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अनुराग ठाकुर, क्रिकेट की दुनिया के नए बादशाह! Anurag Thakur, new BCCI Chief, Hindi Article, Planning and Execution, Mithilesh

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जी हाँ, अब यह नाम न केवल भारत में बल्कि क्रिकेट खेले जाने वाले सभी देशों में बड़ी दिलचस्पी से लिए जायेगा! अनुराग ठाकुर वैसे पहले तो मुख्य द्वारा की राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेते रहे और उन्हें भाजयुमो के चीफ बनने से लेकर भारतीय जनता में पैठ भी बनाई. एक तरह से उन्हें भाजपा के मुख्य नेताओं में शुमार किया ही जाना था कि 2014 का लोकसभा चुनाव आया. इस चुनाव में और उसके बाद भी कहीं न कहीं यह महसूस किया गया कि प्रधानमंत्री मोदी की टीम ने अनुराग ठाकुर को कुछ ख़ास महत्त्व नहीं दिया. शुरू में वह कुछ निराश से भी दिखे, लेकिन जब केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली के डीडीसीए घोटाले में ताकतवर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली को निशाने पर लेना शुरू किया, तब भाजपा के मुख्य नेताओं ने क्रिकेट प्रशासन से थोड़ी दूरी बनानी शुरू कर दी. बस इस मौके को शानदार तरीके से अनुराग ने लपका और किस्मत ने उनका बढ़िया साथ भी दिया, क्योंकि जगमोहन डालमिया की असमय मृत्यु ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के समीकरणों में कई उलटफेर की. शशांक मनोहर को जरूर कुछ दिनों के लिए बीसीसीआई चीफ बनाया गया, लेकिन वह अपेक्षाकृत कम राजनीतिज्ञ रहे हैं और जब उन्हें अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउन्सिल का चेयरमैन बनाया गया तो फिर अनुराग ठाकुर ने क्रिकेट की गद्दी सम्भाल ली. यह मानने में हमें कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि जिस क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के शीर्ष पद के लिए शरद पवार, जगमोहन डालमिया, श्रीनिवासन जैसे धुरंधरों ने अपना जीवन लगाया, उस पर अनुराग ठाकुर के इतनी आसानी से काबिज़ होने से कइयों को ईर्ष्या भी हो रही होगी. पर बबुआ, किस्मत यही तो है और अनुराग ठाकुर अब दुनिया के सबसे ताकतवर और अमीर क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई के नए अध्यक्ष हैं. 
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हालाँकि, क्रिकेट में पारदर्शिता, लोढ़ा कमिटी की सिफारिशें और ऊपर से नरेंद्र मोदी सरकार की लॉबी से वह किस प्रकार तालमेल बिठाते हैं, यह जरूर देखने वाली बात होगी. वैसे, इन मामलों को सुलझाने के लिए वह विनम्र और सुलझे हुए व्यक्ति प्रतीत होते हैं, इस बाबत किसी को शक नहीं है. 41 वर्षीय अनुराग ठाकुर बीसीसीआई में सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने हैं. जाहिर है, इस पदभार के बाद अनुराग ठाकुर अपने आप को सम्मानित महसूस कर रहे होंगे. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि बाकी खेलों की अपेक्षा क्रिकेट की लोकप्रियता बेहद ज्यादा है और नेता को लोक की प्रियता ही तो चाहिए! हालही में एप्पल के सीईओ टीम कूक भारत आय थे, जो कानपूर में आईपीएल का मैच देखकर दंग रह गए. इस बाबत कूक की प्रतिक्रिया थी कि "इतनी गर्मी में भी लोगों में क्रिकेट मैच के लिए इतना उत्साह उन्होंने पहले कभी नहीं देखा है." जाहिर है यह लोकप्रियता अनुराग ठाकुर के खाते में दर्ज होती जाएगी और भविष्य में उन्हें भारत भर में अपने समर्थक खड़े करने में दिक्कत नहीं आएगी, अगर उन्होंने जरूरी समीकरणों से तालमेल बिठाते हुए क्रिकेट के कल्याण के लिए कार्य करना जारी रखा तो! इस क्रम में जो चुनौतियां है, उसके अनुसार टीम इंडिया को एक दिवसीय,टेस्ट मैच और 20-20 मैच में नंबर एक पर लाने के साथ-साथ महिला क्रिकेट को भी बढ़ावा देने का लम्बा कार्य शेष है. इसी क्रम में, महिलाओं की मैच फीस में वृद्धि के साथ पुरुष टीम की तरह अनुबंध प्रणाली हालिया दिनों की उपलब्धि कही जा सकती है. हालाँकि, महिला खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने में क्षेत्रीय संतुलन के साथ-साथ उन्हें हर तरह से शोषण मुक्त माहौल उपलब्ध कराना भी नए क्रिकेट चीफ की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. 
