विश्व साक्षरता दिवस पूरे विश्व में आठ सितम्बर को मनाया जाता है तो इससे सम्बंधित एक प्रसंग भी याद आ रहा है. इसके अनुसार, जब एक बार स्कूल में शिक्षक ने पूछा कि यदि आपके घर में 2 बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की और संयोगवश आप किसी एक को ही शिक्षित करने में सक्षम हैं तो आप किसको पढ़ाएंगे, और क्यों? टीचर के यह पूछने पर कई बच्चों ने जबाब दिया कि लड़के को पढ़ाएंगे, क्योंकि घर खर्चे की जिम्मेदारी तो लड़के को ही उठानी है, लड़की तो शादी करके दूसरे के घर चली जाएगी. बाद में शिक्षक ने मुस्कुराते हुए समझाया कि "यदि आप लड़के को पढ़ना चाहते हैं, तो उसको पढ़ाने से सिर्फ लड़का ही शिक्षित हो सकता है, वह घर की जिम्मेदारी भी सम्भाल सकता है, लेकिन किसी दूसरे को शिक्षित करने का समय उसे नहीं मिल सकेगा, वहीं अगर आप लड़की को शिक्षित करते हैं तो वह घर की सारी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए भी अपने बच्चे को पढ़ा सकती है, जिससे एक पूरा परिवार शिक्षित हो सकता है. यदि हम आज के माहौल की बात करें तो व्यक्ति को रहने के लिए घर और खाने के लिए भोजन की जरूरत से दुनिया आगे बढ़ चुकी है और अब इस समाज में 'इज्जत और सम्मान' से रहने के लिए शिक्षा बेहद जरुरी है.
World Literacy Day, Education in India, Hindi Article New, 8 September |
शिक्षा का अभिप्राय सिर्फ पढ़ा-लिखा व्यक्ति होने से ही नहीं है, बल्कि शिक्षा का मतलब समाज में अपना मान-सम्मान बनाए रखने के साथ-साथ समाज और अपने लिए विकास कार्य में लगे रहना भी है. साफ़ है कि एक अच्छा जीवन जीने के लिए एक अच्छे समाज का होना जरुरी है और अच्छे समाज के लिए लोगों का शिक्षित होना एक जरूरी शर्त बन चुका है. इस बात को भला कौन नहीं जानता है कि अशिक्षा किसी भी समाज या देश के विकास में सबसे बड़ी रुकावट है. इसी अशिक्षा की वजह से गरीब आगे बढ़ने के अवसर को पहचाने बिना ही जाने देते हैं और अंत में गरीबी की दलदल में धंसते चले जाते हैं. यदि भारत की बात करें तो पुरुषों की तुलना में महिलाएं कम शिक्षित हैं. आज भी भारत की 60 फीसदी से अधिक आबादी गाँवों में ही रहती है, और वहां शिक्षा की कमी से 'अंधविश्वास और गरीबी' की ढूंढ छंटी नहीं है. शिक्षा के अभाव में लोगबाग आज भी शोषित हो रहे हैं. हालांकि, इसके लिए सरकार द्वारा साक्षरता मिशन चलाया गया और लोगों में थोड़ी जागरूकता भी जरूर आई, जिसने धर्म और जाति के अंतर को थोड़ा बहुत कम भी किया है, किन्तु अभी लम्बा सफर तय करना बाकी है.
World Literacy Day, Education in India |
अगर आज़ादी के बाद से हम अपने देश में साक्षरता-आंकड़ों को देखते हैं तो 1950 में शिक्षा की दर 18 फ़ीसदी थी जो 1991 में 52 फ़ीसदी और वर्ष 2001 में 65 फ़ीसदी, तो 2011 के आंकड़ों के अनुसार शिक्षा दर 75.06 प्रतिशत चुकी है. पर यह दुखद है कि आज भी केरल जैसे कुछ राज्यों को छोड़कर देश के अन्य राज्यों की हालत औसत ही है, जबकि कुछ राज्य तो शिक्षा की दृष्टि से दयनीय हालत में हैं, जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्य! हालाँकि, सरकारों द्वारा 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था के साथ 'मिड डे मील' जैसी कई योजनाएं चलाई गयीं, किन्तु इनमें से कोई भी योजना सबको शिक्षित करने में सफल साबित नहीं हो सकी! इसके लिए कई कारण हैं, जिसमें सरकार और प्रशासन की उदासीनता, सरकारी स्कूलों की बदतर हालत, शिक्षकों की कम काबिलियत प्रमुख है तो लोगबाग भी जागरूक नहीं हैं. कुछ धार्मिक और सामाजिक समुदाय तो जानबूझकर अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं, बल्कि शिक्षा के नाम पर वह दो-चार धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान देकर अपनी इतिश्री कर लेते हैं. जाहिर है, ऐसे में बच्चा समाज से तालमेल नहीं बिठा पाता है और आसानी से असमाजिक तत्वों के हाथों खेलने लगता है. यदि सरकारी स्कूलों को छोड़ भी दें, तो जितने भी प्राइवेट विद्यालय हैं, उनकी फीस भरना सबके बस की बात नहीं है.
