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भारतीय फिल्म उद्योग में अमीर खान का एक अलग स्थान रहा है और वह स्थान कुछ ऐसा रहा है जिस पर हाल फिलहाल कोई अभिनेता दावा भी नहीं कर सकता. खेल-खेल में सीख, मनोरंजन से सीख का प्रभाव अपने आप में जबरदस्त होता है और ऐसी सीखें मानव मन मस्तिष्क पर बड़ी देर तक टिकी रहती हैं. यूं तो भारतीय फिल्म उद्योग विश्व में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध है, किन्तु बात जब सार्थक और रियलिस्टिक सिनेमा (Meaningful and Realistic Cinema) की आती है तो फिर बॉलीवुड का नाम लेने में हमें हिचक होती है. कहने को तो यहाँ कई ऐसी फिल्में बनी हैं, जिनसे समाज को बेहतर शिक्षा मिली है तो उत्तम प्रेरणा भी, पर बात वहीं आकर टिक जाती है कि इनकी संख्या कितनी है. हालाँकि, भारत कुमार के नाम से प्रसिद्ध अभिनेता मनोज कुमार देशभक्ति और सामजिक फिल्मों के लिए ही जाने जाते रहे हैं, तो अमिताभ बच्चन जैसे कई अदाकारों ने 'पिंक' मूवी जैसी फिल्मों से समाज में एक बेहतर सन्देश देने की कोशिश की है. बॉलीवुड में तमाम एक्टर्स निर्देशक हैं जो समय-समय पर अच्छी फिल्में बनाते रहते हैं, किंतु आमिर खान खास इसलिए हैं, क्योंकि उनके फ़िल्मी कैरियर का 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा सार्थक फिल्मों का हिस्सा बनने में ही गुजरा है. निर्माता निर्देशक रामगोपाल वर्मा का आमिर खान के बारे में हाल ही में ट्वीट आया था, जिसका भाव यही था कि आमिर खान के मुकाबले कोई नहीं (Amir Khan is Best)! एक के बाद एक लगातार कई ट्वीट कर रामू ने आमिर की तारीफ के साथ बाकी अभिनेताओं (खानों) को लताड़ा भी. शुरुआती ट्वीट में आमिर की तारीफ करने के बाद रामू बोले, "मैं आमिर खान की गंभीरता के लिए उनके पैर छूना चाहता हूं, क्योंकि आमिर अपनी हर फिल्म के साथ बड़े और बड़े मुकाम पर चढ़ते जा रहे हैं." रामू आगे कहते हैं कि "दूसरे खान पहले से सोच लेते हैं कि दर्शक बेवकूफ है, मैं भी ऐसा ही सोचता हूं, लेकिन आमिर दर्शकों का सम्मान करते हैं." इतने पर ही रामगोपाल वर्मा नहीं रुके, उन्होंने आगे यहाँ तक कह डाला कि "आमिर खान की फिल्में भारतीय सिनेमा को दुनिया की नजरों में ऊपर उठाती हैं, तो दूसरे खानों की फिल्में इंडिया का स्तर नीचे गिराती हैं." यहाँ खानों को अगर हम प्रतीक मान लें तो रामू का यह व्यंग्य समूचे बॉलीवुड पर ही लागू होता है. Amir Khan Movies and Social Message, Hindi Article, New, Dangal Movie, Promoting Girls, Essay on Bollywood in Hindi

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कुछ ऐसा ही बयान पिछले दिनों नसीरुद्दीन शाह ने स्व. राजेश खन्ना पर दिया था, जिस पर काफी बवाल मचा था. सवाल वही है कि तमाम फिल्ममेकर्स अपनी फिल्मों द्वारा सिवाय चंद सिक्के कमाने के बॉलीवुड और समाज को क्या दे रहे हैं? फिल्मों का नाम गिनाने की जरूरत नहीं है कि हमारे बॉलीवुड में कितनी घटिया फिल्में बनती हैं. अगर साल 2016 को ही देखें, तो बीतते बीतते इस साल मस्तीज़ादे, क्या कूल हैं हम 3, ग्रेट ग्रैंड मस्ती जैसी कुछ ऐसी घटिया फिल्में (Bad Movies in 2016, Hindi Article) बनीं जिसका नाम देना भी उचित नहीं लग रहा है. ऐसी बकवास फिल्मों की संख्या दर्जनों में हो सकती है. पर बात जब आमिर खान के रेंज की करते हैं तो मामला ख़ास हो ही जाता है. अब दंगल को ही ले लीजिये, साल बीतते-बीतते भारतीय दर्शकों को ख़ास सामाजिक सन्देश के साथ-साथ भरपूर मनोरंजन से आमिर ने सराबोर कर दिया. दिलचस्प यह कि वह आत्ममुग्ध होकर किसी फिल्म का हिस्सा नहीं बने हैं, बल्कि उनकी फिल्में जनमानस से सार्थक संवाद करने में भी उतनी ही कामयाब रही हैं. आप चाहे लगान, रंग दे बसंती, सरफ़रोश, पीपली लाइव, 3 इडियट्स या तारे जमीन पर की बात कर लें, उनकी अधिकांश फिल्में मील का पत्थर साबित हुई हैं, तो इस घड़ी में अब दंगल का नाम लिया जा रहा है. यह लेख लिखे जाने तक अधिकांश लोगों ने यह फिल्म देख ली होगी और बॉक्स ऑफिस पर इसके जो आंकड़े हैं, उसके अनुसार नोटबंदी का इस फिल्म की कमाई पर कुछ असर नहीं (Currency