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नीतीश कुमार के एक दांव ने ही विपक्षियों की पोल खोल दी! Nitish Kumar, Political Move, Opposition Parties, Congress, RJD, Trinmool, Laloo Yadav, Mamta Banerjee, Rahul Gandhi, Hindi Article, New, 2019 General Election Analysis



पिछले लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से केंद्र सरकार में आई, लगभग तभी से देश में विपक्ष की हालत पतली है. आलम यह है कि केंद्र सरकार चाहे जो करे, विपक्ष सिवाय संसद की कार्यवाही डिस्टर्ब करने के और कुछ कर नहीं पा रहा है. निश्चित रूप से नोटबंदी एक व्यापक मुद्दे के तौर पर सामने आया है, जिसने कमोबेश सवा सौ करोड़ देशवासियों को सीधा प्रभावित किया है. जाहिर तौर पर इसके पक्ष और विपक्ष में लाखों-करोड़ों लोग हैं, तो जनता को इस फैसले से बेहद परेशानी भी हुई है. किंतु इसे विपक्ष का दुर्भाग्य न कहा जाए तो और क्या कहा जाए कि परेशान होने के बावजूद जनता विपक्ष को इस काबिल नहीं मान रही है कि उसके समर्थन में वह सड़कों पर उतरे! जनता का मुद्दा तो दूर की बात है, उससे पहले खुद विपक्ष के नेता ही अलग-अलग सुर में राग अलापते घूम रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी हैं. उनके दल का नाम तो जनता दल (यू) है, किंतु कभी भाजपा के साथ, तो कभी कांग्रेस के साथ, यहां तक कि बिहार राज्य में अपने धुर विरोधी लालू प्रसाद यादव के साथ उन्हें हाथ मिलाने में ज़रा भी संकोच नहीं हुआ. राजनीति में इस बात के लिए उनकी बुराई नहीं बल्कि तारीफ होनी चाहिए कि इतनी उलटा-पलटी और यू-टर्न के बावजूद वह अपनी राजनीतिक इमेज बचा ले गए हैं, बल्कि थोड़ा आगे बढ़कर कहा जाए तो, अपनी पॉलिटिकल इमेज में उन्होंने चार चांद ही लगाए हैं. नोटबंदी में जिस तरह से विपक्ष के विपरीत उन्होंने स्टैंड लिया, उससे विरोधियों के साथ-साथ उनके दोस्त और गठबंधन सहयोगी तक भौंचक्के रह गए. खूब कयास लगने लगे, राजनीतिक निहितार्थ निकाले जाने लगे, किंतु नीतीश तो नीतीश ठहरे! Nitish Kumar, Political Move, Opposition Parties, Congress, RJD, Trinmool, Laloo Yadav, Mamta Banerjee, Rahul Gandhi, Hindi Article, New, 2019 General Election Analysis


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अधिक से अधिक अपनी भाजपा से करीबी पर उन्होंने अपने समर्थन को मुद्दा आधारित समर्थन कह कर अपना पिंड छुड़ा लिया. विमुद्रीकरण पर समर्थन देकर चर्चा में बने रहने का यह दांव बेहद गंभीर रूप में सामने आया है. देखा जाए तो नीतीश कुमार ने इस एक तीर से बड़ी दूर के निशाने साधे हैं. प्रधानमंत्री पद की उनकी महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है, और वही क्यों बल्कि और भी सैकड़ों नेता हैं, जो पीएम बनना चाहते हैं. इसी महत्वकांक्षा ने नीतीश कुमार को भाजपा के पास से हटाकर लालू यादव की गोद में बिठा दिया. चूंकि, कसक अभी बाकी है और रह रहकर वह कसक जोर मारती है, तो भला उनकी इस खुशफहमी में खलल डालने की हिम्मत कौन कर सकता है. किन्तु, ऐसी गलती कांग्रेस कर रही है और सिवाय राहुल गाँधी के उसे 2019 में कोई दूसरा पीएम उम्मीदवार मंजूर नहीं है. वह बार-बार नीतीश के सपनों को तोड़ने वाला बयान देती है और नीतीश रूठ जाते हैं. विपक्ष की इस अजीब स्थिति पर 'सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलठ' वाली उक्ति बरबस ही याद आ जाती है. खैर, मौका देखकर नीतीश ने केंद्र सरकार के विमुद्रीकरण का समर्थन क्या किया, कांग्रेस से लेकर लालू और ममता में खलबली सी मच गयी. ममता ने तो उन्हें एक तरह से गद्दार ही कह दिया, तो कांग्रेस ने साफ़ कर दिया कि 2019 में राहुल गाँधी पीएम पद के दावेदार हैं, न कि नीतीश या कोई अन्य! Nitish Kumar, Political Move, Opposition Parties, Congress, RJD, Trinmool, Laloo Yadav, Mamta Banerjee, Rahul Gandhi, Hindi Article, New, 2019 General Election Analysis


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लालू प्रसाद यादव के बेटे अभी बिहार में ठीक से सेट नहीं हुए हैं और इसलिए उन्होंने नीतीश की बात माननी ही पड़ी. उधर पहले से निराश विपक्ष पर वार करने में भाजपा नेता नहीं चुके और अमित शाह से लेकर सुशील मोदी तक नीतीश की तारीफ़ करते दिखे. नीतीश काफी पहले से खुद को नरेंद्र मोदी से कम नहीं समझते रहे हैं और बिहार जैसे राज्य में 'शराबबंदी' लागू करने को लेकर वह अपनी जिस तारीफ़ की उम्मीद कर रहे थे, वह न मिलने की कसक बार-बार उनकी जुबान से बाहर आ जाती है. बेशक, नीतीश एक अच्छे प्रशासक हैं, किन्तु उन्हें भी समझना होगा कि उनका जनाधार न्यूनतम ही है. ऐसे में उनको कांग्रेस या तृणमूल जैसे दुसरे क्षेत्रीय दल आम चुनाव में नेता क्यों मानेंगे, यह एक बड़ी उलझन है, जिसे सुलझाए बिना नीतीश लाख दांव चल लें, कुछ ठोस हासिल नहीं कर सकते. हालाँकि, विमुद्रीकरण जैसे मुद्दों पर बीच बीच में झटका देकर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों को वह अपनी अहमियत का अहसास अवश्य ही दिलाते रहेंगे और अगर उनकी अहमियत नहीं समझी गयी तो, वह पुनः ... !!!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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