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नज़र न लगे 'भारत रूस' की दोस्ती को ... Indo Russian relations 2016, Hindi Article, New, Foreign Policy, Atomic Energy, Defense Deals



भारत रूस की दोस्ती कोई नया विषय नहीं है, बल्कि आज़ादी के बाद भारतीय नागरिकों के कानों को सुख देने वाला बेहद सार्थक शब्द रहा है. हाल के दिनों में वैश्विक राजनीति में तमाम बदलाव आये हैं और अमेरिका भारत की ओर निश्चित रूप से झुक है, और कई विश्लेषक इसे रूस से दूरी भी बता चुके हैं, किन्तु इसे रूस से दूरी कहना ठीक नहीं है और हाल ही के दिनों में यह बात कई वाकयों से साफ़ हुई है. भारत के साथ सैन्य संबंधों में अभी भी रूस का स्थान अग्रणी रहा है तो परमाणु सहयोग में भी दोनों देशों के बीच सार्थक विश्वास कायम है. अपनी 66 साल की दोस्ती को बरकरार रखते हुए भारत और रूस (Indo Russian relations 2016, Hindi Article, New) ने सही मायने में दोस्ती की एक और मिशाल पेश की है. भारत-रूस परियोजना कुडनकुलम परमाणु बिजली संयत्र-1 का संयुक्त रूप से उद्घाटन दोनों देशों के रिश्तों को एक नया आयाम देगा, इस बात में दो राय नहीं! वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के साथ मिलकर सुरक्षित परमाणु संयंत्र का शिलान्यास किया. साफ़ जाहिर है कि बदले हालात के अनुरूप भारत और रूस अपने संबंधों को ढालने में लगे हुए हैं, किन्तु उनके बीच गर्मजोशी में कहीं कमी नहीं है. भारत में ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि के लिए लगाए गए इस परमाणु बिजली संयत्र-1 की क्षमता 1,000 मेगावाट है, जो कि ऊर्जा के क्षेत्र में हमारे देश की बढ़ती जरूरत को पूरा कर सकती है. 

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देश की सबसे बड़ी ऊर्जा इकाई की स्थापना के लिए भारत और रूस के अभियंताओं  के अथक प्रयास की सराहना करने हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के रिश्तों को बहुत ही महत्वपूर्ण बताया. साफ़ है कि प्रधानमंत्री भारत-रूस के रिश्तों पर धूल जमने देने के पक्षधर नहीं हैं. वैसे भी, नया नौ दिन, पुराना सौ दिन की कहावत भला कौन नहीं जानता है. चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने के लिए अमेरिका भारत के करीब जरूर आ रहा है, किन्तु क्या वाकई उसकी नीति भारत के साथ लंबे और परस्पर हितकारी संबंधों को कायम करने में है, यह बात समझने में वक्त लग सकता है. जहाँ तक बात भारत-रूस की है तो संयुक्त रूप से समर्पित यह परमाणु उर्जा संयंत्र हरित विकास में दोनों देशों की भागीदारी के लिए खास तौर पर प्रतिबद्ध है. राष्ट्रपति पुतिन ने भी (Indo Russian relations 2016, Hindi Article, New) इसे दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण दिन बताया, साथ ही साथ बिजली-संयंत्र के निर्माण और शुरुआत से ज्यादा भारत के साथ अपनी तकनीकी विशेषज्ञताओं को साझा करने पर ख़ुशी भी जाहिर की, जो उनके शब्दों में साफ झलक रहा था. इस क्रम में तमिलनाडु की सीएम जयललिता भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने इसे घनिष्ठ मित्रता करार दिया. बताते चलें कि भारत और रूस का रिश्ता कोई आज से नहीं है, बल्कि यह 1950 से ही चला आ रहा है, जब भारत एक गरीब देश हुआ करता था. उस समय भी रूस ने हथियारों, तकनीक तथा औद्योगिक निवेश में भारत की सहायता की थी. इतना ही नहीं 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत को राजनयिक तथा सैन्य सहायता रूस ने खुलकर मुहैया कराया था. 


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भारत भी रूस के वैश्विक वर्चस्व की खातिर खुलकर खड़ा रहा था. हालाँकि 1990 में इनके बीच रिश्तों में कुछ नरमी आने की बात कही गयी, किन्तु फिर भी दोनों देश मिलकर बराबर के सहयोगियों के तौर पर काम कर रहे हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने व्यक्तिगत तौर पर भारत-अमेरिका संबंधों को घनिष्ठता की ओर जरूर मोड़ा है. इसके फलस्वरूप रूस (Indo Russian relations 2016, Hindi Article, New) की तरह भारत अमेरिकी ड्रोन और सुरक्षा-तंत्रो का इस्तेमाल कर सकता है, तो भारत को एमटीसीआर जैसे मजबूत संगठनों में आसानी से प्रवेश भी मिल गया. न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) में एंट्री के लिए भी अमेरिका ने भारत के लिए खूब ज़ोर भी लगाया. इन सभी परिस्थितियों के बावजूद भारतीय नागरिक और विश्लेषक भारत-अमेरिका संबंधों में उतनी सहजता नहीं देखते हैं, जितनी कभी भारत-रूस में हुआ करती थी. हालाँकि रूस और भारत के रिश्तों में नरमी का कारण भारत का पश्चिमी देशों और अमेरिका से नजदीकी के अतिरिक्त, रूस का पाकिस्तान के साथ सैन्य हथियारों का सौदा है. पर रूस की अर्थव्यवस्था जिस तरह से डांवाडोल हुई है, उसने उसे चीन तक सामने झुकने को मजबूर कर दिया है तो पाकिस्तान जैसे आतंकी देश को हथियार बेचने पर उसे मजबूर होना पड़ रहा है. 

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हालाँकि, रूस का पाकिस्तान के प्रति झुकाव अंततः उसे नुक्सान ही देगा, क्योंकि आतंकवादी किसी के सगे न हुए हैं, न हो सकते हैं. बदलती परिस्थितियों में भारत-रूस के सकारात्मक (Indo Russian relations 2016, Hindi Article, New) पहल के कारण इन दोनों के रिश्तों में फिर से पुरानी लय वापस आती दिख रही है और उम्मीद यही करनी चाहिए कि यह लय सैन्य सहयोग, अर्थव्यवस्था से आगे बढ़कर क्षेत्रीय सहयोग तक विस्तृत होगी. इस बात में दो राय नहीं है कि भारत और रूस के बीच मजबूत सम्बन्ध दोनों देशों के लिए ही हितकर हैं और ख़ुशी की बात यह है कि दोनों देशों के दूरदर्शी नेता इसे भलीभांति समझ भी रहे हैं. 

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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