Ban effect on Bollywood) पड़ा है. हालाँकि, फिल्म पर मूल कहानी से छेड़छाड़ का आरोप भी लगा है, जिसमें नायिकाओं गीता, बबिता के ऑफिशियल कोच के रोल को नकारात्मक ढंग से दिखाने की बात है, किन्तु खेल संस्थानों में खिलाड़ियों के साथ राजनीति होना कोई नयी बात नहीं है. यह अलग बात है कि गीता, बबिता अभी एक्टिव प्लेयर्स हैं और इसलिए हर बात को वह खुलकर नहीं कह सकती हैं. वैसे, अगर ऐसा न भी हुआ हो तो 'सिनेमाई लिबर्टी' भी कोई चीज होती है और ऐसे में राय का पहाड़ नहीं बनाया जाना चाहिए. हम सबको खूबसूरत और संदेशपरक फिल्म के लिए आमिर की तारीफ़ करनी चाहिए. जाहिर तौर पर इसका क्रेडिट आमिर की मेहनत और उनकी टीम के समर्पण को ही जाता है. Amir Khan Movies and Social Message, Hindi Article, New, Dangal Movie, Promoting Girls, Essay on Bollywood in Hindi


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दंगल की कहानी लगभग सबको ही पता है कि किस तरह से एक बाप अपनी बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए समाज से लड़ता है और ताउम्र अपनी इस दृढ़ता पर टिका भी रहता है. ऐसा कहना न्यायोचित नहीं होगा कि इस तरह के उदाहरण पूरे देश में सिर्फ एक या दो ही हैं, बल्कि समाज के हर हिस्से में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, किंतु जिस बढ़िया ढंग से संवाद और लड़कियों को समाज में प्रमोट (Beti Bachao, Beti Padhao, Hindi Article) करने की बात आमिर ने जनमानस तक पहुंचाई है, उसकी तुलना किसी अन्य चीज से नहीं की जा सकती. जरा गौर कीजिए, अब तो समाज कुछ हद तक आधुनिक भी बनने लगा है किंतु कुछ समय पहले तक क्या हालात थे, यह भला किसे ज्ञात नहीं है? कुछ सालों पहले तक महिलाएं यदि कार्य करती भी थीं, तो पढ़ाई के क्षेत्र जैसे इंजीनियरिंग या डॉक्टर बनने में ही उनका भविष्य ढूंढा जाता था. ऐसे में, पहलवानी जैसे पुरुष वर्चस्व के खेल में लड़कियों को प्रमोट करने वाले महावीर फोगाट (Mahabir Fogat, Geeta and Babita Fogat Story in Hindi) जैसा व्यक्तित्व भला कैसे प्रेरित नहीं करेगा? फिल्म के रिव्यू तमाम वेबसाइट और अखबारों में बेहद सकरात्मक हैं और इसे देखने के बाद मन में एक अजीब आत्मिक शांति का एहसास होता है. आमिर खान की यही खूबी उनको सबसे खास बनाती है और फिल्में, खासकर बॉलीवुड की आएंगी जाएंगी किंतु आमिर का स्थान सार्थक फिल्में बनाने और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के मामले में फ़िल्मी तारामंडल में ध्रुव तारे के समान रहेगा. एकाध विवादों को छोड़ दिया जाए तो आमिर एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर हमेशा से अपनी चमक बिखेरते आये हैं, जिसकी उम्मीद उनसे आगे भी की जा सकती है. पिछले दिनों सहिष्णुता, असहिष्णुता विवाद में आमिर के गलत तरीके से कूदे जाने पर खूब बवाल हुआ था (Tolerance, Intolerance controversy and Amir Khan statement, Hindi Views). कई जगह लोगों ने उनका विरोध किया, किंतु उस प्रकरण को अमीर का क्षणिक आवेग माना जा सकता है, जो कई बार परिस्थितियों के वशीभूत होकर बाहर आ जाता है. कई बार आप सो रहे होते हैं और अचानक कोई आकर चिल्लाता है कि बाहर आग लग गई है तो आप उस परिस्थिति के वशीभूत हो ही जाते हैं. बहुत कम लोग जहमत उठाते हैं सच्चाई परखने की और फिर अपनी मनः स्थिति को काबू कर पाते हैं कि बाहर देख भी लिया जाए, हकीकत! टॉलरेंस, इंटॉलरेंस विवाद में आमिर की जो छीछालेदर हुई उससे उनको निश्चित रूप से सीख मिली होगी, किन्तु इस एक प्रकरण से उनके फिल्म निर्माण और सार्थक संवाद करने की कला पर रत्ती भर भी प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया जा सकता. उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले सालों में आमिर के द्वारा और भी बेहतरीन फिल्में हमें देखने सुनने को मिलेगी. उनकी सार्थक फिल्मों के लिए उनकी ही फिल्म 3 इडियट का एक डायलॉग तो बनता है कि जहाँपना, तुसी ग्रेट हो तोहफा कुबूल करो!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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