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तकनीक मतलब बदलाव एवं नवरचना



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कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह भी कभी-कभी ठीक बात कह लेते हैं, अब यदि कोई उनको गंभीरता से नहीं लेता है तो इसमें उनका दोष क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल इंडिया प्रॉजेक्ट को पुरानी योजनाओं पर आधारित बताते हुए दिग्गी राजा ने कहा है कि डिजिटल इंडिया की सारी कोशिशों की शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सबसे पहले की थी. खैर, हमें उनकी बातों से इतना ही रेफरेंस लेना था, क्योंकि इसके आगे की बातें राजनीतिक हैं. राजीव गांधी ने जब देश में कम्प्यूटर लाने की बात कही थी, तब बड़ा होहल्ला हुआ था, पर तब के हिसाब से उनकी इनोवेटिव सोच का कमाल हम आज देख ही रहे हैं, इसलिए  हमें उन्हें इसकी शुरुआत का श्रेय देने में कंजूसी क्यों करनी चाहिए! जब इनोवेशन की बात आती है तो 'माइक्रोसॉफ्ट' का ज़िक्र भी जरूरी हो जाता है. इस दिग्गज आईटी कंपनी ने 'विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम' का आविष्कार करके पूरे विश्व में कम्प्यूटर्स की दुनिया में बड़ी क्रांति ला दी थी, लेकिन वर्तमान में यह कंपनी अपनी नीतियों और प्रोडक्ट्स को बदलते ज़माने के हिसाब से ढालने में कठिनाई क्यों महसूस कर रही है, कारोबारी दुनिया, विशेषकर आईटी दुनिया में यह बड़ा प्रश्न तैर रहा है.
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हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने स्वीकार किया कि माइक्रोसॉफ्ट ने यह मानकर बड़ी गलती की कि पर्सनल कंप्यूटर का दबदबा हमेशा बना रहेगा. उन्होंने आगे कहा कि कंपनी मोबाइल फोन के तकनीकी बदलाव को समझने में फेल रही, जिसके कारण उसे इस मार्किट में पिछलग्गू बनने को मजबूर होना पड़ा. नडेला के इस बयान को एक एक्जीक्यूटिव का बयान भर मानकर नहीं देखा जा सकता, बल्कि इस बयान के बड़े निहितार्थ हैं जो तेज बदलावों की तकनीकी दुनिया को समझने का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं. आखिर, ऐसा क्या कारण है कि दुनिया की दिग्गज आईटी कंपनी के मुखिया को इस प्रकार का बयान देने की जरूरत महसूस हुई. 'विंडोज़ आपरेटिंग सिस्टम' के माध्यम से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर मार्किट पर एकछत्र राज करने वाली माइक्रोसॉफ्ट का दर्द समझा जा सकता है, क्योंकि गूगल के 'एंड्राइड' ऑपरेटिंग सिस्टम ने माइक्रोसॉफ्ट के वर्चस्व को जबरदस्त तरीके से चुनौती दी है. उसने यह चुनौती सीधे पेश करने की बजाय थोड़ा घुमाकर पेश किया, जिसने दूसरी कंपनियों के समझने से पहले ही स्मार्टफोन की दुनिया में जबरदस्त क्रांति ला दी है. एंड्राइड के आने से पहले फोन सिर्फ बात करने या मेसेज भेजने तक ही सीमित रहा करते थे या कुछ फीचर इत्यादि देकर संतुष्ट हो जाया करते थे, लेकिन गूगल के इस इनोवेटिव अविष्कार ने स्मार्टफोन फोन को 'पर्सनल कंप्यूटर' बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. पर्सनल कंप्यूटर ही क्यों, बल्कि कई मायनों में कंप्यूटर से बढ़कर इसकी सुविधाएं हैं. आखिर, कम्प्यूटर यूजर्स को 'प्ले स्टोर' जैसा प्लेटफॉर्म कहाँ उपलब्ध है, जिसकी सहायता से वह हर एक अनुभव से गुजरता है, जो वह सोचता है. वह भले ही गेम हो, एप हो या ऑनलाइन बुक्स, मूवी ही क्यों न हों!
