हमारे देश में डाक जैसे विभाग कभी-कभी ही चर्चा में आ पाते हैं. हालाँकि, हाल के दिनों में इसके दिन फिरे जरूर हैं, क्योंकि एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की डीएनए-जंग से इसे चर्चा मिल रही है तो दूसरी ओर 'डाक टिकटों' की राजनीति ने इस विभाग को फ्रंट फुट पर चर्चा में ला दिया है. बिहार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी मात्रा में डीएनए सैंपल भेजा गया है जिससे अब डाक विभाग परेशान सा दिखने लगा है. दिल्ली के निर्माण भवन पोस्ट ऑफिस में पीएम मोदी के लिए 1 लाख से ज्यादा नाखून और बाल के डीएनए सैंपल पहुंच चुके हैं और इन सैंपल का क्या करना है इसके लिए पीएमओ से निर्देश के इंतजार में डाक विभाग हलकान है. इसी कड़ी में डाक विभाग को विरासत की जंग में भी चाहे-अनचाहे घिसटना पड़ा है. यूं तो विरासत की जंग हमेशा दो विचारधाराओं के बीच चलती ही रहती है और इस बार भारत में इस जंग के लिए प्लेटफॉर्म बने हैं डाक टिकट. जी हाँ! डाक टिकटों पर से कांग्रेस से जुड़े नेहरू खानदान के इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को हटाने का निर्णय केंद्र सरकार ने ज्यों ही लिया, कांग्रेस ने आसमान सर पर उठा लिया. कांग्रेस से जुड़े प्रवक्ताओं ने ज़ोर-ज़ोर से कहना शुरू कर दिया कि भाजपा के पास कोई बड़ा प्रतीक पुरुष नहीं है, इसलिए वह जान बूझकर इंदिरा-राजीव को इतिहास से मिटाने का प्रयास कर रही है. कांग्रेसियों ने साथ में यह भी जोड़ा कि इन दोनों के ऊपर विश्व के कई देश डाक-टिकट जारी कर चुके हैं, लेकिन भारत सरकार बदले की भावना के तहत इन्हें हटा रही है. गौरतलब है कि केंद्र सरकार के निर्णय के अनुसार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की फोटो वाले डाक टिकट अब जारी नहीं किए जाएंगे. सरकार अब डाक टिकटों की नई सीरीज जारी करने जा रही है, जिसमें दीनदयाल उपाध्याय, जयप्रकाश नारायण, शयामा प्रसाद मुखर्जी और राममनोहर लोहिया आदि की तस्वीर वाले डाक टिकट शामिल हैं. इस सन्दर्भ में बताना सामयिक होगा कि देश में जितने भी नेता हुए हैं, उनका राष्ट्र-निर्माण में अपने तरीके से योगदान रहा है. इसी कड़ी में इंदिरा गांधी का योगदान तो अमूल्य रहा है, क्योंकि इनके कार्यकाल में जिस प्रकार भारत रक्षा क्षेत्र में परमाणु परीक्षण के साथ सक्षम बना वह किसी से छुपा हुआ तथ्य नहीं है. इंदिरा गांधी के दुसरे योगदानों में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) रुपी नासूर का हमेशा हमेशा के लिए इलाज कर दिया जाना भी भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा. राजीव गांधी को देशवासी मुख्यतः देश में कंप्यूटर-क्रांति के लिए याद करते हैं. इन तमाम योगदानों के बावजूद, क्या यह सच नहीं है कि देश ने भी इंदिरा और राजीव को जबरदस्त सम्मान दिया है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा की सर्वोच्च नेता मायावती ने अपने एक बयान में कहा भी था कि 'नेहरू खानदान ने देश को जितना दिया है, उससे कहीं ज्यादा देश से वसूल लिया है'. उनके इस बयान को एकबारगी राजनीतिक माना जा सकता है, लेकिन समझना दिलचस्प होगा कि देश का ऐसा कौन सा कोना है, जहाँ नेहरू परिवार के तमाम लोगों की मजबूत स्मृतियाँ अंकित नहीं हैं? कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सिर्फ 'भारतीय करेंसी' को छोड़कर नेहरू-गांधी परिवार हर जगह छाया हुआ है, अपने योगदानों से कहीं बहुत ज्यादा. अगर स्वस्थ मानसिकता से सोचा जाय तो किसी के महिमा-मंडन में किसी को आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए, लेकिन अगर किसी व्यक्ति या परिवार के अति महिमा-मंडन से दुसरे महापुरुषों का सम्मान बाधित होता है तो फिर न्यायिक दृष्टि से पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस करनी ही पड़ेगी, विशेषकर तब जब देश की बहुसंख्यक जनता कांग्रेस पार्टी को बुरी तरह नकार चुकी हो! सवाल यहाँ इंदिरा या राजीव गांधी का नहीं है, बल्कि इनके नाम पर 'देश द्वारा