आखिर किसने उम्मीद की थी कि भारत-पाकिस्तान सीधे मुंह बात भी कर सकते हैं? मगर, बदले हालात में शुरूआती संकेत कुछ मिले हैं, जिन्हें लेकर उम्मीद की एक किरण जरूर दिख रही है. कहने वाले बेशक इसे कुछ भी कहें कि यह संकेत अस्थायी हैं, अमेरिका के दबाव में पाकिस्तान आतंकियों पर कार्रवाई का दिखावा कर रहा है, पाकिस्तान की जनता अब आतंक को लेकर सेना-सरकार पर दबाव बना रही है ... बला, बला... किन्तु, अभी के हालात में यह मानना पड़ेगा कि दोनों देशों के संबंधों में एक प्रोफेशनलिज्म लाने का प्रयास किया जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक लाहौर-यात्रा और उसके कुछ ही दिनों बाद पठानकोट एयरबेस पर हमला होने से दोनों देशों का काफी कुछ दांव पर लग गया था. हालाँकि, पाकिस्तान की तरफ से मिलना-मिलाना और उसके बाद भारत पर हमले की रणनीति पुरानी ही रही है, किन्तु इस बार बाद की परिस्थितियों में दोनों तरफ से जिस स्तर की परिपक्वता दिखाई गयी, वह निस्संदेह काबिल-ए-तारीफ़ है. अब जब 15 जनवरी को होने वाली विदेश सचिव वार्ता रद्द कर दी गयी है, बावजूद उसके एक समझदारी और परिपक्वता का माहौल नज़र आ रहा है, जिसे दुर्लभ ही कहा जा सकता है. ज़रा गौर कीजिये, भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन सरगर्मियों के बाद कहा है कि पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव वार्ता को आपसी सहमति से स्थगित करने का फ़ैसला लिया गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि दोनों देशों के विदेश सचिव ने फ़ोन पर बात कर वार्ता को निकट भविष्य में करने का फ़ैसला किया है. क्या बात है, वाकई समझदारी और समझने वाली बात! गौरतलब है कि तय कार्यक्रम के अनुसार 15 जनवरी को पाकिस्तान में दोनों देश के विदेश सचिवों की मुलाक़ात होने वाली थी. भारतीय विदेश मंत्रालय के बयान के एक दिन पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा था कि चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के कई दफ़्तर सील कर दिए गए हैं और कई लोगों को गिरफ़्तार किया गया है.
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत से विकास स्वरूप ने कहा कि भारत जैश-ए-मोहम्मद के ख़िलाफ़ उठाए गए पाकिस्तान के क़दमों का स्वागत करता है. हालाँकि, जैश के प्रमुख मसूद अज़हर की गिरफ़्तारी या हिरासत में लिए जाने की ख़बरों के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए भारतीय प्रवक्ता ने कहा कि भारत को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. यही नहीं, बल्कि भारत ने पठानकोट हमले की जांच के लिए पाकिस्तानी जांच दल भारत भेजने के फ़ैसले का भी स्वागत किया और कहा कि अगर ऐसा कोई जांच दल भारत आता है तो भारत की सभी एजेंसियां उसे हर आवश्यक सहयोग देंगी. कुल मिलाकर पठानकोट मामले में पाकिस्तान की तरफ़ से अब तक की गई कार्रवाई को भारत ने सकारात्मक पहला क़दम क़रार दिया है, यह एक बड़ी बात है. जाहिर है, ऐसे माहौल में बातचीत का कोई सकारात्मक हल नहीं निकलेगा, अगर इस पर पठानकोट हमले का सीधा साया होगा. न केवल भारत की ओर से सकारात्मक रूख दिखाया गया है, बल्कि इससे पहले पाकिस्तान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ख़लीलुल्लाह क़ाज़ी ने इस्लामाबाद में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 15 जनवरी को भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों के बीच बातचीत नहीं होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने कहा,''पाकिस्तान हर तरह के चरमपंथ की निंदा करता है. चरमपंथ हम सबका दुश्मन है. हमें इसे मिल-जुलकर ख़त्म करने की ज़रूरत है." उन्होंने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि किसी भी चरमपंथी घटना के समय दोनों देश मिलकर समस्या के समाधान की कोशिश करेंगे. जाहिर है, दोनों ओर से दिख रही परिपक्वता अगर आने वाले समय में भी कायम रही तो निश्चित रूप से आतंक की समस्या से छुटकारा मिलने की उम्मीद जागेगी. आतंकियों के खिलाफ रूढ़िवादी माहौल में शुरू करने के लिए नवाज शरीफ जहाँ बधाई के पात्र हैं, वहीँ नरेंद्र मोदी की टीम भी सार्थक पहल सुनिश्चित करने के लिए साधुवाद की हकदार है. हालाँकि, आने वाले समय में यह ऊंट किस करवट बैठेगा, यह बहुत कुछ समय की गर्त में ही है और इतिहास को देखते हुए, निश्चित रूप से संशय के बादल कहीं ज्यादे गहरे हैं. आखिर, 4 बड़े युद्ध और 70 वर्ष का खुनी इतिहास, इतनी आसानी से सुलझ जाए तो फिर इसे कृत्रिमता ही कहा जाएगा!
