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राफेल जरूरी, किंतु वर्तमान में 'अर्थव्यवस्था व तकनीकी दक्षता' ही सर्वोच्च

Rafale jet and Indian Economy and Technology, Hindi Article by mithilesh2020

वर्तमान समय के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में से एक राफेल की पहली खेप भारत में आ गई है और इसे लेकर भारतीय सेना के तीनों अंग काफी उत्साहित दिखे. आम जनमानस भी इसे लेकर एक दूसरे को बधाइयां देता दिखा. सोशल मीडिया पर इसे लेकर कई ट्रेंड चले तो तमाम नेताओं के बयान भी सामने आए.

इतना ही नहीं राफेल की पहली खेप आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान ने जहां वैश्विक समुदाय से गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया और कहने लगा कि भारत अपनी रक्षा से अधिक हथियार जमा कर रहा है तो चीन की तरफ से भी इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया आयी. जाहिर तौर पर यह भारत की मजबूती के लिए एक सधा हुआ कदम है, लेकिन इसके आगे जहां और भी हैं!

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आगे बढ़ने से पहले एक और ख़बर ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचा और वह था टिकटोक को लेकर. इस ऐप के साथ और भी कई चीनी ऐप्स पर इंडियन गवर्नमेंट ने प्रतिबन्ध लगा दिया. 

अमेरिका में भी इस सहित कई चीनी ऐप्स पर प्रतिबन्ध की सुगबुगाहट शुरू हुई, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अमेरिका ने अभी तक इस ऐप पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया, बल्कि इस बात की ख़बर ज्यादा फैली कि "टिकटोक" को अमेरिकन स्वामित्व वाली कम्पनियां खरीद सकती हैं. 

यहाँ तक कि माइक्रोसॉफ्ट द्वारा इसे खरीदने की बात सामने आयी. हालाँकि, यह लेख लिखे जाने तक टिकटोक बिका नहीं है.

आपको यह ख़बर सामान्य लग सकती है, किन्तु इसे आप जाने माने इंडस्ट्री विशेषज्ञ नंदन नीलेकणि के बयान से जोड़ेंगे तो कई चीजें साफ़ होंगी. श्रीमान नीलेकणि ने टिकटोक को लेकर कहा था कि बेशक वैसा ऐप कोई बना ले, किन्तु उस तरह का बिजनेस मॉडल खड़ा करना सहज नहीं है. 

अब आप तुलना कीजिये भारत और अमेरिकी नीतियों की. दोनों चीन से परेशान हैं, किन्तु भारत जहाँ एकपक्षीय होकर सिर्फ बैन की बात करता है, वहीं अमेरिका किसी सफल कंपनी को अपना बनाने की योजना पर विचार करता है. ज़ाहिर तौर पर यह काफी कुछ स्पष्ट कर देता है.

यूं भी वर्तमान समय में तमाम देश परमाणु संपन्न में होते जा रहे हैं और ऐसी स्थिति में एक संपूर्ण युद्ध होने की संभावना न के बराबर है. हां! छोटी मोटी झड़पें या सीमित मात्रा में युद्ध अवश्य होंगे, किंतु इसका यह तात्पर्य कतई नहीं है कि बड़े स्तर पर युद्ध होंगे ही नहीं या हो नहीं रहे हैं...! 

ना...ना... आप इसको लेकर कंफ्यूज मत होइए, बल्कि आप यह समझ जाइए कि युद्ध का मैदान वर्तमान में बदल गया है. यहां बड़े युद्ध तो लगातार लड़े जा रहे हैं, किंतु वह पारंपरिक युद्ध मैदान में ना होकर अर्थव्यवस्था और तकनीक के मोर्चे पर लड़े जा रहे हैं.

हालाँकि, इसका अभिप्राय यह कतई नहीं है कि हमें सेना को कमजोर कर देना चाहिए या तैयारियों में किसी प्रकार की कोई कमी होनी चाहिए, बल्कि इसका मतलब यह है कि अर्थव्यवस्था और तकनीकी दक्षता के बगैर हम कतई मजबूत नहीं हो सकते, खासकर आधुनिक युग में...


अब चीन को ही ले लीजिए!
वह भारत के खिलाफ बड़े स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है. गलवान घाटी में उसने हमारी जमीन पर कब्जा करने की नापाक कोशिश की और उसका भारतीय सैनिकों ने मुंह तोड़ जवाब दिया, जिसके कारण चीन को पीछे की ओर हटना पड़ा, लेकिन आप अगर यह सोच रहे हैं कि वह वाकई पीछे हट गया है तो आप गलत हैं!

क्या पाकिस्तान, क्या श्रीलंका, क्या नेपाल और क्या बांग्लादेश या अफगानिस्तान... हर कोई उसके प्रभाव में आता चला जा रहा है. यह रोज ही अखबारों की सुर्खियां बन रही हैं. मालदीव में सत्ता परिवर्तन हो गया नहीं तो वहां भी चीनी समर्थक राष्ट्रपति ने भारतीय हितों के खिलाफ कई बयान दिए और कई कार्य भी किए.

आज के समय में नेपाल जैसा हमारा परम मित्र, बांग्लादेश जैसा हमारा संकट का सहयोगी और श्रीलंका जैसे हमारा करीबी हम से लगातार दूर जाता प्रतीत हो रहा है तो उसके पीछे चीन का आर्थिक युद्ध नहीं तो और क्या है?


ज़ाहिर तौर पर अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर हमें बेहद मजबूती से खड़ा रहना पड़ेगा और तभी जाकर हम निर्धारित व वास्तविक लक्ष्यों को आसानी से पा सकेंगे. 

इसलिए जश्न में डूबने और सिर्फ राफेल पर भरोसा करके खुश ना होइए, क्योंकि राफेल चाहे जितना ताकतवर हो, वह उस जंग में नहीं लड़ पाएगा जो वर्तमान में बड़े स्तर पर लड़ी जा रही है. 
यूं भी राफेल की टेक्नोलॉजी हमारी नहीं है!


हाँ!  राफेल को सैल्यूट करना चाहिए, क्योंकि वह अपने काम में माहिर है, किंतु हमारा प्रश्न तो अर्थव्यवस्था व तकनीकी दक्षता को लेकर होना चाहिए. सरकारों को इस पर विशेष नीतियों का निर्माण करने पर जोर देना चाहिए, तब जाकर हम असल में अपने प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला कर सकेंगे.

जय हिंद, जय भारत!

कमेंट बॉक्स में अपने विचारों से अवश्य अवगत कराएं.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.

Web Title: Rafale jet and Indian Economy and Technology, Hindi Article by mithilesh2020


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