नए लेख

6/recent/ticker-posts

Ad Code

स्वतंत्रता दिवस और भारत पुत्रों की सफलता



हमारा YouTube चैनल सब्सक्राइब करें और करेंट अफेयर्स, हिस्ट्री, कल्चर, मिथॉलजी की नयी वीडियोज देखें.

भारतवर्ष अपनी 68वीं स्वतंत्रता दिवस की खुशियाँ मना रहा है. इस अवसर पर तमाम आंकलन, लेख प्रस्तुत किये जायेंगे, जिनमें एक तरफ देश और देशवासियों की सफलता का गुणगान किया जायेगा तो दूसरी ओर देश की तमाम असफलताओं और विकास की धीमी रफ़्तार की कटु आलोचना करने में भी कसर नहीं रखी जाएगी. कोई सरकार को दोष देता नजर आएगा तो कोई विपक्ष की भूमिका पर राजनीतिक टिप्पणी कर संतुष्ट हो लेगा. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा है कि 'तू कर्म कर, फल की इच्छा करना छोड़ दे'. स्वतंत्रता दिवस के इस आलेख में इसी सूक्ति को केंद्र में रखकर विचार करते हैं तो कुछ बातें बड़ी विचलित करती हैं. भारतवर्ष का विकास कितना हुआ, बजाय इसके यदि आप सोचें कि भारत का विकास करने का प्रयास कितना और कितनों द्वारा किया गया तो आपको अपने अकाउंट्स में भारी गड़बड़ी नजर आएगी. खैर, इसकी विस्तार से चर्चा आगे करेंगे, उससे पहले भारतवासियों के लिए ख़ुशी महसूस करने की एक खबर देखी, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खुद को बधाई देने से नहीं रोक पाये. सुंदर पिचाई दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन कंपनी गूगल के नए सीईओ बने हैं. गूगल ने कंपनी में बदलाव कर के नई कंपनी अल्फाबेट बनाई है, लेकिन गूगल की ज़िम्मेदारी पिचाई के पास होगी. पिचाई के बारे में लोग अब तक बेशक कम जानते हों, किन्तु गूगल में आने के बाद वह उन तमाम सफल भारत-पुत्रों की कतार में खड़े हो चुके हैं, जिनमें माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नाडेला से लेकर पेप्सिको की इंद्रा नूयी, सॉफ्टबैंक के निकेश अरोड़ा, सिटीग्रुप के मुख्य कार्यकारी विक्रम पंडित जैसे अनेक धुरंधर पहले से ही शामिल रहे हैं. और सिर्फ कॉर्पोरेट ही क्यों, राजनीति में बॉबी जिंदल जैसों की सफलता देख देखकर हम जश्न मनाते रहे हैं और यह इस जश्न का सम्बन्ध पंद्रह अगस्त वाली राष्ट्रीयता के जैसा ही होता है.

इसे भी पढ़ें: राजनीतिक पार्टियों को भी 'आरटीआई' में लाएं हमारे पीएम!