रिजेक्टेड' वर्तमान कांग्रेसियों का है, जो विरासत के इन प्रतीकों के सहारे देश की जनता को मुर्ख बनाने का भ्रम पाले हुए हैं. इसके अतिरिक्त, कांग्रेस को यह भी सोचना चाहिए कि ऐसी नौबत आयी ही क्यों और उसके साठ सालों के शासन में देश के दुसरे महापुरुषों को अनदेखा किया ही क्यों गया? कांग्रेस नेतृत्व को बताना चाहिए कि विरासत की अपनी नेहरू खानदानी श्रृंखला को बढ़ाते समय वह क्यों भूल गयी कि तमाम महापुरुषों ने अपने खून से सींचकर इस देश में लोकतंत्र की नींव रखी थी... और तब निश्चित रूप से राजतन्त्र का अंत हो गया था. कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि राहुल गांधी, जो अपने पारिवारिक साये के वगैर, शायद ग्राम-पंचायत का एक चुनाव भी अपने बल-बूते न जीत सकें, उनको लोकतंत्र में 'युवराज' की उपाधि क्यों मिली हुई है? कांग्रेस को यह भी बताना चाहिए कि सोनिया गांधी को इस लोकतान्त्रिक देश में, अंदरखाने 'राजमाता' क्यों कहा जाता है? ऐसी ही तमाम प्रश्नों की अंतहीन श्रृंखला है जो हम भी जानते हैं और शायद कांग्रेसी भी जानते हैं? फर्क बस इतना ही है कि कांग्रेसी विरोध करते समय अपनी आँखों पर चढ़े नेहरू खानदान के चश्मे को उतार नहीं रहे हैं, अगर वह इस राजतांत्रिक चश्मे को उतार कर देखते तो शायद डाक टिकटों से 'इंदिरा - राजीव' की तस्वीरें हटाने पर विवाद खड़ा नहीं करते! विरासत की जंग में सिर्फ डाक टिकट ही शामिल हों, ऐसा भी नहीं है बल्कि हाल ही में दिल्ली की 'औरंगज़ेब रोड' का नाम बदलकर 'डॉ. अब्दुल कलाम रोड' रखने पर भी ऐसा ही हो-हल्ला मचाने का प्रयास किया गया था और टेलीविजन पर गैर जरूरी विवाद कई दिनों तक खिंचा था. इसके अतिरिक्त नई दिल्ली में त्रिमूर्ति पर बने जवाहर लाल नेहरू म्यूजियम को 'आधुनिक' बनाने के भारतीय जनता पार्टी सरकार के फैसले को भी विवादित बताया जा रहा है, जिसके बारे में भाजपा के प्रवक्ता ने सफाई दी है कि वर्तमान संग्रहालय राष्ट्रीय आंदोलन का सिर्फ नेहरू वाला पक्ष सामने लाता है, उसकी पूरी कहानी नहीं. इस सन्दर्भ में निश्चित रूप से कांग्रेस के साथ-साथ दुसरे बुद्धिजीवियों द्वारा आपत्तियों पर भी गौर फ़रमाया जाना चाहिए, जो भाजपा और आरएसएस पर यह सीधा आरोप लगा रहे हैं कि वह देश के इतिहास और विरासत से अपने मन-मुताबिक़ छेड़छाड़ करने पर आमादा है, जबकि दक्षिणपंथी इस बात पर जोर देकर कहते हैं कि उसका इरादा इतिहास के उन पन्नों को भी छूने का है, जो नेहरू-गांधी खानदान के राजतन्त्र में दब गए हैं और जिनको यथोचित सम्मान नहीं मिला है. दोनों पक्षों को देखने पर यह मामला उलझाऊ दिखने लगता है, हालाँकि इसकी सुलझनें भी यहीं से निकलेंगी, यह भी तय है. विचारधारा की इस जंग में कांग्रेसी आपत्ति को पूरी तरह खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह राजतन्त्र की मानसिकता से बाहर आने को आज भी तैयार नहीं है तो आरएसएस और भाजपा समूह को भी प्रतीकों और विरासत की जंग में संभल-संभल कर चलने की आवश्यकता है. जाहिर है कि इस देश में सिर्फ कांग्रेस ही नहीं है, बल्कि निष्पक्ष और राष्ट्रप्रेमी दुसरे लोग भी हैं, जिनके पास सही और गलत परखने की पर्याप्त बुद्धि है. बेहतर यह हो कि भाजपा इतिहास को बदलने की बजाय, पहले अपने कार्यकाल में इतिहास बनाने पर ज्यादा ध्यान दे और अगर इतिहास बदलना आवश्यक ही होगा तो उसे धीरे-धीरे आयुर्वेद के मुताबिक बदले, न कि 'एलोपैथी' दवा देकर 'साइड इफेक्ट' को न्योता दे! बाबा रामदेव भी टीवी पर यही बता रहे थे कि 'डेंगू' का इलाज 'आयुर्वेद' में बेहतर है ...! देखी आपने वह क्लिप और बाबा का एलोवेरा, गिलोय का जूस पीने की सलाह देने का आत्मविश्वासी अंदाज ... !! डेंगू, बाबा रामदेव की सलाहों से ठीक हो या न हो लेकिन भाजपाई इतिहास शोधन में 'आयुर्वेद की धीमी प्रक्रिया' को जरूर अपनाएं, और कांग्रेस राजतन्त्र की छाया से खुद को मुक्त करे तो फिर यह विरासत की जंग ही न हो, बल्कि एक नयी विरासत का ही सृजन हो!
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