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बाप रे बाप, मुलायम का ऐसा भयानक दांव!

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कई बार अपच हो जाने से मेरा पेट खराब हो जाता है तो मैं 'कायम चूर्ण' का सेवन कर लेता हूँ. हाल-फिलहाल, बाबा रामदेव का चूरन भी लाया हूँ. उत्तर प्रदेश में पिछले दो-तीन दिनों से जो हलचल मची है और ऊपर ऊपर जो कहानी दिख रही थी, वह पच ही नहीं रही थी. 

दोनों चूर्ण खाये मैंने, पर फिर भी यह बात पची नहीं कि अखिलेश को मुलायम सिंह ने इसलिए पार्टी से निकाल दिया क्योंकि उनके लड़के की छवि अपेक्षाकृत साफ़ सुथरी है और इस वोट बटोरू आधार पर वह अपने कैंडिडेट्स के लिए सपा का टिकट चाहता है. खैर, मेरी यह अपच दूर हुई 31 दिसंबर की सुबह, जब पार्टी से निकाले जाने के बाद अखिलेश यादव ने सपा के विधायकों की अपने समर्थन में बैठक बुलाई और तकरीबन 200 विधायक (संख्या बढ़ रही है लेख लिखने तक) अखिलेश के साथ खुलकर दिखे! वहीं मुलायम, शिवपाल के समर्थन में समाजवादी पार्टी के दफ्तर पर सिर्फ 14 विधायक पहुंचे (संख्या थोड़ी ऊपर नीचे हो सकती है). इसकी व्याख्या आगे की पंक्तियों में करेंगे, पहले बात करते हैं तमाम आवश्यक बिंदुओं की जो सिलसिलेवार एक दुसरे से जुड़ते जायेंगे. समाजवादी पार्टी में जो दंगल मचा हुआ है उस पर आमोखास हर एक की नज़र टिकी हुई है. राजनीति में जरा भी दिलचस्पी लेने वाले लोग बाग अपनी तरफ से इस पूरे मामलात को समझने की कोशिश भी कर रहे हैं. आपको शायद एक बार में यकीन ना हो, किंतु घटनाओं को क्रमवार जोड़ेंगे तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि यह पूरे का पूरा मामला मुलायम सिंह द्वारा चली गई भयंकर राजनीतिक चाल है, जिससे अखिलेश का कद और राजनीतिक प्रभाव निष्कंटक हो गया है. Akhilesh Yadav Hindi Article, New, Mulayam, Shivpal, Amar Singh and Politics, Depth Analysis of Samajwadi Party Drama

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जरा गौर कीजिए, अखिलेश यादव राजनीति से बिल्कुल नहीं जुड़े थे और वह सिडनी में पढ़ाई कर रहे थे. अचानक मुलायम सिंह का उनके पास फोन आता है कि तुम्हें चुनाव लड़ना है और अपने पिता का आदेश शिरोधार्य कर अखिलेश चुनाव लड़ते हैं और संसद सदस्य बन जाते हैं. फिर संगठन पर तमाम पकड़ के बावजूद शिवपाल यादव को हटाकर मुलायम अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष बनाते हैं, तो अखिलेश अपनी सक्रियता से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं में अपनी एक विनम्र छवि विकसित कर लेते हैं. उनकी साइकिल दौड़ से समाजवादी पार्टी 2012 में पूर्ण बहुमत से जीतती है और शिवपाल यादव के लाख प्रतिरोध के बावजूद अखिलेश यादव मुख्यमंत्री भी बनते हैं. चूंकि, प्रशासनिक अनुभव अखिलेश को हो जाए इसलिए मुलायम 5 साल तक उन्हें समय देते हैं कि उनके दायरे से वगैर बहुत बाहर जाए वह राजनीति को और प्रशासन करने के ढंग को समझें. अखिलेश अपने पिता की सलाह और मार्गदर्शन को समझते भी हैं, जिसके लिए उन्हें चाचा और आजम खान सहित कइयों के दबाव में काम भी करना पड़ता है. नियमित तौर पर इसके लिए वह मुलायम सिंह की डांट भी खाते हैं. अब इसके बाद की कहानी पर गौर करें! शिवपाल यादव की महत्वकांक्षाएं 5 साल से दबी-दबी बाहर आ जाती हैं और चुनाव के वक्त वह बगावत करने के मूड में आ जाते हैं. नाराज तो अखिलेश के सीएम बनने के समय से ही थे, पर उस समय अखिलेश सीएम बन चुके थे तो चार साल तक उन्हें यकीन भी रहा कि अखिलेश तो रबर स्टाम्प सीएम ही हैं और होगा वही जो शिवपाल चाहेंगे. अपनी मनमानी शिवपाल ने की भी और इसी मनमानी और अखिलेश को स्वीकार न कर पाने की 'शिवपाली टीस' ने मुलायम सिंह को वह स्क्रिप्ट तैयार करने के लिए मजबूर किया कि शिवपाल सहित अखिलेश के तमाम विरोधी चित्त हो जाएँ. मुलायम ने हालाँकि, शिवपाल को भरपूर मौका दिया, किन्तु अखिलेश की लगातार बेहतर होती छवि ने इस विधानसभा चुनाव में शिवपाल की महत्वाकांक्षा को आर-पार की लड़ाई हेतु मजबूर कर दिया. बस अब मुलायम सिंह द्वारा अपना प्लान एक्जिक्यूट करने का समय आ चुका था और 'सांप भी मर जाए, लाठी भी न टूटे' की तर्ज पर उन्होंने 'जीरो एरर' रणनीति के तहत इसे एक्जिक्यूट भी कर दिया. Akhilesh Yadav Hindi Article, New, Mulayam, Shivpal, Amar Singh and Politics, Depth Analysis of Samajwadi Party Drama