World Literacy Day, Education in India, Hindi Article New, 8 September |
ऐसे में उच्च-वर्ग और उच्च-मध्यम वर्ग अपने बच्चों को स्कूल भेज भी देते हैं तो गरीब वर्ग के लोग सरकारी स्कूलों को छोड़ कर किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं. आज शिक्षा को लोग शिक्षित करने के लिए नहीं पैसा कमाने का जरिया समझ चुके हैं और ऐसे में स्थिति और दुरूह होती चली जा रही है. ऐसे में केंद्र सरकार के द्वारा शिक्षा को बढ़ाने के लिए कई अभियान चलाना व्यर्थ ही प्रतीत होता है, जिसमें सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गांधी साक्षरता मिशन आदि शामिल हैं. हालाँकि, मिड डे मील योजना से कई बच्चे स्कूल का मुंह देखने में जरूर सफल हुए हैं, जो इसके बिना शायद स्कूल जाते ही नहीं! इस योजना की सर्वप्रथम शुरूआत 1982 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी.रामचंद्रन ने की थी, जिसके अंतर्गत 15 साल से कम उम्र के स्कूली बच्चों को प्रति दिन निःशुल्क भोजन दिया जाने की व्यवस्था की गयी थी. ऐसे में 'विश्व साक्षरता दिवस' हम सबको सोचने पर विवश करता है कि हम क्यों 100% शिक्षित नहीं हैं?
World Literacy Day, Education in India, Hindi Article New, 8 September |
यदि नहीं हैं तो ऐसा क्या किया जाना चाहिए जिससे यह लक्ष्य हासिल हो सके! हालाँकि, सिर्फ साक्षरता से ही बात नहीं बनने वाली क्योंकि पूरे विश्व भर में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालय तो हमारे यहाँ हैं ही, जिससे प्रत्येक साल 50 लाख छात्र स्नातक की डिग्री लेते हैं. बिडम्बना तो यह है कि डिग्री लेने के बाद उसका कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि वो बेरोज़गार हो जाते हैं. जाहिर है, इसके लिए देश की सरकार को समझना होगा कि सिर्फ साक्षर बनाने के बाद ही जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती, बल्कि लोगों को योग्य बनाने के लिए 'स्किल्ड' बनाया जाना उतना ही आवश्यक है, जिसके लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए. खैर, पहले साक्षरता में तो हमारा देश वैश्विक आंकड़ों की बराबरी कर ले, क्योंकि यूनेस्को द्वारा जारी 2013 के आंकड़े के अनुसार पूरे विश्व में जहाँ 87% महिलाएं साक्षर हैं, वहीं 92% पुरुष साक्षर हैं. साफ़ है कि अभी हमारे लिए मंज़िल दूर है और इसके लिए किये जा रहे प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत भी उतनी ही है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
यदि लेख पसंद आया तो 'Follow & Like' please...
ऑनलाइन खरीददारी से पहले किसी भी सामान की 'तुलना' जरूर करें
(Type & Search any product) ...
(Type & Search any product) ...
World Literacy Day, Education in India, Hindi Article New, 8 September, education, International days, social, family, development, shiksha, international literacy day, literacy in india, literacy in world, literacy is must for all, Women literacy , Men literacy , Women empowerment, literacy rate , literacy rate in india, literacy rate in world, mid day mil, Rajeev gandhi Saksharta Abhiyan , mature education, elderly education , Rising Literacy, Bihar, Uttar pradesh,
World Literacy Day, Education in India, Hindi Article New, 8 September |
मिथिलेश के अन्य लेखों को यहाँ 'सर्च' करें...
( More than 1000 Hindi Articles !!) |
0 टिप्पणियाँ