नए लेख

6/recent/ticker-posts

एक बार फिर परिभाषित हुई अभिव्यक्ति की आज़ादी - Right to speech, expression, court order, Hindi article, Mithilesh



अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बहस कोई नयी नहीं है और इस विषय पर खूब चर्चा पहले भी होती रही है. हालाँकि, यह जितना आसान विषय दिखता है, उतना है नहीं और इसीलिए कई बार न्यायालयों ने इसको परिभाषित किया है. एक बार फिर मद्रास हाई कोर्ट ने इसको लेकर अपना रूख साफ़ किया है. ज्ञातव्य हो कि यहाँ मामला सरकार और सरकारी अधिकारियों का हैं, जिन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी का पाठ पढ़ाने के लिए मद्रास हाई कोर्ट को आगे आना पड़ा. किसी कलाकार के अंदर उसकी कला उसके अंतर्मन से आती है और यह सबके बस की बात हरगिज नहीं है. यदि किसी कलाकार ने अपने कला का प्रदर्शन किया तो आप उसकी प्रतिभा को देखें न देखें, यह आपकी मर्जी है, लेकिन आप बिना किसी ठोस आधार के (Right to speech, expression, court order) उसको प्रदर्शित करने से नहीं रोक सकते हैं. ठीक वैसे ही आप किसी लेखक को उसके मन की व्यथा लिखने से नहीं रोक सकते हैं, भले ही आप उसकी पुस्तक को पढ़ें या न पढ़ें. 


हालाँकि, कई बार कुछ अतिवादी रचनायें भी जरूर हो जाती हैं, जिसे अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर जायज़ ठहराने की कोशिश की जाती है, किन्तु बावजूद इसके आप लोकतंत्र में कला के ऊपर 'सेंसरशिप' कैसे लागू कर सकते हैं? चर्चित तमिल लेखक और प्रोफ़ेसर पेरुमल मुरुगन के मामला भी कुछ ऐसा ही है. हालाँकि, कई बातें उनकी विवादित हो सकती हैं पर बावजूद उसके उनकी किताब 'मधोरुबगन' में लिखी कुछ टिप्पणियों के लिए ज़िला राजस्व अधिकारी द्वारा 'समन' जारी कर 'बिना शर्त माफ़ी' मांगने के लिए विवश करना अतिवादी कदम था! तत्कालीन समय में स्थानीय संगठनों और जातीय समूहों ने उनके उपन्यास 'मधोरुबगन' के ख़िलाफ़ उग्र प्रदर्शन भी किए थे. खैर, दोनों की अपनी-अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो सकती है, पर अगर आपको किसी की बात पसंद नहीं तो इसका मतलब यह नहीं कि आप उसके खिलाफ हिंसा पर उतारू हो जाओ! 




Right to speech, expression, court order, Hindi article,
जब समाज के ठेकेदारों द्वारे उनकी किताबों पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग होने लगी, तो ऐसे में प्रोफ़ेसर पेरुमल ने खुलेआम कलम को हाथ न लगने की बात कही. इस तरह के विरोध के बाद उन्होंने फेसबुक पर लिखा था कि, "मर गया पेरुमल मुरुगन!" उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ था, तो इसे खासी चर्चा भी मिली. बताते चलें कि तमिल उपन्यास 'मधोरुबगन' दरअसल तमिलनाडु के तिरुचेंगोडे के एक गरीब निःसंतान दंपति की कहानी है. यह किताब तमिल में 2011 में प्रकाशित हुई थी. इसके विवादों में घिरने के बाद इसे अंग्रजी में पेंग्विन समूह ने 2014 में प्रकाशित किया. खैर, इस मामले में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस कौल की खंडपीठ (Right to speech, expression, court order) ने पारदर्शी रवैया अपनाते हुए सरकार के समक्ष अभिव्यक्ति की आज़ादी को परिभाषित किया है. उनका कहना है कि समान्यतः ऐसे मामलों के लिए भी काननू हैं जिसका ध्यान रखते हुए ही समन जारी किया जा सकते हैं. यानि कोई भी अधिकारी बिना किसी क़ानूनी प्रावधान के समन जारी नहीं कर सकते हैं. जाहिर है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सरकारी अधिकारी अपने अधिकारों का कई बार दुरूपयोग करते है. ऐसे में कोर्ट का आदेश उचित ही है कि किसी भी सरकारी अधिकारी को विभाग के अधिकार का इस्तेमाल करने के लिए कानून का ध्यान रखते हुए यह जरूर सूचित करें कि किस प्रावधान के तहत कार्रवाई हो रही हैं. सरकार की ज़िम्मेदारी क़ानून-व्यवस्था कायम रखना होती है, किन्तु वह किसी भी कलाकार या लेखक को अपनी राय बदलने के लिए दबाव नहीं बना सकती है. इस मामले में कोर्ट का आदेश बिलकुल स्पष्ट है, जो न केवल मुरुगन के मामले में बल्कि लोकतंत्र को संरक्षित करने के तमाम मामलों में उचित होगा. 

