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ताइवान से 'ट्रंप' की बातचीत पर क्यों बौखलाया चीन?

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डोनाल्ड ट्रंप का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना अपने आप में एक अप्रत्याशित घटना मानी जा रही है. ऊपर से प्रेसिडेंट इलेक्ट होते ही डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की विदेश नीति को अपने ढंग से समझने का जो अजीब प्रयास शुरू किया है, उसने और भी बड़ी हलचल मचा दी है. पहले पाकिस्तान के राष्ट्रपति नवाज शरीफ को फोन कर ट्रंप ने कथित तौर पर पाकिस्तानी पीएम की तारीफ कर दी और तारीफ़ तो तारीफ़, उन्होंने तो पाकिस्तान आने की इच्छा भी जाहिर कर दी. अब उन्हें कौन समझाता कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ नाम मात्र के ही प्रधानमंत्री हैं और वहां की असल कमान सेना और जो बची खुशी कमान होती है वह चरमपंथियों के हाथ में होती है. उनके इस बयान पर व्हाइट हाउस को सफाई देनी पड़ी कि अपने 8 साल के कार्यकाल में आखिर बराक ओबामा पाकिस्तान क्यों नहीं गए? खैर यह मामला जैसे तैसे बीता कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन से सीधे बातचीत कर ली. हंगामा मचना ही था और हंगामा मचा भी क्योंकि ताइवान की राष्ट्रपति से सीधी बात कर 1979 में स्थापित अमेरिकी पालिसी को ट्रंप ने एक झटका ही दे दिया है. तब के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने चीन से एक तरह का समझौता किया था कि अमेरिका ताइवान से औपचारिक रिश्ते नहीं रखेगा. जाहिर तौर पर ट्रंप के इस कदम से चीन को एक झटका लगा है, तो अमेरिका से ज्यादा चीन ने ताइवान पर नाराजगी जाहिर की है. चीनी विदेश मंत्री वांग ने इस बातचीत को ताईवान का छल भरा कदम बताया और उम्मीद जाहिर की है कि दशकों से अमेरिकी सरकार जिस चीन पॉलिसी पर चल रही है, उसमें कोई बदलाव नहीं आएगा. वैसे, इस पूरे मामले पर चीन का छटपटाना अपने आप में जाहिर करता है कि ताइवान का मसला उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है. Taiwan and China relation, Hindi article, New, Donald Trump, Asia Pacific, World Politics, Foreign Policy, Editorial, Essay Writing, South China Sea, China, USA, India, Pakistan
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इस पूरे मामले को हम कुछ यूं समझ सकते हैं कि बीती जनवरी 2015 में जब ताइवान में चुनाव हुए और उसके परिणाम सामने आये थे, तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साफ कहा था कि उनका देश ताईवान को कभी भी स्वतंत्र राष्ट्र नहीं बनने देगा. तब ताइवान के राष्ट्रपति चुनाव में ताइवान की आजादी की समर्थक साई इंग वेन के जीतने के बाद शी जिनपिंग का यह बयान सामने आया था. इससे आगे बढ़कर चीन यह भी मानता है कि अगर जरूरत पड़ी तो ताइवान के खिलाफ सैन्य इस्तेमाल से भी चीन नहीं हिचकेगा. अगर इतिहास में जाते हैं तो साल 1949 के सिविल वार में पीपल लिबरेशन आर्मी के हाथों हुई हार के बाद कुओमिंतांग पार्टी के नेता ताइवान चले गए और उन्होंने वहां अलग सरकार का गठन कर लिया था. लगभग उसी समय से चीन और ताइवान अलग-अलग हैं. तबसे ताइवान खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र मानता है, तो चीन ताइवान को खुद से अलग हुआ एक प्रांत भर ही मानता है. समझना मुश्किल नहीं है कि ताइवान की अपनी सरकार है, लेकिन कई देश अभी भी उसे एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं देते हैं, क्योंकि चीन को इससे आपत्ति होती है. वर्तमान ताइवानी राष्ट्रपति से पहले के ताइवानी प्रेजिडेंट ने पिछले दिनों चीन-ताइवान के बीच ऐतिहासिक बैठक शुरु होने से पहले साफ कहा था कि 'दोनों तरफ के लोगों को एक दूसरे के मूल्य और जिंदगी के तरीकों का सम्मान करना चाहिए, जबकि चीनी प्रेजिडेंट शी जिनपिंग ने तब कहा था कि 'हम एक परिवार है और ताइवान स्ट्रीट के दोनों तरफ के नेताओं की बैठक में दोनों तरफ के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया गया है'. चीनी राष्ट्रपति ने तब यह भी उम्मीद जताई थी कि इतिहास में इस दिन को याद रखा जाएगा. Taiwan and China relation, Hindi article, New, Donald Trump, Asia Pacific, World Politics, Foreign Policy, Editorial, Essay Writing, South China Sea, China, USA, India, Pakistan


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हालाँकि, जनवरी 2016 में हुए चुनाव के बाद जब साई सत्ता में आईं, तब से मामला दूसरी ओर घूम चुका है. बात जहां तक अमेरिकी हस्तक्षेप की है, तो इस बात की बेहद कम उम्मीद है कि इन मामलों में अमरीका अपनी पूर्व की सरकारों से आगे बढ़कर ताइवान को आजाद मुल्क के रूप में मंजूर करेगा. वैसे भी पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के बाद भी चीन 'साउथ चाइना सी' पर अवैध कब्ज़ा जमाये हुए है, तो भला ताइवान के मामले में उसे कौन राजी करेगा कि ताइवानियों को उसे स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए. यूं भी, ताइवान पर हर तरह से खुद को विकसित कर चुका है और वहां के लोग चीन के अंडर में आने को कतई तैयार नहीं हैं. कहा जा सकता है कि अभी ट्रम्प को सरकार चलाने का कुछ अनुभव नहीं है, इसलिए वह कई चीजों पर जानकारी इकट्ठी कर रहे हैं और आने वाले दिनों में संभवतः उसी के अनुसार अमेरिकी रणनीतियों को वह प्रभावित कर सकने की स्थिति में होंगे. ट्रंप की हालत पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने बेहद सटीक टिप्पणी की है कि ट्रंप एक चतुर बिजनेसमैन रहे हैं और बहुत जल्दी कूटनीति की बारीकियों को वह समझ सकते हैं. हालाँकि, अगर ताइवान पर अमरीकी राष्ट्रपति एक अलग रुख अख्तियार करते हैं तो चीन को अपने विस्तारवादी रवैया में अवश्य ही कुछ ब्रेक लगाना पड़ सकता है और दक्षिणी चीन सागर जैसे मसलों पर चीन जिस प्रकार दबंगई कर रहा है उस में कुछ नरमी आ सकती है पर यह पूरा मामला अभी दूर की कौड़ी है. वैसे भी, अमेरिका का जिन मामलों में सीधा हित न हो, उस फट्टे में वह अपनी टांग नहीं अड़ाता है और हाल फिलहाल ताइवान से उसका कुछ लेना देना नहीं है. देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद चीन-अमेरिका के आपसी संबंधों और एशिया में अमेरिका की रणनीति में क्या खास बदलाव आता है. भारत के लिए भी ट्रम्प की पॉलिसीज काफी मायने रखने वाली हैं और जिस तरह ट्रम्प ने पहले पाकिस्तानी पीएम और फिर ताइवानी राष्ट्रपति से बात की है, उसने एशिया को लेकर उनकी प्राथमिकता की पहली झलक तो दिखलाई ही है. 

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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