अगर गहराई से दोनों देशों के संबंधों का विश्लेषण किया जाय तो वर्तमान में न तो रिश्ते बहुत प्रगाढ़ करने की आवश्यकता है, और न ही छोटे-बड़े मुद्दों पर एक-दुसरे की ओर तोपों का मुंह खोलने की आवश्यकता है, बल्कि भारत पाकिस्तान को प्रोफेशनल रिश्ते निभाने की आवश्यकता है. बस काम की बातें, तार्किक बातें, थोड़ी मुलाकातें, सटीक कार्रवाइयां, माहौल को देखकर हाइप कम करने की कोशिश ... बस! आप देखेंगे कि इन आसान प्रयासों से भारत और पाकिस्तान एक-दुसरे के प्रति सामान्य व्यवहार कर सकेंगे, तो अपने आप ही कोई मुद्दा नहीं रह जायेगा! भारत-पाकिस्तान का मुद्दा गाँव के दो परिवारों के ऐसे झगड़ों की तरह है, जो ज़मीन के एक छोटे टुकड़े के ऊपर शुरू होता है और लड़ाई, फौजदारी के रास्ते होते हुए मर्डर और फिर पीढ़ियों की लड़ाई में तब्दील हो जाता है! ऐसे में ज़मीन के टुकड़े का विवाद कहीं और छूट जाता है और फिर सिर्फ एक मुद्दा रह जाता है 'नफरत और बदला'! इससे निपटने का दूसरा कोई रास्ता नहीं होता, कोई समझौता भी नहीं होता, कोई बिचौलिया नहीं होता, कोई प्रेम-सम्बन्ध भी नहीं होता... बल्कि, दोनों का प्रोफेशनल रवैया, अपने काम से काम रखना और परिवार के बच्चों का आगे बढ़ते रहना एकाध पीढ़ियों में खाई भरने का काम करता है! अगर कोई विवाद आता भी है तो घर के बड़े-बुजुर्ग अपने-अपने सदस्यों को डांटकर मामले से दूर रखते हैं और एक प्रोफेशनल समझौता करते हैं! ख़ुशी की बात यह है कि वर्तमान हालात में, सामंजस्य बनाकर दोनों सरकारों ने एक प्रोफेशनल शुरुआत की है. सीधी बात है, जब दोनों देश में सरकारें हैं तो विदेश नीति पर वही बात करेंगी! इसमें न जनता का कोई कार्य है, न सेना का, न आतंकियों का और न ही किसी और का !!! देहाती कहावत है 'ज्यादे जोगी मतलब मठ को उजाड़ना'! हालाँकि, इस बाबत पाकिस्तान को ज्यादे सोचना है, क्योंकि भारत में तो एक सरकार है, किन्तु पाकिस्तान में आईएसआई, चरमपंथी, सेना और सरकार के रूप में कई केंद्र हैं. सकारात्मक बात जो अभी तक दिखी है, वह यही है कि हालिया विवाद में पाकिस्तान ने एक सूर में बात और कार्रवाई करने का संकेत दिया है.
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