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मुम्बई हाई कोर्ट का मुस्लिम महिलाओं पर असाधारण फैसला! Mumbai High Court decision on Haji Ali Dargah, Hindi Article, New, Muslim women, Terrorism, Mother, Good Way



आप इस दुनिया से महिलाओं की आज़ादी को निकाल दीजिये और फिर आप में और पुराने काल के राक्षसों में कुछ ख़ास फर्क नहीं रह जायेगा! ज़रा व्यवहारिक ढंग से आप सोचें तो बेहद साफ़ तौर पर देख सकेंगे कि जो परिवार, जो समाज या जो देश महिलाओं को हर तरह की आज़ादी देने में आनाकानी करता रहा है, वह असफल और हाशिये पर ही रहा है. आप पश्चिमी देशों और एशियाई देशों या फिर मुस्लिम कंट्रीज की तुलना ही कर लें, तो आप समझ जायेंगे कि इन समाजों में जो सबसे बड़ा अंतर है, वह आधी आबादी के विकास को लेकर ही है. भारतीय समाज, खासकर हिन्दू समाज भी काफी हद तक महिला अधिकारों (Mumbai High Court decision on Haji Ali Dargah, Hindi Article, New, Muslim women. Human Rights, Real) को लेकर उहापोह में रहा है, किन्तु धीरे-धीरे ही सही, महिलाओं के आगे बढ़ने के रास्ते से वह रूकावटें हटाने लगा है. हमें यह स्वीकार करने में किसी प्रकार का गुरेज नहीं होना चाहिए कि मुस्लिम महिलाएं आज भी कई तरह की बंदिशों का सामना कर रही हैं, बल्कि कुछ बंदिशें और नियम तो घोर मानवाधिकारों के उल्लंघन तक में आते हैं. पर मुश्किल यह है कि 21वीं सदी में भी इस्लामी कानूनों की आड़ में उनपर जुल्म किया जा रहा है और यह शिक्षा, बाहरी दुनिया में मुस्लिम महिलाओं के विकास और उनके आत्मविश्वास पर गहरा असर डालता है. ऐसे में, मुम्बई हाई कोर्ट के उस निर्णय का तहे दिल से स्वागत करना चाहिए, जिसने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की अँधेरी दुनिया में रौशनी की एक सुराख बना दी है. 

कब आएंगे 'मुस्लिम औरतों' के अच्छे दिन! 

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जाहिर है, आने वाले दिनों में वह सुराख बड़ी ही होने वाली है और इसके लिए भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन जैसे संगठनों के तले मुस्लिम महिलाएं संघर्ष करने को तत्पर भी हो रही हैं. गौरतलब है कि बाम्बे हाई कोर्ट ने महिलाओं को हाजी अली दरगाह में मज़ार के भीतर तक जाने की अनुमति दे दी है. बताते चलें कि पहले महिलाएं सिर्फ़ बाहर तक ही जा पाती थीं, अंदर मज़ार तक जाने की अनुमति उन्हें नहीं थी और इसके ख़िलाफ़ मुस्लिम महिला आंदोलन नामक संस्था ने बाम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि जहां तक मर्द जा सकते हैं वहां तक औरतों को जाने की अनुमति होनी चाहिए. काफी होहल्ले और हंगामे के बाद इस याचिका पर फ़ैसला देते हुए ही बाम्बे हाई कोर्ट ने महिलाओं को दरगाह के भीतर तक जाने की अनुमति दी है. हालाँकि, हाई कोर्ट का ये फ़ैसला तत्काल प्रभाव से लागू नहीं होगा, जबकि हाजी अली ट्रस्ट का कहना है कि वो इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. समझा जा सकता है कि मुस्लिम महिलाओं की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है, जैसे शिंगणापुर के शनि मंदिर में प्रवेश को लेकर हिन्दू महिलाओं की हुई थी. आपके ध्यान में होगा ही कि ठीक हाजी अली मंदिर की ही तरह 400 साल पुराने शनि मंदिर में प्रवेश को लेकर खूब आंदोलन चला था, हो हल्ला हुआ किन्तु कोर्ट के निर्णय के बाद समाज और मंदिर प्रशासन ने उसे स्वीकार कर लिया. 



