अंतरिक्ष सदा से ही वैज्ञानिकों की उत्सुकता का केंद्र रहा है और अमेरिकी एजेंसी नासा का इतिहास ही पूरे विश्व के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणाश्रोत रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका की हम कई मामलों में बुराई कर सकते हैं, मसलन वह दुनिया पर दादागिरी करता है, हथियारों के व्यापार को बढ़ावा देता है बला बला, किन्तु इसके साथ यह बात भी उतनी ही सच है कि अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मानव-सभ्यता के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान भी उतनी ही शिद्दत से दिया है. इस बार उनकी उपलब्धि तो बेहद खास है, जो हमें ब्रह्माण्ड के रहस्यों के और भी नजदीक ले जा सकता है. लगभग पांच साल की अथक मेहनत और 1.1 अरब डॉलर की भारी-भरकम राशि खर्च करने के बाद नासा के वैज्ञानिक इस बात से बेहद खुश हैं कि अब वह जुपिटर यानि वृहस्पति पर दस्तक देने में सफल हो गए हैं. नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (National Aeronautics and Space Administration) यानि 'नासा' (NASA) का गठन 1958 में किया गया था. आज तक अमेरिकी अंतरिक्ष अन्वेषण के सारे कार्यक्रम नासा द्वारा संचालित किए गए हैं, जिसमें अपोलो चन्द्रमा अभियान, स्कायलैब अंतरिक्ष स्टेशन और बाद में अंतरिक्ष शटल जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम शामिल हैं. न केवल अमेरिका को ही इस एजेंसी से लाभ हुआ है, बल्कि यह सम्पूर्ण विश्व के लिए कई मायनों में लाभकारी रही है तो अन्य देशों के लिए एक प्रेरणाश्रोत भी. जहाँ तक नासा के 'मिशन-जुपिटर' की बात है तो अब मानवरहित अंतरिक्षयान जूनो (Jupiter Mission NASA) ने बृहस्पति की कक्षा में घूमना शुरू कर दिया है.
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Jupiter Mission NASA, Hindi Article, Space Science |
सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह की उत्पत्ति का रहस्य सुलझाने के लिए शुरू किए गए इस मिशन की इससे बड़ी उपलब्धि भला और क्या होगी? इस यान ने रात 11 बजकर 53 मिनट पर (अंतरराष्ट्रीय समयानुसार सुबह तीन बजकर 53 मिनट पर) बृहस्पति की कक्षा में प्रवेश किया. ज्ञातव्य हो कि पांच साल पहले फ्लोरिडा के केप केनवेराल से प्रक्षेपित इस यान ने यहां पहुंचने से पहले 2.7 अरब किलोमीटर का सफर तय किया है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 'टीम नासा' का यह अब तक का सबसे कठिन अभियान रहा है. मेरे एक मित्र ने ज़िक्र किया कि 'वृहस्पति (Jupiter Mission NASA) पर पहुँचने से क्या लाभ'? तो उन जैसे मित्रों को यही कहना चाहूंगा कि वैज्ञानिक शोध करते रहते हैं, नयी खोजें, नए रास्ते निकालते रहते हैं. हाँ, उससे हानि होगा कि लाभ, यह बाकी लोगों पर भी निर्भर करता है. यदि किसी भी रिसर्च या शोध का मकसद मानव-जाति को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाए तो उससे लाभ होगा, अन्यथा इसके विपरीत भी कई उदाहरण भरे पड़े हैं. आज के समय में तो अंतरिक्ष भी युद्ध का मैदान बन चुका है. जाहिर है, अंतरिक्ष में प्रतियोगिता की लहार और भी तेज दौड़ेगी. हालाँकि, हमारे देश भारत ने अंतरिक्ष-प्रयोगों को हमेशा ही मानवता की भलाई के लिए प्रयोग में लाया है. अभी हाल ही में भारतीय एजेंसी 'इसरो' ने भी 20 सैटेलाइटों को एक साथ अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया था, जिसका मूल मकसद लोगों की मदद करना ही है. जाहिर तौर पर 'नासा' अभी विश्व भर में अग्रणी अंतरिक्ष एजेंसी है, जो नित-नए प्रयोगों द्वारा लोगों को अचंभित तो करती ही है, दूसरी अंतरिक्ष एजेंसियों को आगे बढ़ने की चुनौती भी पेश करती है. इसी कड़ी में जुपिटर पर पहुँचने की महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए नासा-वैज्ञानिकों को जितनी भी बधाई दी जाए, कम है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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