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नए साल की वैश्विक चुनौतियां - Mithilesh hindi article on year 2015 and coming year 2016, best review article

हर नया साल कुछ अवसर, कुछ चुनौतियां साथ लेकर आता है, इसलिए 2016 की शुरुआत के समय इस बात का एक आंकलन अवश्य किया जाना चाहिए कि 2015 में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से पूरे विश्व ने किन चुनौतियों का, किस हद तक सामना किया. इस बात से हमें नए वर्ष का स्वागत सजगता के साथ करने में काफी हद तक सहूलियत तो होगी ही, साथ ही साथ चुनौतियों का सामना करने को भी हम काफी हद तक तैयार भी हो सकेंगे. क्रमवार देखें तो, 2015 की शुरुआत में ही फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका 'चार्ली हेब्दो' के पेरिस स्थित ऑफिस में हमलावरों द्वारा 12 लोगों की हत्या की खबर ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया था. इस आतंकी हमले से साल की शुरुआत हुई तो पूरा साल आईएस आतंकी संगठन की क्रूरता और उसके खिलाफ वैश्विक राजनीति के नाम जुड़ा रहा. इस हमले के बाद सोशल मीडिया पर कई देश खुलकर पत्रिका के समर्थन में सामने आए, तो कट्टरपंथ पर भी जमकर चर्चा हुई. दुसरे बड़े आतंकी हमलों में, फ्रांस की राजधानी पेरिस में नवंबर महीने की 13 तारीख को हुए हमलों ने जैसे पूरी दुनिया में कोहराम मचा दिया. पेरिस में अलग अलग जगहों पर हुए आतंकी हमलों से सिर्फ वहां के लोग ही नहीं पूरी दुनिया में दहशत बढ़ गई, जिसका परिणाम सीरिया में आईएस के ठिकानों पर कई देशों की बमबारी के रूप में निकला, जो लगातार जारी रही. इसी कड़ी में पूरे साल आतंकी संगठन आईएसआईएस सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता और विरोधियों के विरोध को लेकर भी काफी चर्चित हुआ. एक तरफ आतंकी संगठन आईएस का सोशल मीडिया पर विरोध बढ़ा तो दूसरी तरफ उसके फॉलोवर्स की संख्या में भी इजाफा हुआ, जिसने भारत समेत कई देशों की सरकारों को गहरी चिंता में डाल दिया. भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह साल के मध्य से साल के अंत तक इस मामले में सजग होकर कहते रहे कि भारत का मुसलमान इस्लामिक स्टेट का समर्थक कतई नहीं हो सकता. भारत के सन्दर्भ में, बीते 26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आने से विदेश नीति में भारत सरकार ने एक बड़ा दांव चला था, जिसका असर दिसंबर में नरेंद्र मोदी की अचानक लाहौर यात्रा तक बना रहा.


इसके अतिरिक्त भी विदेश मोर्चे पर भारत सरकार ने कई और झंडे गाड़े, जिसको लेकर विशेषज्ञ यह मानने लगे हैं कि भारत को आर्थिक, राजनयिक और कूटनीतिक स्तर पर जो स्थान मिल रहा है वह पहले नहीं मिलता था. अंतरराष्ट्रीय शक्तियां अब भारत को ज़्यादा महत्व दे रही हैं, तो भारत को सामरिक क्षेत्र में भी अच्छी सफलता मिली है. हालाँकि, नेपाल का मसला भारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी त्रासदी भी  बनी, जिसने भारतीय प्रशासन की जबरदस्त किरकिरी कराई. हालाँकि, यह एक ऐसा मुद्दा था, जिसमें भारत को फंसना ही था. लेकिन, अगर पहले ही सजगता की जाती तो मामला अवश्य ही कुछ अलग होता! आतंक और विदेश नीति की तरह एक और खबर, जिसकी चर्चा या दहशत कह लें पूरे साल बना रहा वह था प्राकृतिक आपदा 'भूकम्प' का. फेसबुक पर नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप ने इस पहाड़ी देश को साल की सबसे भयावह स्थिति में डाल दिया, जिसमें दसियों हजार लोगों की जानें गई थी. इसके बाद कुछ और बड़े भूकम्पों ने पूरी दुनिया को डराए रखा, जिसमें 12 मई को नेपाल में ही, 4 जून को मलेशिया में, 16 सितम्बर को चिली में और 26  अक्टूबर को अफगानिस्तान के भूकम्प ने हज़ारों लोगों को काल के गाल में भेज दिया. भारत में भी दिल्ली समेत उत्तर भारत में नेपाल के भूकम्प के बाद लगातार दिसंबर तक भूकम्प ने लोगों को चैन से सोने नहीं दिया. भारत की सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को अवैध निर्माणों के प्रति कड़ाई से सचेत करते हुए ऐसी किसी स्थिति की भयावहता से निपटने का निर्देश जारी किया. भारत के ही चेन्नई महानगर ने साल के आखिर में भयानक बाढ़ का सामना किया, जिसमें 400 लोगों से ज्यादे लोग मारे गए तो 18 लाख से अधिक लोग विस्थापन झेलने को मजबूर हुए. जाहिर तौर पर भारत जैसे देश में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है. एक और वैश्विक समस्या लोगों के सामने चुनौती के रूप में सामने आयी. सीरिया का गृहयुद्ध और शरणार्थी संकट 2015 में सबसे मार्मिक और मानवीय मुद्दा रहा. फेसबुक समेत दुसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसी तमाम तस्वीरों और पोस्ट ने शरणार्थियों की स्थिति को दुनिया के सामने रखा. कुछ दुसरे बड़े वैश्विक संकटों की बात करें तो ग्रीस का कर्ज संकट सोशल मीडिया पर खूब चर्चित हुआ.

