परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब महान वैज्ञानिक के तौर पर पहचाने जाने वाले नोबेल विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को इस प्रोजेक्ट को फंड देने के लिए राजी किया. हालांकि, जब 12 अप्रैल 1945 को रूजवेल्ट का निधन हुआ तब तक बम का परीक्षण नहीं हुआ था और इसके नतीजों पर वैज्ञानिक एकमत नहीं थे. इसका नतीजा आया अमेरिका द्वारा जापान के ऊपर इसके प्रथम प्रयोग से! जापान के हिरोशिमा शहर के पीस पार्क में एक मशाल हमेशा जलती रहती है और कहा जाता है कि जब तक दुनिया में व्यापक विनाश का एक भी हथियार है, यह मशाल जलती रहेगी. यह मशाल दुनिया को याद दिलाती है कि इस शहर पर पहली बार परमाणु बम गिराया गया था, जिससे 1.40 लाख लोग तत्काल मारे गए. तीन दिन बाद एक और बम नागासाकी शहर पर गिराया गया, जिसमें 80 हजार लोग मारे गए. इन परमाणु हमलों की त्रासदी को इस बात से समझा जा सकता है कि दोनों शहरों के लोग आज भी इसका कुप्रभाव झेलने के लिए अभिशप्त हैं. सवाल यह नहीं है कि इतना घातक फैसला लेने के पीछे कौन से तत्व थे, बल्कि उससे महत्वपूर्ण बात यह है कि बीते सत्तर सालों में क्या हम वाकई इस बात से कुछ सीख पाये हैं. शायद नहीं!
वर्तमान में भी परमाणु शब्द बड़े प्रचलन में आ रहा है. जी हाँ! पाकिस्तान के हुक्मरानों ने इस शब्द को गैंडे की खाल से बनी ढाल से भी ज्यादा इस्तेमाल किया है और कर रहे हैं. बम और पाकिस्तान के सम्बन्ध में सोशल मीडिया पर एक चुटकुला पढ़ने को मिला कि एक पाकिस्तानी अपनी टीवी पर बम रखकर भारत पाकिस्तान का मैच देख रहा था तो उसकी पत्नी ने पूछा, यह बम किसलिए है? पाकिस्तानी का जवाब था कि टीम के हारने पर इसे फोड़ दूंगा... और अगर जीत गए तो! ... तो फोड़कर खुशियां मना लेंगे! जी हाँ! पाकिस्तानी सत्ता की भी कमोबेश यही हालत है. उसकी फ़ौज, रिटायर फौजी, वैज्ञानिक, सुरक्षा सलाहकार, मंत्री, संत्री और खिलाड़ी तक परमाणु बम की चाभी अपने साथ लेकर घूम रहे हैं. जब जिसका मूड करता है, वह सरताज अजीज के 'डोजियर' की तरह चाभी लहराने लगता है और कहता है हम परमाणु शक्ति वाले देश हैं. ताजा मामला सरताज अजीज का ही है. इधर एनएसए के बीच वार्ता टूटी और उधर परमाणु बम की चाभी लहराते हुए अजीज साहब शराफत से बोले कि भारत क्षेत्रीय महाशक्ति की तरह बर्ताव न करे, नहीं तो ... !! खैर, उनकी बात की अहमियत इतनी ही है कि हमारे यहाँ के अख़बारों की एक कॉलम की न्यूज बन गयी और एकाध खाली बैठे लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया भी दे दी. मगर सोचते हैं कि परमाणु पर अपने ज्ञान विज्ञान को क्यों न एक बार उलट पुलट लिया जाय. जिस परमाणु बम की पाकिस्तान लगातार धमकी दे रहा है, उस बम की ताकत उसे शायद पता नहीं है, क्योंकि तब तक तो वह पैदा भी नहीं हुआ था. हाँ! परमाणु और इसकी ताकत का असल परिचय शेष विश्व अमेरिका और जापान के बीच द्वितीय विश्व युद्ध के दौर से खूब समझता है. नागासाकी- हिरोशिमा पर गिराये गए परमाणु बम के बाद पूरी इंसानियत सकते में आ गयी और द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हुआ, साथ ही गठन हुआ संयुक्त राष्ट्र संघ का. परमाणु की अगली कड़ी में जब हम जम्प करते हैं तो हमें शीत युद्ध का दौर दिखता है, जिसके बाद इन घातक अस्त्रों को बनाने की होड़ लग गयी और यह होड़ सोवियत संघ के विघटन के पश्चात ही थमी.
