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हिंदी भाषी क्षेत्र में बिहार राज्य का प्रमुख स्थान है और यहां की प्राचीन और समृद्ध संस्कृति ने देश को काफी कुछ दिया है. आप चाहे राजनीति की बात करें, कूटनीति या शिक्षा की बात करें यहाँ आर्यभट्ट, चाणक्य और सम्राट अशोक जैसे धुरंधर हुए हैं, जिन्होंने समय की धारा तक बदलने में सफलता हासिल की है. इतिहास से परे हटकर अगर हम पिछले कुछ दशकों की बात करें तो बिहार की न केवल आलोचना हुई है, बल्कि महान रहे इस क्षेत्र को निंदा और घृणा के स्तर तक देखा गया है. इसका कारण भी कोई अजूबा नहीं था, बल्कि यहाँ की सामूहिक आपराधिक प्रवृत्ति ने लोगों को इस बात के लिए मजबूर किया कि वह बिहार की निंदा करें! आखिर कौन नहीं जानता है कि "अपहरण उद्योग" जैसी शब्दावली बिहार की शासन प्रणाली से ही निकला और यह वह जमाना था जब बिहार में कोई भी व्यक्ति सुरक्षित महसूस नहीं करता था कि जाने कब उसके परिवार के किसी सदस्य का अपहरण हो जाए और अपहरणकर्ताओं द्वारा लाखों-करोड़ों की फिरौती मांगी जाए! अपराधी व आपराधिक संगठन राजनीतिक षड्यंत्र के तहत पाले गए पोषित किए गए और उन्होंने बिहार की कानून व्यवस्था को अपनी चुटकी में रखा. बल्कि यह कहना बेहतर होगा कि उस कंपकंपाने वाले दौर में अपराधियों ने राजनीतिक संरक्षण के बलबूते कानून को अपने पैर के अंगूठे के नीचे रखा! आलू-लालू-भालू के दौर में तब वहां एसपी, एसएसपी, एसओ, सिपाही या फिर सर्वोच्च पुलिस अधिकारियों की भी कोई औकात नहीं होती थी, एक छुटभैया उन्हें खुलेआम थप्पड़ रसीद कर देता था और ज्यादा चूं-चपड़ करने पर धरती से आसमान की ओर रवाना भी कर देता था! खैर, यह सब बातें हम जानते ही हैं और इसका 'यशोगान' करने से 'दर्द' ही उभरेगा. इस परंपरा को बदलने की कोशिश भी की गई. नीतीश कुमार ने 'सुशासन बाबू' के नाम से अपनी पहचान बनायी तो भाजपा के साथ सत्ता साझेदारी करते हुए उन्होंने अपराध पर काफी हद तक नियंत्रण भी स्थापित किया. अपने 2 कार्यकाल के बाद जब भाजपा से उनका नाता टूटा और एक बार फिर लालू यादव की शरण में वह गए तो न केवल बिहार के लोग बल्कि पूरे देश के लोग आतंकित हो गए कि क्या एक बार फिर बिहार अपराध की शरणस्थली बन जाएगा? नीतीश कुमार भी अपनी सरकार के बारे में बन रहे इस परसेप्शन से काफी हताश-निराश दिखे तो उन्होंने लालू यादव और उनकी पार्टी के नेताओं को साफ तौर पर आपराधिक गतिविधियों से दूर रहने के प्रति आगाह किया, अन्यथा महा गठबंधन तोड़ने की धमकी भी दी. Pride of Bihar, Hindi Article, New, Guru Govind Singh, 350 Prakash Utsav, History of Bihar Essay, Nitish Kumar, Laloo Yadav, Crime State, Development
लालू पर दबाव बनाने के लिए नीतीश कुमार बराबर भाजपा से करीबी दिखलाने का प्रयास भी करते रहे! इसी कड़ी में, शराबबंदी का बड़ा फैसला नीतीश ले लिया, जिसकी कल्पना इससे पहले बिहार में असंभव सी लगती थी! इस 'शराबबंदी' को सफल करने के लिए वह पूरा जोर भी लगाए हुए हैं. इन सबके बावजूद, नीतीश अपनी और बिहार प्रशासन की खुले दिल से प्रशंसा सुनने के लिए परेशान रहे और उन्हें यह मौका दिया भारत के महानतम सपूतों में से एक, दशमेश पिता, कलगीधर गुरु गोविन्द सिंह की पुण्यात्मा ने! यहाँ बात सिर्फ नीतीश की ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण बिहार राज्य के लिए ही थी, क्योंकि पिछले 25 साल से अधिक समय से बिहार की प्रशंसा शायद ही किसी ने खुलकर सुनी हो. लोकनायक जयप्रकाशन नारायण के एमरजेंसी में इंदिरा के विरोध में आंदोलन के बाद बिहार को बड़े स्तर पर प्रशंसात्मक निगाहों से देखा जा रहा है. यूं तो गाहे-बगाहे, छोटी-मोटी प्रशंसा पहले भी होती थी, किन्तु उससे ज्यादा निंदा और आलोचना का विषय वहां के अपराधी दे देते थे, पर इस बार माहौल बदला हुआ है! निश्चित तौर पर माहौल बदला है और इसके निमित्त बने हैं चिरस्थायी प्रेरणाश्रोत गुरु गोविंद सिंह. जी हां, गुरुजी का 350वां प्रकाश उत्सव पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है, तो नीतीश कुमार ने इस अवसर को लेकर इतनी बेहतरीन तैयारियां की, जिसकी चर्चा न केवल बिहार में, न केवल पूरे देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हुई है. गुरु गोविन्द सिंह के प्रकाशोत्सव दिवस को मनाने हेतु गठित केंद्रीय कमिटी ने नीतीश कुमार पर भरोसा जताया और उन्होंने इस भरोसे को अक्षरशः सही साबित किया है. मेरे चाचाजी पटना में गांधी