हम सबने वह कहावत तो सुनी ही है कि 'प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर'! जाहिर सी बात है कि किसी बीमारी के इलाज में जितना समय और ऊर्जा खर्च होती है, उससे काफी काम ऊर्जा और थोड़ी सावधानी में हम काफी सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. बात जब आपके कंप्यूटर, ऑनलाइन डेटा और हैकिंग जैसे विषयों की हो रही हो तब तो यह और भी ख़ास हो जाता है. पिछले दिनों मैं एक कंप्यूटर एक्सपर्ट से मिला था और उन्होंने बातों ही बातों में बताया की स्पैमिंग, फिशिंग और वायरस जैसे तमाम दुसरे टर्म्स के लिए 'हैकर्स' को खासी रकम मिलती है और यह रकम उन्हें देती हैं बड़ी मल्टी नेशनल कंपनियां, ताकि उनके 'सिक्योरिटी प्रोडक्ट्स' बिक सकें अथवा प्राप्त सूचना के आधार पर बड़ी कंपनियां अपनी रणनीति बना सकें. खैर, यह बात अपनी जगह सही या गलत हो सकती है, किन्तु अगर हम सावधान रहते हैं तो काफी हद तक समस्या से बचा जा सकता है. इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातों पर अवश्य ही गौर किया जा सकता है:
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पासवर्ड्स हैकिंग एवं फिशिंग से बचें (Passwords hacking and Fishing): ज़रा सोचिये, अगर आपके कंप्यूटर का, मेल का, वेबसाइट एडमिन का पासवर्ड किसी के हाथ लग जाए तो? तो फिर न केवल उससे आपकी व्यक्तिगत या प्रोफेशनल सूचनाएं सार्वजनिक होने का खतरा रहता है, बल्कि डेटा लॉस से लेकर डेटा डिलीट होने तक का रिस्क आपके सामने रहता है. आज की दुनिया में, यह विचार करना ही कितना भयावह है कि आपकी मुख्य मेल आईडी हैक हो जाए अथवा आपके कंप्यूटर का डेटा करप्ट हो जाए. ऐसे में पासवर्ड को 'कठिन' रखना आप जानते ही हैं, जिसमें कैपिटल, स्माल लेटर्स के साथ नम्बर्स एवं स्पेशल कैरेक्टर्स का प्रयोग शामिल है तो इसको समय-समय पर बदलते रहना भी एक अच्छा विकल्प है. अगर आपने सावधानी से यह प्रक्रिया पूरी कर ली है तो फिर आपको 'फिशिंग' से सर्वाधिक सावधानी की आवश्यकता है. यह कुछ ऐसा है कि आपकी मेल पर एक लिंक आता है और उसे क्लिक करने पर आपके सामने हूबहू जीमेल या फेसबुक का लोगिन पेज दिखने लगता है. वस्तुतः यह हैकर्स की चाल होती है कि आप सामने दिख रहे पेज को जीमेल या फेसबुक समझकर अपना यूजर आईडी और पासवर्ड इंटर करें और ऐसा करते ही वह हैकर के पास चला जाता है. इससे बचने के लिए आपको किसी भी वेबसाइट का यूआरएल ब्राउज़र में खुद ही टाइप करना चाहिए और जीमेल, फेसबुक, ट्विटर इत्यादि बड़ी वेबसाइट के यूआरएल का सिक्योर (https) होना निश्चित कर लेना चाहिए. अंजान कंप्यूटर पर बैठते समय अगर आप अपने पासवर्ड को हैक होने से बचाना चाहते हैं तो आपको 'प्राइवेट ब्राउज़िंग' (Incognito Window) करना चाहिए, जबकि पासवर्ड रेमेम्बेर करने का ऑप्शन ब्राउज़र द्वारा पूछते ही मना कर देना चाहिए.
