हाल-फिलहाल पड़ोसी देश श्रीलंका की राजनीति में तूफान मचा हुआ है.
वैसे भी पिछले दशक में इस छोटे देश को लेकर जितनी खींचतान हुई है उतना संभवतः किसी अन्य देश को लेकर नहीं हुई होगी.
जी हां! बात हो रही है इस द्वीपीय देश में दो बड़े क्षेत्रीय सुपर पावर चीन और भारत की टकराहट या फिर कहें कि एक दूसरे पर बढ़त बनाने के प्रयासों को लेकर.
Pic Courtesy: newsin |
बताया जाता है कि 2008 के आसपास ही इस देश में चीन दखल देना शुरू कर चुका था और भारत इस बात को लेकर हमेशा आशंकित रहा कि चीन सैन्य रूप से श्रीलंका का इस्तेमाल कर सकता है. जबकि तत्कालीन समय में भारत सरकार की ओर से इस प्रकार के हालात को कूटनीतिक तौर पर संतुलित करने के ठोस प्रयास अमल में नहीं लाये गए और पानी सर से ऊपर गुजरता गया.
हालांकि ऐसा भी नहीं है कि चीन को इस देश में एकछत्र राज मिल गया हो बल्कि कर्ज में दबे श्रीलंका के लोग इसके विरुद्ध खासी आवाज उठाते रहे हैं लेकिन जानने वाले कहते हैं कि इस समय श्रीलंका चीन के कर्ज में कुछ यूं दबा हुआ है कि अगर चीन बोलेगा कि उसे उठना है तो वह उठेगा और अगर बोलेगा कि बैठना है तो श्रीलंका को बैठना पड़ेगा!
भारत में नयी सरकार के गठन के बाद पिछले कुछ सालों से ज़रूर कुछ प्रयास किये जा रहे हैं. चीन के बढ़ते क्षेत्रीय प्रभाव की काट के रूप में भारत और जापान जैसे देश एक साथ तेजी से साथ आए. खासकर श्रीलंका को लेकर भारत सक्रिय हुआ है और ऐसे में चीन और भारत के बीच इस देश में राजनीतिक खींचतान शुरु होनी स्वाभाविक ही थी.
परदे के पीछे चल रही कूटनीति के बीच बीते अक्टूबर के महीने में वर्तमान श्रीलंकाई राष्ट्रपति मैथ्रिपाला सिरीसेना ने भारतीय खुफिया एजेंसी "रॉ" पर अपनी हत्या की साजिश रचने का शक जाहिर किया तो तहलका मच गया.
इसके बाद से तो एक तरह से श्रीलंका में एक के बाद दूसरी राजनीतिक उठापटक ही शुरू हो गई. बदलते घटनाक्रम में राष्ट्रपति सीरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को उनके पद से बर्खास्त कर दिया बावजूद इसके कि उनके पास बहुमत था और अल्पमत वाले चीन समर्थक नेता माने जाने वाले महिंदा राजपक्षे को आनन-फानन में प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी.
Pic: manormaonline |
इसी क्रम में एक बयान में बर्खास्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने इस बात का जिक्र किया कि एक प्रोजेक्ट को भारत और जापान को संयुक्त रूप से देने को लेकर राष्ट्रपति सिरीसेना से उनकी गरमा गरम बहस हुई थी जिसके बाद उन्होंने यह कदम उठाया. समझा जा सकता है कि 2 देशों से फायदा लेने के चक्कर में श्रीलंका इस समय वैश्विक राजनीति में एक हद तक अनचाहे रूप से चर्चित ज़रूर हो गया है. हालांकि कई बार ऐसी कोशिशें उल्टी भी पड़ती हैं. सच कहा जाए तो उसे दोनों ताकतों से संतुलन बना कर चलने में यकीन करना चाहिए जबकि यह बात एक तरह से साबित हो चुकी है कि श्रीलंका महिंदा राजपक्षे और ऐसे कुछ नेताओं की वजह से चीन के कर्ज में बुरी तरीके से दब गया है. हालाँकि, इसे लेकर भी कुछ लोग महिंदा राजपक्षे की मजबूरियाँ गिना सकते हैं.
कहते हैं कि बड़ों की प्रतिस्पर्धा में बेवजह से किसी तीसरे, खासकर कम ताकतवर को नहीं पड़ना चाहिए और एक छोटा देश होने के कारण श्रीलंका को ऐसे में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है. चूंकि चीन की 'वास्तविक विस्तारवादी रणनीति' से तमाम देश वाकिफ हो चुके हैं. यहां तक कि उसकी ओवीओआर (वन बेल्ट वन रोड) परियोजना भी खासी रूप से विवादों में आ गई है और कई देशों ने इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. भारत ने तो खुले रूप से इस परियोजना का विरोध जारी रखा है, क्योंकि चीन इसमें दूसरे देशों का हित ध्यान में रखने से बच रहा है. ऐसे में श्रीलंका को बेहद सधे कदम उठाने की जरूरत है और दो देशों के बीच बैलेंस बनाने से वह न केवल विकास करेगा बल्कि विवादों से बच भी सकेगा अन्यथा पिछले दशकों में गृह युद्ध की चपेट में रहे इस द्वीपीय देश का भविष्य निश्चित तौर पर 'अनिश्चित' बना रहेगा.
Pic: lankanewsweb |
वैसे दिलचस्प है कि त्रिकोणीय राजनीति के भंवर में फंसे श्रीलंका की विदेश नीति में उस सहित तीन खिलाड़ी तो घरेलु राजनीति में भी तीन खिलाड़ी सिरिसेना, राजपक्षे और विक्रमसिंघे हैं. ऐसे में घर और बाहर त्रिकोणीय राजनीति क्या गुल खिलाती है, यह अवश्य ही देखने वाली बात होगी!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
मिथिलेश के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें... Use Any Keyword for More than 1000 Hindi Articles !!)
|
Disclaimer: इस पोर्टल / ब्लॉग में मिथिलेश के अपने निजी विचार हैं, जिन्हें तथ्यात्मक ढंग से व्यक्त किया गया है. इसके लिए विभिन्न स्थानों पर होने वाली चर्चा, समाज से प्राप्त अनुभव, प्रिंट मीडिया, इन्टरनेट पर उपलब्ध कंटेंट, तस्वीरों की सहायता ली गयी है. यदि कहीं त्रुटि रह गयी हो, कुछ आपत्तिजनक हो, कॉपीराइट का उल्लंघन हो तो हमें लिखित रूप में सूचित करें, ताकि तथ्यों पर संशोधन हेतु पुनर्विचार किया जा सके. मिथिलेश के प्रत्येक लेख के नीचे 'कमेंट बॉक्स' में आपके द्वारा दी गयी 'प्रतिक्रिया' लेखों की क्वालिटी और बेहतर बनाएगी, ऐसा हमें विश्वास है.
इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार इस वेबसाइट के संचालक मिथिलेश के पास सुरक्षित हैं. इस लेख के किसी भी हिस्से को लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता. इस लेख या उसके किसी हिस्से को उद्धृत किए जाने पर लेख का लिंक और वेबसाइट का पूरा सन्दर्भ (www.mithilesh2020.com) अवश्य दिया जाए, अन्यथा कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
Web Title and Keywords: India, Sri Lanka Relations, Hindi Article, India, Sri Lanka, foreign policy, China Debt, South Asian Countries
Web Title and Keywords: India, Sri Lanka Relations, Hindi Article, India, Sri Lanka, foreign policy, China Debt, South Asian Countries
0 टिप्पणियाँ