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भोपाल एनकाउंटर एवं आतंकियों से सहानुभूति का "जयचंदी" डीएनए! SIMI Terrorists encounter in Bhopal, Jail Break, Hindi Article, New, Madhya Pradesh Government, Digvijay Singh, Arvind Kejriwal, Asaduddin Owaisi



आने वाली पीढियां जब कभी हमारे देश में हुए आतंकी हमलों का हिसाब-किताब समझेंगी, तब उनको यकीन ही नहीं होगा कि लाखों करोड़ों लोगों के आतंक से पीड़ित होने और अपनी जान गंवाने के बावजूद किस प्रकार चंद नेता, राजनीति की खातिर, आतंकवादियों का  साथ देते हैं. शायद ही किसी को यकीन हो कि किस प्रकार धर्म के नाम पर कुछ नेता आतंकवादियों में हिंदू और मुसलमान का भेद पैदा करते रहते हैं? यह दुर्भाग्य है हमारे देश और उसमें रहने वाले लोगों का, कि धर्म के नाम पर भारत का बंटवारा तक हो गया, लेकिन फिर भी धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों की सियासत ने किसी को बख्शाना नहीं सीखा. समझ नहीं आता कि आखिर वह कौन-सा "डीएनए" है, जो आतंकवादियों को बचाने की प्रेरणा देता रहता है? थोड़ा अतिवादी रूप से इस तथ्य का आंकलन किया जाए तो यह "डीएनए" निश्चित रूप से जयचंद जैसे गद्दारों से जुड़ा हुआ ही प्रतीत होता है और ऐसे ही लोगों के कारण निस्संदेह रूप से हमारे देश विदेशियों के हाथों लंबे समय तक गुलाम बना रहा. अगर हालिया बात करें, तो बड़ा सीधा सा मामला है और वह यह है कि एक जेल में आतंकवाद फैलाने के कुछ आरोपी, जो प्रतिबंधित सिमी, यानी स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया संगठन से भी जुड़े हुए थे, एक हवलदार का गला रेत कर वह फरार होते हैं. पुलिस मुस्तैदी दिखलाते हुए उनकी फायरिंग के बाद उनका एनकाउंटर कर देती है. अब सारा होहल्ला इस बात पर मचा है कि पुलिस इतनी एक्टिव कैसे हुई? आखिर कैसे आतंकवादियों को पुलिस ने इतनी जल्दी पहचान लिया और इनकाउंटर कर दिया? अरे भाई मुस्तैद रहना कोई गलती है क्या? अपना फर्ज निभाना आतंकवादियों से मुठभेड़ करना कोई अपराध है क्या? कांग्रेस पार्टी ने आजाद भारत के इतिहास में कई ऐसी गलतियां की हैं जिसके लिए उसे मटियामेट होने की स्थिति तक पहुंचना पड़ गया है, क्योंकि इस पार्टी में हमेशा से ही कोई न कोई दिग्विजय सिंह जैसा नेता रहा है, जो तुष्टिकरण की खातिर 'नंगा नाचने' को तैयार दिखता हैं. दिग्विजय सिंह ने इस बार भी वही किया है. एक तरफ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शहीद कांस्टेबल को कंधा दे रहे थे, वहीं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह यह सवाल खड़ा कर रहे थे कि सिर्फ मुस्लिम ही जेल तोड़कर क्यों भागते हैं हिंदू क्यों नहीं? क्या बीमार मानसिकता है ऐसे लोगों की? खुद दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश से राजनीति करते रहे हैं और इस राजनीति की खातिर वह इतने नीचे गिर जाएंगे इस बात का यकीन शायद ही किसी भारतीय को हो! SIMI Terrorists encounter in Bhopal, Jail Break, Hindi Article, New, Madhya Pradesh Government, Digvijay Singh, Arvind Kejriwal, Asaduddin Owaisi


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आखिर जो लोग एनकाउंटर में मारे गए, वह कोई संत थे नहीं, तो फिर इस मुद्दे पर इतना हो हल्ला क्यों? क्या वाकई आतंक के नाम पर राजनीति करने की इजाजत हमारे देश में होनी चाहिए, यह एक ऐसा सवाल है जो आज़ादी के बाद से ही उठ रहा है, किन्तु उसका जवाब देने का साहस किसी के पास नहीं! संभव है कि जो लोग आरोप लगा रहे हो उनको एनकाउंटर के सम्बन्ध में, कहीं से कुछ उलटे पुलटे सपने आए हों, तो क्या बेहतर नहीं होता कि वह 'सिर्फ और सिर्फ जांच की मांग करते और जांच के नतीजे का इंतजार करते? बजाय इसके कि वह पुलिस और सरकार पर ही