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दिवाली जैसे त्यौहार की नकारात्मक धारणाओं से नुकसान ही नुकसान! Diwali festival 2016, Dhanteras Shopping, Crackers, Gambling, Negative Impression of Great Festival, Hindi Article, New, Avoid Losses, Being Good



हमारे देश में दीपावली का त्यौहार पूरे पैकेज के रूप में सामने आता है. धनतेरस, दीपावली, भैया-दूज और छठ-पर्व के साथ लगभग पूरा महीना उत्सव के रूप में ही निकल जाता है. इस त्यौहार के पौराणिक महत्त्व, सामाजिक अहमियत से हम भली-भांति परिचित होते हैं, किन्तु दुख की बात यह है कि कई बार हम त्यौहारों का नकारात्मक चित्रण अपने दिमाग में कर लेते हैं और न केवल दिमाग में उस का चित्रण ही करते हैं, वरन अपने जीवन में उसे ढालकर अपने और दुसरे के नुक्सान में प्रमुख भागीदार बन जाते हैं. दीपावली के समय जो त्यौहार आते हैं उसकी नकारात्मक व्याख्या एवं गलत चलन किस प्रकार हमारे लिए नुकसानदायक होती है यह समझना हम सब के लिए बेहद आवश्यक है. इस त्यौहारी सीजन की बात करें तो, धनतेरस सबसे पहले आता है. इस समय लोग नई वस्तुओं की खूब खरीदारी करते हैं, बाजार भरे हुए नजर आते हैं, तमाम तरह के गिफ्ट आइटम्स लिए जाते हैं, कई ऑनलाइन वेबसाइट पोर्टल पर भी तमाम तरह के ऑफर आते हैं और कुल मिलाकर लोगों को खरीदारी के लिए जबरदस्त ढंग से प्रोत्साहित किया जाता है. ठीक है, खरीदारी करनी चाहिए लेकिन क्या आप को भनक भी है कि त्यौहारों की इसी मानसिकता का फायदा उठा कर तमाम धूर्त लोग, तमाम छली-कपटी व्यापारी लोग सामानों में न केवल मिलावट करते हैं बल्कि लोगों के स्वास्थ्य और अर्थ-संतुलन को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं. हम सब ने सुना ही होगा खाने पीने की वस्तुओं में मिलावट, मेवा में मिलावट, लेकिन ठीक धनतेरस के पहले देश के बड़े चैनल एबीपी न्यूज़ ने कई दिन लगकर खुलासा किया कि बाजार में नकली चांदी के सिक्के बिक रहे हैं. आपको ज्वेलर शुद्ध चांदी के नाम पर नकली माल चिपका रहे हैं. हालाँकि, कीमत तो असली की वसूली जा रही है, लेकिन बदले में आपको 50 फीसदी से भी ज्यादा नकली वाला चांदी का सिक्का दिया जा रहा है. इस समाचार चैनल ने दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद से सिक्के खरीदकर टेस्टिंग कराई तो आप यकीन नहीं करेंगे कि 5 में से 4 सिक्के नकली मिले. Diwali festival 2016, Dhanteras Shopping, Crackers, Gambling, Negative Impression of Great Festival, Hindi Article, New, Avoid Losses, Being Good


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जाहिर तौर पर जब हमें कुछ न कुछ खरीदना ही होता है, जल्दबाजी होती है, दुकानों में भीड़ होती है तो इसका गलत फायदा उठाने वाले भी हजारों लोग मौजूद होते हैं. तो ऐसे में सलाह यही है कि खरीदारी करते समय आप बेहद अलर्ट रहें, सावधान रहें और अगर आपको कीमती सामान खरीदने ही हैं तो धनतेरस के मौके पर न खरीदें बल्कि उसके बाद आप पूरी तरह से जांच पड़ताल करके खरीद सकते हैं. हालाँकि, इस मौके पर कई कंपनियां बेहतर ऑफर देती हैं, कूपन देती हैं किन्तु अगर बिना जांच-पड़ताल के आप कुछ खरीदने जाते हैं तो यह मानकर चलें कि आपको नकली सामान भी मिल सकता हैं. इसके अतिरिक्त दिवाली पर महंगे गिफ्ट्स, जिनमें कई बार महँगी शराब तक शामिल होती है, उनका लेन-देन निस्संदेह रूप से गलत परंपरा को जन्म दे चुका है, जिनसे बचा जाना चाहिए. इसी क्रम में, दिवाली से रिलेटेड चीनी सामानों का भी सोशल मीडिया पर आजकल खूब विरोध चल रहा है. सस्ते होने की