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बदलती दुनिया और बेटियां - Mithilesh hindi article on daughters in today's world, women and their world

वर्तमान और कुछ समय पहले की तुलना करें तो निश्चित रूप से हर स्तर पर कुछ बड़े बदलाव नज़र आते हैं और यह बदलाव न केवल बाहरी, बल्कि  उससे ज्यादा आतंरिक सोच में परिवर्तन से सम्बंधित हैं. न केवल भारतीय परिप्रेक्ष्य में, बल्कि तस्वीरें वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी काफी बदली हैं. हाल ही में एक बड़ी सकारात्मक खबर आयी मुस्लिम देश सऊदी अरब से, जहाँ पहली बार महिलाओं ने वहां के इलेक्शन में हाथ आजमाया और कइयों ने जीत भी दर्ज की. आज 21वीं सदी में औरतों को इस तरह का अधिकार न मिलना अपने आप में शर्मनाक विषय तो था मगर, कट्टरपंथ में यह कहीं न कहीं सेंध की तरह भी था और इसके लिए पूरे विश्व भर से इस खबर को नोटिश भी किया गया. कट्टरपंथियों को ऐसा ही जवाब भारत में भी देने की कोशिश हुई, जब एक संगठन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन (बीएमएस) की 70 हज़ार से ज्यादे महिला सदस्यों ने तलाक-तलाक-तलाक की रूढ़िवादी परंपरा समेत समुदाय में महिलाओं के बदतर हालात को चुनौती देने की मजबूत कोशिश की और प्रधानमंत्री तक इस आंदोलन की मजबूत आवाज पहुंची. हालाँकि, भारत के मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने मुस्लिम महिलाओं की इस मांग को पसंद नहीं किया, किन्तु सुधार की राह इन महिलाओं ने नहीं छोड़ी, यह अपने आप में एक बड़ी बात है. आंदोलन जारी रहने की पूरी गुंजाइश है और भारतीय महिलाएं इस तरह के सुधारों की बात कर रही हैं, यह अपने आप में बड़े बदलाव का सूचक है. इसी क्रम में भारतीय वायुसेना की 83वीं वर्षगांठ के अवसर पर, हाल ही में एयर चीफ मार्शल राहा ने घोषणा करते हुए कहा था कि हमारे यहां महिलाएं परिवहन विमान और हेलीकॉप्टरों को पहले से ही उड़ा रही हैं और अब भारत की युवा महिलाओं की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हम उन्हें लड़ाकू विमान ईकाई में भी नियुक्त करने की योजना बना रहे हैं. हालिया खबरों के अनुसार, भारतीय वायुसेना ने फाइटर प्लेन उड़ाने वाली देश की पहली महिला पायलट सहित तीन और पायलेट्स को चुन लिया है और ये तीनों पायलेट हैदराबाद में एयरफोर्स एकेडमी में ट्रेनिंग भी ले रही हैं. इस फैसले का बड़े पैमाने पर न केवल स्वागत हुआ है, बल्कि हमारे एयर फ़ोर्स के भविष्य की तुलना विश्व की सबसे आधुनिक और सक्षम अमेरिकी एयर फ़ोर्स से की जाने लगी. जाहिर है, हर स्तर पर हमारे देश की बेटियां झंडे फहरा रही हैं और उन तमाम दीवारों को लांघने की कोशिश में हैं, जो संकुचित और रूढ़िवादी समूहों ने बना रखे हैं. बाहरी स्तर पर और भी कई बदलाव हैं, जो गिनाये जा सकते हैं, मगर सबसे बेहतरीन बदलाव जो एक लेखक के तौर पर मैंने महसूस किया वह देश की बेटियों और महिलाओं की सोच में आ रहा परिवर्तन है. 


एक वाकया सुनाऊँ, जिसमें मेरे एक परिचित अपने बड़ी होती बेटी से परेशान थे. कारण था उसका चिड़चिड़ा होना, बदतमीजी से बात करना. हालाँकि, उसने नर्सिंग का कोर्स किया था. बाद में मुझे पता चला कि उसे जॉब करने से घरवालों ने मना कर दिया था और इसीलिए उसके व्यवहार में यह समस्याएं थीं. कुछ दिन बाद जब मैं उसके घर गया तो उस लड़की के तहजीब की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सका. कारण और निवारण वही था कि उसके घरवालों ने उसे जॉब करने की परमिशन दे दी थी, कन्विंस कर लिया था उस लड़की ने उनको! खुद उसके पिता इस बदलाव से बेहद खुश थे. जाहिर है, न केवल बेटियों की सोच, बल्कि उनको लेकर नागरिकों की व्यक्तिगत सोच ने भी उन्हें प्रोत्साहित किया है. ऐसे में, रूढ़िवादी लोगों को सोचना होगा कि आखिर एक महिला सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन नहीं है, बल्कि उसे वह समस्त अधिकार और कर्त्तव्य हासिल हैं, जो किसी पुरुष को हैं. इसी सन्दर्भ में अपनी एक व्यक्तिगत बात बताऊँ तो एक बार किचेन में बर्तन धोने के बाद उसकी सेल्फ़ी फेसबुक पर डाल दी और उस पर आयी प्रतिक्रियाएं जानकार मैं हैरान था कि लोग कितने सकारात्मक थे और मैं ऐसा पहला व्यक्ति नहीं था, जो बच्चों को सँभालने और किचेन में हाथ बंटाने में यकीन रखता है. हालाँकि, कुछ प्रतिक्रिया में लोगों ने व्यंग्य करने की कोशिश की, मगर उसके लिए मेरे जवाब से पहले ही दुसरे लोगों ने उन्हें उचित जवाब दे दिया. यह ऐसे बदलाव हैं जो भीतरी हैं और न केवल महिलाओं के ही जीवन को, बल्कि सामाजिक संरचना को भी एक मजबूत आधार दे रहे हैं. संयुक्त परिवार के बाद एकल परिवार को भी इस सोच ने एक लघु ही सही, मगर 'संयुक्त' रूप दे दिया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में बाहर दिखने वाले और घरेलु स्तर तक बराबरी के ये सूचक अपना दायरा व्यापक करेंगे. हालाँकि, औरतों के लिए सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिससे हर स्तर पर सरकार और तमाम संगठनों की जागरूकता के द्वारा ही निपटा जा सकता है तो बच्चे-बच्चियों के जन्म से ही उनका लालन-पालन एक समान करने में भी हमें अभी लम्बी दूरी तय करनी है. हाँ! शुरुआत पर हम खुश जरूर हो सकते हैं, क्योंकि हमने बदलाव के रास्ते पर चलना शुरू कर दिया है.



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