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देश में इस बात को लेकर खूब आंकलन, प्रति-आंकलन किये जा रहे हैं कि रोहित वेमूला, जेएनयू और हिंसक जाट-आंदोलन से भारतीय जनता पार्टी को राजनैतिक माइलेज मिल रहा है अथवा कांग्रेस इन सबसे फायदे में है! कोई इससे वाम पक्ष को फायदे की बात कह रहा है तो कोई इससे छात्र राजनीति के उभार की बात कह रहा है. लेकिन, यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि कोई इस बात की चर्चा नहीं कर रहा है कि इन वाकयों से देश को नुक़सान कितना हुआ? इन मुद्दों के बेतरतीब तौर पर उठने से हमारे राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया संस्थान को किस घातक स्तर तक नुक़सान पहुंचा है? इन मुद्दों से देश के दुश्मनों, पाकिस्तान जैसे राष्ट्र को हमारे देश के खिलाफ हमला करने का मौका किस कदर मिला, इस बात का आंकलन भला कौन करेगा? जाहिर है, यह राजनीति का दोहरापन हमारे लिए बुरी तरह से घातक सिद्ध होने वाला है, जिसको वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को भी परिणाम भुगतना पड़ेगा. थोड़ी साफगोई से आंकलन किया जाय तो, जबसे 2014 के आम चुनाव में कांग्रेस ने बुरी तरह धूल चाटी है, तबसे उसके राजनीतिक नेतृत्व का संतुलन भी गड़बड़ाया हुआ है. संसद को सनक की हद तक न चलने देने की कसम खाने वाली कांग्रेस अब देशद्रोह को समर्थन और दंगा भड़काने का आरोप झेल रही है. पहले नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस के शीर्षतम नेतृत्व को अदालती सम्मन, उसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा राहुल गांधी के खिलाफ देशद्रोह का आरोप दर्ज करने का आदेश दिया जाना और अब हरियाणा में जाट आंदोलन को भड़काने का आरोप झेलने वाली कांग्रेस अब निश्चित रूप से 'आत्मघात' की ओर ही बढ़ रही है! 

हरियाणा में जाट आंदोलन को उकसाने का ऑडियो आने के बाद राजनेताओं के अलावा आम जनता भी सन्न है कि क्या राजनैतिक हार का बदला इस तरह प्रदेश और देश को आग में झोंककर लेगी कांग्रेस? हरियाणा सरकार ने कहा है कि जाट आंदोलन के दौरान हिंसा और तोड़फोड़ करने वाले लोगों की पहचान कर उनके ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाएगी. मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि जाट आंदोलन के दौरान लोगों को हुए नुक़सान का आकलन करवाकर पीड़ित लोगों को एक महीने में पूरा मुआवज़ा दिया जाएगा और इस काम में किसी तरह की कोताही नहीं की जाएगी. किन्तु, सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो बड़ा भरोसा राजनैतिक-तंत्र, विशेषकर कांग्रेस के रवैये से सामने आया है, उसकी भरपाई भला किस प्रकार संभव होगी? क्या देश की सबसे पुरानी पार्टी की यही 'सहिष्णुता' की नीति है? मुश्किल यह है कि जनता द्वारा बुरी तरह नकार दिए जाने के बावजूद यह पार्टी वंशवाद, भ्रष्टाचार इत्यादि से कहाँ तक मुक्ति पाने का प्रयास करती, बल्कि वह नकारात्मक राजनीति करने के एक से बढ़कर दूसरा रिकॉर्ड बना रही है. जाट आंदोलन पर केंद्र सरकार से कुछ जाट प्रतिनिधियों की बातचीत के बाद राज्य में स्थिति सुधरने के संकेत हैं. हालाँकि रह रहकर हिंसा भड़कने से राज्य में इस हिंसक आंदोलन में मरने वालों की संख्या 18 हो गई है. इस क्रम में, प्रदेश सरकार ने जाट आंदोलन के दौरान भड़काने वाली एक ऑडियो क्लिप की जांच कराने की घोषणा की है. ग़ौरतलब है कि इस ऑडियो क्लिप में पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार प्रोफ़ेसर वीरेंद्र सिंह की आवाज़ बताई जा रही है. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक ट्वीट में प्रोफ़ेसर वीरेंद्र सिंह का नाम लेते हुए कहा है कि 'मंत्रिमंडल ने फ़ैसला किया है कि जाट आरक्षण आंदोलन को भडक़ाने की कोशिश करने वाले प्रोफ़ेसर वीरेन्द्र सिंह की ऑडियो क्लिप की जांच होगी. 

