राहुल गांधी को सुनना अक्सर हास्य ही उत्पन्न करता है, बेशक वह कई बार गंभीर बातें भी करते हैं. हालाँकि, यही बातें जब सोनिया गांधी के सन्दर्भ में कही जाती हैं तो बात कुछ अलग हो जाती है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बहुप्रतीक्षित ‘महिला आरक्षण विधेयक’ को जल्द पारित किए जाने की मांग करते हुए कड़े शब्दों में सरकार से कहा, हमें हमारा जायज हक दो. कई लोगों को सोनिया गांधी के इस भाषण पर इसलिए हंसी आ सकती है, क्योंकि जब उनकी सरकार 10 साल तक सत्ता में थी, तब कांग्रेस सुप्रीमो के इस प्रकार का कड़ा रूख, महिला विधेयक को लेकर देखने को नहीं मिला था. हालाँकि, सोनिया गांधी के हमले के अलग निहितार्थ हैं, किन्तु यह समझने में किसी को शायद ही समझ आये कि अपनी राजनीति से अलग हटकर कांग्रेस अध्यक्षा क्या महिला विधेयक को लेकर सरकार का साथ देंगी! हालाँकि, सोनिया गांधी ने ‘अधिकतम सुशासन’ के नारे को लेकर भी सरकार पर हमला बोला और कहा कि अधिकतम सुशासन का अर्थ प्रतिशोध की भावना के बिना असहमति के आधार को विस्तार प्रदान करना भी है. सोनिया गांधी यहाँ यह भी भूल गयीं कि जब वह सत्ता में थीं, तब एनसीईआरटी कोर्स को लेकर किस तरह के बदलाव की पक्षधर थीं, जिसका ज़िक्र स्मृति ईरानी ने अपने चर्चित भाषण में संसद में किया था. यह बात भी समझना बेहद मुश्किल है कि नेताओं में शिक्षा को लेकर सोनिया गांधी ने आखिर आपत्ति क्यों दर्ज की है. कांग्रेस अध्यक्ष ने भाजपा शासित कुछ राज्यों में स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर भी सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा कि यह कदम अनुसूचित जाति और जनजाति समूहों की महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने वाला है और इस प्रावधान को समाप्त करने के लिए उन्होंने इस पर तत्काल विधायी रूप से ध्यान दिए जाने की जरूरत बताई.
सोनिया गांधी को कम शिक्षित समुदाय को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष होने के नाते इस बात का जवाब देना ही चाहिए कि आखिर उनकी पार्टी के 60 साल शासन में रहने के बावजूद अशिक्षा की स्थिति क्यों है? अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना बेहद आसान है और सोनिया गांधी ने इसी कहावत के आधार पर अपना भाषण भी दिया. महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर सबसे पहले चर्चा की शुरूआत करते हुए सोनिया गांधी ने महिलाओं के उत्थान में कांग्रेस पार्टी की भूमिका को रेखांकित किया और कहा कि कांग्रेस ने देश को पहली महिला प्रधानमंत्री, पहली महिला राष्ट्रपति और पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष दी. उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दूरदृष्टि के चलते ही आज स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव में 40 फीसदी से अधिक महिलाएं निर्वाचित हुई हैं. अब सवाल यही है कि बजाय कि गोल-गोल बातें घुमाने के सीधे महिला आरक्षण बिल पर सोनिया गांधी को बात करने से परहेज क्यों है? इस कड़ी में, सोनिया गांधी ने कई मुद्दों को लेकर राजग सरकार की आलोचना की और उसके ‘अधिकतम सुशासन और न्यूनतम सरकार’ के नारे पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम सुशासन’ पर उन्हें गंभीर आपत्तियां हैं, क्योंकि अधिकतम सुशासन आर्थिक वृद्धि को गति देने से कहीं अधिक आगे की बात है. निश्चित रूप से अधिकतम सुशासन का मतलब महिलाओं के अधिकारों के मामले में दोहरे मापदंड अपनाना भी नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, निश्चित रूप से, अधिकतम सुशासन का यह भी अर्थ है कि महिलाओं को उनका बहुप्रतीक्षित बकाया हक ‘महिला आरक्षण विधेयक’ प्रदान करना है. देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस पार्टी संसद में अपनी अध्यक्षा द्वारा दिए गए भाषण की कुछ कदर करके जरूरी बिलों को पास कराते हैं अथवा संसद को डिस्टर्ब करने की उनकी पॉलिसी बरकरार रहती है. कांग्रेस पार्टी की कथनी और करनी में यह अंतर जल्द ही सामने आ जायेगा और अगर सच में कांग्रेस पार्टी की मनः स्थिति में परिवर्तन होता है, तो इससे बेहतर कोई दूसरी बात न होगी! और भी बेहतर तो यह हो कि अपनी पार्टी के भीतर भी लोकतंत्र कायम करने की बात कांग्रेस अध्यक्ष करें, क्योंकि यह कांग्रेस पार्टी के भविष्य के लिए कहीं ज्यादा महत्त्व की बात है.
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