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भिंडरावाला के गुंडे, मुस्लिम आतंकी और जाटों के नाम पर 'गुंडई'

किसी समुदाय का 'गुंडई' करने वाले समुदाय के रूप में चिन्हित होना किस हद तक खतरनाक होता है, यह बात भिंडरावाले के उभार से बेहतर और किन बातों से समझा जा सकता है भला! भारत के मुंह पर एक बड़ी कालिख के रूप में 'सिक्ख दंगों' का इतिहास दर्ज है, किन्तु इसकी तह में जाइए तो आपको भिंडरावाला की जाल में फंसे कुछ भटके हुए सिक्खों द्वारा गैर-सिक्ख समुदाय पर पंजाब में भीषण अत्याचार इसकी पृष्ठभूमि में मिलेगा. जी हाँ! यह बात कोई दबी छुपी नहीं है कि मात्र कुछ फीसदी उपद्रवी सिक्खों के अत्याचार ने उनकी वीरता, देशभक्त की छवि को 80 के दशक में 'आपराधिक' बना दिया था, जिसका परिणाम हज़ारों निर्दोष सिक्खों को बाद में भुगतना पड़ा था. आप इस बात को छोड़ भी दें तो आप मुस्लिमों को ले लीजिये. इस अतिवादी बात को शायद ही कोई स्वीकार करे कि सभी मुसलमान 'आतंकवादी' होते हैं, किन्तु मात्र 1 या 2 फीसदी उन मुसलमानों ने इस पूरे धर्म को ही 'आतंकवादी धर्म' की ओर धकेल दिया है तो भारत को छोड़कर समूचे विश्व में इस समुदाय को डरकर, सहमकर रहना पड़ रहा है. आप इस कड़ी में आगे बढ़ेंगे तो हरियाणा में जाटों के कुछ समूहों ने आरक्षण के नाम पर जो उपद्रव किया है, उसने इस अक्खड़ समुदाय को 'आपराधिक संज्ञा' देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अब तक यह समझा जाता रहा है कि जाट मेहनती होते हैं, देशभक्त होते हैं इसलिए थोड़े 'बदतमीज' भी हो जाते हैं, किन्तु इसे अन्य समुदायों द्वारा कभी अन्यथा नहीं लिया गया था. अब अपने इस अक्खड़पन को राजनीति में फंसकर इस समुदाय को 'अपराधी' टैग लगा दिया है कुछ गुंडों ने, और यह असर सिर्फ हरियाणा तक ही नहीं बल्कि पूरे देश में गया है. 

आखिर, आज संचार के साधनों की वजह से किसे पता नहीं है कि हरियाणा में किस हद तक राष्ट्रविरोधी गुंडई की गयी है, सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान पहुँचाया गया, महिलाओं से छेड़खानी और गैंगरेप तक की बातें सामने आ रही हैं! पूरा देश थू-थू कर रहा है और हरियाणा की कुत्सित राजनीति के साथ भाजपा की खट्टर सरकार को 'नपुंसक' कहने से नहीं चूक रहा है तो इसके सन्देश को इस समुदाय के वरिष्ठों को गंभीरता से समझना चाहिए. बड़े अख़बार दैनिक ट्रिब्यून द्वारा इस बारे में बड़ी कवरेज की गयी है, जिसमें चौंकाने वाली बातें सामने आयी हैं. यह अख़बार कहता है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य घटना की भयावहता की ओर इशारा कर रहे हैं तो शुरुआती दौर में तो सरकार के जिम्मेदार अधिकारी व आला पुलिस अफसर बलवाइयों द्वारा सामूहिक दुराचार की घटना को सिरे से खारिज करते रहे हैं. हालाँकि, कुछ ग्रामीण व प्रत्यक्षदर्शियों के बयान वीभत्स घटना की ओर इशारा करते हैं तो महिला आयोग की टीम की देखरेख में घटनास्थल से पीडि़ताओं के फटे अंत:वस्त्रों की बरामदगी इशारा कर रही है कि अस्मिताओं से खिलवाड़ किया गया है. ऐसे ही तथ्य एक चैनल के स्टिंग आप्रेशन में सामने आये हैं. शुरुआती पूछताछ में निकटवर्ती ढाबा मालिकों ने भी घटनाक्रम की ओर इशारा किया है, साथ ही साथ उन्होंने कई ऐसे प्रसंगों का जिक्र किया है, जिससे हादसे की पुष्टि को बल मिलता है. इससे मिलती-जुलती बातें निकटवर्ती गांव हसनपुर व कुराड़ के ग्रामीणों ने भी की है, जिन्होंने पीड़िताओं को हादसे के बाद वस्त्र व कंबल आदि उपलब्ध कराने का जिक्र किया. हालाँकि, सच का साथ देने में हरियाणा प्रशासन की विफलता जग जाहिर हो चुकी है और पुलिस-प्रशासन गुंडों और दबंगों के दबाव से मुक्त होकर किस हद तक कार्य करेगी, इस बात पर बड़ा प्रश्नचिन्ह लग गया है. 