अर्थव्यवस्था के ही क्षेत्र में लगभग सभी देशों ने उतार-चढ़ाव का सामना किया ही, साथ ही साथ नौकरियों में भी ढलान देखी गयी. जाहिर है, आतंक, प्राकृतिक आपदा, आर्थिक मंदी और कट्टरता के खतरे से 2015 में समूचा विश्व जूझता रहा. देखना दिलचस्प होगा कि नए साल में पुरानी चुनौतियों पर किस तरह का रवैया अख्तियार किया जाता है, क्योंकि 2016 की नयी चुनौतियां तो अभी आनी शेष ही हैं. हालाँकि, भारतीय व्यापार के लिहाज से 2015 मिला जुला रहा. साल 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजूबत करने की दिशा में कई कदम उठाए गए तो 2015 में केन्द्र सरकार को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें भी सौपी गईं. आरबीआई ने भी ग्राहकों को फायदा पहुंचाने के लिए कई बार नीतिगत दरों में कटौती की. इसके अतिरिक्त, सरकारी योजनाओं की धूम रही सो अलग. हालाँकि, भारतीय परिप्रेक्ष्य में डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे प्रोग्रामों का असली प्रभाव आना अभी बाकी है, किन्तु इससे सरकार की आगे बढ़ने की मंशा बेहद खुलकर सामने आयी है, इस बात में कोई दो राय नहीं. हालाँकि कुछ और मुद्दों ने भारतीय परिदृश्य को गहरे स्तर तक प्रभावित किया, जिसमें सहिष्णुता-असहिष्णुता का मुद्दा काफी हाई लेवल तक गरमाया, तो कांग्रेस पार्टी के लिए नेशनल हेराल्ड का मुद्दा दर्द दे गया. भाजपा की विपक्षी पार्टियों के लिए साल की शुरुआत में दिल्ली चुनाव का जीतना और साल समाप्त होते-होते बिहार में बड़ी जीत ने लोकतंत्र को निश्चित रूप से मजबूती प्रदान की. हालाँकि, संसद में कामकाज को लगातार बाधित किया जाना देश को दुखी कर गया तो जीएसटी समेत कई आम सहमति के बिल का लटक जाना भी विश्लेषकों समेत आम जनता को भी खला. डॉ. अब्दुल कलाम जैसे महान व्यक्तित्व का दुनिया से जाना और उनकी अंतिम-यात्रा से आम जुड़ाव भारत के लिए बेहद भावुक पल रहे तो आने वाली पीढ़ियों और विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरणा श्रोत का चले जाना उन्हें ख़ास तौर पर खला होगा. इसके अतिरिक्त फ़िल्मी दुनिया में भी एफटीआईआई को लेकर खूब राजनीति हुई तो भारतीय दर्शकों को भारत में ही बनी 'बाहुबली' ने खूब रोमांचित किया. आने वाले साल में यह भी एक बड़ा प्रश्न भारतीय लोगों के जेहन में है कि 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा'? नए साल के जश्न के साथ तमाम चुनौतियों और सवालातों के हल खोजना और समस्याओं को समझना निश्चित रूप से दिलचस्प होने वाला है. हाँ! इस बीच हमें सावधानी और सजगता की भी हर स्तर पर उतनी ही आवश्यकता होगी.

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