भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि भारत में आर्थिक सुधार सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन उन्होंने देश में अनेक पुराने व बेकार के कायदे कानून बने रहने का जिक्र करते हुए कहा कि सुधार का स्तर ‘ठीक नहीं’ है. अब अगर सरकारी संस्थान के महत्वपूर्ण मुलाजिम का इस प्रकार का बयान आये तो निश्चित रूप से माथे पर बल पड़ ही जाता है. जैसे-जैसे केंद्र की मोदी सरकार के दिन बीतते जा रहे हैं, वैसे-वैसे उनसे उम्मीद पाले लोगों का सब्र भी चूकता जा रहा है. हालाँकि सरकार कई मोर्चों पर बेहतर कार्य करने की तेजी दिखा रही है तो प्रशासनिक भ्रष्टाचार और सरकारी पूँजी के रिसाव पर भी काफी हद तक अंकुश लगा है. इन सबके बावजूद मुश्किल यही है कि न तो टैक्स सुधारों पर बात आगे बढ़ती दिख रही है, न उद्योग-धंधों में तेजी आ रही है और फिर इन सभी स्थितियों से दो-चार होते हुए अंततः रोज़गार की रफ़्तार भी सुस्त सी हो गयी है. इस बीच तेजी से यह खबर फैली कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही कैबिनेट में बड़ा फेरबदल कर सकते हैं. समाचार एजेंसी रायटर्स की खबरों के मुताबिक वित्त मंत्री अरुण जेटली से जल्द ही वित्त मंत्रालय छीना जा सकता है. इसके पीछे जो तर्क दिए गए हैं, वह भी कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था से ही सम्बंधित हैं. दरअसल प्रधानमंत्री मोदी सुस्त पड़े आर्थिक सुधारों को फिर से जिंदा कर आलोचकों को शांत करना चाहते हैं. इस क्रम में, सरकार तेज आर्थिक विकास चाहती है लेकिन टैक्स और लैंड रिफॉर्म्स को पास कराने में नाकाम रही सरकार इसके लिए कहीं न कहीं वित्तमंत्री की जिम्मेदारी तय करना चाह रही है. जाहिर है, 2014 में मोदी की जीत के बाद जहां निवेशकों में उत्साह देखा जा रहा था वहां अब मोहभंग के हालात है. आलोचकों के मुताबिक जेटली टैक्स रिफॉर्म्स को आगे बढ़ाने में असफल रहे हैं और इस वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर खासा असर पड़ रहा है. आर्थिक विकास के आंकड़े तो फिर भी तेजी से हो रहे हैं, लेकिन नौकरियों के अवसर नहीं पैदा हो रहे हैं. एजेंसी की इस रिपोर्ट में इस तरफ भी इशारा किया गया है कि वित्त मंत्री जेटली के बाद ऊर्जा और कोयला मंत्री पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय का प्रभार दिया जा सकता है. मोदी के भरोसेमंद मंत्रियों में से एक और पूर्व में इनवेस्टमेंट बैंकर रहे गोयल को कोल इंडिया को सफलतापूर्वक संचालित करने और देश में बिजली की समस्या के समाधान और रिन्यूबज एनर्जी का समर्थन करने का श्रेय दिया जाता है.
इसके अतिरिक्त, उनकी छवि एक तेज-तर्रार नेता के अलावा गैर-विवादित भी मानी जा रही है, जिसकी स्वीकृति कई हलकों में है. जेटली पर अगर गाज गिरती है, निश्चित रूप से उसकी पृष्ठभूमि में अमृतसर में उनकी चुनावी हार से लेकर डीडीसीए विवाद में उनका उलझाव भी बड़े कारण रहे होंगे. इसके अलावा, मोदी के ज्यादा विश्वासपात्र होने से भाजपा के दुसरे बड़े गुटों के निशाने पर भी सीधे जेटली और अमित शाह ही रहे हैं. अमित शाह को तो बिहार की जबरदस्त हार के बाद, विरोधी एक तरह से दबाव बनाने में सफल रहे हैं और जेटली के लिए भी इसी की बाबत पृष्ठभूमि तैयार हो गयी है. कांग्रेस द्वारा जीएसटी बिल पर लगातार विरोधी रूख अपनाया जाना, कहीं न कहीं जेटली पर आकर अँटक सा गया है. शायद कोई दूसरा वित्तमंत्री इस मसले को ठीक ढंग से सुलझा सके. देखना दिलचस्प रहेगा कि नरेंद्र मोदी द्वारा वर्तमान वित्तमंत्री के कार्यकाल को बढ़ाया जाता है या फिर उनको किसी दुसरे मंत्रालय में शिफ्ट किया जाता है. इन प्रश्नों से अलग उद्योगपतियों और आम जनमानस के लिए सबसे बड़ा प्रश्न अर्थव्यवस्था में सुधार को लेकर उठ रहे हैं और खुद मोदी के लिए भी यह पहला बड़ा संकट होगा, जो उनकी नीतियों को कठघरे में खड़ा कर सकता है. ऐसे हालातों से समय रहते मुकाबला हो जाए तो सरकार की साख पर बुरा असर पड़ने से निश्चित रूप से रोक जा सकता है. हालाँकि, ऐसा भी नहीं है कि हर क्षेत्र में निराशा ही हो, बल्कि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनके फलने फूलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है. डिजिटल इंडिया खुद में एक ऐसा प्रोग्राम है कि अगर इसके तहत गाँवों तक में स्तरीय इंटरनेट पहुँचाने की समस्या दूर कर दी गयी तो अर्थव्यवस्था में अकल्पनीय उछाल आ सकता है. यही हालत, स्टार्टअप प्रोग्राम की भी है. देश के युवा बड़ी संख्या में खुद का और सोसायटी का हालात बदलने के लिए तैयार खड़े हैं, किन्तु बात वही है कि पूँजी का प्रवाह तेज होना और विश्वसनीय आर्थिक ढांचा खड़ा करने का लक्ष्य सरकार किस तरह हासिल कर पायेगी! उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में इन मुद्दों को बेहतर समझ के साथ ज़मीन पर हल किया जायेगा और साथ ही हल होगी अर्थव्यवस्था की उलझनें भी, जो भारत के लिए बेहद सुखद भविष्य की नींव तैयार करने में सफल रहेंगी.
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