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बड़े दिलवाले प्रधानमंत्री का उत्साहवर्धन - Mithilesh new article on Dalit development in India, PM Speech and context

26 जनवरी 2015 को जब बराक ओबामा भारत आये तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना नाम लिखा सूट पहना था, जिसकी जमकर चर्चा तो हुई ही, आलोचना भी हुई. खैर, उसके बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र सरकार को लगभग पूरे साल 'सूट-बूट' की सरकार कह कर निशाने पर लेते रहे. पीएम ने कभी इसका सीधा जवाब नहीं दिया, मगर दलित चेंबर ऑफ कॉमर्स में दलित कारोबारियों को संबोधित करते हुए उनके काम की जमकर सराहना करते हुए कहीं न कहीं राहुल गांधी के 'सूट बूट' जुमले पर भी निशाना साध ही दिया. दलित कारोबारियों की प्रशंसा के साथ-साथ पीएम ने कार्यक्रम में दलितों के अपमान का ज़िक्र करके उनको भी निशाने पर लिया जो दलितों के अच्छे कपड़े पहनने पर भी सवाल उठाते हैं. इस दौरान मोदी ने कहा कि सामंतवादी मानसिकता वालों को दलितों के अच्छे कपड़े पहनना भी बर्दाश्त नहीं है. खैर, राजनीतिक विश्लेषक इसको बेशक राहुल गांधी के 'सूट-बूट' वक्तव्य से जोड़ें, किन्तु कहीं न कहीं भारत में इस प्रकार की मानसिकता आज भी दिख ही जाती है. जब पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी थे, तो उन्होंने यह बयान देकर खूब हंगामा मचाया कि उनके जाने के बाद एक मंदिर को गंगाजल से धोया गया. इसी तरह का बयान कांग्रेस की शैलजा और खुद राहुल गांधी ने भी दिया. हालंकि, कई आरोप बाद में झूठ भी साबित हुए, क्योंकि वह राजनीति से कहीं न कहीं प्रेरती थे. इसी सन्दर्भ में, भारत देश के बारे में जो सबसे विरोधाभाषी तथ्य सामने आता है, वह निश्चित रूप से इसकी महानता और इसकी गुलामी के बारे में रहा है. एक तरफ तो कहा जाता है कि भारत सोने की चिड़िया रहा है, इसकी संस्कृति 'वसुधैव कुटुंबकम' की रही है, वहीं दूसरी ओर हमें हज़ारों साल की गुलामी और छुआछूत का दागदार इतिहास भी दिखता है, जिसके छींटे 21वीं सदी के भारत पर भी पड़े हैं. यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दलित सम्मेलन में कही कि आपकी तरह मैंने भी अपमान सहा है, सामंतशाही मानसिकता आज भी दिखती है और दलितों ने हर अपमान झेला है. यही नहीं, बल्कि बड़े दिल वाले पीएम मोदी अपना भाषण खत्म करने के बाद सारे नियम और प्रोटोकॉल तोड़कर मंच से उतरकर लोगों के बीच आ गए और फोटो खिंचवाने लगे. सम्मेलन में आए लोगों ने पीएम का यह दोस्ताना व्यवहार देख उनके साथ खूब सेल्फी ली. दलित एक्टिविस्ट चंद्रभान यह दृश्य देखकर इतने भावुक हो उठे कि मोदी शुक्रिया अदायगी का अपना भाषण भी पूरा न कर सके. आंसू आखिर आ ही जाते हैं, जब सदियों का दर्द 'पलों' में सिमट जाता है.

