भारतीय जनता पार्टी में यूं तो एक से बढ़कर एक धुरंधर नेता आये हैं, जिन्होंने अध्यक्ष पद की कुर्सी पर अपनी तशरीफ़ रखी है, पर कहना पड़ेगा कि ...
कि अमित शाह जी इन सबमें 'ख़ास' हैं!
ख़ास ही क्यों, बल्कि उन्हें 'ख़ासमख़ास' कहना ज्यादा उचित होगा.
अमित शाह जी के तरकश में यूं तो कई तीर भरे हैं, जिन्हें वह अक्सर मारते ही रहते हैं किन्तु हाल के दिनों में उनके दो तीरों की ख़ास चर्चा है.
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पहला तीर उन्होंने गुजरात में मारा है, जहाँ अविश्वस्त सूत्रों के अनुसार कहा जा रहा है कि 'साहेब' और 'बेन' की पसंद के बावजूद अमित शाह ने गुजरात फतह की गारंटी लेकर नितिन पटेल को पीछे छोड़ा और विजय रूपाणी को कमान दिलाई. कई खबरियों ने तो यह भेद खोल दिया कि आनंदीबेन और अमित शाह के बीच बैठकों में तू-तू, मैं-मैं भी हुई. पर मूल बात यह है कि अमित शाह का तीर यहाँ निशाने पर लगा और तीर निशाने पर लगते ही अमित भाई, गुजरात छोड़कर यूपी जा पहुंचे!
खैर, गुजरात की समस्या सुलझाने के बाद अमित शाह के निशाने पर यूपी का एक बड़ा कैच पकड़ना था और उन्होंने बीएसपी से अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य को बीजेपी में शामिल कराकर यह कैच सफलतापूर्वक पकड़ लिया. यूपी में चार बार विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्या (Amit Shah, BJP President, Hindi Satire, Article, Swami Prasad Maurya, BSP) हालिया दिनों में काफी चर्चित रहे, जब उन्होंने बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगाया. यूपी में भी अविश्वस्त सूत्र बताते हैं कि 'शाह' हर हाल में यूपी का जातीय गणित दुरुस्त करने में लगे हुए हैं, जहाँ अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में 8% मौर्य और कुशवाहा वोटों पर उनका यह तीर निशाने पर लग सकता है. यूपी राजनीति को समझने का अमित शाह दावा और दांव तो खूब चल रहे हैं, हालाँकि यूपी के कई नेता उनकी गुजराती स्टाइल को समझ नहीं पा रहे हैं. खबर तो यह भी है कि बीजेपी के यूपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने भी स्वामी प्रसाद मौर्य के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ी थी, किन्तु...
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किन्तु ख़ासमख़ास अमित शाह के आगे भला किसकी क्या मजाल!
वैसे, कुछ ऐसा ही प्रयोग उन्होंने बिहार में 'मांझी' नामक कैच पकड़ कर किया था, पर ...
तौबा-तौबा बिहार की याद कहाँ आ गयी, क्योंकि इस प्रदेश ने तो बिचार अमित शाह की 'हैट्रिक' ख़राब कर दी थी, अन्यथा हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद!
खैर, बिहार की कड़वी यादों को वह पीछे छोड़ चुके हैं और यूपी इलेक्शन में अपने 'ख़ास तीरों' से वह जीत की ओर कदम बढ़ाने में लग गए हैं.
इतना ही नहीं, यूपी में सपा-बसपा के बाद कांग्रेस ने शीला दीक्षित को सीएम कैंडिडेट घोषित करके भाजपा पर दबाव बढ़ा दिया है और यहाँ तो 'एक अनार, सौ बीमार' हैं.
हालाँकि, अमित शाह के पास 'ख़ास ट्रिक्स' हैं और 'ख़ासमख़ास आशीर्वाद' भी, तो वह इसका भी कोई न कोई हल निकाल ही लेंगे.
और अगर नहीं भी निकला तो क्या हुआ, भाजपा नेताओं की नाराजगी से हारी भी तो क्या हुआ, अमित शाह का भला क्या बिगड़ने वाला है!
बिहार में हार के बाद भाजपा के कुछ नेता हो हल्ला तो कर रहे थे, पर नतीजा 'ढाक के तीन पात' ही रहा न और अब तक 'ख़ासमख़ास आशीर्वाद' है, तब तक अमित शाह ...
जी हाँ, सही पकडे हैं !!!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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