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इसके बाद दौर शुरू हुआ तथाकथित परमाणु निरस्त्रीकरण का, मगर तब तक भारत-पाकिस्तान समेत विश्व भर में इतने परमाणु अस्त्र इकट्ठे हो चुके थे कि उनके प्रयोग से पूरी धरती को कई-कई बार मानव विहीन किया जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार रूस के पास 7500, अमेरिका के पास 7100, फ़्रांस के पास 300 चीन के पास 250, यूके के पास 225, पाकिस्तान के पास 120, इंडिया के पास 110, इजरायल के पास 80 और नार्थ कोरिया के पास लगभग 10 की संख्या में परमाणु हथियार मौजूद हैं. मतलब दुनिया कब परमाणु से परमाणु में बदल जाए, इस बाबत गंभीर सवाल आन पड़ा है. अब जिस प्रकार की वैश्विक राजनीति में ताकत के अनेक केन्द्रों का उभार हो रहा है, उससे जाहिर है कि कब एक छोटा सा क्षेत्रीय युद्ध परमाणु युद्ध के रूप में तब्दील होकर, विश्व युद्ध के रूप में बदल जाएगा, इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता है. संयुक्त राष्ट्र संघ नामक संस्था बदलते दौर में लगातार अप्रसांगिक होती जा रही है, अन्यथा एक देश से, जो आतंकी देश के रूप में लगभग चिन्हित हो गया है उसके यहाँ से परमाणु हथियार इस्तेमाल करने की रोज धमकी आती है और इस गैर जिम्मेदाराना बयान पर यह महत्वपूर्ण संस्था अपने होंठ सिल लेती है और विश्व के तथाकथित शांति ठेकेदार औपचारिकता निभाने की आवश्यकता भी महसूस नहीं करते हैं. जहाँ तक भारत का सवाल है तो इस देश की इतनी गंभीरता तो है ही कि ताकत और अर्थव्यवस्था में कई गुणा आगे होने के साथ साथ हथियार और परमाणु हथियार में भी पाकिस्तान को मटियामेट करने की क्षमता रखने के बावजूद एक भी गैर जिम्मेदाराना बयान अब तक नहीं आया है.
भारतीय सैनिक हमारे दुश्मन नहीं हैं
अगर पाकिस्तान जैसा देश भारत के संयम की परीक्षा लेने का दुस्साहस कर पा रहा है तो इसके पीछे के कारणों और सपोर्ट को समझने की जरूरत है और समझने की जरूरत यह भी है कि परमाणु-परमाणु खेलने से यह विश्व जल जायेगा और मजे की बात यह है कि इसका जिम्मेवार पाकिस्तान जैसा अक्षम राष्ट्र नहीं माना जाएगा, क्योंकि वह तो उस बच्चे की तरह व्यवहार कर रहा है जो अपने माँ-बाप से अपनी मांगे मनवाने के लिए आत्महत्या की धमकी देता है. उम्मीद है कि इन बातों को अमेरिका, रूस, फ़्रांस, ब्रिटेन के साथ-साथ चीन भी समझेगा और पाकिस्तान को पम्प करना बंद करेगा. पाकिस्तान और नार्थ कोरिया को पम्प करने के पीछे चीन के अपने मकसद हो सकते हैं और वह इन दोनों देशों को अपने परंपरागत पड़ोसियों को प्रयोगशाला समझने की घातक भूल कर रहा है. जहाँ तक भारत का सवाल है तो वहां का बच्चा-बच्चा केमेस्ट्री के परमाणु को बचपन से पढता आ रहा है कि इस सृष्टि का सबसे छोटा, मगर अस्तित्वधारी हिस्सा है परमाणु और इसमें इलेक्ट्रान, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन की सहभागिता होती है. इसके अतिरिक्त, भारतीय कॉमिक्स में परमाणु एक सुपरहीरो भी है, जो दिल्ली का रखवाला है. उसके पास परमाणु छल्ले, परमाणु धमाके और ट्रांसमिट होने की ताकत मौजूद है. परमाणु की कॉमिक्स पढ़ने वाले बच्चे उसके कारनामों से प्रभावित भी होते हैं, ठीक पाकिस्तान की तरह! मगर बड़े इस परमाणु की सवारी करने से पहले बेहद सावधानी से पैर आगे बढ़ाते हैं. अब समय है बच्चे की नकेल कसने का, मगर इस संयुक्त कुटुंब रुपी धरती का एक सदस्य यदि बच्चे को बिगाड़ने पर उतारू है तो संयुक्त राष्ट्र रुपी संस्था में सुधार में इतनी देरी क्यों बरती जा रही है! परमाणु के समान सूक्ष्म, मगर यक्ष प्रश्न तो यही है.
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