इस पूरे मामले पर प्रोफ़ेसर वीरेंद्र सिंह की शर्मनाक सफाई सामने आयी है, जिसके अनुसार, "मैंने कहीं भी जाटों को या किसी और को भड़काने की बात नहीं कही है. ये बातचीत पुरानी है और इस आंदोलन से बहुत पहले की है. अब सोचने वाली बात यह है कि खुद जब आरोपी यह स्वीकार कर रहे हैं कि "यह बातचीत पहले की है", तब फिर साबित करने को रह ही क्या जाता है. इस पूरे मामले पर उस कांग्रेस की कोई ऐसी प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है, जिसको मेंशन किया जा सके! यह वही कांग्रेस है, जो संसद में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संसद को ज़रा-ज़रा सी बातों पर रोक देती है, जाम कर देती है! इस बार भी आने वाले बज़ट-सत्र को लेकर कांग्रेस संसद को न चलने देने का पूरा मन बना चुकी होगी, क्योंकि यह सत्र कांग्रेस को आख़िरी मौका देगा. उसके पास ज्यादा समय नहीं है. इस साल जून के बाद राज्यसभा की 76 सीटों पर चुनाव होंगे. समझा जाता है कि कांग्रेस की स्थिति पहले के मुक़ाबले कमज़ोर होगी. यह आने वाले वर्षों में और क़मजोर हो सकती है. बावजूद इन संकेतों के अगर कांग्रेस पार्टी सकारात्मक रूख नहीं अपना पा रही है तो इसे उसके आत्मघात के अलावा भला और क्या कहा जा सकता है. कांग्रेस इस बात पर खुश हो सकती है कि नरेंद्र मोदी का विरोध करने के नाम पर उसके साथ वामपंथी, केजरीवाल, जदयू और दुसरे तमाम लोग भी शामिल हैं, किन्तु यह विचार करने से पहले कांग्रेस भूल जाती है कि यह सभी लोग उसकी जड़ों को ज्यादा खोदेंगे! बिहार में कांग्रेस साफ़ है, दिल्ली में केजरीवाल ने कांग्रेस को ही ज्यादा चोट पहुंचाई और आने वाले समय में पंजाब में भी उसी की साख सर्वाधिक दांव पर लगी हुई है. इन तमाम समीकरणों के अतिरिक्त, सबसे बड़ा दांव कांग्रेस की जनता के बीच छवि का लगा हुआ है, जो वंशवाद के नाम पर राहुल गांधी को पहले ही झेलने को तैयार नहीं थी और अब तो राष्ट्रद्रोह, दंगा फैलाने का सीधा आरोप लगने की बात भी इसमें शामिल हो चुकी है. 

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक जोक बहुत शेयर हो रहा है, जिसमें महात्मा गांधी के 'कांग्रेस को समाप्त करने के सपने को पूरा करने की बात कही जा रही है', वह भी राहुल गांधी के द्वारा! हालाँकि, इन तमाम बातों से ऊपर कांग्रेस का 'अहम' ही है, जो उसको ले डूबने के लिए पूरा तैयार है! हालाँकि, इन तमाम वाकयों में भाजपा को क्लीन-चिट दे देना पक्षपातपूर्ण रवैया ही कहा जाएगा, क्योंकि यह स्वीकारने में शायद ही किसी को संकोच होगा कि भाजपा के पास भी ऐसे कई बयानवीर हैं, जो मामले को बिगाड़ने में सिद्धहस्त हैं. वह आप चाहे बीफ-विवाद, एखलाक हत्या, सहिष्णुता-असहिष्णुता, फिल्म इंडस्ट्री विवाद या फिर किसी भी दुसरे मामले में देख लें! यकीनी तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में देश को एक नायक मिला है, जिसे जनता का विश्वास तो प्राप्त है ही, पूरे विश्व भर में उसकी छवि विकासवादी बन रही है, लेकिन टीम भाजपा में कई लोग ऐसे भी विराजमान हैं, जो विकास के रवैये पर चुपचाप कार्य करने के बजाय मामले को विवादित बनाने में कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं. इससे न केवल प्रधानमंत्री की छवि को चोट पहुँचती है, बल्कि कांग्रेस को कई बार बहानेबाजी का भी मौका मिल जाता है. निश्चित रूप से तमाम विवाद हमारे देश के विकास को पीछे धकेल रहे हैं और कांग्रेस को तो इसकी सजा 2014 के आम चुनावों के साथ बाद के तमाम चुनावों में जनता दे चुकी है, लेकिन अगर भाजपा भी इन विवादों में ही उलझी रही तो जनता के हृदय से उसे भी उतरने में भला कितनी देर लगेगी? निश्चित रूप से सत्ताधारी पार्टी को इसे समझना होगा और उसकी समझ कितनी विकसित हुई है, यह वर्तमान बज़ट-सत्र से आसानी से साबित हो जाएगी!

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