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ईमेल की सुरक्षा (Security of Email): ऑनलाइन दुनिया में अगर सुरक्षा से सम्बंधित किसी रिस्क की बात होती है तो उसमें सर्वाधिक चर्चा ईमेल पर रिस्क की ही होती है. ज़रा सोचिये, अगर आपकी ईमेल का पासवर्ड किसी के हाथ लग गया तो वह क्या-क्या कर सकता है? ज़रा कल्पना कीजिये कि आपकी कांटेक्ट लिस्ट में जितनी मेल आईडी हैं, उन पर कोई अश्लील वीडियो का स्पैम-लिंक भेज दे तो? जाहिर है, यह खतरा कहीं ज्यादा बड़ा है और आपको अपनी सेंट-मेल में भेजी गयी मेल पर भी कभी-कभार नज़र घुमा लेनी चाहिए. अगर कुछ ऐसी मेल नज़र आएं, जिन्हें आपने नहीं भेजा है तो तुरंत अलर्ट हो जाएँ और अपने पासवर्ड चेंज करने के साथ ही 'लोग आउट अदर डिवाइसेज' करें, जिससे खतरा कम हो सके. आम तौर पर देखा जाता है कि आपकी मेल आईडी हैक करने के बाद भी हैकर उसका पासवर्ड बदलने में रुचि नहीं रखता है और बहुधा आपकी मेल आईडी पुराने पासवर्ड से ही खुल जाती है. खुदा न खास्ता, अगर आपका पासवर्ड भी बदल दिया गया है तो तुरंत ही रिकवरी मेल्स और रिकवरी फोन्स की सहायता से उसका पासवर्ड रीसेट करने का प्रयत्न करें. बावजूद इसके अगर आप सफल न हों तो इसकी कानूनी रिपोर्ट करने में देरी न करें, अन्यथा आपकी मेल से हुई किसी गैर कानूनी गतिविधि के झमेले में आप भी पड़ सकते हैं. यह कुछ-कुछ आपके फोन के सिम की तरह है और जो प्रक्रिया आप फोन के सिम गुम होने पर अपनाते हैं, कुछ-कुछ वही प्रक्रिया ईमेल के हैक होने पर भी अपनाएं. और हाँ, अपने ईमेल की सेटिंग चेक करते समय 'फॉरवार्डिंग रूल्स' पर भी जरूर ध्यान दें कि कहीं आपकी फ्यूचर मेल्स तो कहीं नहीं जा रही हैं न! हालाँकि, ईमेल हैकिंग से बचने के लिए 2 वे ऑथेंटिकेशन प्रक्रिया को अपनाएं जो जीमेल जैसे कई सर्विस प्रोवाइडर प्रदान करते हैं. इस क्रम में मालवेयर से सावधानी रखना भी उतना ही आवश्यक है.
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क्रेडिट/ डेबिट कार्ड फ्रॉड (Credit/ Debit Card Fraud): यह एक ऐसा फ्रॉड है, जिससे आपको डायरेक्ट चूना लग सकता है, अगर आपने जरा भी असावधानी बरती. इसे हैक करने के लिए भी 'फिशिंग' जैसी टेक्निक्स काम में लाई जाती हैं तो ऑफलाइन भी इसके लिए काफी दुष्प्रयास किये जाते हैं. आप यदि बैंकों की ब्रांच में जाएँ तो वहां बड़े-बड़े अक्षरों में लटके बैनर आपको हिदायत देते मिलेंगे कि 'आपका बैंक आपसे अकाउंट सम्बंधित जानकारी फोन पर नहीं मांगता है, अतः अपने क्रेडिट/ डेबिट कार्ड की डिटेल किसी को न दें.' होता क्या है कि आपको आपकी ही भाषा वाली किसी लड़की या लड़के का फोन आता है, जो कहता है कि वह 'अमुक बैंक से बोल रहा है और फिर धीरे-धीरे आपसे जानकारियां लेना प्रारम्भ करता है. नाम, पता, अकाउंट न. क्रेडिट कार्ड डिटेल .... ... !! ऐसे में, कई लोग फंस जाते हैं और फिर उनको कुछ देर बाद पता चलता है कि उनके अकाउंट से रूपये निकल चुके हैं. अगर ऐसा मेसेज आपके मोबाइल पर आता भी है तो तुरंत अपने बैंक से संपर्क करें. हालाँकि, बेहतर यह होगा कि आप ऐसे किसी जाल में फंसे ही नहीं. इसके लिए आप सिक्योर सर्वर (https) वेबसाइट के अतिरिक्त दूसरी किसी वेबसाइट का कतई प्रयोग न करें तो जानी पहचानी और ठीक ठाक कंपनियों के अतिरिक्त अंजान वेबसाइट पर क्रेडिट कार्ड डिटेल डालने से परहेज करें और अगर ऐसा करना जरूरी ही हो तो उस वेबसाइट और कंपनी का फिजिकल एड्रेस अवश्य ही चेक करें. सर्वे बताते हैं कि ऑनलाइन खरीददारी के लिए प्रीपेड कार्ड एक बढ़िया विकल्प होते हैं, जिसमें आप जरूरत के अनुसार राशि ही रखते हैं. वैसे आजकल अधिकांश कार्ड्स में एडेड लेयर सुरक्षा आती है, जो ओटीपी के माध्यम से ही आगे बढ़ती है, फिर भी पुराने कार्ड होल्डर्स को सावधानी बरतने की आवश्यकता है. तमाम विशेषज्ञ पब्लिक कम्प्यूटर्स और सार्वजनिक वाईफाई को शॉपिंग के लिए ठीक नहीं मानते हैं.
