बड़ा सीधा किन्तु गहरे तक चुभने वाला कमेंट है सुप्रीम कोर्ट का, जिसमें उसने कहा है कि "अगर बीसीसीआई ख़ुद को क़ानून से ऊपर समझता है तो वो ग़लत है". विश्व की सबसे धनी खेल संस्थाओं में से एक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के ऊपर लगा यह आरोप बेहद तीक्ष्ण, मगर काफी हद तक सत्य के करीब भी है. वस्तुतः धन और धनाढ्य वर्ग की मानसिकता अपने आप में विचित्र होती है, जो कानून को (और नैतिकता को भी) काफी हद तक खिलौना समझने की गलती कर बैठती है और जब उस पर 'हथौड़ा' चलता है, जो फिर वह छटपटाने के सिवा कुछ नहीं कर पाती है. बीसीसीआई से इतर अन्य धनिकों में जिन दो बड़े नामों का पाला कानून से हाल-फिलहाल पड़ा है, उनमें सहारा ग्रुप के सुब्रत रॉय सहारा एवं किंगफ़िशर के विजय माल्या (Justice Lodha Committee and BCCI Mindset, Hindi Article, New, Anurag Thakur, Cricket Articles, Court is Supreme, Subrat Roy Sahara, Vijay Mallya) रहे हैं. बीसीसीआई को इन दोनों का हश्र देख लेना चाहिए, जिनमें एक लगातार जेल आ जा रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट की फटकार खा रहे हैं तो दूसरा बंदा भारत छोड़कर भाग चुका है और डर डर कर ज़िन्दगी बिताने को मजबूर है. कई बार धनाढ्य व्यक्तियों या संस्थाओं के कानून और नैतिकता उल्लंघन को लेकर प्रतीत होता है कि इनके अधिकांश हित कानून-उल्लंघन के रास्ते ही तो नहीं चलते हैं? यह बात अपनी जगह है कि बीसीसीआई एक ऑटोनॉमस संस्था है, किन्तु उसे यह बात कदापि नहीं भूलना चाहिए कि आखिरकार वह 'भारत' का नाम इस्तेमाल करता है और इस आधार पर भारतीय कानून का प्रत्येक हिस्सा उस पर यथावत लागू होता है. ऐसे में अगर लोढ़ा समिति का आरोप है कि बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश नहीं माने हैं, तो यह बेहद गंभीर आरोप हैं और इसलिए अगर यही रवैया जारी रहता है तो अनुराग ठाकुर समेत अन्य पदाधिकारियों को निश्चित रूप से पद से हटा देना चाहिए.
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गौरतलब है कि समिति ने बीसीसीआई के कामकाज पर जो रिपोर्ट दी थी, उसे लागू करने के लिए छह माह का समय दिया गया था, लेकिन क्रिकेट बोर्ड अपने कार्यक्रमों और कामकाज पर उसी तरह क़ायम है जैसे वह पहले रहता था. इसी सन्दर्भ में, सु्प्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट बीसीसीआई को अपने हुक्म को न मानने की छूट नहीं देगा और अगर वो सही रास्ते पर नहीं आते हैं तो अदालत कार्रवाई करेगी. आगे कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि बीसीसीआई यदि सुप्रीम कोर्ट का हुक्म मानने से मना कर रहा है तो इसका मतलब है कि संगठन के बारे में जिस तरह के आरोप लग रहे हैं वो सही हैं. समझना दिलचस्प है कि एक ओर तो बीसीसीआई का पूरे विश्व में डंक बज रहा है, किन्तु दूसरी ओर इस पर भ्रष्टाचार, अपारदर्शिता (Justice Lodha Committee and BCCI Mindset, Hindi Article, New, Anurag Thakur, Cricket Articles, Court is Supreme, Transparency needed) और जेंटलमैन गेम क्रिकेट को 'अभद्र' बनाने के आरोप भी लगते रहे हैं. यह भी आरोप बेहद संगीन है बीसीसीआई पर कि कुछ लोग इस खेल संस्था के माध्यम से क्रिकेट