समस्या तब आती है जब हमारी ख़ुशी का वापसी में उस तरह से जवाब नहीं मिलता है, जिस मात्रा में हम भारतीयों का हृदय उन सबका स्वागत करता है. और तो और बॉबी जिंदल जैसे लोग अपनी भारतीय पहचान को बोझ मानने और सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने में जरा भी संकोच और शर्म महसूस नहीं करते हैं. खैर, सभी लोग बॉबी जिंदल नहीं हैं और सभी सफल भारत-पुत्रों में इतनी कृतघ्नता भी नहीं है कि वह अपनी मातृभूमि को इतनी आसानी से भूल जाएं. मगर, कई बार इन महानुभावों के कर्तव्यों का आंकलन करने को जी चाहता है, क्योंकि इन्होंने अपनी शिक्षा और बचपन का अधिकांश समय भारत में ही बिताया, संस्कार और वफादारी यहीं की हवाओं में सीखी, तो यहाँ की हवाएं इनसे अपने क़र्ज़ का हिसाब क्यों न मांगे? इसमें कोई अतिवादिता भी नहीं है, क्योंकि आंकड़े यह कहानी साफ़ बयां करते हैं कि देश के उच्च शिक्षण संस्थानों से निकले प्रतिभाशाली छात्र-छात्राएं देश के काम आने के बजाय कॉर्पोरेट की झोली में गिरना ज्यादे पसंद करते हैं. ऐसे में इन पर सब्सिडी की मेहरबानी भारत सरकार क्यों करे! आईआईटी को ही ले लीजिये, इसमें एक छात्र के ग्रेजुएशन पर कई लाखों में खर्च आता है, किन्तु सरकार इसके विद्यार्थियों से नाम मात्र की फीस ही लेती है. आईआईएम जैसे संस्थान जिनकी विश्व-स्तरीय पहचान है, उनके छात्रों पर ही सरकार भारी भरकम खर्च करती है! शायद, इसीलिए गाहे-बगाहे यह मांग भी उठती रही है कि इन संस्थानों में छात्रों के साथ अनुबंध की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए. सिर्फ आईआईटी और आईआईएम ही क्यों, देश के दूसरे प्रतिष्ठित संस्थान और विश्वविद्यालय विश्व की बेहतरीन प्रतिभाएं तैयार करती हैं, जिनसे अमेरिकी बराक ओबामा तक को रस्क होता है, जिसे वह कई बार व्यक्त भी कर चुके हैं. अब गूगल के नवनियुक्त सीईओ  पिचाई को ही ले लीजिये जो तमिलनाडु के हैं और उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से मेटालर्जी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ नडेला हैदराबाद में पैदा हुए और मनिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पढ़ाई की. इंदिरा नूई जो पेप्सिको कंपनी की सीईओ हैं, उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज और आईआईएम कोलकाता से शिक्षा ग्रहण की है.


इसे भी पढ़ें:  टीना डाबी, अतहर और जसमीत से आगे... !

यह तो चंद नाम ही हैं, इससे आगे आप यदि भारतीय रिसोर्स इस्तेमाल करके आगे बढ़ने वालों की सूची तैयार करेंगे तो आप आश्चर्य करेंगे कि देश की 80 फीसदी से अधिक प्रतिभाएं देश से बाहर अपनी प्रतिभा का परिचय देती हैं. यह अलग बात है कि इसके पीछे अति शिक्षित लोग हज़ारों तर्क प्रस्तुत करने में अपनी तर्कशीलता को सक्षम बनाते रहते हैं. आश्चर्य तब और होता है, जब यह तथाकथित सफल लोग अपने भारतीय तमगे को भी जल्द से जल्द नोंच कर फेंक देना चाहते हैं और अपने गाँव, गली, मोहल्ले, शहर और देश के प्रति सांस्कारिक वफादारी को भी तिलांजलि दे देते हैं. यथार्थवादी इसके लिए निश्चित रूप से व्यवहारिकता का तर्क देंगे, मगर माँ और मातृभूमि के प्रति आपको अपने कर्तव्य का निर्वाह करने में यदि कोई तर्क आड़े आ जाय तो यह गर्व का विषय कैसे हो सकता है! तमाम अवसरों पर हम सरकार को, प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते रहे हैं, किन्तु देश की इन प्रतिभाओं का हिसाब-किताब भी होना ही चाहिए. हालाँकि, इन प्रतिभाशाली लोगों से भारत का सम्मान भी बढ़ता है, मगर सिर्फ सम्मान से पेट भरता है क्या! एक बूढ़े किसान का बेटा यदि अफसर बन जाए तो वह किसान खुश जरूर होता है, लेकिन क्या उस बेटे का कर्तव्य नहीं है कि वह किसान को फटेहाल स्थिति से भी बाहर निकाले? बल्कि, उस गाँव के तमाम किसानों के लिए कुछ करने का यत्न भी करे... मगर व्यवहारिक ज़िन्दगी उस किसान को बृद्धाश्रम छोड़ने से बाज नहीं आती है. उसकी आँखें शून्य से प्रश्न पूछती रहती हैं, ठीक वैसे ही जैसे पिचाई जैसे हज़ारों लाखों प्रतिभाशाली व्यक्तियों से भारत के करोड़ों गरीब लोग प्रश्न पूछ रहे हैं कि सच बताना! हमारे प्रति तुम्हारा कोई कर्त्तव्य बनता है कि नहीं और यदि बनता है तो तुमने उसका किस हद तक निर्वाह किया है? यदि इन प्रश्नों का जवाब नहीं मिलता है तो पिचाई जैसों का प्रमोशन भारतवर्ष के लिए सच्ची ख़ुशी का अवसर कैसे और क्यों हो सकता है भला!

