Rahul Gandhi Possibilities in Politics, Hindi Satire, New, Marriage of Congress vice President |
लेख का टाइटल थोड़ा अजीब तो है, पर क्या करें लेख भी 'अजीब' आदमी के बारे में ही है. पिछले कुछ दिनों से राहुल गांधी के अंदर जिस तरह का कांफिडेंस आया हुआ है उसके दम पर वह अपने शादी के लिए दावा जरूर ठोक सकते हैं. आज़ादी के बाद भारतीय राजनीतिक इतिहास में राहुल गांधी की तरह शायद ही ऐसा कोई नेता हुआ है जिसका इतने लंबे समय तक और इतने व्यापक स्तर पर मजाक उड़ाया गया हो. तमाम नेताओं की तरह भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक राहुल गांधी की समझ पर मजाक उड़ाते नजर आए हैं और पीएम को यह तक कहते सुना गया है कि 'पहले पता ही नहीं चलता था कि पैकेट में क्या है, पर चूंकि राहुल गांधी बोलने लगे हैं, इसलिए अब कुछ बातें समझ में जरूर आने लगी हैं. टीका-टिपण्णी से इतर अगर बात करें तो, राहुल गांधी के बोलने, न बोलने पर तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र पीएचडी तक कर सकते हैं तो नए ज़माने के स्क्रिप्ट राइटर उन फिल्मों की स्क्रिप्ट दोबारा लिखकर रीमेक की आस लगा सकते हैं, जो फिल्में पहले फ्लॉप हो गयी थीं. शायद पुराने माल की नई पैकिंग देखकर वह फिल्में भी 'हिट' हो जाएं और राहुल गांधी को भी राजनीति में हिट होने का कोई फार्मूला समझ आ जाए. मैं अपनी बात कहूं तो मुझे इस बात का यकीन नहीं हुआ कि राहुल गांधी के साथ प्रेस कांफ्रेंस में पश्चिम बंगाल की धाकड़ नेत्री ममता बनर्जी थीं और खुद राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के नोट बंदी फैसले पर मजबूती से सवाल उठाते नज़र आते हैं! वह किसी मझे हुए नेता की तरह जवाबदेही की मांग कर रहे हैं, तो हर किसी को आश्चर्य होना चाहिए कि हुज़ूर देर से ही सही, जगे तो! Rahul Gandhi Possibilities in Politics, Hindi Satire, New, Marriage of Congress vice President
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और पीएम पद की दावेदारी मजबूत हो न हो, पर दूल्हा बनने की दावेदारी तो पक्की हो ही जायेगी. सच कहा जाए तो राहुल गांधी में इस बार थोड़ा दमखम अवश्य दिखा है, हालांकि उनका यह व्यवहार कितने समय तक रहने वाला है, यह अवश्य देखने वाली बात होगी. पहले भी तो वह अपने कुर्ते की बाहें चढ़ाकर कागज फाड़ चुके हैं, तो जोश जोश में आलू की फैक्ट्रियां तक लगा चुके हैं. पर अफ़सोस कि न तो उनकी फैक्ट्री से आलू, मेरा मतलब कार्यकर्ताओं का समर्थन आता है और जन समर्थन तो फिर भी दूर की ही कौड़ी है. राहुल गांधी के शुरू से कांग्रेस का युवराज बनने में कोई शंका तो थी नहीं और शायद राहुल भी मान बैठे थे कि उन्हें एक सक्षम नेता का पद थाल में बैठे-बिठाए मिल जाएगा, इसलिए उन्हें संघर्ष करने की कोई खास आवश्यकता नहीं दिखी थी, पर यहां तो भारतीय इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं कि राजा या राजा का पुत्र होने के बावजूद राजकुमार राम को भी 14 साल वन में वनवास जाना पड़ा है, तभी वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम का दर्जा हासिल कर सके हैं. वहीं, हस्तिनापुर जैसे शक्तिशाली राज्य का युवराज होने के बावजूद युधिष्ठिर और उनके भाइयों को वन-वन भटकना पड़ा है, तभी वह धर्मराज और सम्राट की पदवी हासिल कर सके थे. ऐसे में राहुल किस खेत की मूली ठहरे! राजनीति में आने के बाद शुरूआती बेपरवाही उनके विकास में बड़ी बाधा बनी, इस बात में कोई दो राय नहीं! काश, सोनिया गाँधी उस तरह से राहुल गाँधी को ट्रेनिंग देतीं, जैसी ट्रेनिंग अखिलेश को आज कल मुलायम सिंह यादव दे रहे हैं. आखिर, मुलायम अखिलेश को लतियाते नहीं तो उनका दिमाग कैसे चलता और कैसे उनका अपना समर्थक वर्ग खड़ा होता? अगर राजनीति में आपको जबरदस्त ढंग से चुनौतियां नहीं मिलीं तो फिर आप समझ लीजिये कि आपके पास समर्थक कम और चापलूस कहीं ज्यादा संख्या में हैं. जहाँ तक बात राहुल गांधी की है तो वह अस्थिर टाइप के व्यक्ति रहे हैं, जो कभी कुछ बात करता है तो कभी कुछ! वहीं जब जिम्मेदारी संभालने की बात आती है तो 'नौ दो ग्यारह' हो जाता है. Rahul Gandhi Possibilities in Politics, Hindi Satire, New, Marriage of Congress vice President