वजह से, चीनी झालर, पटाखे, मिठाईयां और कपड़े तक हमारे मार्केट में घुसे हुए हैं. व्यापार में जड़ जमा कर हमारे यहां से धन चीन जाता है और दुर्भाग्य से चीन पाकिस्तान को आतंक फैलाने के लिए उस धन का दुरूपयोग अप्रत्यक्ष रूप से आतंकियों को मदद देने में करता है. उसी धन का इस्तेमाल पाकिस्तान न केवल भारत में ही बल्कि पूरे विश्व भर में बम विस्फोट करने में करता है और इस तरह से चीन का कोई भी सामान लेकर हम आतंकवाद को ही सीधे-सीधे प्रमोट करते हैं. इसमें कोई लाग-लपेट नहीं है, इसलिए जहां तक संभव हो चीनी सामानों की खरीदारी से बचा जाए और भारतीय कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए, बजाय इसके कि वह कुछ महंगे ही क्यों न हों? अगर खरीदारी और आर्थिक सावधानियों के बाद स्वास्थ्य की दृष्टि देखें तो राजधानी दिल्ली के साथ-साथ देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण बढ़ने का अंदेशा बढ़ गया है, वह भी ठीक दिवाली से पहले! हम सभी जानते हैं इस बात को कि भारी मात्रा में पटाखे जलाने से किस कदर प्रदूषण फैलता है. बल्कि बुजुर्गों और नवजात बच्चों के लिए यह प्रदूषण तो जहर की तरह होता है. हालांकि जनता में कुछ हद तक ही सही जागरूकता बढ़ी है, किंतु अभी भी इस मामले में काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है. चूंकि दिवाली के आसपास ही फसलों की भी कटाई होती है. पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में फसलों की कटाई के बाद बचे हुए अवशेष को जलाने से जो धुआं वायुमंडल में फ़ैलता है, उससे भी निश्चित रूप से तमाम तरह की बीमारियां होती हैं, तमाम तरह की समस्याएं जन्म लेती है. ऐसे में ठीक दिवाली से पहले वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच ही जाता है और जब दिवाली में पटाखों के धुंए से पूरा आसमान ढक जाता है तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है. Diwali festival 2016, Dhanteras Shopping, Crackers, Gambling, Negative Impression of Great Festival, Hindi Article, New, Avoid Losses, Being Good



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सांस के मरीजों के लिए तो यह धुंआ जानलेवा हो सकता है. हालाँकि, इस तरह की बातें कई सालों से कही जाती हैं, शोध किए जाते हैं, सर्वे किए जाते हैं, तमाम तरह की स्टडी-रिपोर्ट तैयार की जाती है, पर फिर भी केंद्र अथवा राज्य सरकार का रवैया भावशून्य ही होता है. आखिर जिम्मेदारी ले तो कौन ले? ऐसे में हम भारत के नागरिकों को ही वायु प्रदूषण कम करने के लिए सभी को पटाखों का बेहद नियंत्रण में रहकर इस्तेमाल करना चाहिए. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि त्यौहार है तो आप पटाखे चलाएं ही ना, किंतु बस फॉर्मेलिटी के तौर पर, बेहद कम मात्रा में! वैसे भी वाहनों की संख्या शहरों में अत्यधिक बढ़ी हुई है और पटाखे जलाने के बाद स्वास्थ्य संबंधी कितनी दिक्कतें होती हैं, आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते. कई लोग इस बात का विरोध करते हैं, इसको किसी अन्य धर्म से जोड़ते हैं और कहते हैं कि दिवाली में हमें खूब पटाखे चलाने चाहिए, यह हमारी आजादी है! ठीक बात है इस बात से किसी को इनकार नहीं है, किंतु आप किसी छोटे बच्चे की दृष्टि से ढेर सारे पटाखे जलाने और उसके प्रभाव को देखें, आप किसी बुजुर्ग की दृष्टि से उसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले पटाखे के धुएं के असर को देखें, किसी हृदय रोगी मरीज के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव को देखें, तो निश्चित रुप से एकबारगी आपके मन में भी ख्याल आएगा कि 'हम यहां पटाखे जला ही क्यों रहे? क्या वास्तव में पटाखों पर जो हम हजार रुपए से लेकर ₹10000 या उससे अधिक पैसे खर्च करते हैं, उससे किसी जरुरतमंद की मदद नहीं की जा सकती है? कालांतर में यह एक बड़ी बुराई बनती जा रही है. यूं भी पटाखों का जलाना सीधे-सीधे धन की बर्बादी है, तो स्वास्थ्य की समस्याओं को उत्पन्न करने वाला है और कई बार तो इससे दुर्घटना भी हो जाती है. जैसे आग लगना, किसी की आंख में चोट लग जाना, जल जाना इत्यादि. वैसे तो त्यौहारों को लेकर सकरात्मक बातें खूब है. खासकर दिवाली से रिलेटेड अन्य तमाम लेखों में आपने इस तौर के कई फायदे पढ़ें होंगे, किन्तु संसार में मौजूद हर एक चीज में कुछ बुराइयां भी होती हैं और उन बुराइयों पर दृष्टिपात कर के सुधार की ओर अग्रसर होना ही चाहिए! जल्दबाजी में खरीदारी, चीनी सामान का विरोध और पटाखों के बाद अगर हम देखते हैं तो दीपावली के दिन जुआ खेलने का प्रचलन भी हमारे समाज में घुसा हुआ है. दीपावली के दिन कई लोग तर्क देते हैं कि अगर इस दिन जुए में आप जीत गए तो आगे किस्मत आपका खूब साथ देगी. समझा जा सकता है कि इस दिन कौड़ी और पासों के साथ विभिन्न प्रकार के परंपरागत अथवा आधुनिक तरीकों से जुए खेले जाते हैं. Diwali festival 2016, Dhanteras Shopping, Crackers, Gambling, Negative Impression of Great Festival, Hindi Article, New, Avoid Losses, Being Good


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जुए और उसके प्रभाव के बारे में चर्चा करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है, यह महाभारत काल में बखूबी बताया गया है, जब युधिष्ठिर एक जुआरी के रुप में अपना सब कुछ हार गए थे और परिणाम स्वरुप द्रौपदी का चीर हरण और महाभारत युद्ध के रूप में विनाश ही चारों ओर विखरा नज़र आया. शकुनि मामा जैसे तमाम जुआरी अपने खुराफाती दिमाग से आज भी कई-कई मनुष्यों को जानवर बनाने का कार्य करते रहते हैं. जुए के इतिहास को देखें तो महाभारत काल में ही राजा नल और दमयंती की कहानी आती है, जिसमें राजा नल के कपटी रिश्तेदार ने चौसर खेलते हुए उनका सब कुछ हड़प लिया था. जुए के सम्बन्ध में एक सर्वे बताता है कि देश के लगभग 45 पर्सेंट लोग (आधे से कुछ कम) दीपावली पर जुआ खेलते हैं. इसमें भी 35 पर्सेंट लोग सगुन के तौर पर खेलते हैं तो बाकी 10 परसेंट शकुनी मामा और युधिष्ठिर के जुए जैसा ही खतरनाक खेल खेलते हैं, जिसमें बर्बादी के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगता है. देखा जाए तो वर्तमान में 'सट्टेबाजी' भी "जुए" का ही एक आधुनिक रूप है और जुए के इन विभिन्न बुराइयों को दूर करने के लिए समाज को एक जागरुकता अभियान छेड़ना पड़ेगा.कानूनन भी यह गलत है. बेशक इसमें किसी को कुछ अवैध कमाई हो जाए, किंतु है तो यह अंततः बुरी चीज ही! अगर हम इन बुराइयों से सावधान रहें, अनर्गल खरीदारी करते समय अलर्ट रहें, ढेर सारे पटाखे जला कर वायु प्रदूषण न करें तो कोई वजह नहीं है कि हमारे यह त्यौहार हमारे लिए सामाजिक समरसता ना लाएं, हमारे लिए सुख-समृद्धि ना लाएं, हमारे लिए एक बेहतर जिंदगी की उम्मीद न जगाएं! तो आइए दिवाली में हम इन बुराइयों से दूर रहें, सावधान रहें और तभी असली मायने में लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती का पूजन हम कर सकेंगे और तभी सही मायने में त्यौहारों का अर्थ भी हम समझ सकेंगे!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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