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मुस्लिमों को, और मुस्लिमों के प्रति सोच, दोनों को बदलने की जरूरत है!

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पिछले कई दशकों से मुस्लिम समाज की दूसरे समुदायों के प्रति नीयत की खूब चर्चा हुई है. खासकर वैश्विक आतंकवाद के हालिया दौर के बाद तो इस चर्चा ने और भी जोर पकड़ लिया है. ऐसे लोगों, संगठनों और देशों की कमी नहीं है जो आतंकवाद को, चरमपंथ को और रुढ़िवादिता को सीधे-सीधे इस्लाम और उनके अनुयायियों से जोड़ देते हैं. इसके विपरीत ऐसे लोग भी काफी संख्या में मौजूद हैं जो स्थिति में सुधार की गुंजाइश ढूंढने की कोशिश में लगे रहते हैं. हालाँकि, इस बात में दो राय नहीं है कि अब जब भी आतंकवाद की चर्चा होती है, उसके साथ इस्लाम की चर्चा आप ही जुड़ जाती है और इसका कारण भी उतना ही स्पष्ट है, क्योंकि न तो आतंक या आतंकियों की अपेक्षित स्वर में कड़ी निंदा की जाती है, भर्त्सना और विरोध तो दूर की बात है. हालाँकि, अब तक इस दबे छुपे तथ्य की चर्चा उतनी खुले आम तौर पर नहीं होती थी कि 'आतंकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाए अथवा नहीं'! कई लोग झिझकते थे, तो कई लोग संतुलित रुख अपनाने पर जोर देते थे, किंतु विश्व के 2 बड़े देशों में जिस तरह दक्षिणपंथी राजनीति का उभार हुआ है, उसने लोगों को काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया है. एक भारत और दूजा अमेरिका जैसी महाशक्ति में लोगों का झुकाव अगर दक्षिणपंथी पार्टियों की ओर हुआ है, तो इसका एक बड़ा कारण आतंकवाद का भी है. इस प्रकार के काउंटर राजनीतिक उभार से इस्लामिक समुदाय भी अवश्य ही सोच में पड़ा होगा कि आखिर इस्लाम पर ही 'आतंकवाद से नजदीकी' का आरोप क्यों चस्पा किया जा रहा है और आखिरकार इसका वैश्विक परिणाम क्या हो रहा है, और क्या हो सकता है? साफ़ है कि लोग अब आतंकवाद का काउंटर करने वाले शख्श या पार्टियों में भरोसा जताने के प्रति मुखर होने लगे हैं. इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका में नाइन एलेवेन (9/11) के आतंकी हमले के बाद मुसलमानों को सामाजिक और राजनीतिक रुप से काफी हद तक अलग-थलग होना पड़ा है और चूंकि अमेरिका एक सैन्य महाशक्ति होने के साथ-साथ आर्थिक महाशक्ति भी है, इसलिए विश्वभर के तमाम धनाढ्य, वह चाहे जिस भी धर्म या समुदाय से हों वह आते जाते रहते हैं. Terrorism and Islam, Hindi Article, Essay, New, Musalman, America, India, Right wing Politics, Religion, Socialism, Example of China

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ऐसे में उनको यह बात बखूबी एहसास हुई है कि अमेरिका में मुसलमानों के नाम पर उन्हें अलग-थलग होना पड़ रहा है भारत से जब आजम खान या अभिनेता शाहरुख खान अमेरिका के किसी हवाई अड्डे पर कई-कई घंटे रोककर चेक किए जाते थे, तो समूचे मुस्लिम समुदाय को यह एहसास हो जाता था कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है. बताते चलें कि यह वह लोग हैं, जिन्हें मीडिया तवज्जो देता है और मीडिया के माध्यम से बातें हर एक जेहन में पहुंचती हैं. हाल-फिलहाल अमेरिका में मुस्लिमों पर घातक टिप्पणियां करने वाले डोनाल्ड ट्रंप कि जिस तरह धमाकेदार जीत हुई उसे भी सीधे-सीधे इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ जनादेश के रूप में देखा गया. ऐसी ही, अमेरिका के बाद दूसरा सफल एवं विशाल लोकतंत्र है भारत! यहाँ, जिस तरह नरेंद्र मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत में आयी, उसे भी कहीं ना कहीं इस्लामिक आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ जनादेश माना गया. आप कल्पना कर सकते हैं कि विश्व के लोग इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ इस कदर डरे हुए हैं कि उसके विरोध के नाम पर डोनाल्ड ट्रंप जैसे व्यक्ति को भी जिताने में उन्हें किसी प्रकार का संकोच नहीं हो रहा है. गौरतलब है कि यह वही डोनाल्ड ट्रंप हैं जो अमेरिका में मुसलमानों के आने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कहते रहे हैं, तो आतंकवाद को इस्लाम से सीधे-सीधे जोड़ने में उन्हें कोई संकोच नहीं रहा है. इन चर्चाओं के बीच साफगोई से देखा जाए तो हमें दो तरफ से सोचने की आवश्यकता है. पहली मुस्लिम समुदाय को बदलने की आवश्यकता है तो दूसरी ओर मुस्लिमों के प्रति डोनाल्ड ट्रंप सरीखी सोच में भी परिवर्तन लाए जाने की आवश्यकता है. इस संबंध में एक महत्वपूर्ण खबर चीन से आई जिस का संदर्भ दिया जाना उचित रहेगा. चीन ने अपने मुस्लिम नागरिकों को धार्मिक अतिवाद से बचने और समाजवादी मूल्यों को अपनाने को कहा है. बताते चलें कि चीन ने अशांत राज्य शिनजियांग के मुस्लिम समुदाय को चीनी मूल्यों को अपनाने और समाजवाद के करीब आने की सलाह दी है. सुबे के धार्मिक मामलों के एडमिनिस्ट्रेशन के चीफ वांग जुवान ने साफ कहा है कि चीनी मुस्लिमों को पूरी क्षमता के साथ धार्मिक अतिवाद का विरोध करना चाहिए. चीन की सरकारी एजेंसी शिन्हुआ की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीनी मुस्लिमों की दसवीं राष्ट्रीय कांग्रेस को एड्रेस करते हुए वांग जुवानने यह भी कहा कि चीन में इस्लाम के विकास को चीन के मूल्यों से जुड़ा होना चाहिए. समझा जा सकता है कि अगर तमाम मुस्लिम समुदाय अपने अपने देशों में वहां के प्रति समाजवादी सोच रखें तो आतंकवाद से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है. Terrorism and Islam, Hindi Article, Essay, New, Musalman, America, India, Right wing Politics, Religion, Socialism, Example of China


