नवंबर के आखिरी दिनों में जब लोकप्रिय भोजपुरी गायक मनोज तिवारी की दिल्ली प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष के रूप में घोषणा हुई तो मुझे कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ. बरबस ही बीता विधानसभा चुनाव याद आ गया जिसमें आम आदमी पार्टी ने क्लीन स्वीप करते हुए 70 में से 67 सीटें अपनी झोली में डाल ली थी. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि तब आम आदमी पार्टी को दिल्लीवासी एक मौका देना चाहते थे और कांग्रेस का लगभग पूरा वोट बैंक आम आदमी पार्टी की तरफ खिसक गया था. इस कथन में थोड़ा संशोधन करें तो कांग्रेस का वोट वर्ग पूरा आम आदमी को ही शिफ्ट नहीं हुआ था, बल्कि भाजपा में भी काफी वोटर्स गए थे, किंतु भाजपा के अपने वोटर्स, आम आदमी पार्टी की तरफ जाने को मजबूर हुए थे. कहने को तो भाजपा का वोट पर्सेंट स्थिर रहा था, किंतु कांग्रेस के पतन में उसका वोट परसेंटेज बढ़ना चाहिए था और वह हुआ नहीं! इसका कारण उतना गूढ़ भी नहीं है, बल्कि सावधानी से देखने पर चीजें बेहद साफ़ नज़र आ सकती हैं. राजनीतिक विश्लेषकों को अगर वह दौर याद हो तो वह समझ पाएंगे कि आम आदमी पार्टी की लहर के अतिरिक्त पूर्वांचलियों को टिकट न देने का मुद्दा भी तब बेहद तेजी से फैला था और एक बड़े वोट वर्ग में निराशा सी फ़ैल गयी थी. 70 में से तकरीबन 52 - 55 सीटों पर भाजपा ने पहले चरण में उम्मीदवार उतार दिया था, जिसमें एक भी पूर्वांचली का नाम नहीं था. काफी हो-हल्ले के बाद उनमें दो सीटों पर आनन-फानन में पूर्वांचली उम्मीदवारों को टिकट दिया गया. उन दोनों उम्मीदवारों को हारना ही था, क्योंकि एक तो टिकट मिलने की उन्हें उम्मीद नहीं थी और तब तक माहौल भाजपा के खिलाफ जा चुका था. समझा जा सकता है और बाद में राजनीतिक अनुमान भी लगाया गया कि पूर्वांचल का एकमुश्त वोट बैंक आम आदमी पार्टी की ओर शिफ्ट कर गया था, जिसने दर्जनभर से ज्यादा पूर्वांचल उम्मीदवारों को ही टिकट दिया था. अब तो खैर दिल्ली की तमाम कालोनियों में बकायदे आम आदमी पार्टी का पूर्वांचल प्रकोष्ठ गठित हो चुका है, तो छोटे बड़े नेता भी मैदान में आ चुके हैं. Manoj Tiwari, Delhi BJP President, Hindi Article, New, MCD Elections, Political Article, Purvanchal Voters Equation, Bhojpuri Bhasha Movement, Capital Politics
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दिल्ली में अपनी करारी हार से परेशान भाजपा को पूर्वांचली वोटर्स को रिझाने हेतु एक बड़े और लोकप्रिय चेहरे की जरूरत थी और उनकी यह खोज मनोज तिवारी पर आकर समाप्त हुई. हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी समाजवादी पार्टी में थे और भाजपा के फायर ब्रांड लीडर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ दो-दो हाथ कर चुके थे. एक वरिष्ठ विश्लेषक ने यूं ही चल रही चर्चा में मुझे कहा कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष हेतु मनोज तिवारी के नाम की चर्चा चल तो रही है, किंतु कम राजनीतिक अनुभव होना और भाजपाई कैडर का ना होना उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने में एक बड़ा रोड़ा है. हालांकि उन महोदय की आशंका निर्मूल साबित हुई और अब मनोज तिवारी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दिल्ली में होने वाले एमसीडी चुनाव के ताने-बाने बुनने के प्रमुख कर्णधार घोषित किए जा चुके हैं. देखा जाए तो पूर्वांचल के वोटर्स की लगातार बढ़ती तादाद जो दिल्ली भर में तकरीबन 45 प्रतिशत से ज्यादा हो चुकी है, उसे हासिल करने हेतु पुरबियों पर दांव लगाना भाजपा की मजबूरी बन चुका था, और खासकर तब जब दिल्ली में पूर्वांचल के वोटर्स भाजपा से नाराज चल रहे हों. उन्हें एक बड़ा दांव खेलना ही था और बिना क्षेत्रीय राजनीति के दबाव में फंसे केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने सटीक दांव लगाया है. हालांकि भाजपा का यह फैसला कितना रंग लाएगा इस बाबत अभी से कोई भविष्यवाणी करना जल्दबाजी ही होगी. दिल्ली की राजनीति में अब तक बंटवारे के समय पाकिस्तान से आया पंजाबी वर्ग, जाट वर्ग और व्यापारियों का दबदबा रहा है. जाहिर तौर पर पहली बार किसी पूर्वांचली के नेतृत्व को इन वर्गों के छोटे-बड़े नेता किस तरह पचा पाते हैं, इस पर काफी कुछ निर्भर करेगा. वैसे, गुटबाजी की इन आशंकाओं के बावजूद भाजपा-आरएसएस क्षेत्रवाद से दूर रहने और राष्ट्रवाद की अलख जगाने की कोशिश करती है, तो उम्मीद जताई जानी चाहिए कि केंद्रीय नेतृत्व का नए प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पर मजबूत हाथ बना रहेगा, जिससे दिल्ली प्रदेश में गुटबाजी पर नियंत्रण पाया जा सकेगा. अगर मनोज तिवारी की व्यक्तिगत बात की जाए तो पैदा वह बिहार में हुए हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई उत्तर प्रदेश में हुई है और अब पिछले ढाई साल से पूर्वोत्तर दिल्ली से वह सांसद हैं. Manoj Tiwari, Delhi BJP President, Hindi Article, New, MCD Elections, Political Article, Purvanchal Voters Equation, Bhojpuri Bhasha Movement, Capital Politics
भोजपुरी के लोकप्रिय गायक रहे हैं मनोज तिवारी और उनके गाए गाने आज भी पुरबिया लोगों की जुबान पर सुना जा सकता है. बगलवाली जान मारेली, लाल लाल होठवा जैसे उनके गाने भोजपुरी भाषा को संविधान की आंठवी अनुसूची में शामिल करने हेतु आंदोलन चला रहे आंदोलनकारियों के मुंह से कभी भी सुना जा सकता है. दिल्ली के जंतर-मंतर पर अक्सर भी भोजपुरी भाषा हेतु चल रहे आंदोलन के बारे में पढ़ने को मिल सकता है और बहुत संभव है कि नए प्रदेश अध्यक्ष आंदोलन चला रहे लोगों को भी साधने की पुरजोर कोशिश करेंगे! शायद इसीलिए मनोज तिवारी के नाम पर सहमति तीनों एमसीडी के 13 वार्डों में हुए उपचुनाव से पहले ही बन गई थी, लेकिन उनके नाम का एलान अब जाकर हुआ है. मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे दिल्ली कांग्रेस के नेता अजय माकन और आप के अरविंद केजरीवाल की टक्कर दे सकने लायक लोकप्रियता होना भी शामिल है, जो भाजपा में किसी अन्य पूर्वांचली नेता के भीतर नहीं है. हालांकि दिल्ली प्रदेश में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश उपाध्याय, दिल्ली के सक्रिय नेता और वर्तमान में राज्यसभा सांसद विजय गोयल, केंद्रीय मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन और जाट राजनीति के नए चेहरे के तौर पर प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के रूप में अलग-अलग गुट सक्रिय हैं और इन सब के बीच तालमेल बनाना मनोज तिवारी के लिए बड़ी चुनौती है. स्वभाव से मधुर मनोज तिवारी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और राजनीति का ककहरा भली भांति जानते हैं. शायद तभी भाजपा में दूसरे पूर्वांचली नेताओं के ऊपर उन्हें तवज्जो दी गई है, भाजपा कैडर का न होने के बावजूद. देखना दिलचस्प होगा कि मनोज तिवारी पार्टी आलाकमान के भरोसे को किस कदर कायम रख पाते हैं और दिल्ली की राजनीति में पूर्वांचली लोगों के साथ दुसरे वर्गों का प्रतिनिधित्व संतुलित कर पाते हैं अथवा नहीं. आने वाले नगर निगम चुनावों का परिणाम काफी कुछ इस बात पर ही निर्भर करेगा. वैसे मनोज तिवारी के लिए स्थितियां काफी मुफीद हैं, क्योंकि आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता में जहाँ भारी गिरावट हुई है तो कांग्रेस की गिरी हुई लोकप्रियता में कुछ ख़ास उठान नज़र नहीं आ रहा है. ज़ाहिर तौर पर इन परिस्थितियों का फायदा मनोज तिवारी भाजपा को दिला सकते हैं, बशर्ते ... !!!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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