आह! रियो ओलंपिक में जिस एक खिलाड़ी से हमें पदक की आस सौ फीसदी थी, उसके हाथ से मात्र 0.1 पॉइंट के अंतर से पदक फिसल गया. जी हाँ, बीजिंग ओलंपिक में हमें गोल्ड मैडल दिलाकर भारतवर्ष का नाम पूरी दुनिया में रौशन करने वाले अभिनव ने इस बार भी पूरा प्रयास किया और उनके प्रयास की हद हम इस बात से ही समझ सकते हैं कि पूरे विश्व भर के खिलाड़ियों में इस भारतीय ने अपने जीवट से चौथा स्थान हासिल किया. खैर, जीतने वालों का नाम दुनिया याद रखती है और इसलिए इतिहास में जब कभी रियो ओलंपिक 2016 का नाम लिया जाएगा, तब उसमें अभिनव बिंद्रा (Abhinav Bindra Rio Olympics, Hindi Article) नहीं होंगे. बचपन में बच्चों को कई बार समय और प्रयास का महत्त्व समझाने के लिए शिक्षक कहा करते हैं कि 'समय और प्रयास' की कीमत उस ओलंपिक खिलाड़ी से पूछो जो सेकण्ड के सौंवे हिस्से से हार गया हो! कहीं न कहीं अभिनव बिंद्रा का पीछे रह जाना उसी सीख की पुष्टि करता है, जो हम सबके जीवन से जुड़ी है. हम में से कई व्यक्ति प्रयास करते हैं, कुछ रूककर सुस्ताते हैं, तो कुछ आलस्य करते हैं, किन्तु अभिनव बिंद्रा जैसे महान खिलाड़ी जो अपने खेल के लिए जिए और मरे हैं, उनसे भी बेहतर खेलने वाले, उनसे भी एकाग्रचित्त खिलाड़ी इस दुनिया में मौजूद दिखे और यही तो खेल की खूबसूरती है.
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अभिनव के 0.1 पॉइंट से पीछे रहने के कारण रियो में भारत की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा है, किन्तु इसमें इस खिलाड़ी को दोष देना पाप ही होगा. उसने तो अपनी ओर से कहीं कसर नहीं छोड़ी, किन्तु यह संयोग ही है कि उससे बेहतर खेलने वाले स्टेडियम में मौजूद थे. गौरतलब है कि अभिनव बिंद्रा 10 मीटर एयर राइफल इवेंट के फाइनल में तो पहुंचे, लेकिन पदक के लिए जगह नहीं बना पाए. शानदार खेल के बावजूद उन्हें चौथे स्थान से ही संतोष करना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ 10 मीटर एयर राइफल का गोल्ड मेडल इटली के निकोल कैम्प्रियानी के नाम रहा, जिन्होंने फाइनल में 206.1 का स्कोर बनाया. इस प्रतियोगिता में दूसरे नंबर पर रहे युक्रेन के सरही कुलिश, जिन्हें 204.6 प्वाइंट्स के साथ सिल्वर मेडल मिला तो ब्रांज मेडल रूस के वलादीमीर मासलेननकोव को मिला, जिन्होंने 184.2 का स्कोर बनाया. रियो ओलंपिक में भारत को पदक की सबसे ज्यादा उम्मीद निशानेबाजों से थी, लेकिन अभिनव को छोड़कर अधिकांश भारतीय शूटरों ने निराश ही किया, जिसमें लन्दन ओलंपिक में पदक जीतने वाले गगन नारंग भी शामिल थे.
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संयोगवश इसी दिन, भारतीय हॉकी टीम भी जर्मनी से मात्र 3 सेकण्ड के अंतर से हार गयी. जी हाँ, भारत को एक बड़ा झटका तब लगा जब हॉकी टीम जर्मनी के ख़िलाफ़ खेल के अाख़िरी मिनट में (Hockey match between India and Germany, Rio Olympics) गोल नहीं रोक पाई और उसे 2-1 से हार का सामना करना पड़ा. इस कड़ी में अगर हम बात करें तो, मैच का पहला गोल जर्मनी की ओर से खेल के 18वें मिनिट में निकलास वेल्लेन ने किया. इसके बाद भारतीय टीम ने जर्मनी पर जबावी हमले किए जिसका फायदा उसे 23वें मिनट में मिला, जब भारतीय टीम को मिले पैनल्टी कॉर्नर को रुपिंदर पाल सिंह ने गोल में बदलकर स्कोर 1-1 से बराबर कर दिया. इसके बाद जब ऐसा लग रहा था कि अंतिम क्वार्टर के अंतिम क्षणों में भारतीय टीम अपने गोल पोस्ट की रक्षा कर मैच को बराबरी पर समाप्त कराने में कामयाब हो जाएगी, पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ. ठीक 60वें और अंतिम मिनट के अंतिम 3 सेकंड्स में जर्मनी के क्रिस्टोफर रुहर ने गोल कर जर्मनी को 2-1 से जीत दिला दी.
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साफ़ तौर पर समझा जा सकता है कि यहाँ भारतीय टीम ने स्वामी विवेकानंद की उस उक्ति पर थोड़ा कम विचार किया जिसमें उस महापुरुष ने कहा था कि 'तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए'! इससे पहले भी भारत ने अपने पहले मुकाबले में आयरलैंड को 3-2 से बड़ी मुश्किल से हराया था. खैर, अभी हाकी टीम के पास मौका है और अब भारतीय टीम अर्जेंटीना से भिड़ेगी. अभिनव बिंद्रा और भारतीय हॉकी टीम के 8 अगस्त 2016 को हुए मैच में खिलाड़ियों के साथ-साथ विद्यार्थियों के लिए सीखने को काफी कुछ हो सकता है, क्योंकि जितने करीबी ये दोनों खेल इस खास दिन रहे हैं, वैसा कम ही होता है. इस ओलंपिक में न केवल इन दोनों टीम को बल्कि समस्त भारतवासियों को 0.1 पॉइंट और 3 सेकण्ड लंबे समय तक याद रहेंगे तो इसी ओलंपिक में खेलने वाले अन्य भारतीय खिलाड़ी भी इस करीबी हार से सबक सीखेंगे, इस बात की उम्मीद तो की ही जा सकती है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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