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चीन की इस खबर में यह भी बात सामने आई जिसमें वांग ने कहा कि चीन मुस्लिमों के विश्वास और मूल्यों का सम्मान करता है लेकिन राजनीति, शिक्षा और न्याय के क्षेत्रों में धार्मिक दखल को सहन नहीं किया जा सकता. भारत जैसे देशों में जिस तरह 'पर्सनल लॉ' के नाम पर संवैधानिक कानूनों की धज्जियां उड़ाई जाती हैं, उससे साफ़ जाहिर होता है आज भी इस्लामिक समुदाय की सोच नागरिक अधिकारों के प्रति लचीली नहीं बन सकी है. तीन तलाक जैसे मसले से मुस्लिम औरतों को किस हद तक परेशानी होती है, इसे बताने की आवश्यकता नहीं! चीनी प्रशासन का यह अधिकारी यही नहीं रुका, बल्कि उसने आगे यह भी जोड़ा कि चीन में नई बनने वाली मस्जिदों के आर्किटेक्ट में चीनी शिल्प कला की झलक होनी चाहिए ना कि विदेशी स्टाइल की नकल! चीन के इस अधिकारी की तारीफ़ की जानी चाहिए, जिसने आतंकवाद, रूढ़िवादिता और इस्लाम के पहलुओं पर अपना विचार बेहद साफगोई से रखा. साफ जाहिर है कि चीन सरकार के वह निर्देश जिनमें धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन को लेकर सख्त निर्देश दिए गए हैं उसे अमल में लाने के प्रयास शुरू कर दिए गए हैं. हालाँकि, इस लेख में चीन की किसी आतंरिक समस्या और लोगों के अधिकारों को कुचलने का कतई समर्थन नहीं किया गया है, बल्कि सिर्फ इतना ही ध्यान दिलाया गया है 'खास समुदाय' को अपनी सोच परिवर्तित करने के प्रति अवश्य ही विचार करना चाहिए. देखा जाए तो इस तरह की परिस्थितियां सभ्य समाज में आनी ही नहीं चाहिए, किंतु आतंकवाद का डर और उस से पीड़ित लोगों की संख्या इतनी ज्यादा है कि इस बाबत कुछ भी कहना अनैतिक सा ही है. जैसे भी, जिस प्रकार भी हों, तमाम समुदाय आतंकवाद पर रोक लगा सकें, वही उचित रास्ता कहा जाएगा. बेशक इसके लिए कुछ अधिकारों का हनन ही क्यों न हो, किन्तु आज आतंकवाद पर रोक सर्वाधिक आवश्यक है. Terrorism and Islam, Hindi Article, Essay, New, Musalman, America, India, Right wing Politics, Religion, Socialism, Example of China


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हालाँकि, कई मामलों में आतंकवाद की आड़ में मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों को बदनाम करने के प्रयासों को भी जायज नहीं ठहराया जाना चाहिए. अभी हाल ही में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हुई है उसके बाद अमेरिका में मुस्लिम समुदाय पर जगह-जगह हमले करने की कोशिश हुई है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए. सबसे गंभीर बात यह है जो अमेरिका में मुसलमानों के एक संगठन ने कहा है जिसके अनुसार कैलिफोर्निया प्रांत की तीन मस्जिदों को खत भेजकर धमकी दी गई है. इन खतों में मुसलमानों को 'नीच और गंदा' कहा गया है तथा उन्हें अमेरिका छोड़ने की बात कही गई है. दिलचस्प यह है कि नफरत भरे इन पत्रों में राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रंप की तारीफ करते हुए कहा गया है कि वह अमेरिका को उसी तरह से साफ कर देंगे जैसे हिटलर ने यहूदियों को जर्मनी से साफ करने का प्रयास किया था! साफ जाहिर है धार्मिक समुदाय में डर पैदा करने की कोशिश विक्षिप्त मानसिकता के लोगों की है और पुलिस को जल्द से जल्द इस मामले सहित अन्य संबंधित मामलों की जांच करनी चाहिए. जहाँ तक बात आतंकवाद एवं मुस्लिम समुदाय की है तो उसके बारे में ऊपर की पंक्तियों में सार्थक चर्चा करने की कोशिश हुई है और उसका लब्बो-लुआब यही है कि सभी को अपनी सोच में बदलाव करने की अनिवार्यता को जल्द से जल्द समझ लेना चाहिए.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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