वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में आ गया है. दुर्भाग्य से इसके लिए एक पूर्व सैनिक को अपनी जान देनी पड़ी है और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य है कि खुद सेना के पूर्व जनरल रहे वीके सिंह ने इस मसले पर बेहद विवादित बयान दिया है. अब विदेश राज्य मंत्री बन चुके जनरल वी के सिंह ने इस संबंध में कहा कि आत्महत्या करने वाले पूर्व सैनिक की मानसिक स्थिति की जांच होनी चाहिए! समझा जा सकता है कि इस तरह का संवेदनहीन बयान, वह भी ऐसे समय पर मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति ही दे सकता है. क्या वीके सिंह को इस तरह का बयान देने की इजाजत इसलिए मिलनी चाहिए क्योंकि वह खुद सेना से रहे हैं? कतई नहीं! इस देश के लिए एक सैनिक की कीमत हजार राजनेताओं से ज्यादा रही है और शायद यही कारण है कि तमाम खतरों के बावजूद हमारा देश आज भी सीना ताने खड़ा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्तमान केंद्र सरकार वीके सिंह के इस बयान पर सख्ती से पेश आएगी. जहां तक बात 'वन रैंक वन पेंशन' की है तो निश्चित रूप से इस पर राजनीति की रोटियां सेंकी जा रही हैं. वह चाहे राहुल गांधी हों, चाहे अरविंद केजरीवाल हो, इस मुद्दे को लेकर मोदी सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति पर कार्य कर रहे हैं. इसके लिए बेशक उन्हें मृतक सैनिक के परिवार वालों की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है. इस क्रम में, यह भी सोचने वाली बात है कि यह मुद्दा लगभग 40 साल पुराना था जिसे वर्तमान केंद्र सरकार ने बड़ी मशक्कत के बाद सुलझाने का कार्य पूरा किया है. हालाँकि, उसमें कुछ कमियां रहने की बात भी हो रही है, जिसे रेड्डी कमीशन द्वारा ठीक करने का कार्य भी किया जा रहा है. अगर इस सैनिक की आत्महत्या से अलग हट कर भी सोचें, तो सवाल वही है कि यह मुद्दा इतना लंबा क्यों खींचा है? हमारे देश में आखिर हर बात पर आम नागरिकों को, आम सैनिकों को जान क्यों देनी पड़ती है? शायद इसीलिए इस मुद्दे पर केंद्र सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है! Ex Soldier Suicide, OROP, Hindi Article, New, General V K Singh Controversial Statement, Indian Army, Defense Ministry, Editorial, Politics, Rahul Gandhi, Arvind Kejriwal
जो ख़बरें इस मसले पर सामने आ रही है उसके अनुसार सेना से जुड़े लोग हाल के दिनों में जिन मुद्दों पर भेदभाव की शिकायत कर रहे हैं, उसके लिए 'ब्यूरोक्रेसी' को जिम्मेदार बताया जा रहा है. गौरतलब है कि पिछले साल नवंबर में ही 'वन रैंक वन पेंशन' की नोटिफिकेशन में कई विसंगतियां सामने आई थी और ख़बरों में इसके लिए नौकरशाही के हावी होने का हवाला दिया जा रहा है. यहां तक कि नोटिफिकेशन के आखिरी समय में कुछ बदलाव से सेना और राजनीतिक नेतृत्व में भी आश्चर्य उत्पन्न हुआ था. वैसे भी हमारे देश में नौकरशाही कामों को अटकाने के लिए ही जानी जाती है. वो कहते हैं न कि 'ब्यूरोक्रेट्स आर पेड फॉर डूइंग नथिंग'! निश्चित रूप से केंद्र सरकार को इन प्रशासनिक खामियों पर कड़ाई से पेश आना होगा, खासकर 'ओआरओपी' मुद्दे पर तो अवश्य ही! इस मामले में सिविलियन अफसरों के मुकाबले सैन्य अफसरों की डाउनग्रेडिंग का मुद्दा पहले ही केंद्र सरकार को परेशान किये हुए है. कहा जा सकता है कि अगर इस मुद्दे पर जल्द ही समुचित निर्णय नहीं लिया गया तो विपक्षी पार्टियां राजनीति करेंगी ही