विदेश नीति स्वभावतः बेहद विचित्र नीति है और अगर आप दूर खड़े होकर इसे समझने भर का ही प्रयत्न करें तो दिमाग घूम जायेगा, जबकि जो सरकारें इसे ग्राउंड पर अमलीजामा पहनाती हैं, उनकी स्थिति की कल्पना तो सहज ही की जा सकती है. भारत रूस का सम्बन्ध (Indo Russia Relations, Historical Friendship articles), बिना किसी शक के बेहतरीन रहा है और इसकी इमेज आज भी तमाम भारतवासियों के दिलों में है. शीतयुद्ध काल में अमेरिका जब पाकिस्तान के साथ मिलकर तमाम कुकर्मों को अंजाम देने में लगा हुआ था, तब वह रूस ही था जिसने न केवल भारत की इज्जत बचाई बल्कि विपरीत हालातों में वैश्विक स्तर पर उसके साथ भी खड़ा रहा. खासकर 1971 में जब बंगलादेशी स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा था और पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के विरोध में भारतीय सेना भी कराची में कब्ज़े की तैयारियां कर रही थी, तब पाकिस्तान के रहनुमा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने दिसंबर 1971 को भारत के खिलाफ किंग क्रूज मिसाइलों, सत्तर लड़ाकू विमानों और यहाँ तक कि परमाणु बम से लैस अपने सांतवे युद्धक बेड़े (Freedom Fighting for Bangladesh, Role of USA and Russia, India and Pakistan) यूएसस इंटरप्राइजेज को दक्षिणी वियतनाम से बंगाल की खाड़ी की ओर कूच करने का आदेश दे डाला था. ब्रिटेन भी हमेशा की तरह अमेरिका की हाँ में हाँ मिला रहा था. कहते तो यह भी हैं कि तब अमेरिका ने भारत को घेरने के लिए चीन को भी उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, हालाँकि चीन तब तटस्थ ही रहा था. ऐसे दबाव की स्थिति में तत्कालीन सोवियत संघ ने अपनी परमाणु हथियार से लैस पनडुब्बी व विमानवाहक पोत फ्लोटीला को भेजा तब अमेरिकी सेना में हलचल मची. इसी के फलस्वरूप बांग्लादेश स्वतंत्र हुआ और इंडिया के लिए नासूर बन चुके पूर्वी पाकिस्तान का अस्तित्व समाप्त हुआ. हथियारों की खरीद फरोख्त के लिए भी रूस हमारे लिए सर्वाधिक विश्वसनीय रहा है, किन्तु हालिया स्थितियां काफी हद तक बदली हुई हैं. हम सब जानते हैं कि अमेरिका की तरफ जिस तेजी से हमने कदम बढाए और अमेरिका ने भी जैसे आगे बढ़कर हमारा स्वागत किया, उसने रूस को काफी हद झिंझोड़ा भी और नाराज भी किया. Russia, India Relations, Hindi Article, New, China, USA, Economy, Foreign Policy, Facts about Policies, Editorial in Hindi
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रूसी राष्ट्रपति पुतिन इसे कई अवसरों पर जता भी रहे थे और शायद इसी के फलस्वरूप यह पूर्व महाशक्ति पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास करने की दिशा में आगे बढ़ा. भारत के लिए अमेरिका का महत्त्व बेशक बढ़ा हो, किन्तु अपनी सीमा के नजदीक वह रूस, चीन और पाकिस्तान का खुला गठबंधन बनने देने का ज़ोखिम भला किस प्रकार उठा सकता है? यूं भी रूस हमारा साथी जरूर रहा है, किन्तु चीन के मामले में उसने कभी हमारा साथ खुलकर नहीं दिया. भारत चीन के 1962 के युद्ध, जिसमें भारत की करारी हार हुई थी, उस वक्त 25 अक्तूबर को रूसी समाचार पत्र प्रावदा ने ये कह दिया था कि चीन हमारा भाई है और भारतीय हमारे दोस्त हैं. तब इससे भारतीय कैंप में निराशा की लहर दौड़ गई थी. प्रावदा ने ये भी सलाह दी कि भारत को व्यावहारिक रूप से चीन की शर्तों पर चीन से बात करनी चाहिए. हालाँकि, इसके पीछे क्यूबा संकट (Historical Cuba Issue, Hindi Essay) भी एक प्रमुख कारक था, पर वही नीति रूस आज भी अपना रहा है. आज रूसी अर्थव्यवस्था गिरावट के दौर में है और भारत को हथियार बेचकर यह देश बड़ी कमाई करता है, किन्तु जब विदेश नीति के मोर्चे पर चीन को साधने की जरूरत पड़ती है तो यह अपने हाथ खड़े कर लेता