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पर्दे के सामने शिवपाल यादव का बगावती तेवर दिखलाकर मुलायम सपा कैडर को यह संदेश देने में कामयाब हुए कि शिवपाल अखिलेश को मुख्यमंत्री पद पर नहीं देखना चाहते हैं, क्योंकि खुद शिवपाल की सीएम पद की महत्वकांक्षा है. शिवपाल की पहली बगावत, जिसमें यूपी मंत्रिमंडल से हटाये जाने के बाद उन्होंने परिवार सहित इस्तीफा दे दिया था, उसके बाद मान मनौव्वल का दौर चला, जिसमें अमर सिंह को भी मोहरा बनाया गया. इस बीच अखिलेश को आर पार की लड़ाई के लिए मुलायम बेहतर ढंग से तैयार करते हैं तो उनके साथ सपा के चाणक्य कहे जाने वाले रामगोपाल को भी लगा देते हैं. यह बात शायद ही किसी को हजम हो कि अखिलेश जैसे युवा और कम अनुभवी राजनेता के सामने रामगोपाल जैसे वरिष्ठ दुम हिलाते नजर आएं, किंतु राजनीति कुछ ऐसी है कि शिवपाल के कद से हमेशा नाखुश रहे रामगोपाल अपनी अगली पीढ़ी के भविष्य की ओर कदम बढ़ा देते हैं. रामगोपाल के कई रिश्तेदार और उनका खुद का बेटा संसद सदस्य है, इसलिए उन्हें भविष्य की ओर देखना ज्यादा मुनासिब लगा, बजाय अपनी राजनीति देखने के! देखा जाए तो मुलायम सिंह और रामगोपाल दोनों एक ही नाव की सवारी कर रहे थे, जब उनकी राजनीति का सूरज ढल रहा था तो नई पीढ़ी का सूरज चमक रहा है. जाहिर तौर पर यह दोनों राजनीतिक खिलाड़ी अपनी अगली पीढ़ी की योजना बनाने में जुटे हुए थे तो शिवपाल अपनी लड़ाई लड़ने में जुटे रहे, जबकि लड़ाई तो पांच साल पहले ही सपा की अगली पीढ़ी में जा चुकी थी. अब इस पूरे गेम का प्लान देखिये, शिवपाल की इमेज सपा कैडर में विधिवत खराब हो चुकी है, तो अपराधियों को टिकट देने का मामला भी कुछ ऐसा उछला कि शिवपाल की जनता में छवि शून्य के करीब पहुँच चुकी है. आखिर मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद सहित दर्जनों आपराधिक पृष्ठभूमि के टिकटार्थियों की सूची जारी करने का दोष शिवपाल पर यूं ही तो नहीं मढ़ा गया? मुलायम सिंह यह स्थापित करने में पूरी तरह कामयाब रहे कि शिवपाल की वजह से ही अपराधियों को टिकट दिया जा रहा है, जबकि अखिलेश साफ़ सुथरी छवि के उम्मीदवारों को तरजीह दे रहे हैं. यह अलग बात है कि अलग से जो सूची अखिलेश ने जारी की है उसमें भी आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों की संख्या काफी है. खैर, असल बात तो छवि निर्माण की है और अखिलेश ने यहाँ बाजी मार ली. अखिलेश द्वारा सूची जारी करने को बगावत मानकर मुलायम सिंह झटके से उन्हें पार्टी से निकालते हैं और यह सन्देश भी प्रेषित कर देते हैं कि ऐसा उन्होंने शिवपाल के दबाव में किया. साथ में रामगोपाल को भी निकाला जाता है. अब ज़रा सोचिये, कि अगर मुलायम को सक्रीय राजनीति करनी ही होती तो 5 साल पहले वह अखिलेश को मुख्यमंत्री ही क्यों बनाते? Akhilesh Yadav Hindi Article, New, Mulayam, Shivpal, Amar Singh and Politics, Depth Analysis of Samajwadi Party Drama