पर नियंत्रण बनाये हुए हैं और बजाय कि इससे पूरे देश को लाभ हो, सिर्फ कुछ लोग ही क्रिकेट की कमाई का लाभ उठा रहे हैं. कई लोग लोढा समिति की सिफारिशों के प्रावधान को अव्यवहारिक होने की बात भी दबी जुबान से कह रहे हैं, किन्तु समझना मुश्किल नहीं है कि उनके इस प्रकार के बयानों के पीछे सिर्फ और सिर्फ निहित स्वार्थ ही है. जहाँ तक बात लोढ़ा समिति की सिफारिशों की है, तो इसका उद्देश्य और प्रावधान पानी की तरह साफ़ है और इसे बनाने से पहले जस्टिस लोढा ने काफी होमवर्क भी किया है. सुप्रीम कोर्ट में जब 159 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपने के बाद पत्रकारों को जस्टिस लोढ़ा ने संबोधित किया था, तो साफ़ तौर पर अपने रिपोर्ट की व्यापकता के सन्दर्भ में उन्होंने कहा था कि समिति ने बोर्ड अधिकारियों, क्रिकेटरों और अन्य हितधारकों के साथ 38 बैठकें की और उस आधार पर रिपोर्ट तैयार की है.
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सुप्रीम कोर्ट ने इस रिपोर्ट को लागू करने का आदेश जारी किया, किन्तु भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के कानों पर जू तक नहीं रेंग रही है. तब जस्टिस लोढ़ा ने सिफारिशों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए यह भी कहा था कि बीसीसीआई के ढांचे और संविधान को लेकर और व्यापक होने की आवश्यकता है. गौरतलब है कि वर्तमान में बीसीसीआई के 30 पूर्णकालिक सदस्य हैं और इनमें से कुछ सदस्यों जैसे सेना, रेलवे आदि का कोई क्षेत्र नहीं है. इनमें से कुछ टूर्नामेंट में नहीं खेलते तो कुछ राज्यों में कई सदस्य हैं जैसे कि महाराष्ट्र में 3 और गुजरात में 3. जाहिर है इन तमाम विसंगतियों को दूर करने की अपनी तरफ से जस्टिस लोढ़ा ने भरपूर कोशिश की पर ये 'क्रिकेट-प्रशासन' क्रिकेट से भी ऊँची चीज बन गयी है. सोसायटी या एनजीओ रजिस्ट्रेशन (Justice Lodha Committee and BCCI Mindset, Hindi Article, New, Anurag Thakur, Cricket Articles, Court is Supreme, Indian Law) में जिस तरह अपने लोगों को भरकर संस्था पर कब्ज़ा जमाये रखा जाता है, कमोबेश उसी तरह का रवैया बीसीसीआई द्वारा अख्तियार किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है. इस बात में कोई शक नहीं है कि क्रिकेट में भ्रष्टाचार पर 'हथौड़ा' चलना ही चाहिए. इससे भी बड़ी बात यह कि राजनेताओं को क्रिकेट-प्रशासन में प्रवेश से रोकने की बात भी महत्वपूर्ण है. इसके साथ-साथ क्रिकेट में सट्टेबाज़ी को वैध करना एवं सरकारी अफ़सरों और मंत्रियों को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से बाहर रखने की बात करना क्रिकेट प्रशासकों को भला कहाँ पसंद आने वाला था. किन्तु बीसीसीआई को ध्यान रखना चाहिए कि कोर्ट वह चीज है कि बड़े से बड़े धुरंधरों की नकेल कस देती है और इससे पहले की मामला बिगड़े, बीसीसीआई को बीच का रास्ता नहीं, बल्कि लोढा कमिटी की सिफारिशों को लागू करने की पहल 'युद्ध-स्तर' पर शुरू कर देनी चाहिए. अन्यथा ... "भारतीय कानून एवं न्याय-व्यवस्था" के लंबे हाथ उसकी गर्दन तक जल्द ही पहुँच जायेंगे!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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