देश की आज़ादी के बाद से ही हमारे देश में केंद्र और राज्यों के रिश्तों को मधुर और सहयोगपूर्ण बनाने की कवायद की जाती रही है, किन्तु दुर्भाग्य से यह मुद्दा 2016 में भी उठाने की जरूरत आन पड़ी है. यदि सरसरी निगाहों से देखा जाए तो कई बार मजबूत केंद्र सरकारों ने उन राज्यों पर नियुक्त-राज्यपाल के जरिये शिकंजा कसने की कवायद की है, जिनमें विपक्षी पार्टियों की सरकारें रही हैं. इंदिरा गांधी ने इस दुर्भाग्यशाली परंपरा की शुरुआत की तो मोदी सरकार पर भी इसके आरोप लगे हैं. संयोग से उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश के मामलों में कोर्ट का डिसीजन भी केंद्र सरकार के खिलाफ ही आया है, जिससे राजनीतिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी टीम को खासी किरकिरी झेलनी पड़ी है. हालाँकि, इस बात के लिए केंद्र सरकार की तारीफ़ करनी होगी कि उसने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ संवाद की प्रक्रिया (Inter state council meeting) शुरू की है, जिसमें विभिन्न मुद्दे सामने आए हैं. कहते हैं, जिन्हें कुछ करना होता है वो मौके की तलाश कर ही लेते हैं. अपनी ऐसी ही विकास पुरुष और कार्य करने वाले व्यक्ति की छवि को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इंटर स्टेट काउंसिल मीटिंग बुलाई.
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तमाम विवादों के बावजूद प्रधानमंत्री ये अच्छे से समझते हैं कि अगर समूचे देश में विकास लाना है तो इसमें सभी राज्यों की भूमिका अहम है और उनके सकारात्मक सहयोग के बिना न केवल विकास, बल्कि आतंरिक सुरक्षा की राह भी कठिन है. इस कड़ी में हम कह सकते हैं कि केंद्र चाहे जितनी भी योजनाएं ला दे, लेकिन उन योजनाओं को लागू तो राज्य सरकारें ही करेंगी और इन सबके लिए जरुरी है केंद्र और राज्य सरकारों के बीच तालमेल करने का. इसीलिए 10 साल से नहीं हुयी अंतरराज्यीय परिषद की बैठक का आयोजन किया गया और ख़ुशी की बात ये है कि इस बैठक में लगभग सभी राज्यों के मुख़्यमंत्री शामिल हुए, सिर्फ उत्तर प्रदेश से अखिलेश यादव और कर्नाटक से सिद्धारमैया शामिल नहीं हो पाए. इस मीटिंग (Inter state council meeting) में जो कुछ तकनीकी बातें हुई, उसके अनुसार पीएम ने कहा कि राज्यों को केंद्र से इस बार जो रकम मिली है, वह साल 2014-15 की तुलना में 21 प्रतिशत ज्यादा है, तो पंचायतों और स्थानीय निकायों को 14वें वित्त आयोग की अवधि में 2 लाख 87 हजार करोड़ रुपए की रकम मिलेगी जो पिछली बार से काफी अधिक है. इसी कड़ी में, उन्होंने केरोसिन की बचत-योजना के लिए चंडीगढ़ प्रशासन और कर्नाटक सरकार को बधाई भी दी और अन्य राज्यों को भी ऐसे उदाहरणों से सीखने की सलाह दी.
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प्रधानमंत्री मोदी ने यह उम्मीद भी जताई कि इस बार राज्य सभा में वह कानून पास हो जाये, जिससे बैंक में रखे हुए करीब 40 हजार करोड़ रुपए को भी राज्यों को देने का प्रयास हो सके. इस सम्बन्ध में सबसे जरूरी बात हुई 'इंटरनल सिक्योरिटी' को लेकर और आंतरिक सुरक्षा के विषय में चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री ने इस बैठक में कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौतियों और उनसे कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक-दूसरे का सहयोग कर सकते हैं, इस पर केंद्र और राज्यों के बीच चर्चा होनी चाहिए. जाहिर है कि आंतरिक सुरक्षा को तब तक मजबूत नहीं किया जा सकता, जब तक इंटेलिजेंस शेयरिंग पर फोकस न हो और इसीलिए प्रधानमंत्री ने हर समय अलर्ट और अपडेटेड रहने की जरूरत पर बल दिया है. इसके अतिरिक्त, शिक्षा के विषय में पीएम ने इस बैठक में कहा कि हम दुनिया को सबसे बड़ी मैन पावर स्किल देने की कंडीशन में हैं, क्योंकि हमारे देश में 30 करोड़ बच्चे स्कूल जाने के स्टेज में हैं जो आने वाले दिनों में स्किल की नयी परिभाषा गढ़ सकते हैं, इसलिए उन्हें शिक्षा के उद्देश्य को समझाना जरुरी है और शिक्षा का प्रारूप भी ऐसा होना चाहिए कि बच्चों की जिज्ञासा उत्पन्न हो. इस सन्दर्भ में उन्होंने स्वामी विवेकानन्द का उदहारण देते हुए कहा कि स्वामी जी ने कहा था कि शिक्षा का मतलब 'चरित्र निर्माण और बौद्धिक विकास' होता है. इस मौके पर उन्होंने बाबा साहेब की नसीहत को भी याद किया और कहा कि अगर हम किसी सामाजिक कार्य को करने का प्रयास करते हैं, तो हमें आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा, लेकिन हमें इसकी परवाह न करते हुए एक दूसरे के सहयोग (Inter state council meeting) से आगे बढ़ना होगा.
