अब तक अन्य खेलों की तरह क्रिकेट बोर्ड सरकार के खेल-मंत्रालय के अधीन कभी नहीं रही, इसलिए उसका पूरा सिस्टम अलग है. हाँ! जब बात भारत-पाकिस्तान में क्रिकेट होने की बात आती है तो निश्चित रूप से इस संस्था को सरकार की मंजूरी की राह देखनी ही होती है. वैसे, यह समूचा विवाद सामने आया है तो निश्चित रूप से अंदरखाने इसमें सरकार की सहमति भी ली गयी होगी और अब तक के प्रयासों से यही लगता है कि कॉर्पोरेट सेक्टर और बीसीसीआई के राजस्व मॉडल के आगे सरकार कुछ किन्तु-परन्तु के साथ इस सीरीज के लिए मंजूरी दे देगी और अगर ऐसा होता है तो यह न केवल क्रिकेट के साथ, बल्कि देश के साथ भी मजाक ही होगा, क्योंकि मंजूरी के कुछ ही दिनों बाद हम सुनेंगे कि पाकिस्तान की आतंकी करतूतों के कारण सरकार ने क्रिकेट संबंधों को रोकने का निर्णय कर लिया है. हालाँकि, इस बीच पाकिस्तानी पीएम का एक बयान सामने आ रहा है, जिसमें वह भारत से बिना शर्त बातचीत करने की बात कह रहे हैं, किन्तु पाकिस्तानी पीएम की इस देश में कितनी अहमियत है, इसकी व्याख्या कितनी बार भी कर ली जाय, अर्थ यही निकलेगा कि वहां अंततः चुनी हुई सरकार की कुछ नहीं चलती है. देखना दिलचस्प होगा कि क्रिकेट, देशभक्ति, राजस्व और पाकिस्तान जैसे उलझे हुई समीकरणों से निपटने के लिए केंद्र सरकार कौन सा नुस्खा लाती है. इस नुस्खे से न केवल क्रिकेट, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत का भी कोई सिग्नल भी मिल जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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2 टिप्पणियाँ
सामयिक विषय पर एक उम्दा आलेख!
जवाब देंहटाएंThank you Pankaj ji... welcome :)
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