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इंटरनेट की पटरी और सरकार - Mithilesh hindi article on internet expansion in Rural India, facebook and google initiative

अभी बहुत ज्यादे दिन नहीं हुए कि देश भर में कुछ हद तक मुफ्त इंटरनेट की सुविधा देने की फैसबुक कवायद पर जमकर होहल्ला मचा था. इंटरनेट डॉट ओआरजी नामक इस प्रोग्राम को नेट न्यूट्रालिटी से जोड़कर तब जमकर एक अभियान सा शुरू किया गया था और कहा गया था कि इंटरनेट की सुरक्षा और स्वायत्ता पर खतरा मडरा रहा है और अगर लोगों को इंटरनेट मुफ्त में मिल गया तो बिजनेस मॉडल खतरे में पड़ जायेगा.. बला-बला. फेसबुक के मार्क ज़करबर्ग की इस कोशिश की कुछ ऐसी आलोचना हुई कि बिचारे को सफाई देते-देते अपने प्रोग्राम का नाम तक बदल कर 'बेसिक इंटरनेट' करना पड़ा. खैर, वह मजबूत और दृढ संकल्प के व्यक्ति हैं और यह बात उन्होंने सिद्ध भी की. सवाल है कि अगर किसी व्यवसाय की संभावनाओं को पकड़कर कोई व्यवसायी अपने प्रोग्राम की रचना करता है तो उसकी सराहना होने की बजाय सिर्फ संशय से उसकी धार ही कुंद होती है. और जब यह इंटरनेट जैसे व्यवसाय की बात होती है तो इसका असर और भी व्यापक हो जाता है. आखिर, दुनिया भर में आज भी 4 अरब से ज्यादे लोगों तक इंटरनेट की पहुँच नहीं है. सोचने की बात है कि 2 अरब तक लोगों की इंटरनेट तक पहुँच है और दुनिया भर में एक बड़ी क्रांति सी आ गयी है. तमाम आविष्कार, सोशल मीडिया, फोन एप्लिकेशंस और एक से बढ़कर एक टेक कंपनियों ने अपना भविष्य बनाया है और बढ़ाया भी है. ऐसे में अगर बाकी बचे 4 अरब लोगों तक भी इंटरनेट की पहुँच हो जाती है तो आज से भी अधिक चमकीले भविष्य की सहज ही कल्पना की जा सकती है. चूँकि, फेसबुक इतनी तेजी से उभरी वैश्विक कम्पनी है कि उसे बाकी बचे 4 अरब लोगों तक इंटरनेट की पहुँच होने पर अपने भविष्य के बिजनेस मॉडल की परिकल्पना बेहद जल्दी समझ आ गयी थी, जबकि दूसरी टेक कंपनियां कहीं न कहीं क्वालिटी पर ध्यान देने में लगी हुई थीं. इनमें तमाम इ-कामर्स कंपनियां, पर्टिकुलर सेगमेंट वाली सोशल मीडिया कंपनियां जैसे ट्विटर, लिंकेडीन इत्यादि और दूसरी एप्लीकेशन बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं. फेसबुक एक जनरल सोशल मीडिया है और इसका सीधा प्रसार इस बात पर निर्भर करता है कि इंटरनेट का प्रसार कितना ज्यादा है. 

