21वीं सदी के दुसरे दशक में अगर सर्वाधिक विवादित मुद्दों की लिस्ट बनाई जाए तो निश्चित तौर पर 'जेएनयू'' उनमें से एक होगा. विवाद दर विवाद, बवाल दर बवाल होने से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय पर सवाल दर सवाल खड़े होने ही थे. कल तक जेएनयू में पढ़ने का ख्वाब देखने वाले छात्र आज उसी जेएनयू कैंपस का नाम लेने से भी कतराते होंगे, तो जेएनयू कैंपस में हो रही देश विरोधी गतिविधियों के फलस्वरूप छात्रों को वहां जाने से हिचक भी पैदा हुई है, इस बात में 'दो राय' नहीं! पिछले कई सालों से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यानि जेएनयू शिक्षण संस्थान न रह कर विवादों का गढ़ बनता जा रहा है. विवादों से घिरे रहने वाले इस जेएनयू कैंपस में इस साल के फरवरी महीने में ऐसा विवाद छिड़ा जिसने एक बार समूचे देश को झकझोर कर रख दिया और लोग यह सोचने को विवश हो गए कि जनता की गाढ़ी कमाई के दम पर मिलने वाली सब्सिडी क्या 'राष्ट्रविरोधी' कार्यों के लिए ही दी जा रही है? उसके बाद भी लगातार चर्चा में रहने से एक एक कर इसके अंदर की सच्चाई सामने आने लगी है. जेएनयू कैंपस को शर्मसार करने वाली इस बात को जानकर कोई भी हैरान हो सकता है. जी हाँ, स्वयं जेएनयू के शिक्षकों के एक समूह ने कैंपस को 'सेक्स रैकेट चलाने वालों का अड्डा' बताया है , और इसके साथ जानने वाली बात यह भी है कि इसके लिए उन्होंने '200 पृष्ठों का अच्छा खासा आंकड़ा' तैयार किया है. कुछ तो ऐसी बात है कि जेएनयू कैंपस की व्यवस्था लचर हो गयी है अथवा कर दी गयी है और अब ऐसे-ऐसे वाकये सामने आ रहे हैं, जो किसी को भी शर्मसार करने के लिए पर्याप्त हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार यह भी बेहद निंदनीय बात सामने आयी है कि इस रैकेट में सिक्योरिटी स्टाफ के कुछ लोग भी शामिल हैं. जाहिर है कि भारतीय संस्कृति जहाँ स्कूल, कॉलेज विद्या के मंदिर माने जाते रहे हैं, वहीं जेएनयू जैसे संस्थानों में नए स्टूडेंट पैसे, सेक्स, ड्रग्स और शराब के चक्कर में फंसते जा रहे हैं. पिछले दिनों के एक अन्य खबर के अनुसार, जेएनयू में रोजाना शराब की 4000 बोतलें, सिगरेट के 10 हजार फिल्टर, बीड़ी के 4000 टुकड़े, हड्डियों के छोटे-बड़े 50 हजार टुकड़े, चिप्स के 2000 रैपर्स और 3000 इस्तेमाल किए गए कंडोम मिले थे. यह आंकड़ा अपनी जगह सही या गलत हो सकता है, किन्तु 'दाल में काला' तो है ही और अब यह बात पूरे देश के सामने आ चुकी है. लंबे समय से चले आ रहे ‘देश विरोधी गतिविधियों’ में शामिल विनाशकारी ताकतों को रोकने के लिए जनता सरकार पर दबाव डाल रही है कि इस संस्थान को दी जा रही भारी सब्सिडी पर विचार किया जाए, क्योंकि 'फ्री की सब्सिडी' से अक्सर 'हरामखोरी' ही जन्म लेती है. आरएसएएस जैसे संगठन इस तरह के कृत्यों पर खासे नाराज हैं और उनका साफ़ कहना है कि देश को तोड़ने वाले नारों को सहन नहीं किया जाएगा. देश के नीति-निर्धारकों को इस बात के प्रति कृत संकल्प होना ही पड़ेगा कि वह चाहे जेएनयू हो या कोई और संस्थान, वहां शिक्षा के नाम पर देशविरोधी कृत्यों की इजाजत न दी जाए, अन्यथा विद्या का मंदिर 'ड्रग, सेक्स, अनैतिक पैसे' का हब ही बनेगा और इसका परिणाम भुगतेंगी हमारी आने वाली पीढ़ियां!
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