तकनीक के इस जमाने में कोई भी सेक्टर आधुनिकता से अछूता नहीं रह सका है. ऐसे में देश की कामकाजी-व्यवस्था कागज़ के पन्नो से उठकर कंप्यूटर के मेमोरी और क्लॉउड स्टोरेज में सुरक्षित हो रही है, जो कई लिहाज़ से बेहतर है. ऐसे में बैंक क्यों पीछे रहे. हालांकि बैंकों में पहले से पैसे निकलने के लिए ATM की सुविधा पहले से ही थी, लेकिन अब बैंकों का सारा काम ऑटोमेटेड होने जा रहा है और ऐसा होगा तकनीक से जुड़ी उन मशीनो की सहायता से, जिसे भारतीय स्टेट बैंक ने 'इन टच बैंकिंग' (In Touch Banking) नाम दिया है. भारतीय स्टेट बैंक (State Bank of India) की मानव रहित बैंक की 70 शाखाएं बखूबी काम भी करने लगी हैं. इसी कड़ी में 'इन टच की अगली ब्रांच' उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले में खोलने की घोषणा की गयी है. इन टच की टेक्नोलॉजी इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि बैंक में इन मशीनो के अलावा बैंक के सिर्फ दो स्टाफ ही होंगे जो लोगों की मदद करेंगे. बैंक वालों का इस सन्दर्भ में कहना है कि इस तरह से हम एक दिन में 5 - 7 हजार उपभोक्ताओं को सेवा दे सकेंगे. जाहिर है, यह एक बड़ी संख्या है, जइसे समय तो कम लगेगा ही, साथ ही साथ बैंक में लगने वाली अनावशयक भीड़ भी कम हो सकेगी. अगर इसकी खूबियों की बात करें तो इस तरह की बैंकिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह होगी कि आपको पहले की तरह किसी भी काम के लिए घंटो लाइन में खड़े रहने और काउंटरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे.
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यह मशीन तो खाता खोलने, पासबुक अपडेट कराने, पैसा निकालने या जमा करने, एटीएम कार्ड मुहैया करने से लेकर लोन के लिए आवेदन करने तक के सभी काम चुटकियों में पूरा कर देगी. ऐसे में बैंक रविवार सहित अन्य छुट्टियों को भी खुले रहेंगे, जिससे उत्पादकता भी बढ़ोत्तरी स्वाभाविक ही है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि जो समय लोग बैंक की कतार में खड़े होकर नुक्सान कर देते हैं, उससे काफी हद तक मुक्ति मिल जाएगी, तो औपचारिकताओं का काम भी आसान ही होगा, किन्तु तकनीक (In touch banking, technology) के इस ज़माने में बेरोजगारी बढ़ने की भी एक सम्भावना है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है. हालाँकि, जब राजीव गांधी के ज़माने में कंप्यूटर आया था, तब भी लोगबाग ऐसी बातें किया करते थे, लेकिन आज कंप्यूटर की उपयोगिता हम सबके सामने खुली किताब की तरह है. वैसे भी, जिस प्रकार लोगों का जीवन-स्तर तेज़ होता जा रहा है, उसे हम टेक्नोलॉजी के अतिरिक्त, किसी और चीज से कतई मेंटेन नहीं कर सकते हैं. हालाँकि, बेरोजगारी वाले भी अपने आंकड़े दे रहे हैं, जिसके अनुसार इस तरह के आधुनिक बैंक की 70 शाखाओं की ही बात करें तो कुल मिला कर सिर्फ 140 लोग ही इनमें कार्यरत हैं, जबकि मशीन की जगह अगर इंसान काम करे तो कुल मिला कर कम से कम 350 लोगों को रोजगार मिल सकता है.
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अब भाई, बात कुछ ऐसी है कि लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने के लिए, उन्हें रोजगार देने के लिए विभिन्न नए अवसरों की तलाश में जुटना होगा, क्योंकि क्लेरिकल कार्य तो अब 'मशीनें' ही किया करेंगी. आने वाले दिनों में यह ट्रेंड और बढ़ेगा, जब मशीनों और इंसानों के बीच प्रतिद्वंदिता बढ़ती ही जाएगी (In touch banking, technology). हालाँकि, तकनीक का सही इम्प्लीमेंटेशन और उसकी अपडेशन भी उतनी ही आवश्यक है, अन्यथा इंटरनेट के युग में हैकर्स के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है. उम्मीद की जानी चाहिए कि आधुनिक मशीनों की तरह बढ़ रहे बैंक भी इन खतरों से पूरी तरह सजग और सुरक्षित होंगे और इसी में उनके ग्राहकों की भी सुरक्षा और सुख-चैन छिपा हुआ है, इस बात में दो राय नहीं!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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