ऐसे में कहाँ तक मुस्लिम समाज और हाजी अली दरगाह ट्रस्ट को इससे सीख लेकर मुस्लिम महिलाओं के आगे बढ़ने की राह से पत्थर हटाने चाहिए, तो वह मामले को खींचने में लगे हुए हैं. कई मित्र और विद्वान तर्क देंगे कि हाजी अली की मुख्य मजार तक आखिर मुस्लिम महिलाएं क्यों जाना चाहती हैं तो उनके इस प्रकार के कुतर्क का एक ही जवाब हो सकता है कि महिलाओं को जाने से रोका ही क्यों जाना चाहिए? वह भी इबादत स्थल पर! हम आप आये दिन इस प्रकार के उदाहरण देखते हैं कि जिन घरों की महिलाएं सशक्त नहीं होती हैं, उनसे पुरुष किस-किस प्रकार की बहानेबाजी करते हैं, जो कई बार धोखेबाजी (Mumbai High Court decision on Haji Ali Dargah, Hindi Article, New, Muslim women, Terrorism, Cheating) तक में तब्दील हो जाती है. कई पुरुष तो शराब तक पीने को अपनी जरूरत और सोसायटी की मांग ठहरा देते हैं, किन्तु वही महिला जब सशक्त होती है तो वह हर कुतर्क का उचित ढंग से जवाब देती है. बात जब मुस्लिम समाज की महिलाओं की करते हैं तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है. कई पाबंदियों से मुस्लिम महिलाओं का तो जो नुकसान होता है, वह अपनी जगह है, किन्तु सबसे बड़ा नुक्सान समूचे मुस्लिम समाज का होता है. इस बात को थोड़ी साफगोई से हम कुछ यूं समझ सकते हैं कि आज कमोबेश यह स्वीकार कर लिया गया है कि मुस्लिम धर्म को मानने वाले अधिसंख्य लोग आतंकवाद की सीमा तक कट्टर होते हैं, जिनमें कई तो धर्मांध होकर यहाँ वहां, जहाँ तहाँ विस्फोट करते रहते हैं, लोगों को मारते और खुद भी मरते रहते हैं. 


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यह बात गारंटी से मान लेनी चाहिए कि अगर मुस्लिम महिलाओं को किसी ईसाई या हिन्दू महिला की भांति आज़ादी और स्वतंत्रता मिल जाए तो इस्लाम को मानने वालों में कट्टरपंथ की मात्रा बेहद कम हो जाएगी. महिलाओं को कुदरत ने प्राकृतिक उपहार दिया है कि वह अपने बच्चों के हित को बेहतर समझ सकती है, ऊपर वाले से भी ज्यादा! माँ के पांवों के नीचे जन्नत होने की बात सब स्वीकारते हैं और जब उसी माँ को अपनी संतान के भविष्य के बारे में फैसला करने से रोका जाता है, उसे समाज के साथ कदम से कदम मिलाने से रोका जाता है तो फिर 'कट्टरपंथ' की उपज स्वाभाविक ही है. ऐसे में समाजशास्त्रियों और मुस्लिम विद्वानों ( Mumbai High Court decision on Haji Ali Dargah, Hindi Article, New, Muslim women, Terrorism, Mother, Thought on Topic) को भी इन बातों पर ईमान से विचार और क्रियान्वयन करना चाहिए. हालाँकि, इस सन्दर्भ में मुम्बई हाई कोर्ट के दूरगामी फैसले को समझने की बजाय इसकी काट-छांट में लगे ठेकेदारों को कितनी समझ आएगी, इस बात को समझना कुछ खास मुश्किल नहीं है, किन्तु कोर्ट के फैसले में काट-छांट करने वालों को समझ लेना चाहिए कि अब उनके सामने सिर्फ एक या दो मुस्लिम महिलाएं ही नहीं खड़ी हैं, बल्कि बदलते दौर में हर एक मुस्लिम महिला अपने अधिकारों के लिए खड़ी होकर लड़ने का मन बना रही है और यही इस आंदोलन की सबसे सकारात्मक चीज है और इसी से सबसे बड़ा बदलाव भी आएगा, जो दुनिया को कट्टरपंथ, धर्मान्धता और आतंकवाद की राह से मोड़कर बेहद सहजता और सरलता से प्रेम, ममता, शांति और सुख की राह पर लाएगा! जी हैं, बेहद सहजता से... !!!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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