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आगे की चुनौतियों के बारे में अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur, new BCCI Chief) कहते रहे हैं कि जस्टिस लोढा समिति की सिफारिशें बीसीसीआई की पारदर्शिता में मददगार हैं, लेकिन इसको व्यावहारिक रूप से लागू करने में तमाम दिक्कतें हैं और उन्हें सुलझाना ही अनुराग ठाकुर की काबिलियत को साबित करेगा. कोर्ट का हथौड़ा किस प्रकार ताकतवर क्रिकेट प्रशासक एन. श्रीनिवासन पर चला था, उसे अनुराग ठाकुर सहित कोई भी क्रिकेट प्रशासक शायद ही भूला हो और इसलिए इन मामलों में त्वरित राह निकाला जाना आवश्यक है. बीसीसीआई की स्पेशल जनरल मीटिंग द्वारा चुने गए अध्यक्ष अनुराग ठाकुर वर्ष 2017 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहेंगे, तो उनका कामकाज और सक्षमता यह भी साबित करेगी कि आगे उनकी धमक किस तरह रहेगी! हालाँकि, नए अध्यक्ष महोदय ने क्रिकेट के प्रचार-प्रसार के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट का रास्ता अपनाया हैं, तो इसके लिए उन्होंने राज्य के संघों को सोशल साइट पर अपना अकाउंट बनाने का आदेश भी दिया हैं. पारदर्शिता की राह में, अनुराग ठाकुर की गाइडेंस में टीम इंडिया के नए कोच के लिए एप्लीकेशन भी ऑनलाइन ही भरा गया हैं. इसके साथ अनुराग ठाकुर ने अपनी योजनाओं के बार में कहते हैं कि मैच के लिए स्टेडियम का कम से कम 10% टिकट छात्रों, लड़कियों और दिव्यांगों के लिए आरक्षित होगा. जाहिर है, ऐसे कई कार्य हैं, जिन पर ध्यान देने  की आवश्यकता है. देश के कई ऐसे मैदान हैं जहां उनके शीट का अंकन नहीं हुआ है, जो स्टेडियम के अंदर की सबसे बड़ी परेशानी बताई जाती है. इस परेशानी को सुलझाने के लिए सीट की नम्बरिंग की बात भी कही जा रही है, तो पर्यावरण और ऊर्जा संरक्षण का ध्यान रखते हुए, मैदानों में सोलर पैनल, रेन वॉटर हारवेस्टिंग और ट्रीटेड सीवेज वॉटर का इस्तेमाल किया जाएगा. पर यह सब कैसे होगा और इसके लिए क्या-क्या करना पड़ेगा इस पर अभी मंथन चलेगा और उसके बाद कहीं क्रियान्वयन संभव होगा. 
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हालाँकि, अनुराग ठाकुर की पार्टी की ही केंद्र में सरकार है और उन्हें निर्णय लेने की पूरी ताकत भी है, इसलिए वह अगर सचमुच क्रिकेटीय सुविधाओं, संतुलन और सबसे बढ़कर इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का प्रयत्न करें तो उनके लिए यह मुश्किल न होगा! वैसे भी राजनीति उनके खून में है, तो इनका राजनीतिक सफर 2009 के उपचुनाव में ही शुरू हो गया था. 24 अक्टूबर 1974 को हिमाचल के हमीरपुर में पैदा हुए अनुराग ठाकुर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं, जो अपनी पिता की बदौलत हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष रहे हैं, तो अखिल भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 
यह भी एक बिडम्बना ही है कि खेल में राजनेताओं के घुसने पर रोक लगाने की बात कही जाती रही है और खुद अनुराग ठाकुर भी अपनी पार्टी के रूख का सपोर्ट करते हुए कहते हैं कि राजनीतिक पार्टी और राजनेता का बीसीसीआइ या अन्य खेलों में हस्तक्षेप ठीक नहीं है. अब यह तो 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली बात है. खैर, जो है सो है और अब देखना यह है कि दुनिया के सबसे ताकतवर बोर्ड में लोढ़ा समिति की सिफारिशों को किस तरह लागू किया जाता है या फिर टालमटोल जैसा रवैया ही अख्तियार किया जाता है. इसके साथ-साथ बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे में लाने पर भी कई बार चर्चा होती है, मगर समस्या इसकी रूह में ही लगती है, क्योंकि जो भी इसमें आता है वह इसी की भाषा बोलने लगता है. अनुराग ठाकुर से निश्चित रूप से ट्रांसपेरेंसी और क्रिकेट में फिक्सिंग इत्यादि को रोकने सम्बन्धी काफी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं और यह युवा नेता उन उम्मीदों पर खरा उतर सकता है, इस बात में किसी को क्या शक हो सकता है भला!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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