है. वह चाहे एनएसजी मामले पर चीन से बात करने का मामला हो अथवा ब्रिक्स 2016 के घोषणा पत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों जैश और लश्कर का नाम शामिल कराने की बात हो. पाकिस्तान के साथ सैन्याभ्यास करके तो रूस ने भारत को एक तरह से ब्लैकमेल करने का ही काम किया है और अब ऐसे में भारत को अन्य विकल्पों की ओर भी अपने घोड़े दौड़ाने ही होंगे. भारत एक बड़ा बाजार (India is a big market, all wants to use this, but what we get, Hindi Article) है और अमेरिका सहित रूस, चीन और दुसरे पश्चिमी देश भी इसे सिर्फ इस्तेमाल भर करना चाहते हैं. हालाँकि, अमेरिका के साथ थोड़ी सकारात्मक बात यह भी है कि न केवल दक्षिण एशिया, बल्कि पूरे एशिया और विश्व भर में उसके और भारत के साझा हित दिख रहे हैं. चीन से अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती उसे भारत के करीब आने को मजबूर कर रही है, पर बावजूद इन सबके लेमोआ, सिस्मोआ और बेका जैसे कानूनों के सरलीकरण में वह बहुत समय लगा रहा है. Russia, India Relations, Hindi Article, New, China, USA, Economy, Foreign Policy, Facts about Policies, Editorial in Hindi
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फ़्रांस से अभी हमने सफलतम राफेल विमानों का सौदा किया है, किन्तु इसकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर फ़्रांस ने भी हमें ठेंगा दिखा दिया है. जाहिर है, रूस हथियारों के मामलों में अभी काफी हद तक अपनी विश्वसनीयता बनाये हुए है, किन्तु न जाने क्यों विदेश नीति के मोर्चे (Foreign Policies of India, Hindi Article) पर वह भारत का खुलकर साथ देने से कतरा रहा है. इस पुरानी महाशक्ति को समझाना होगा कि बदली परिस्थितियों में रूस-भारत का सम्बन्ध सिर्फ हथियारों की खपत वाले देश के रूप में नहीं रह गयी है, बल्कि अब उसे तमाम वैश्विक मामलों में बराबरी पर बिठाना होगा. वहीं अमेरिका भी अगर भारत के साथ लंबे समय तक जुड़ना चाहता है तो वह तमाम तकनीकों के ट्रांसफर और भारत के सैन्य सशक्तिकरण में बिना किसी किन्तु-परन्तु के जुटे. जाहिर तौर पर बदलते हालात और चुनौतियों से भारत सरकार दो-दो हाथ कर रही है, किन्तु हालात ही कुछ ऐसे हैं कि एक हमारे पाँव अभी मझधार में हैं. हमारे पास बाजार है, उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और एक तरह से हमसे दुश्मनी निभाने वाला चीन भी हमारे बाजार का भरपूर प्रयोग कर रहा है, किन्तु बात जब विदेश नीति की आती है तो वह हमसे मुंह फेर लेता है. जाहिर तौर पर बदलते समय में सभी महाशक्तियों को एक-एक करके स्पष्ट सन्देश देने की आवश्यकता है. चीन को कहा जाना चाहिए कि अगर वह भारत के हितों के साथ बिल्कुल भी मुरव्वत नहीं कर सकता तो फिर वह भारत के साथ आर्थिक सहयोग (Ban Chinese Products, Hindi Article, New) भी सीमित करे. अमेरिका से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर बड़े रक्षा समझौतों की ओर बढ़ा जाए, वहीं रूस के साथ चीन और पाकिस्तान को लेकर उसकी नीतियों पर खुलकर बात की जाए कि भाई, हमें हथियार बेच रहे हो ठीक है, हम खरीद भी रहे हैं, किन्तु चीन और पाकिस्तान के मामले में आप को भारत के साथ खड़े रहने का दम दिखलाना ही होगा. आप पहले की तरह नहीं कह सकते कि चीन और पाकिस्तान हमारे भाई हैं और भारत हमारा दोस्त है! जब तक इस तरह का खुला आश्वासन और व्यवहार रूस नहीं दिखलाता है, तब तक भारतीयों को 'दोस्त दोस्त ना रहा' (Dost, Dost Naa Raha, Hindi Article) का गाना गाने का अभ्यास शुरू कर देना चाहिए, कम से कम रूस का विकल्प मिलने तक तो निश्चित रूप से ही!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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