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जाहिर है, कई सारी बातें की गयें तो कई मुद्दों पर केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया, पर कोर मुद्दों को सुलझाए बिना इस विषय पर आगे बढ़ना मुश्किल ही दिखता है. बिहार के मुख्य्मंत्री नीतीश कुमार ने इस मीटिंग में एक तरह से 'राज्यपालों का पद' ख़त्म करने की ही वकालत कर दी तो बिहार को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने का मुद्दा उठा दिया. इसके अतिरिक्त अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता भी (Inter state council meeting) दिल्ली जैसे संघ-शाषित राज्यों के अधिकारों का मुद्दा उठाते ही रहते हैं. अपने एक प्रोग्राम 'टॉक टू एके' में बेहद अजीब और अनावश्यक ढंग से केजरीवाल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगा दिया कि 'केंद्र ने दिल्ली को इंडिया-पाकिस्तान जैसा बना दिया है'. हालाँकि, इस मंच को राजनीति के बजाय व्यवहारिक धरातल पर चर्चा और क्रियान्वयन का मंच बनाया जाना चाहिए, किन्तु राजनीति के बावजूद केंद्र को राज्यों के तमाम प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने ही होंगे, अन्यथा यह मीटिंग एक औपचारिकता भर बन कर ही रह जाएगी, इस बात में दो राय नहीं है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कथन, "भारत जैसे लोकतंत्र में वाद -विवाद (Debate), विवेचना (Deliberation), विचार-विमर्श (Discussion) से ही नीतियां बन सकती हैं जो जमीनी सच्चाई का ध्यान रखती हों" का भी जिक्र इस बैठक में जरूर आया, किन्तु उस पर अमल किस हद तक किया जाएगा, यह जरूर देखने वाली बात होगी. इसी क्रम में, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने केंद्र और राज्यों के बीच निकट सहयोग की वकालत की और कहा कि इसके बिना विकास परियोजनाएं प्रभावित होंगी.
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अपनी सरकार की प्राथमिकता बताते हुए केंद्रीय गृहमंत्री ने कहा कि राजग सरकार का मुख्य ध्यान संघवाद अथवा प्रतिस्पर्धी संघवाद के जरिए सहयोगात्मक संघवाद को बढ़ावा देने पर है. पर मूल सवाल वहीं अंटक जाता है कि यह होगा कैसे? देखा जाए तो हमारे देश में अलग-अलग समय पर होने वाले चुनाव भी इसके कारणों में से एक हैं. इस बैठक में यूपी सीएम अखिलेश यादव के न आने के कारणों पर ध्यान दें तो आप समझ जायेंगे कि 2017 में यूपी चुनावों के कारण केंद्र और यूपी सरकार के बीच तनातनी (Inter state council meeting) रहेगी ही रहेगी. ऐसा अनेक राज्यों के साथ होता ही रहता है और इसका कारण है कि हर समय हमारे देश का कोई न कोई कोन चुनावी-मॉड में ही रहता है. अगर केंद्र और राज्य-विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की राह निकाली जाए तो फिर केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग के लिए काफी समय बचेगा. जाहिर तौर पर हमारे देश में लोकतंत्र के कारण विचारों में भिन्नता रहेगी ही रहेगी, किन्तु इसका असर विकास, आंतरिक सुरक्षा और संशाधनों के बंटवारे जैसे मुद्दे पर न हो, इसके लिए बेहद आवश्यक है कि राज्यों के मुख्य्मन्त्रियों और केंद्र सरकार के बीच मधुर सम्बन्ध हों और वह राजनीति से परे हटकर प्रदेश-हित के रास्ते देश-हित में अपना योगदान देने के प्रति कृत-संकल्प हों!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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