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टच स्क्रीन फोन में एंड्राइड के बाद एप्पल का 'आईओएस' मार्किट में जरूर है, लेकिन इसका मार्किट शेयर 'एंड्राइड' से बेहद कम है, और इसकी उपस्थिति भी 'खास वर्ग' में ही ज्यादा है जो उपयोगिता के स्थान पर 'स्टेट्स-सिंबल' को प्रेफर करते हैं. ऐसी स्थिति में, गूगल की इस फिल्ड में 'मोनोपोली' सी हो गयी है. सर्च फिल्ड में पहले ही गूगल एक नंबर पर है. देखा जाय तो माइक्रोसॉफ्ट ने न सिर्फ स्मार्टफोन मार्किट को हलके में लिया, बल्कि 'सर्च-इंजिन' मार्किट और 'सोशल मीडिया' मार्किट में भी वह बेहद पिछड़ गया है. अब हालत यह हो गयी है कि बदलती हुई तकनीकी दुनिया में माइक्रोसॉफ्ट को अपने कारोबारी मॉडल को फिर से देखने की जरूरत महसूस हो रही है. शायद इसीलिए, उसने सर्च मार्किट में 'बिंग' को नए तरीके से पेश किया, आउटलुक के माध्यम से 'मेल सर्विस' को भी सजाया संवारा, लेकिन तब तक समय हाथ से निकल चुका था. हालाँकि माइक्रोसॉफ्ट ने गेमिंग में 'एक्सबॉक्स' और डेवलपमेंट प्लेटफॉर्म के रूप में 'विजुअल स्टूडियो' पर भी दांव खेला, जो काफी हद तक उसको संभाले भी रहे किन्तु फिर भी यह सब उसके कद के हिसाब से लाभ पहुंचाने में असमर्थ ही रहे, जिससे मजबूर होकर, स्मार्टफोन की तेज मार्किट की ओर देखना उसकी विवशता बन गयी और इसीलिए उसे नोकिया का अधिग्रहण पड़ा. इस अधिग्रहण के बाद भी, इस दिग्गज को कुछ खास फायदा नहीं हुआ, और इसे माइक्रोसॉफ्ट ब्रांड के अंतर्गत ही 'लूमिया' को लांच करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
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अब यह कंपनी धीरे-धीरे लोकल मार्किट में 'प्रायोरिटी रिसेलर' के बोर्ड जरूर लगा रही है, लेकिन यह सैमसंग, माइक्रोमैक्स, जोलो, लावा, श्याओमी, इंटेक्स जैसी कंपनियों का किस प्रकार मुकाबला कर पायेगी, यह स्पष्ट नहीं है. वैसे भी, माइक्रोसॉफ्ट के अधिकांश फोन 'मोबाइल विंडोज' पर चल रहे हैं, जिसे मोबाइल यूजर्स का साथ नहीं मिल पाया है. खैर, इस सिलसिले में नडेला ने आगे ठीक ही रूख अपनाया है और कहा कि कंपनी यह जानने में जुटी है कि नई तकनीक के सतत विकास की दिशा में अगला मोड़ क्या होगा? नडेला की बात में ईमानदारी दिखती हैं क्योंकि, यही वह चीज है जिसे भविष्य में प्रासंगिक बने रहने के लिए सभी को करना होता है. इस सन्दर्भ में माइक्रोसॉफ्ट को भाग्यशाली ही कहना चाहिए, क्योंकि तकनीक की बदलती दुनिया की आहट उसने देर से ही सही, महसूस तो की, अन्यथा नोकिया की हालत कौन नहीं जानता! एक समय मोबाइल की दुनिया में, नोकिया का डंका बजता था, लेकिन उसने टच-स्क्रीन फोन की अहमियत समझने में जरा सी चूक क्या की, वह मार्किट से बाहर होकर बिकने की कगार तक जा पहुंची. सिर्फ नोकिया ही क्यों, फोटो-फिल्म बनाने वाली विश्व की बड़ी कंपनी, कोडक भी तकनीक की वजह से ही, हाल ही में बंद हो गयी. व्हाट्सऐप जैसे ऑनलाइन मेसेंजर आ जाने से दूरसंचार कंपनियों के एसएमएस और एमएमएस का धंधा ही बंद हो गया. ऐसे हज़ारों उदाहरण हैं कि जिसने भी इस मार्किट में अपने 'बाप का राज' समझा कि उसका गिरना तय है! इसीलिए, गूगल कभी 'रोबोटिक कार', कभी गूगल ग्लास तो फेसबुक 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' के माध्यम से लगातार इनोवेशन को बढ़ावा दे रहे हैं. फ्लिपकार्ट भी अपने वेब कारोबार को समेट कर, सिर्फ मोबाइल एप पर ही कारोबार करने का मन बना चुकी है. इन बातों का एक ही मतलब निकलता है कि जो बदलाव और नवरचना के साथ खुद को जोड़े रखेगा, तकनीकी दुनिया में उसकी बादशाहत बनी रहेगी, अन्यथा 'अर्श से फर्श' तक आने में भला देर ही कितनी लगनी है!


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