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दुनिया के सबसे ताकतवर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में जब अनुराग ठाकुर चयनित हुए, तब उन्होंने भारतीय क्रिकेट में सुधार को लेकर कई सारी प्रतिबद्धताएं व्यक्ति कीं, पर यह उनका दुर्भाग्य ही है कि इंडियन टीम के कोच-चयन को लेकर ही बड़ा विवाद खड़ा हो गया. हालाँकि, इसमें प्रथम दृष्टया गलती वरिष्ठ खिलाड़ी रवि शास्त्री की ही लगती है. हमारे देश में किसी भी प्रशासनिक पद पर बैठे व्यक्ति की एक खास तरह की मानसिकता विकसित हो जाती है कि अब सर्वेसर्वा वही है, कोई और नहीं आ सकता. रवि शास्त्री के रूप में भारतीय टीम को एक अनुभवी डायरेक्टर मिला, किन्तु उनके कार्यकाल पर बारीक नज़र रखने वाले यह आसानी से समझ जायेंगे कि उन्होंने विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी के बीच तनाव पैदा करने की भी अप्रत्यक्ष ढंग से कोशिश की. चूंकि, महेंद्र सिंह धोनी का कद और उपलब्धियां इतनी ज्यादा बड़ी हैं कि उसमें कई रवि शास्त्री समा जायेंगे. ऐसी ही इगो का प्रदर्शन रवि शास्त्री ने सौरव गांगुली के साथ (Ravi Shastri Sourav Ganguly) भी किया, जब उनको मुख्य कोच चुने जाने के बावजूद स्टार लेग स्पिनर अनिल कुंबले को चुन लिया गया. इसके बाद रवि शास्त्री का आग-बबूला होना और बिना किसी सबूत के गांगुली को दोषी बताना बेहद बचकाना और भारतीय क्रिकेट की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने जैसा ही था. बाद में गांगुली को भी इस मैटर में सफाई देनी पड़ी और इस गैर-जरूरी मुद्दे की अनावश्यक चर्चा हुई. बहुत संभव है कि रवि शास्त्री के खिलाफ कोई राजनीति हुई हो और तमाम छोटे-बड़े संगठनों में यह होता ही है, खुद शास्त्री ने कई बार राजनीति की होगी, किन्तु ऐसे मौकों पर धैर्य बरतने की आवश्यकता होती है, न कि आप खोने की!
Ravi Shastri Sourav Ganguly, controversy |
इस संदर्भ में अगर हम बात करें तो, भारतीय क्रिकेट टीम के लिए मुख्य कोच का पद काफी समय से खाली था, लेकिन बीसीसीआई के नए अध्यक्ष के आते ही कोच की तलाश शुरू हो गयी. बताया जा रहा है कि अनुराग ठाकुर की पहली पसंद टीम इंडिया के पूर्व खिलाडी राहुल द्रविड़ थे, लेकिन राहुल जूनियर टीम के कोच हैं, इसलिए चुनाव समिति को ही कोच चुनने की प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी. तमाम फॉर्मेलिटीज के बाद टीम इंडिया के पूर्व गेंदबाज अनिल कुंबले को कोच पद के लिए चुना गया. हालाँकि, कोच के लिए कुल 57 आवेदन आये थे, जिसमें खुद रवि शास्त्री, संदीप पाटिल ने भी आवेदन किया था. चुने गए आवेदकों का साक्षात्कार चुनाव समिति ने लिया और इस चुनाव समिति में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर, कलात्मक बल्लेबाज लक्ष्मण और सौरभ गांगुली (Ravi Shastri Sourav Ganguly) शामिल थे. ज्ञातव्य हो कि पिछले 18 महीने से टीम डायरेक्टर रहे रवि शास्त्री के कोच बनने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन अनिल कुंबले के इस दौड़ में शामिल होने के बाद क्रिकेट प्रेमियों का सारा ध्यान कुंबले की तरफ हो गया. यह कुछ हद तक सही भी था क्योंकि, शास्त्री ने 1992 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया था वही कुंबले ने 2008 में संन्यास लिया. जाहिर है, आधुनिक क्रिकेट की समझ अनिल कुंबले को रवि शास्त्री से ज्यादा है. इतना ही नहीं कुंबले ने शास्त्री से ज्यादा मैच भी खेले हैं, तो राजनीति से दूर रहकर खेल के प्रति उनका समर्पण और हौसला जबरदस्त था. बताते चलें कि 2002 में वेस्टइंडीज दौरे पर एंटीगुआ टेस्ट में जबड़ा टूटने के बाद भी पूरे चेहरे पर पट्टी बांधकर कुंबले मैदान पर उतरे थे और विपक्षी टीम के ब्रायन लारा का महत्वपूर्ण विकेट भी चटकाया. ऐसे में उनके साथी खिलाड़ी और चुनाव समिति के सदस्य सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण कुंबले के स्वभाव और निष्ठा को लेकर ज्यादा आश्वस्त थे, जिससे कुंबले शास्त्री को पछाड़ कर आगे निकल गए.