गौरतलब है कि दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना 2005 में हुई थी. यह खास तौर पर दलित उद्यमियों को कारोबार की संभावनाएं बताने और उन्हें बढ़ावा देने का काम करता है. इस क्रम में, आखिर कौन नहीं जानता कि सामंती मानसिकता ने भारत को बड़े गहरे ज़ख्म दिए हैं, बावजूद इसके आज आधुनिक समय में भी ऐसी मानसिकता का पोषण करने वाले हैं, इस बात को लेकर घोर आश्चर्य होता है. इस तथ्य को अगर भारत का प्रधानमंत्री स्वीकार करता है, तो निश्चित रूप से ऐसे लोगों को सावधान होने की जरूरत है. पीएम ने दलित इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री सम्मेलन में साफ़ कहा कि दलितों को लोन लेने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ते हैं, जिसके लिए पीएम ने मुद्रा योजना का जिक्र भी किया. उन्होंने जानकारी देते हुए यह भी बताया कि इस योजना के तहत 80 लाख लोग बिना एक रुपये की गारंटी के ही बैंकों से लोन ले चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं. फाइनेंशियल इन्क्लूजन को सरकार का सबसे बड़ा मकसद बताते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि समाज के निचले तबके के लोगों को मजबूत करने की जरूरत है. उन्होंने पिछड़े और दलित वर्गों में से रोजगार सृजन करने वाले योग्य व्यक्तियों की तलाश पर ज़ोर दिया, न कि रोजगार तलाश करने वालों पर. सच ही तो है, अगर कोई व्यक्ति रोजगार पैदा करने की ठान ले तो फिर कोई कारण नहीं है कि वह खुद सहित पूरे समुदाय का हित करने की सामर्थ्य विकसित न कर ले. इसी क्रम में पीएम ने बेहद साफगोई से संविधान निर्माता को अपने विशेष अंदाज में श्रद्धांजलि भी दी. उन्होंने कहा कि हम सभी बाबा साहेब अंबेड़कर को संविधान निर्माता के तौर पर जानते हैं, जबकि बहुत से लोग नहीं जानते कि बाबा साहेब बहुत बड़े अर्थशास्त्री भी थे. बाबा साहेब कहते रहते थे कि औद्योगीकरण का सबसे ज्यादा फायदा हमारे दलित भाई-बहनों को होगा, क्योंकि उनके पास भूमि कम है.  

वैसे चतुर प्रधानमंत्री ने दलितों के सहारे अपनी औद्योगीकरण नीतियों का बखूबी बचाव करते हुए कहा कि हमारी सरकार आपकी सरकार है और हम आपके सशक्तीकरण के लिए काम कर रहे हैं. देश में औद्योगीकरण होगा तो दलित को रोजगार मिलेगा. खैर, जहाँ जैसा मौका वहां वैसी बात करनी ही चाहिए, किन्तु संतुलित विकास के लिए कर्तव्यों की कितनी अहमियत है, यह पीएम ने इसी सम्मेलन में बता दिया कि अंबेड़कर ने हमें संविधान दिया, पर हम अधिकारों की ज्यादा बात करते हैं और कर्त्तव्यों की कम. इसलिए हर एक को अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने की विशेष आवश्यकता है. अगर पीएम मोदी के इन वक्तव्यों को देखें तो जाहिर हो जाता है कि सरकार हर वर्ग के विकास के लिए सजग और संतुलित ढंग से कार्य करने में यकीन कर रही है. हालाँकि, समाज के सामंती वर्गों की सोच में काफी परिवर्तन आया है, किन्तु यह भी सच है कि सफर अभी लम्बा है. इसके साथ यह बात भी उतनी ही सच है कि नए उभर रहे 'क्रीमी-वर्ग' से भी दलित समाज को सावधान करने की आवश्यकता है, ताकि सरकारी सुविधाओं के ऊपर उनका एकाधिकार न हो जाए. जाहिर है, 'क्रीमी लेयर' भी एक तरह का सामंती वर्ग ही है, जो उचित व्यक्ति तक उसका हक़ पहुँचने देने में यकीन नहीं करता है. अगर इन तमाम तथ्यों को देखा जाय तो निश्चित रूप से बड़े दिलवाले पीएम का 'सबका साथ, सबका विकास' का वादा आसानी से पूरा हो सकता है, जिसकी देश को ज्यादे आवश्यकता है. प्रधानमंत्री के उत्साहवर्धन को सजग और सावधानी से क्रियान्वयन की आवश्यकता है, जिससे वगैर समाज में भेद पैदा हुए, समरसता और सहयोग की भी नए सिरे से नींव पड़ सके. हालाँकि, शुरूआती स्तर पर पीएम के भाषण की, उनकी साफगोई की और सबसे बढ़कर दलितों के सशक्तिकरण के प्रयास के साथ-साथ संविधान निर्माता के सपनों से उनको जोड़ने की भरपूर तारीफ़ की ही जानी चाहिए, क्योंकि उत्साहवर्धन वह अमृत है, जिसे पीकर हनुमान के भीतर समुद्र लांघने की शक्ति आ ही जाती है!


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