कई ऑपरेशन्स में महिलाओं की भूमिका, पुरुष सैनिकों से कई गुणा आगे (Indian forces, Air force, Navy, Army) हो सकती है. हालाँकि, यह सपना दूर की कौड़ी लगता है, किन्तु भारतीय सेनाओं को इस बात के लिए तैयार होना ही होगा कि आने वाले 50 सालों में कोई महिला आर्मी-चीफ बन सके, नेवी-चीफ बन सके या एयर फ़ोर्स के चीफ के तौर पर वह नीतियां बना सके. जाहिर है, आने वाले समय की चुनातियों से निपटने के लिए यह एक व्यवहारिक रास्ता है, जिसके लिए भारतीय सेनाओं को अपने कल्चर में जरूरी बदलाव लाने की शुरुआत करनी ही चाहिए.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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