Ravi Shastri Sourav Ganguly, controversy, Anil Kumble |
अब बात है रवि शास्त्री की जो कोच नहीं बनाए जाने से ज्यादा दुखी होकर गांगुली पर निशाना साध बैठे! खुद रवि शास्त्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साक्षात्कार में उपस्थित हुए थे, क्योंकि वह बैंकॉक में छुटियाँ मना रहे थे और वहीं से उन्होंने इंटरव्यू दिया. गांगुली के इंटरव्यू प्रक्रिया में लघु अनुपस्थिति पर शास्त्री की प्रतिक्रिया बेवजह थी, वहीं प्राप्त जानकारी के अनुसार बीसीसीआइ की सहमति से ही सौरभ गांगुली जो बंगाल क्रिकेट बोर्ड (कैब) के अध्यक्ष भी हैं, शास्त्री के साक्षात्कार के समय अपनी बोर्ड मीटिंग में व्यस्त थे. रवि शास्त्री की झुंझलाहट तब और स्पष्ट हो गयी, जब उन्होंने टीम इंडिया के हेड कोच के पद के लिए अनिल कुंबले को खुद पर मिली तरजीह के बाद बौखला कर पहले तो क्रिकेट सलाहकार समिति के सदस्य और पूर्व कप्तान सौरव गांगुली पर हमला किया और अब इस्तीफे से यह स्पष्ट कर दिया है कि वो अनिल कुंबले की अध्यक्षता वाली इस कमेटी में काम नहीं करना चाहते. गौरतलब है कि रवि शास्त्री इस कमेटी से बतौर मीडिया प्रतिनिधि जुड़े हुए थे. इस कमेटी में बीसीसीआई के पूर्व प्रमुख और वर्तमान आईसीसी अध्यक्ष शशांक मनोहर और राहुल द्रविड़ भी शामिल हैं. द्रविड़ इस कमेटी में बतौर क्रिकेटर प्रतिनिधि शामिल हैं. जाहिर है, रवि शास्त्री की गतिविधियाँ यह बताने के लिए काफी हैं कि वह मानसिक रूप से उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे हैं और उन्हें थोड़े विश्राम की आवश्यकता है. यह भी बेहद दिलचस्प है कि बोर्ड में सदस्य होने के अलावा इन दोनों का व्यक्तिगत कोई लगाव नहीं है, तो इन दोनों ने कभी एक साथ मैच भी नहीं खेले हैं. हालाँकि, 1992 में दोनों का सेलेक्शन एक मैच के लिए हुआ था लेकिन सौरभ (Ravi Shastri Sourav Ganguly) उस मैच में नहीं खेले थे. फिर उसके बाद तो शास्त्री ने सन्यास ही ले लिया और सौरभ को चार साल बाद टीम में जगह मिली. देखा जाए तो यह पूरा मामला कुछ साल पहले का है, जब शास्त्री और गांगुली के बीच कोच बनने की रेस में जंग हुई थी जिसमें शास्त्री आगे हो गए थे. गांगुली के न उपस्थित होने पर शास्त्री ने कहा कि यह उम्मीदवार के साथ-साथ उस पद प्रतिष्ठा और जिम्मेदारी का अपमान है, किन्तु रवि शास्त्री जैसे सीनियर खिलाड़ी को यह समझना चाहिए कि उन्होंने जो किया वह पूरे भारतीय क्रिकेट का अपमान था. मतलब, एक तरह से उन्होंने यह आरोप लगा दाल कि भारतीय क्रिकेट में खूब आंतरिक राजनीति होती है.
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बंगाल टाइगर के नाम से मशहूर गांगुली (Ravi Shastri Sourav Ganguly) ने भी इसका जवाब दिया और कहा कि "यदि शास्त्री यह सोच रहे हैं कि मेरी वजह से वह कोच नहीं बने तो यह उनका ख्याली पुलाव ही है." जाहिर है, निजाम बदलते हैं तो उनके सहयोगियों को भी बदला जाता है और इसमें शास्त्री सहित किसी को भी बुरा नहीं मानना चाहिए. अनुराग ठाकुर को ऐसे मामलों में संजीदगी बरतनी चाहिए, जिससे बीसीआई की साख पर कोई सवाल न उठे. वैसे भी स्पॉट-फिक्सिंग, लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों को लागू करने के रूप में पहले ही बीसीसीआइ के पास कम मुसीबतें हैं, जो वह खिलाडियों की तू तू-मैं मैं सुलझाए! बेहतर होगा कि खिलाड़ी खेल पर और प्रशासक टीम पर ध्यान दें, क्योंकि अंततः यही एक चीज होगी, जिसे याद रखा जायेगा, बाकी पॉलिटिक्स कूड़े में जाएगी!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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