मैदान के पास ही रहते हैं और जब उनसे बात हुई तो उनकी पार्टी का विरोधी होने के बावजूद उन्होंने खुलकर नीतीश की तारीफ़ की! अक्सर देखा जाता है कि दूर बैठे लोग पीआर एजेंसियों के माध्यम से अपनी ब्रांडिंग करा लेते हैं, किन्तु लोकल लोगों से बातचीत करने पर उनकी पोल खुल जाती है, पर इस बार नीतीश ने सभी का दिल जीत लिया है. उनके बेहतरीन इंतजामात और बिहार की ब्रांडिंग करने के इस प्रयास से मन भीतर तक प्रसन्न हुआ है. क्या राजनीतिक विरोधी, क्या विश्लेषक, सभी नीतीश कुमार और बिहार की खुलकर तारीफ कर रहे हैं. कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि जिस तरह औरंगजेब के अत्याचार काल में गुरु गोविंद सिंह ध्रुव तारे के समान चमक बिखेरकर भटके हुए लोगों को मार्ग दिखाया था और अत्याचार के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देकर भारतवर्ष का सम्मान वापस दिलाने के लिए ताउम्र प्रयत्न करते रहे, कुछ वैसा ही अपनी 350वें प्रकाश उत्सव पर करने के लिए गुरु गोविंद सिंह ने बिहार को प्रेरित किया है. Pride of Bihar, Hindi Article, New, Guru Govind Singh, 350 Prakash Utsav, History of Bihar Essay, Nitish Kumar, Laloo Yadav, Crime State, Development
आखिर इस बात की कल्पना कैसे की जा सकती थी कि औपचारिकता से आगे बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार और उनकी तैयारियों की भूरि-भूरि प्रशंसा की. इतना ही नहीं, लालू यादव जब 5 जनवरी को इस भव्य कार्यक्रम में मंच से नीचे बैठे थे, तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह भी अपने शासनकाल के दौरान हुए अपराधों के लिए प्रायश्चित कर रहे हों! खैर, राजनेता तो राजनेता होते हैं और उन पर 'प्रायश्चित' शब्द शोभा नहीं देता है. पर इसके साथ यह भी सच है कि बेशक हमारे देश में एक से एक महापुरुष हुए हैं तो दूसरी तरफ अंगुलिमाल और डाकू वाल्मीकि जैसे खतरनाक व्यक्ति भी हुए हैं, किंतु महापुरुषों की प्रेरणा ने उन्हें बदला है. लालू प्रसाद यादव भी इधर बदले बदले से नजर आए हैं! यह बात अलग है कि रह-रह कर वोट बैंक की खातिर उनका प्रेम अपराधियों के लिए छलक ही जाता है. पिछली साल जब शहाबुद्दीन जेल से रिहा हुआ था, तो लालू प्रसाद यादव को उसका नेता बनने में कोई शिकायत नजर नहीं आई! वैसे, नीतीश कुमार की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी की लालू प्रसाद यादव की संगति में खराब होने की जगह वह उन्हें अपनी सत्संगति से सुधारने का प्रयत्न कहीं ज्यादा कर रहे हैं. चूंकि, राजनीति की तमाम मजबूरियां होती हैं और अगर कोई सीधे-सीधे यह कह दे कि राजनीति 'आदर्शवादी' होती है, तो इस कथन को व्यवहारिक नहीं माना जा सकता और ऐसे में नीतीश जैसों को संतुलित रुख अपनाना ही पड़ता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि बिहार की प्रशंसा, बिहार की ब्रांडिंग का यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा तो बदनुमा दाग की तरह वहां की जमीन से उगने वाले अपराध और अपराधियों का नामो निशान भी मिटेगा, ठीक उसी तरह जिस प्रकार गुरु गोविंद सिंह ने सर्व वंशदान करके औरंगजेब के अत्याचारों का ताउम्र विरोध किया, जिसके फलस्वरूप अब उसका नामलेवा तक नहीं बचा है. बिहार से बाहर निकले प्रतिभाशाली लोगों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि बिहार की ब्रांडिंग, उसकी अच्छाई और उसे आगे बढ़ाने में अपना सक्रीय योगदान सुनिश्चित करें! शायद यही माटी का कर्ज है और अगर 350 साल बाद गुरु गोविंद सिंह की आत्मा ने अपनी जन्मभूमि पटना (बिहार) के ऊपर लग रहे लांछनों को धोने की प्रेरणा प्रदान की है, तो कहीं ना कहीं जन्मभूमि के प्रति हमारा, आपका और दूसरे बिहारी भाइयों का भी यही कर्तव्य बनता है. बिहार अब हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, इस बात में दो राय नहीं है. आप चाहे भागलपुर 'सिल्क सिटी' के सिल्क की बात करें, चाहे देश की 70 फीसदी लीची उत्पादन की बात करें, सर्वाधिक आईएएस आईपीएस सेलेक्ट होने की बात करें या फिर पटना में सबसे लंबे वाई-फाई रेंज (20 किमी) को कहें कई क्षेत्रों में यह प्राचीन राज्य अपने झंडे गाड़ रहा है. बस अपराध फिर न पनपे और काबिल लोग पलायन की बजाय बिहार के विकास का कर्ज़ भी चुकाने को तत्पर रहें, फिर यहाँ की गरिमा वापस आने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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