इसे भी पढ़ेंआतंक पर 'इस्लाम' के अनुयायी चुप क्यों? 


Right to speech, expression, court order, Hindi article,  Perumal murugan matter
आखिर, देश में कांग्रेस सरकार द्वारा 'आपातकाल' लगाने की घटना कैसे भूली जा सकती है, जब पूरे लोकतंत्र पर ही ग्रहण लगा दिया गया था. अब इस बार कोर्ट ने 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' को लेकर बेहद साफ़ रवैया अपनाया है, जिसके अनुसार, किसी भी मामले में सही और गलत का फ़ैसला करने का अधिकार किसी को नहीं है. किसी प्रकाशन, कला, नाटक, फ़िल्म, गाना, कविता और कार्टून के ख़िलाफ़ अभिव्यक्ति की आज़ादी शिकायत (Right to speech, expression, court order) मिलती है तो उसको अनुच्छेद 19 (1)(क) के तहत दी गई अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुताबिक़- "अभिव्यक्ति की आज़ादी तब तक कायम रहेगी जब तक कि वह अनुच्छेद 19 (2) के तहत उचित प्रतिबंध के दायरे में नहीं आ जाती है. साफ़ है कि ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए सरकार को विशेषज्ञों की एक टीम गठित करना चाहिए, जिसमें कम से कम एक सदस्य साहित्य और कला के क्षेत्र का विशेषज्ञ हो जिससे क़ानून का ख्याल रखते हुए स्वतंत्र विचार सामने लाने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, कोर्ट के अनुसार सरकार कला और साहित्य को लेकर होने वाले टकराव के मामलों में अधिकारियों को संवेदनशील बनाने के लिए नियमित तौर पर कार्यक्रम चलाए, क्योकि जब तक कला और साहित्य के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक हमेशा इस तरह के टकराव होते रहेंगे. 

इसे भी पढ़ें: 'वेबसाइट' न चलने की वजह से आत्महत्या ... !!! ???

Right to speech, expression, court order
इस पूरे एपिसोड को हम किसी व्यक्ति-विशेष की जीत मानने की बजाय अगर 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' की जीत मानें तो ज्यादा बेहतर होगा. साथ ही साथ सरकारी अधिकारियों की मनमानी पर लगाम और 'अभिव्यक्ति की आज़ादी' के साथ-साथ कलाकारों की सामाजिक जवाबदेही का इशारा भी इसमें है, अगर हम उसे समझना चाहें तो! जाहिर है, अभिव्यक्ति की आज़ादी तो सबको है, किन्तु वहीं तक, जहाँ से दुसरे की नाक शुरू होती है. वैसे भी, जिस किसी लेखन से, कला से समाज का नुक्सान होता हो, वह कला तो है ही नहीं, बल्कि वह किसी व्यक्ति का खास-प्रलाप भर है. किन्तु, इसमें इस कदर पेचीदगियां हैं कि कई बार साहित्य जब समाज की बुराई को सामने लाता है तो उसे छटपटाहट होने लगती है और फिर दबाव की राजनीति शुरू हो जाती है, जो निश्चित रूप से किसी के लिए भी लाभदायक तो नहीं ही होती है. 

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



यदि लेख पसंद आया तो 'Follow & Like' please...





ऑनलाइन खरीददारी से पहले किसी भी सामान की 'तुलना' जरूर करें 
(Type & Search any product) ...


Right to speech, expression, court order, Hindi article, Mithilesh,
perumal murugan highcourt guideline tk, perumal murugan , perumal murugan Books, perumal murugan Seasons of the palm, perumal murugan case, perumal murugan novel,

Breaking news hindi articles, latest news articles in hindi, Indian Politics, articles for magazines and Newspapers, Hindi Lekh, Hire a Hindi Writer, content writer in Hindi, Hindi Lekhak Patrakar, How to write a Hindi Article, top article website, best hindi articles blog, Indian Hindi blogger, Hindi website, technical hindi writer, Hindi author, Top Blog in India, Hindi news portal articles, publish hindi article free

मिथिलेश  के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें...
(
More than 1000 Hindi Articles !!)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