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे अपने कार्यकाल के दौरान कोई मंत्रालय संभालकर कामकाज करने की अपील करते रहे, किन्तु राहुल बाबा जिम्मेदारी से भागते रहे. अंततः राजनीति में दशक भर से ज्यादा समय गुजार लेने के पश्चात् भी उनका राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव शून्य ही है. चूंकि कांग्रेस तो उनका खानदानी पेशा रहा है, इसलिए स्वभाविक रुप से पहले वह महासचिव और फिर कांग्रेस के उपाध्यक्ष बन गए, वरना ... सुब्रमण्यम स्वामी की तमाम टिप्पणियां उनके बारे में आप देख सुन लीजिये! राहुल को समझना चाहिए था कि बिना परीक्षा दिए यहां तो सीता तक को मान्यता नहीं मिली, तो फिर वह क्या चीज हैं. और इसलिए जनता ने 44 सीटें देकर राहुल गांधी को कसौटी पर कसने का मन बना ही लिया. तमाम आंकड़ों के साथ यूपीए, खासकर कांग्रेस की इतनी बुरी दुर्गति का एक कारण मुझे लोगों की मनोस्थिति में नज़र आता है, जो राहुल गांधी से जुड़ी हुई है. निश्चित रूप से भारत का आम जनमानस राहुल गांधी को 'पप्पू' ही समझता रहा है और राहुल गांधी ने भी अब तक अपने व्यवहार से इस उपनाम को काफी सार्थक साबित किया है. पर अब यदि समय बदलता है और राहुल गांधी की मानसिकता बदलती है तो इसे उनके लिए फायदेमंद ही समझा जाना चाहिए. साथ ही साथ भारतीय लोकतंत्र में भी भाजपा के विपक्ष में कांग्रेस खड़ी रहने का साहस बदले राहुल के दम पर अवश्य जुटा सकेगी. देखा जाए तो नोट बंदी पर राहुल गांधी की सक्रियता से जनमानस का थोड़ा ही सही, उन्हें समर्थन भी मिला है. जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी पर उन्होंने व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के हमले किए उसे भी मीडिया में तवज्जो दी गई. हालांकि, यह बात अलग है कि सहारा की डायरी प्रकरण में उनकी कांग्रेस की ही शीला दीक्षित लिपटी हुई हैं, और इसलिए मामला कमजोर सा पड़ता दिखाई दिया. Rahul Gandhi Possibilities in Politics, Hindi Satire, New, Marriage of Congress vice President
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राहुल गांधी को सर्वाधिक चर्चा तब मिली, जब वाराणसी की अपनी रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी नक़ल उतारी. इस पर कांग्रेस के पी चिदंबरम जैसे नेताओं ने राहुल गांधी का पक्ष लेते हुए कहा कि राहुल का मजाक उड़ाने की जगह प्रधानमंत्री को अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब देना चाहिए. हालाँकि, इतने भर से ही राहुल गांधी में कोई बहुत बड़ी संभावना देखना जल्दबाजी ही कही जाएगी. हां, एक्टिव रहकर वह शादी करने लायक अवश्य हो गए हैं. पिछले दिनों यह विश्लेषण जोर-शोर से हवा में उछला था कि कांग्रेस तो राहुल गांधी से मुक्त हो नहीं सकती और इसलिए क्यों न राहुल गांधी शादी ही कर लें, शायद कुछ परिवर्तन नज़र आये. कई विश्लेषकों ने ऐसे में राहुल गांधी को शादी करने का सुझाव दे डाला, क्योंकि भारतीय जनता काफी हद तक भावुक होती है और राहुल गांधी पर उसे सहानुभूति आए ना आए किंतु राहुल की पत्नी शायद जनता से कनेक्ट हो सके! देखा जाए तो राहुल गांधी के पास पर्याप्त समय है और उन्हें गृहस्थी बसा लेनी चाहिए. अगर इस कठिन दौर में वह शादी कर लेते हैं तो यह कांग्रेस के लिए भी रामबाण साबित हो सकता है, तो चर्चा में रहने का राहुल के पास एक मजबूत अस्त्र हाथ आ जाएगा. वहीं कुल मिलाकर देशवासी भी यही चाहेंगे और लोकतंत्र के हित में भी यही है कि 'देश में पक्ष और विपक्ष दोनों ही रहे! चूंकि, भारतीय जनता पार्टी अब राष्ट्रव्यापी पार्टी बन चुकी है ऐसे में कांग्रेस या दूसरी पार्टी का विपक्ष में मजबूत रहना भी उतना ही आवश्यक है, ताकि तानाशाही और उलजलूल निर्णयों से देश को बचाया जा सके. क्योंकि दूसरी कोई पार्टी अभी इस अवस्था में दिखती नहीं है कि उसका राष्ट्रव्यापी जनाधार हो, इसलिए तब तक कांग्रेस और राहुल गांधी ही सही! पर इसके लिए राहुल गांधी को शादी अवश्य ही कर लेनी चाहिए और इस बात पर अगर प्री-मैरिज सर्वे कराया जाए तो उम्मीद है कि राहुल गांधी की शादी के पक्ष में जनता भारी समर्थन जताएगी. आप क्या कहते हैं?
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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