आज जम्मू और कश्मीर हिंसा में जल रहा है, वहां के स्थानीय लोग बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कर रहे हैं. हम सब जानते हैं कि जम्मू कश्मीर के लोगों की मानसिकता बदलने की खातिर, उन्हें अपना महसूस कराने के लिए भारत सरकार किसी भी राज्य से अधिक, इस पर अरबों-अरब रूपये खर्च करती है. देश का कोई भी हिस्सा, चाहे जिस कारण से असंतुष्ट होता हो, ऐसा लगता है 'शरीर' का कोई अंग ही कार्य न कर रहा हो. ऐसे में पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के साथ आये दिन होने वाला दुर्व्यवहार आखिर कब बंद होगा? यह बेहद शर्मनाक है कि आम लोग तो इनका जो मजाक उड़ाते हैं, सो उड़ाते ही हैं सरकारी अधिकारी तक इनको छेड़ने और अपमानित करने से बाज नहीं आते हैं. आये दिन पूर्वोत्तर राज्यों के लोगो को नस्लभेद (North East India, Racism) का शिकार होना पड़ता है, इस बात में दो राय नहीं! हालांकि, सरकार इनको नस्लभेद से बचाने के लिए बहुत कोशिश कर रही है, इसके बावजूद भी कहीं न कहीं ऐसा देखने और सुनने को मिल जाता है जो बहुत ही शर्मनाक होता है. 'चिंकी', 'नेपाली', 'बहादुर', 'चाइनीज' जैसे शब्दों से उन्हें अपमानित करके आखिर भारत की जनता और अधिकारी क्या सन्देश देना चाहते है? क्या उन्हें ज़रा भी अंदाजा होता है कि ऐसे वाक्यों से उनके मर्म को कितनी ठेस पहुँचती होगी?
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इसी क्रम में, दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर मणिपुरी महिला के साथ जो व्यवहार हुआ है, वह भारतीय-व्यवस्था को शर्मसार करने के लिए काफी है, तो हमारी खामियों को उजागर करती है. गौरतलब है कि 'मणिपुर की कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस ऐग्जेक्यूटिव मोनिका खानगेमबम, एक सम्मेलन में भाग लेने शोल जा रही थीं, जिसके दौरान दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर आव्रजन कार्यालय पहुंचीं तो, वहां तैनात एक अधिकारी ने उनका पासपोर्ट देखा और कहा- 'इंडियन तो नहीं लगती हो'! कितनी घटिया और वाहियात (North East India, Racism) बात है यह, अगर उस अधिकारी को उस लड़की पर शक था तो उसके पासपोर्ट की जांच-पड़ताल करता, न कि उसके मुंह पर उसकी राष्ट्रीय पर सवाल उठाता. चूंकि, मोनिका जैसी लडकियां ऐसी बातें कई बार सुनती रहती हैं, इसलिए कुछ बोली नहीं, लेकिन आव्रजन अधिकारी एक के बाद एक लगातार सवाल पूछते ही जा रहे थे. यहाँ तक कि महिला के फ्लाइट छूटने के निवेदन को अनसुना करते हुए उन्होंने बकवासबाजी भी खूब की, तो आस-पास खड़ा वहां का स्टाफ उस लड़की पर हँसता रहा! जाहिर सी बात है कि उन लोगों की यह हंसी उस महिला के साथ-साथ पूरे पूर्वोत्तर वासियों के खिलाफ नस्लभेदी मानसिकता ही तो थी. यह एक वाकया है, जो उस महिला ने खुद उजागर करने का साहस किया है, जिसके लिए उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए, अन्यथा रोज ही ऐसा कितने लोगों के साथ होता है और वह बिचारे खून का घूँट पीकर रह जाते हैं.
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इस बात के लिए उस लड़की की तारीफ़ होनी चाहिए कि उसने आवाज़ उठाने का साहस किया और इतना सब झेलने के बावजूद मोनिका ने शोल जाने के बाद इस पूरी घटना का विस्तार से फेसबुक पर पोस्ट कर दिया, जो कुछ ही घंटो में वायरल हो गया. इसके बाद सरकार हरकत में आयी और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने आरोप की जांच के आदेश दे दिए, तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस पर खेद जताया और माफ़ी मांगते हुए हुए ट्वीट किया कि "मोनिका खानगेमबम- 'इसके लिए मैं आपसे माफी मांगती हूं, आव्रजन मेरे तहत नहीं आता है, लेकिन मैं अपने वरिष्ठ सहयोगी श्री राजनाथ सिंह जी से हवाईअड्डे पर आव्रजन अधिकारियों से संवेदनशीलता (North East India, Racism) बरतने को कहने का आग्रह करूंगी." जाहिर है, सरकार तो इन मामलों पर पूरी सेंसिटिव नज़र आती है, किन्तु जरूरत जनता की मानसिकता बदलने की है, जिसमें सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं. इसके पहले भी पूर्वोत्तर के लोगों को 'चाइनीस' कहने पर सुप्रीमकोर्ट ने फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार यदि कोई पूर्वोत्तर के लोगों को 'चाइनीस' कह कर बुलाता है, तो उसको 5000 रूपये जुर्माने के तौर पर देने होंगे. जहाँ तक अधिकारियों की सुरक्षा-सम्बन्धी जांच का प्रश्न है तो यदि सच में आव्रजन कार्यालय के अधिकारी संवेदनशील हैं तो फिर कुछ महीने पहले एक नकली पासपोर्ट और टिकट लेकर एक चरमपंथी किस्म का व्यक्ति उसी हवाईअड्डा पर 10 दिनों तक रहा, तो उनको पता नहीं चला या फिर उस व्यक्ति के परिक्षण के समय साहब लोग किसी और काम में व्यस्त थे?
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हालाँकि, सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता, किन्तु क्या अधिकारी यह दावा कर सकते हैं कि कोई दिल्ली या मुंबई का युवक 'आतंकवादी' नहीं हो सकता है? इसलिए चेकिंग और सावधानी हर एक नागरिक के साथ जरूरी है, किन्तु इसके लिए नस्लभेदी टिपण्णी की आवश्यकता कतई नहीं है. सरकार को इन मामलों में बेहद सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए तो तमाम सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी (North East India, Racism) भी बनती है कि वह इन मामलों पर जागरूकता फैलाएं कि पूर्वोत्तर राज्यों, जिनमें अरुणाचल, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं, वह शुद्ध रूप से भारतीय हैं. वह किसी भी यूपी, दिल्ली, हरियाणा या अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा सम्मान के अधिकारी हैं, क्योंकि वह तमाम सीमाई-मुसीबतों के बावजूद भारतीय झंडे को लहराते हैं और तब कहते हैं 'जय हिन्द'! हमारी तरह उनकी देशभक्ति नहीं है कि 15 अगस्त और 26 जनवरी को भी टेलीविजन पर आ रही फिल्मों को देखकर अपनी 'राष्ट्रीयता' को सहलाएं. इसलिए उनकी इज्जत कीजिये, उनका सम्मान कीजिये, खुद से भी ज्यादा!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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