चंडीगढ़ उच्च न्यायालय ने इस तरह की घटनाओं पर सख्ती दिखाई है, जिससे एक उम्मीद की किरण दिखती है. पीड़ितों द्वारा इस सम्बन्ध में सीबीआई जांच की मांग भी की जा रही है. सोचने वाली बात है कि किसी एक समुदाय से मात्र कुछ लोग निकालकर पूरे समुदाय को कलंकित कर डालते हैं और बाकी लोग शरीफ बनकर तमाशबीन की भूमिका निभाते हैं. शिवखेड़ा ने अपनी बेस्टसेलर किताब 'यू कैन विन' में कोट करते हुए कहा है कि 'समाज कभी भी अपराधियों, उचक्कों द्वारा बर्बाद नहीं किया जाता है, बल्कि वह शरीफ लोगों की चुप्पी से ज्यादा बर्बाद होता है.' आखिर, जिन जाटों ने महिलाओं की अस्मिता से खिलवाड़ किया है, सार्वजनिक संपत्ति को तोडा-फोड़ा है, राजधानी दिल्ली में पानी की सप्लाई करने वाली मुनक नहर में तोड़फोड़ की है, गरीबों की दुकानों को लूटा है, वह भी तो जाटों के ही पुत्तर होंगे? उनके घर भी तो बड़े बुजुर्ग 'ताऊ' होंगे? उन्होंने उन 'नालायकों' को थप्पड़ लगा कर क्यों नहीं पूछा कि यह क्या कर रहे हैं वह? इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि ऐसे समय में घर के बुजुर्ग भी लड़कों की उपद्रवी मानसिकता को 'वीरता' समझकर गौरवान्वित होते हैं, जिसका परिणाम पूरे समुदाय को भुगतना पड़ता है. अगर ऐसा काण्ड हो भी गया है तो क्या पूरे 'जाट-समुदाय' को कैमरे के सामने आकर पूरे देश से माफ़ी नहीं मांगना चाहिए, और क्या हरियाणा प्रशासन को दोषियों की शिनाख्त करके कड़ी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए, जिससे जाटों पर लगा 'गुंडई का दाग' कुछ तो मद्धम हो सके! आखिर वह 'खाप-पंचायतें ' कहाँ हैं, जो एक आदेश पर प्रेमियों के सर कलम कर देती है? क्या वह इस बात का इन्तेजार कर रही है कि अन्य समुदायों का गुस्सा 'निर्दोष जाटों' पर निकले, जैसा मासूम सिक्खों के साथ हुआ था! क्या वरिष्ठ जाट नेता और बुद्धिजीवी इस बात का इन्तेजार कर रहे हैं कि उनका पूरा समुदाय, जिसके लोग मेहनती, देशभक्त के नाम से जाने जाते रहे हैं, उन्हें किसी अपराधी की भांति 'शक' की नज़र से देखा जाय? अगर नहीं तो इसके वरिष्ठ लोग सामने आकर कैमरे पर पूरे राष्ट्र से माफ़ी मांगे, अन्यथा इसका नुक्सान पूरे समुदाय को दशकों और सदियों तक उठाना पड़ेगा, इस बात में किसी को रत्ती भर भी शक नहीं होना चाहिए. हालाँकि, फिल्म इंडस्ट्री, क्रिकेट की दुनिया और शतरंज की पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन अनुराधा बेनिवाल जैसे लोगों ने देश के समृद्ध राज्य हरियाणा में जाट आरक्षण द्वारा हिंसा पर अपनी भावनात्मक बात कही है, लेकिन यह नाकाफी है और जाट नेताओं, खापों को इन समस्त आपराधिक और राष्ट्रविरोधी कुकृत्यों पर सार्वजनिक माफ़ी मांगने में जरा भी देरी नहीं करनी चाहिए.

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1 टिप्पणियाँ

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