सवाल उठा रहे है? केजरीवाल जैसे लोग तो इस मामले में सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही घसील ले रहे हैं. सोशल मीडिया पर कोई झूठ नहीं चलता है, जिसमें लोग केजरीवाल के बारे में कहते हैं कि अगर दिल्ली के मुख्यमंत्री के घर में पानी की टोटी भी खराब हो जाए तो वह ट्वीट करके पीएम मोदी को दोषी ठहरा देंगे! बात जहाँ तक दिग्गी ठाकुर की है, तो यह वही दिग्विजय सिंह हैं जिन्होंने बाटला हाउस एनकाउंटर पर भी सवाल उठाए थे. हालांकि तब कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने कहा था कि वह कांग्रेस पार्टी की लाइन नहीं थी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे पर सभी लोगों को एक सुर में बोलना चाहिए था. वैसे भी, दिग्विजय सिंह का अपना अजीब इतिहास रहा है तो सोशल मीडिया पर उन्हें यूं ही 'डॉगविजय' नहीं कहा जाता! इस संदर्भ में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एनकाउंटर पर सवाल खड़े करने वालों को धिक्कारा है और उन पर छिछली राजनीति करने का आरोप लगाया है तो भाजपा नेता और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस प्रमुख से सीधे पूछा है कि क्या दिग्विजय सिंह की कही हुई बात कांग्रेस पार्टी की ऑफिशियल लाइन है? इसी मुद्दे पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने भी कहा है कि आतंकवादियों के लिए सहानुभूति क्यों है? एक गौर करने वाली बात पूर्व मुंबई पुलिस कमिश्नर सतपाल सिंह ने भी कही है कि देश में जो भी एनकाउंटर होते हैं उस पर सवाल खड़े क्यों किए जाते हैं? आखिर लोग पुलिस पर भरोसा क्यों नहीं करते हैं? वर्तमान सांसद सत्यपाल सिंह ने आगे यह भी जोड़ा कि लोग तब ज्यादा सवाल उठाते अगर आतंकवादी भाग जाते और पुलिस कोई कार्यवाही नहीं करती. साफ़ है कि इस मामले में जहां बधाई मिलनी चाहिए पुलिस को, वहां उसे आधारहीन ढंग से सवालों के घेरे में खड़ा किया जा रहा है. सही बात भी है, आखिर कांस्टेबल रमाशंकर का गला रेत कर ही तो सिमी के आतंकी जेल से फरार हुए थे और यदि इसके बावजूद भी कोई कहे कि आतंकी पाक-साफ़ हैं तो उसकी मानसिक स्थिति की जांच रांची या आगरा के पागलखाने में होनी चाहिए. SIMI Terrorists encounter in Bhopal, Jail Break, Hindi Article, New, Madhya Pradesh Government, Digvijay Singh, Arvind Kejriwal, Asaduddin Owaisi



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जांच एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की भी होनी चाहिए, जो इस पूरे मामले को तर्क से परे बता रहे हैं. अपने हिसाब से ओवैसी ने तर्क भी दे दिया है कि जेल से फरार कैदियों के कपड़े और जूते जेल वाले नहीं थे. सीधी सी बात है कि अगर कोई कैदी जेल से फरार होता है बाहर उसके साथी होते हैं. आखिर कोई कैदी इतना मूर्ख तो है नहीं कि वह जेल के कपड़े पहनकर भागे  ताकि आस-पास के लोगों की निगाह में वह आ जाए! जाहिर तौर पर इस तरह के अपराधी अपने बचाव का प्लान तैयार रखते हैं. किन्तु, इस संबंध में अपने देश के नेताओं और उनकी राजनीति पर रोना आता है. आखिर, एनकाउंटर में आतंकी मारे गए हैं, कोई संत-महात्मा नहीं! अगर क्रमवार देखा जाए तो शेख मुजीब नामक आतंकी 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट में शामिल होने का आरोपी था. गौरतलब है कि इस धमाके में 50 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. दूसरा आतंकी अकील खिलजी के नाम से 2012 में महाराष्ट्र से गिरफ्तार हुआ था, जो कि आरएसएस और भाजपा के सीनियर लीडर की हत्या की प्लानिंग कर रहा था. तीसरा शेख महबूब था और इस पर भी 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट में शामिल होने का आरोप था वहीं चौथा आतंकी अब्दुल माजिद था, जिस पर डकैती, हत्या और देशद्रोह