अखिलेश को मुलायम ने न केवल सीएम बनाया, बल्कि 5 साल उसके लिए बैटिंग भी की और शिवपाल इत्यादि की बगावत को सक्रीय ढंग से थामे रहे! ऐसी मेहनत से लगाए गए पौधे, जो बढ़िया फल भी दे रहा है, उसे एक झटके में उन्होंने पार्टी से निकाल दिया, यह बात रामदेव का चूर्ण खाकर भी हजम होने वाली नहीं थी, सो मुझे भी नहीं हुई! अब अगले दिन का घटनाक्रम देखें विधायकों प्रत्याशियों की मीटिंग मुलायम सिंह भी बुलाते हैं और अखिलेश यादव भी बुलाते हैं और यहाँ सब साफ़ हो जाता है. शिवपाल यादव के समर्थन में दर्जन भर से ज्यादा विधायक नज़र नहीं आये! जो लोग यह सोचते हैं कि बिना मुलायम के समर्थन के इतनी भारी मात्रा में विधायक अखिलेश का समर्थन कर सकते हैं, उन्हें राजनीति का ज्यादा ज्ञान नहीं होगा. सपा में कई विधायक, जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जिन पर मुलायम सिंह का लंबा एहसान है और ना ना करते भी मुलायम सिंह के कहने पर सपा में बड़ी टूट हो जाती, किंतु इतनी बड़ी संख्या में विधायकों का अखिलेश को समर्थन करना साफ तौर पर यह जाहिर करता है कि मुलायम सिंह का दाव सफल रहा है और शिवपाल यादव बुरी तरह चित हो चुके हैं. अब तक शिवपाल सहित दूसरे अखिलेश विरोधियों की राजनीति पूरी तरह से मुलायम सिंह के कन्धों पर ही टिकी थी, किन्तु अब राजनीतिक रुप से मुलायम खुद को खत्म कर चुके हैं और साथ ही ख़त्म हो चुकी है अखिलेश विरोधियों की राजनीति भी! प्रदेश की राजनीति से तो मुलायम खुद को पहले ही अलग कर चुके थे, वहीं केंद्र की राजनीति में उनकी पार्टी का कुछ खास रोल है नहीं. वैसे भी, सपा में नई पीढ़ी के लोग आ चुके हैं, जिन्हें अखिलेश पूरी तरह स्वीकार भी हैं तो खामख्वाह वह क्यों दाल भात में मूसलचंद बनें! बहुत उम्मीद है कि मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें और अखिलेश यादव की ऑफिशियल ताजपोशी सपा अध्यक्ष के रुप में हो जाए. अथवा उम्मीद इस बात की भी है कि सपा अध्यक्ष का आजीवन पद मुलायम को दे दिया जाए और अखिलेश कार्यकारी अध्यक्ष बना दिए जाएँ. मुलायम का ही यह पूरा गेम प्लान था और इस बात को इस तथ्य से भी बल मिलता है कि तमाम विवादों और दंगल के बावजूद अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव नई पार्टी बनाने की ओर नहीं गए. जाहिर तौर पर उन्हें शुरू से ही मजबूत यकीन था कि समाजवादी पार्टी उनकी ही पार्टी है. आखिर, इतना बड़ा आत्मविश्वास बिना मुलायम सिंह के सहारे कम से कम सपा में तो किसी को नहीं आ सकता था. सपा जैसी पार्टी, जिसकी नींव और ईंटों में सिर्फ मुलायम ही रहे हैं, पार्टी पर जिनका एकाधिकार रहा है, वैसी पार्टी में तो ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती है कि कल का छोकरा उन्हें धुल चटा दे! वह भी तब जब बगावत का स्वर पिछले 6 महीने से ज्यादा समय से चल रहा था. पर मुलायम के सहारे अखिलेश ने अपने एक-एक विरोधियों को धूल चटा दी है और इसमें राजनीति का पूरा सुख भोगकर मुलायम सिंह यादव ने 'बलिदान' करने का तंग भी ले लिया. Akhilesh Yadav Hindi Article, New, Mulayam, Shivpal, Amar Singh and Politics, Depth Analysis of Samajwadi Party Drama