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स्मार्टफोन / टैबलेट सिक्योरिटी (Smartphone / Tablet Security): कंप्यूटर और लैपटॉप पर तो एकबारगी सुरक्षा-सम्बन्धी खतरे कुछ कम माने जा सकते हैं तो आपके स्मार्टफोन पर और भी ज्यादा अलर्ट और सावधानियों की आवश्यकता है. साफ़ है कि आपका स्मार्टफोन अब केवल एक फोन भर नहीं है, बल्कि वह एक पूरा कंप्यूटर पॅकेज या फिर उससे ज्यादा है. ज़रा गौर कीजिये, आपके स्मार्टफोन में वह सारे एप्लिकेशन और ओटीपी के लिए सिम तक मौजूद हैं, जिससे हैकिंग और भी आसान हो जाती है. इसके लिए आपको कहीं ज्यादा सजगता की आवश्यकता है. कई लोग बैंकिंग के लिए ऐप्स फोन में इंस्टॉल करके रखते हैं, जो उनको सहूलियत तो अवश्य ही देता है, किन्तु अगर आपका फोन सुरक्षित और कोड से लॉक नहीं है तो किसी के हाथ लगने पर यह आपका भारी नुक्सान करा सकता है. हम, आप रेस्टोरेंट में, मीटिंग में, सिनेमा में जहाँ कहीं जाते हैं फोन हमारे साथ होता है और कई बार ऐसा होता है कि हमारी ही गलती से वह कहीं छूट जाता है तो कई बार उस पर गलत लोग हाथ भी साफ़ कर देते हैं. ऐसी स्थितियों में आपकी मेल, आपके सोशल अकाउंट्स, पर्सनल फोटोज, बैंकिंग एप्लिकेशन का एक्सेस भी उस व्यक्ति के हाथ में चला जाता है. ऐसे में जरूरी है कि आप 'लॉक कोड', 'अपनी मोबाइल ब्राउज़िंग ट्रैकिंग ऑफ करना', रिकवरी ऐप इंस्टॉल करना, ओनर की कांटेक्ट डिटेल मोबाइल में फीड रखना और इन सबसे बढ़कर फिजिकली अपने फोन को सुरक्षित रखना सीख जाएँ. बहुत हद तक यह भी ठीक रहेगा कि आप बेहद जरूरी एप्लिकेशन ही फोन में रखें तो आर्थिक लेन-देन अपने लैपटॉप या कंप्यूटर से करें. स्पैम कॉल्स और एप्लीकेशनस में दिखाये जाने वाले विज्ञापनों को क्लिक करने से अवश्य बचें तो गूगल प्ले स्टोर या एप्पल स्टोर से ही एप्लिकेशन इंस्टॉल करने को प्राथमिकता दें.
जाहिर है कि सुरक्षा एक ऐसा विषय है, जिसकी आवश्यकता हमेशा ही रहती है और बदलते तकनीकी युग में तो यह और भी आवश्यक हो जाता है. तकनीक से निश्चित तौर पर आपको काफी सहूलियतें मिली हैं, किन्तु अगर आप सुरक्षित नहीं हैं तो इसी तकनीक की सहायता से गलत तत्व आपको बर्बाद कर सकते हैं. इसलिए, तकनीक का इस्तेमाल अवश्य करें, स्मार्टफोन और इंटरनेट का इस्तेमाल खूब करें, किन्तु 'सुरक्षा' के साथ!
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