इसे भी पढ़िएकंप्यूटर की दुनिया में 'सुरक्षा जरूरी'

भारत के प्रधानमंत्री द्वारा बधाई दिया जाना एक औपचारिकता जरूर हो सकती है, किन्तु क्या वास्तव में भारतीयों के लिए खुश होना जैसा कुछ है? इस लेख में सुन्दर पिचाई का उदाहरण भर ही लिया गया है और लेखक का मंतव्य उन पर व्यक्तिगत प्रहार करने की बजाय इस पूरी क्रीमी-कम्युनिटी से प्रश्न पूछने का है, जो अपने पूर्वजों की जन्मभूमि से या तो मुंह मोड़े हुए हैं अथवा थोड़ा बहुत दिखावे के लिए प्रेम झलका देते हैं. ऐसा प्रेम न्यूयार्क के मैडिसन स्क्वायर जैसे कुछ जगहों पर जरूर दिखता है, किन्तु यह उन तमाम एनआरआई की लोकल इम्पोर्टेंस दिखाने का प्रतीक भर बन कर रह जाता है. लाल फीताशाही, प्रशासन इत्यादि जैसे बहानों की लम्बी लड़ी लिए इन क्रीमी समूहों को सोचना चाहिए कि समस्याओं को दूर करना क्या इनकी जवाबदेही नहीं है? क्या इनके माँ-बाप ने इन्हें पढ़ाया होगा तो यह कल्पना नहीं की होगी कि उनका बेटा परिवार, खानदान और गाँव के बारे में कुछ बेहतर करेगा? लेकिन, वह बेटा तो विदेश में जा बसा और या तो गाँव आया ही नहीं अथवा एकाध बार आया भी तो मीडिया को साथ लेकर, ताकि उसकी पीआर मजबूत हो. यह समस्या सिर्फ एनआरआई बंधुओं की ही हो ऐसा भी नहीं है, बल्कि गाँव के छोटे स्तर से सफल होने वाले अफसर, व्यापारी, नेता सबकी ही कहानी है, जिसे आसानी से 'क्रीमी-लेयर' की संज्ञा दी जा सकती है. जी हाँ! इस स्वतंत्रता दिवस पर इन्हीं लोगों से प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि क्या उन्होंने अपने परिवार, खानदान, गाँव, शहर, प्रदेश और देश का विकास करने का प्रयत्न किया है? परिणाम को छोड़ दीजिये, क्योंकि गीता में श्रीकृष्ण ने परिणाम के बारे में सोचने से मना जो किया है. प्रश्न सिर्फ और सिर्फ 'प्रयत्न' का है, वह भी योग्य और प्रतिभाशाली, संपन्न लोगों से ही, क्योंकि सामर्थ्यवान ही देश समाज में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होता है. है न ....  !!
Mithilesh article on 68 independence day of India in hindi
nri, iit, iim, google, microsoft, city group, success, good people, safal log, creme layer, village, shri krishn, result, independance day article, hindi lekh, Hindi lekhak, hindi kavi, kahanikar, rachnakar, writer, author, political writer, journalist, patrakar, Indian writer, current writing, samsamyiki, लेखक, कवि, कहानीकार, रचनाकार, 
Happy Independence Day, Hindi Article, Hindustan Zindabad, Successful People of India

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. Amazing!!! I like this website so much it's really awesome. I have also gone through your other posts too and they are also very much appreciate able and I'm just waiting for your next update to come as I like all your posts... well I have also made an article hope you go through it. Thanksgiving 2018 , Independence day 2018

    जवाब देंहटाएं
Emoji
(y)
:)
:(
hihi
:-)
:D
=D
:-d
;(
;-(
@-)
:P
:o
:>)
(o)
:p
(p)
:-s
(m)
8-)
:-t
:-b
b-(
:-#
=p~
x-)
(k)