के कई मामले चल रहे थे, इस अब्दुल माजिद पर अहमदाबाद बम धमाके के साथ ही पुणे बिजनौर और चेन्नई में भी धमाके करवाने के आरोप भी थे. अगला आतंकी मोहम्मद खालिद था जिस पर हत्या ,डकैती, लूट और देशद्रोह के मामले तो थे ही, साथ-साथ अहमदाबाद पुणे, चेन्नई और बिजनौर में हुए धमाकों में शामिल होने का संदिग्ध भी था. इन्हीं आतंकियों में जाकिर हुसैन भी था, जिसे 2014 में बिजनौर में हुए विस्फोट में शामिल होने के संबंध में गिरफ्तार किया गया था, तो इस पर एटीएम जवान, बैंक कर्मी और वकील की हत्या का मामला भी शामिल था. इस क्रम में, अगला आतंकी मोहम्मद शारिक था जिसने अपने दूसरे सिमी साथियों के साथ बिजनौर में रहकर धमाके की साजिश रची थी. इस पर और भी कई आरोप दर्ज हैं. इन्हीं में अमजद खान नामक आतंकी भी था, जो भाजयुमो अध्यक्ष, आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हमला और पांच बैंक डकैती में आरोपी था. SIMI Terrorists encounter in Bhopal, Jail Break, Hindi Article, New, Madhya Pradesh Government, Digvijay Singh, Arvind Kejriwal, Asaduddin Owaisi


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समझा जा सकता है कि इस तरह के लोगों का बचाव करते हुए राजनेताओं की "तुष्टीकरण" की नीति अपनी पराकाष्ठा पार कर चुकी है. वह चाहे आम आदमी पार्टी हो, वह चाहे ओवैसी हो या दिग्विजय सिंह हों, आखिर इन नेताओं के मानसिक अवस्था पर देश को संदेह क्यों नहीं होना चाहिए? संदेह इन मामलों में मानवाधिकार आयोग के रुख का भी है. आयोग को मानव अधिकारों के प्रति सचेत जरूर रहना चाहिए, किंतु उसके प्रयासों से ऐसा कतई नहीं लग्न चाहिए कि वह आतंकवादियों का पक्षधर है. अरविंद केजरीवाल तो ख़ैर अपने बड़बोलेपन के लिए मशहूर हैं ही! उन्हें तो बस मौका मिलना चाहिए और वह शुरू हो जाते हैं. इस बार अपने ट्वीट में उन्होंने कहा है कि मोदी राज में फर्जी एनकाउंटर, फर्जी मामले और जाने क्या-क्या होता रहता है. जाहिर सी बात है उनका दर्द समझा जा सकता है कि जिस तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने पूरे देश में फाइट किया था, किन्तु नतीजा टांय टांय फिस्स रह गया था. साफ़ है कि इन नेताओं को किसी निर्दोष के मारे जाने का दर्द बिलकुल भी नहीं है, बल्कि इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ राजनीति करना ही है. खैर यह सारी राजनीति अपनी जगह है, किंतु जिस प्रकार भोपाल सेंट्रल जेल से सिमी आतंकी फरार हुए हैं, उसे लेकर केंद्र सरकार भी गंभीर दिख रही है और इस सम्बन्ध में मध्यप्रदेश प्रशासन से जवाब भी मांगा है. सवाल इस पूरे मामले पर जरूर उठे हैं और उठने भी चाहिए, लेकिन वह इसलिए कि मध्य प्रदेश की जेल से 3 साल के भीतर दूसरी बार सिमी आतंकी फरार कैसे हो गए? क्या वाकई में सुरक्षा व्यवस्था में कहीं कोई छेद छूट गया है, इस बात का जवाब राज्य सरकार को जरुर देना चाहिए. वह भी तब जब जेल प्रशासन को मालूम था कि सम्बंधित जेल में तीन आतंकी ऐसे भी थे जो 2013 में खंडवा की जेल से फरार हो चुके हैं. बावजूद इसके सुरक्षा के इंतजाम में क्यों ढील बरती गई? वैसे राज्य सरकार ने संबंधित जेल प्रशासन के चार सीनियर ऑफिसर को सस्पेंड कर दिया है, तो अन्य जिलों में जेलों में बंद आतंकियों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की बात भी कही है. प्रशासनिक लापरवाही की शिनाख्त करके जल्द से जल्द जेल में सुराख किये जाने की जवाबदेही तय की जानी चाहिए, किन्तु तब तक इस पूरे मामले में आतंकवादियों का सहारा लेकर तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों के मुंह पर बिना शक 'ताला' लटका दिया जाना चाहिए!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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