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समझने वाले समझ रहे हैं कि मुलायम का बलिदान अखिलेश की खातिर है तो दूसरी ओर उन्हें भाई की खातिर बलिदान करने वाला समझने वाले भी कम नहीं हैं. रही बात शिवपाल की तो निश्चित रूप से उन्होंने मुलायम सिंह यादव का ताउम्र साथ दिया, पर वह यह कैसे भूल गए कि उन्होंने काफी कुछ पाया भी मुलायम ही की वजह से! उनके लिए यही कहा जा सकता है कि 'अपने 'हक़ और औकात' से ज्यादा मांगने पर "स्वाभाविक अधिकार" भी नेस्तनाबूत हो जाते हैं'. न केवल शिवपाल का राजनीतिक कैरियर समाप्त हो चुका है, बल्कि उन्होंने अपनी अगली पीढ़ी की राजनीति पर भी संकट खड़ा कर दिया है. शिवपाल के समर्थकों जैसे अमर सिंह का अभी बयान आया है कि जो मुलायम सिंह का साथ नहीं दे रहे हैं वह अनैतिक है, तो अतीक अहमद का बयान आता है कि यदि उनकी उम्मीदवारी से पार्टी में कोई संकट आता है तो वह अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जायेंगे. जाहिर तौर पर इन बयानों में निराशावाद और हार दिख जाती है. शिवपाल खेमे के यह बयान साफ तौर पर यही कह रहे हैं कि अखिलेश का पत्ता चमक गया है. समाजवादी पार्टी में अब वही हैं. यहां तक कि आजम खान जैसे मुस्लिम लीडर्स भी उनके साथ हो जायेंगे, जो हाल फिलहाल अखिलेश मुलायम के बीच सुलह कराने की कोशिश में लगे हुए हैं. आज़म की बात से याद आया कि जब अखिलेश की सरकार बनी थी, तब आज़म खान भी 'शिवपाली तेवर' में ही थे, किन्तु वक्त गुजरने के साथ वह समझ गए कि अब सपा का मतलब अखिलेश ही हैं, किन्तु शिवपाल जैसे मझे हुए राजनेता को यह बात कैसे समझ नहीं आई, यह राज राज ही रहने वाला है, क्योंकि अगले अपडेट में शायद सपा के प्रदेश अध्यक्ष पद से शिवपाल का इस्तीफा ही आने वाला है और इस्तीफे के बाद इतिहास उन्हें झटके से भुला देगा, इस बात में दो राय नहीं! अगर शिवपाल का इस्तीफा नहीं भी लिया गया तो उनके दो चार समर्थकों को छोड़कर किसी और को अखिलेश टिकट नहीं देने वाले और खबरों के अनुसार अमर सिंह जैसे लोगों को सुलह की स्थिति में सपा बाहर का रास्ता दिखला सकती है. हालात तेजी से बदल रहे हैं और जो बातें छन छनकर सामने आ रही हैं उसके अनुसार अपने पक्ष में सपा के 207 विधायकों का समर्थन दिखलाकर अखिलेश ने अपनी ताकत दिखला दी है और इसके बाद मुलायम सिंह से वह मिलने पहुंचे हैं. मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच सुलह के तीन फॉर्मुले सामने आने की बात कही जा रही है, जिसमें पहला है अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया जाए, तो दूसरा अखिलेश यादव को पार्टी का अध्यक्ष घोषित करके मुलायम सिंह यादव को संरक्षक बने रहने का है. अब इस बीच जो भी हो, किन्तु अखिलेश की जीत और उनके विरोधियों की हार में मुलायम सिंह का रोल अखिलेश को भली-भांति पता है और उनके जैसा व्यक्ति इसकी कद्र भी करेगा. हालाँकि, इस बीच शिवपाल यादव चुप हैं और देखना दिलचस्प होगा कि अपनी अगली पीढ़ी की खातिर वह खुले मन से अखिलेश को स्वीकार करते हैं अथवा ... !!!! लेख लिखे जाने तक अखिलेश और रामगोपाल का सपा से निष्कासन रद्द कर दिया गया है और संभवतः सुलह भी हो जाए, पर इस पूरे गेम के रचयिता मुलायम सिंह के दांव ने बना ही दिया अखिलेश को 'बॉस'!
ठीक अपनी ही तरह... !!

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.




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