करेंगी! राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल इस मामले में गिरफ्तारी तक दे चुके हैं तो पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी कहा है यह बहुत दुखद है कि हमारे पूर्व जवान ने आत्महत्या कर ली और विपक्षी नेताओं को सैनिक रामकिशन ग्रेवाल के परिजनों से मिलने से रोका गया! जाहिर तौर पर सवाल तो उठेंगे और इनका जवाब सरकार को ही देना पड़ेगा. यह बात अलग है कि सुसाइड करने वाले रामकिशन ग्रेवाल 'वन रैंक वन पेंशन' के हकदार थे क्योंकि उन्होंने डिफेंस सिक्योरिटी कोर में लगभग 24 साल सेवा दी थी. ख़बरों के अनुसार, उन्हें किसी बैंक कैलकुलेशन की गलती के कारण कम पेंशन मिली थी. हालाँकि, इसकी पुष्टि नहीं हुई है, किन्तु इस पूरे मामले को डिफेन्स मिनिस्ट्री को बेहद गंभीरता से लेना चाहिए. Ex Soldier Suicide, OROP, Hindi Article, New, General V K Singh Controversial Statement, Indian Army, Defense Ministry, Editorial, Politics, Rahul Gandhi, Arvind Kejriwal
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कहना बहुत आसान है कि लोगों को आर्थिक समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए, किंतु इस पर व्यवहारिक कठिनाइयों की वजह से रिटायरमेंट के बाद आम सैनिकों को क्या मुसीबत झेलनी पड़ती है यह बात सरकार बखूबी समझती होगी! समाजसेवी अन्ना हजारे ने भी इस मामले में सरकार से अपील की है कि वह पूर्व सैनिकों के सवालों पर अपनी स्थिति साफ करे. जाहिर तौर पर इस पूर्व सैनिक द्वारा आत्महत्या किये जाने से सरकार सवालों के घेरे में है और विंटर सेशन में यह मुद्दा निश्चित रूप से सरकार को घेरेगा! दिल्ली पुलिस पर इस संबंध में पूर्व सैनिक के बेटे द्वारा लगाया गया आरोप भी बेहद संगीन है कि उसे थाने में लात घूसों से पीटा गया. जाहिर तौर पर अगर ऐसा कुछ हुआ है तो संबंधित पुलिसकर्मियों एवं अधिकारियों पर कठोर से कठोरतम कारवाई की जानी चाहिए, अन्यथा यह मामला दिन-ब-दिन बिगड़ता ही जाएगा. दिल्ली पुलिस 'शांति व्यवस्था' के नाम पर द्वारा राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी भी जायज नहीं कही जा सकती. आखिर इस तरह से लोगों को गिरफ्तार किया जाएगा तो लोकतंत्र पर प्रश्नचिन्ह स्वभाविक रुप से उठेगा! इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री ने पत्रकारों से कहा कि जोखिम कम करने के लिए जो भी करना होगा दिल्ली पुलिस करेगी. राजनाथ सिंह की इस बात को भला कैसे जायज ठहराया जा सकता है कि सरकार 'जोखिम' कम करने के नाम पर सवाल पूछने वालों को थाने में ठूस दे? राजनाथ सिंह को दिल्ली पुलिस पर लग रहे आरोपों के संबंध में ठीक से जवाब देना चाहिए. आखिर एक पूर्व सैनिक मरा है और उसकी अहमियत किसी हाल में कम नहीं होनी चाहिए, अन्यथा सेना के मनोबल पर इसका असर पड़ना तय है. देखा जाए तो, इस मामले को सरकार ने जिस तरीके से हैंडल किया है उसकी प्रशंसा तो कतई नहीं की जा सकती. अगर कहीं चूक हुई है तो इस पर सरकार द्वारा अवश्य ही माफी मांगनी चाहिए, तो इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 'ओआरओपी' पर चल रही अनिश्चितता को निश्चित अवधि में समाप्त किया जाना चाहिए, तभी इस देश के आम नागरिकों का भरोसा सरकार पर बना रह पाएगा. इसके सिवा भरोसा कायम रखने और लोकतंत्र की गरिमा को बनाये रखने का कोई दूजा रास्ता नहीं है, नहीं है, नहीं है!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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