ऐसी ही कुछ हालत दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजिन गूगल का भी है. तभी तो फेसबुक के इंटरनेट डॉट ओआरजी प्रोग्राम से चौकन्ना होकर इंटरनेट के प्रसार में गूगल ने सीधे कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है. पहले भी इस बारे में बात कर चुके गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने अपने हालिया भारत दौर पर भी गूगल की इसी मंशा को दुहराते हुए कहा कि लून प्रोजेक्ट देशव्यापी है और वे अगले तीन साल के भीतर भारत के करीब तीन लाख गांवों को इंटरनेट से कनेक्ट कर देंगे. पिचाई ने कहा कि इसके लिए विकल्प तलाशे जा रहे है ताकि ग्रामीण भारतो को इंटरनेट से लून योजना के तहत कनेक्ट किया जा सके. इस दौरान सुंदर पिचाई ने यह भी बताया कि दिसंबर 2016 तक भारतीय रेल के करीब 100 स्टेशनों को वाई-फाई की सुविधा देने के लिए गूगल ने रेलटेल के साथ करार किया है. पिचाई ने अपने सम्बोधन में गूगल के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा भारतीय महिलाओं को ऑनलाईन लाने की दिशा में अपनी कंपनी के प्रयासों का ज़िक्र किया तो इंटरनेट आधारित ऐसी सर्विस लांच करने पर भी जोर देने की बात कही, जिससे आईपीएल और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट के स्कोर को वास्तविक समय में देखा जा सके. इसी क्रम में भारत में वेबलाइट की लाचिंग के बाद इसे ब्राजील और इंडोनेशिया में लांच किया जाएगा. जाहिर है, भारत में जहाँ इंटरनेट प्रसार की असीमित संभावनाएं हैं, वहीँ भारत से बाहर भी कई देशों में इसकी बेहतर संभावनाएं दिखती हैं. हालाँकि, तीन लाख में किस स्तर का इंटरनेट और किस तकनीक और कीमत पर पहुँचाया जायेगा, यह सुन्दर पिचाई अभी नहीं बता सके. क्या गूगल का भी प्रोग्राम फेसबुक के बेसिक इंटरनेट की तरह ही होगा अथवा बदलते ज़माने के 3 जी, 4 जी और 5 जी की तर्ज पर या फिर ब्रॉडबैंड की तर्ज पर होगा. आखिर, आज इंटरनेट सिर्फ मनोरंजन या कनेक्टिविटी का साधन मात्र नहीं है, बल्कि यह सीधे रोजगार का भी एक महत्वपूर्ण साधन बनता जा रहा है. ऐसे में, अगर गाँवों में बेहद कम स्पीड मिलती है तो यह प्रतीकात्मक ही होगा और वह यकीनी तौर पर किसी बड़े बदलाव का सूचक नहीं होगा. 

अगर शहर में रहने वाले किसी ब्लॉगर, आर्टिकल राइटर या फिर किसी फ्रीलांसर की बात की जाय, जो अपने दम पर रोजगार पाते हैं तो अगर वह भारत के किसी गाँव में, शायद अपने ही गाँव में अपने परिवार के साथ रहें, वह तब भी अपना व्यापार बेहद आसानी से कर सकते हैं. उन्हें चाहिए तो सिर्फ हाई-स्पीड इंटरनेट और कहीं न कहीं बिजली की कनेक्टिविटी. हमारी सरकार, जो आज शहरों पर बढ़ते बोझ से परेशान है और साथ ही परेशान है युवाओं को रोजगार देने में, उसे इस बात पर विचार करना चाहिए कि अगर भारत के गाँवों में बिजली और इंटरनेट आसानी से और मानक स्तर के प्राप्त हो जाएँ तो देश की अर्थव्यवस्था में न केवल उछाल आएगा, बल्कि स्थायित्व भी साफ़ तौर पर झलकेगा. मैं तो यह दलील स्पष्ट तौर पर रखूँगा कि भारत जैसे देश में कई सामाजिक समस्याएं भी हल हो सकती हैं, जिसमें बुजुर्गों का एकाकीपन, युवाओं का संस्कारविहीन होना और शहरी प्रदूषण के कारण एक आम भारतीय शहरी के स्वास्थ्य स्तर का लगातार गिरता जाना शामिल है. यही नहीं, बल्कि यूपी, बिहार के किसी टेक्सेवी युवा का बड़ा फंड सेविंग में जायेगा, जो शहरों में रहकर किसी किराये या दुसरे रोजमर्रा खर्चे में जाता है. जाहिर है, आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों से छुटकारा पाने की राह भी कहीं न कहीं, आंशिक तौर पर ही सही, खुल सकती है. फेसबुक और गूगल यह बात बखूबी समझ चुके हैं कि आने वाला युग कंप्यूटर का ही युग है और कोई फर्क नहीं पड़ता है कि एक एम्प्लोयी दिल्ली में बैठकर अपनी कंपनी का कार्य कर रहा है या फिर केरल के किसी गाँव से अपनी उसी कंपनी के कार्य को बखूबी सम्पादित कर रहा है. आखिर, गुडगाँव के किसी काल सेंटर से अमेरिका में हम सर्विस तो दे ही रहे हैं न !! तो फिर बिहार के छपरा जिले या फिर यूपी के बलिया जिले के किसी गाँव से हम यह सर्विस क्यों नहीं दे सकते... यह बात गूगल और फेसबुक से आगे अगर सरकार समझ जाए तो सोने पर सुहागा और और वह दिल्ली सरकार की तरह फ्री वाईफाई नहीं... बल्कि, वाजिब कीमतों पर भारत के प्रत्येक गाँव में इंटरनेट और बिजली पहुंचाने में जुट जाए!

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